कोई भी नया, अच्छा काम शुरू होता है तो मैं युवकों की तरह उत्साहित हो जाता हूं, जो इस उम्र में घातक सिद्ध हो सकता है। मगर सोचता हूं, जब मोदीजी देश की जनता के हित में सरकारी उद्यमों को बेचकर, अडाणी-अंबानी समेत देश-विदेश के सेठों की इतनी सेवा कर रहे हैं, तो क्या मैं इतना- सा खतरा भी नहीं उठा सकता?
जब उनके एक विधायक-भक्त ने कोरोना काल में उनका मंदिर बनाने का पवित्र संकल्प लिया है तो क्या मैं उसकी हौसला अफजाई भी नहीं कर सकता? जब मोदीजी 20 लाख करोड़ सेठों के जबड़ों से छीन कर, जनता पर (कथित रूप से) वार देने का कठोर फैसला ले सकते हैं तो क्या मैं उनके भक्त की खातिर अपनी जान को खतरे मेंं डाल नहीं सकता? क्या मुझमें इतनी भी देशभक्ति शेष नहीं? और बात मोदीजी का मंदिर बनाने की हो और मन में उत्साह तक न हो तो यह मानव जीवन समझो अकारथ गया, जो बार-बार नहीं मिलता!
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वैसे उत्तराखंड के विधायक गणेश जोशी के नाम का स्मरण तो सबको होगा। वही 'शक्तिमान- फेम' विधायक। वह बीजेपी के अखिल भारतीय प्रसिद्धि के विधायक हैं। उन्होंने उत्तराखंड पुलिस के घोड़े शक्तिमान को लाठियों से पीटने का कीर्तिमान बनाकर चार साल पहले जो शोहरत पा ली थी, वह विधायक-जन्म में मुश्किल से ही किसी को मिलती है। इसके लिए पिछले जन्म में पुण्य करने पड़ते हैं।
ऐसा गौरवशाली विधायक घोड़े को पीटने और जमानत पर छूटने के बाद मोदीजी की आरती लांच न करता (आजकल आरतियों की भी लाचिंग होने लगी है) और उनका मंदिर बनाने का संकल्प प्रकट न करता तो क्या करता? बहुत सही जा रहे हो गणेश दा। आपको तो उत्तराखंड का मुख्यमंत्री होना चाहिए था, मगर आपके साथ ऐसा अन्याय कि आप 'शक्तिमान कांड' के बाद मंत्री तक नहीं बनाए गए!
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गणेश दा या जोशी दा या गणेश जोशी जी, मोदीजी के ऐसे परमभक्त हैं कि जिसकी मिसाल इस युग में मिलना मुश्किल है। वह उन बिरले भक्तों में हैं, जो 1998 से मोदी जी की फोटो पूजा घर और घर के एक कमरे में रखते आए हैं, जब मोदीजी बीजेपी के महासचिव मात्र थे। ऐसे भविष्य दृष्टा, ऐसी प्रखर राजनीतिक मेधा के धनी या तो मोदीजी स्वयं हैंं या गणेश दा हैं!
आप तो जानते हैं कि बीजेपी में झूठ बोलने की परंपरा कभी नहीं रही। मोदीजी के प्रधानमंत्री बनने से पहले रही हो सकती है, मगर पिछले छह साल से बिल्कुल नहीं है। इसके अलावा चमचागीरी की अनुमति भी बीजेपी मेंं नहीं है, इसलिए गणेश दा की मोदी-भक्ति की प्राचीनता तो असंदिग्ध है। बाकी मोदी-भक्त तो 2014 से पैदा होने आरंभ हुए हैं। इसलिए हे प्राचीन मोदी-भक्त, तुम विश्व में मोदी जी का सबसे बड़ा मंदिर बनाकर दिखाओ। अयोध्या में बन रहे राममंदिर से भी बड़ा मंदिर। सरदार पटेल की मूर्ति से भी बड़ी प्रतिमा उसमें लगवाओ।
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वैसे तो अकेले अडाणी जी ही इसके लिए भरपूर चंदा दे देंंगे, मगर अंंबानीजी, टाटाजी वगैरह जी के क्रोध से बचने के लिए इनका भी यथोचित सहयोग लो। इधर मोदीजी दिल्ली में लोकतंत्र का निगमबोध घाट बनवा रहे हैं, तुम उधर उनका भूतो न भविष्यति मंदिर बनवा कर उदाहरण पेश करो। देवभूमि में केदारनाथ-बद्रीनाथ के मंदिर तो न जाने कब से हैं। एक और नाथ का मंदिर बनवा कर लोगों के जनम-जनम के पाप कटवाने मेंं सहायक बनो!
बस गणेश दा आपसे एक गलती हो गई। सर्वाधिक प्राचीन मोदी-भक्त होते हुए भी आपके दिमाग में मोदीजी का मंदिर बनाने का आइडिया बहुत देर से चमका। आप काफी पिछड़ गए। लोग तो बनवा कर तुड़वा भी बैठे हैं! कुछ गुजराती मोदी भक्तों ने 2015 में राजकोट में सात लाख रुपये की लागत से मोदी-मंदिर बनवाया था, मंदिर तो दो साल में बन गया मगर मोदीजी की मूर्ति बनवाने में चार साल लग गए।
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ऐसे सुमुख व्यक्ति की मूर्ति बनवाना कोई छोटा-मोटा चैलेंज नहीं था, मगर उन भक्तों का दुर्भाग्य कि मोदीजी को जीते जी अपना मूर्ति बन जाना अशुभ लगा। उन्होंने भारतीय परंपरा का हवाला देते हुए इस पर क्रोध प्रकट किया। पुलिस ने मोदीजी के इस सात्विक क्रोध को भी सिरियसली ले लिया। मूर्ति हटवा दी और मंदिर भी थोड़ा सा खंडित कर दिया।
खैर, यह तो पांच साल पुरानी बात है। आदमी उम्र और पद के अनुरूप परिपक्व भी होता है। बहुत सी बातों का बुरा मानना छोड़ देता है। यही कारण है कि एक तमिल किसान भक्त ने मोदी जी का मंदिर बनवाया तो मोदीजी ने उसकी भावनाओं को चोट नह़ीं पहुंचाई। अभी कुछ महीने पहले खबर थी कि मुजफ्फरनगर की मुस्लिम महिलाएं तीन तलाक कानून से इतनी अधिक खुश हैं कि वे मोदीजी का मंदिर बनवाने हेतु प्रयत्नशील हैं। मोदीजी इससे नाखुश नहीं हुए।
उनका एक भव्य मंदिर मेरठ में बनने की घोषणा भी हुई थी, जिसमें मोदीजी की सौ फुट ऊंची प्रतिमा स्थापित होने वाली थी। अमित शाह इस प्रोजेक्ट को लांच करने वाले थे, मगर पता नहीं आगे क्या हुआ!
इतनी सारी चुनौतियों के बीच गणेश दा आपको मोदी वंदना का यह प्रोजेक्ट लांच करना है। थोड़ा सोच समझ कर कीजिएगा। चुनौतियां और खतरे बहुत हैं, मगर हिम्मते मर्दांं तो मददे मोदी।
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