आज विश्व स्तर पर जिन समस्याओं को सबसे गंभीर माना जा रहा है, उनके समाधान में महात्मा गांधी के विचारों से आज भी महत्त्वपूर्ण सीख मिल सकती है। अगर इन अतिगंभीर समस्याओं से जोड़कर गांधी जी के विचारों को विश्व मंच पर सामने लाया जाए, तो इससे इन समस्याओं पर हो रहे विमर्श में बहुत सहायता मिलेगी।
यह समय धरती के इतिहास का ऐसा बहुत विशिष्ट दौर है, जिसमें मानव निर्मित कारणों से धरती पर जीवन के अस्तित्व मात्र का खतरा बढ़ता जा रहा है। एक ओर तो जलवायु बदलाव का संकट विकट हो रहा है और इसके साथ तमाम ऐसी पर्यावरणीय समस्याएं (जैसे समुद्रों का अम्लीकरण, जैव विविधता का तेज ह्रास और गहराता जल-संकट) गहरा रही हैं, जिनके कारण जीवन के अस्तित्व-मात्र के लिए गंभीर संकट उत्पन्न हो रहा है। दूसरी ओर महाविनाशक हथियारों के भंडार एकत्र होने और इनके उपयोग की बढ़ती संभावनाएं भी मानव और अन्य जीवन के लिए बहुत बड़े खतरे उपस्थित कर रही हैं।
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इन बेहद चिंताजनक समस्याओं से घिरी दुनिया में याद आती है गांधी जी के उन संदेशों की जिन्होंने पर्यावरण संरक्षण का नाम लिए बिना ही पर्यावरण रक्षा की राह दिखाई थी। उस समय दुनिया में एक ओर तो पूंजीवाद की राह पर चल कर बड़ी शान-शौकत प्राप्त करने का दावा किया जा रहा था, तो दूसरी ओर साम्यवाद की राह पर चलकर बड़े सब्जबाग प्राप्त करने के दावे हो रहे थे।
गांधी जी ने इन दोनों तरह के दावों से हटकर सादगी और समता पर आधारित एक ऐसे समाज की बात की जिसमें अपने आप पर्यावरण के विनाश की समस्याएं न्यूनतम हो जाती हैं। इसके साथ उन्होंने स्वच्छता, विकेंद्रीकरण और स्वैच्छिक समाज सेवा पर भी जोर दिया, जिससे यह संभावना और बढ़ जाती है। बड़े शहरों को विकास का प्रतीक मानने के दौर में उन्होंने गांवों को अधिक महत्त्व देने की ओर ध्यान दिलाया और ग्रामीण विकास में भी विकेंद्रीकरण और पर्यावरण की रक्षा पर अधिक जोर दिया।
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आज जलवायु बदलाव का सामना करने के तकनीकी उपायों पर ही अधिक चर्चा हो रही है, पर महात्मा गांधी ने बताया कि सादगी और समता के मूल मूल्यों पर आधारित समाज में ही इस तरह के विनाश से बचाव की सबसे अधिक संभावना है। आज ऐसी समस्याओं पर गहराई से अध्ययन करने वाले विद्वान भी कहीं न कहीं इसी निष्कर्ष पर पहुंच रहे हैं कि पर्यावरण के संकट के समाधान के लिए समाज के बुनियादी मूल्यों में बदलाव चाहिए, सादगी और समता आधारित समाज चाहिए।
इसी तरह यु़द्ध और अति विनाशक हथियारों के उपयोग की संभावना को समाप्त करने के लिए अब माना जा रहा है कि समय-समय पर होने वाले समझौते और शांति प्रयास ही पर्याप्त नहीं हैं। मूल्यों में ऐसे बदलाव चाहिए जिससे युद्ध हिंसा और शस्त्रों की दौड़ भी रुक सके।
अहिंसा की सोच एक बहुत व्यापक सोच है जो जीवन के सभी पक्षों से जुड़ी है- हमारे विभिन्न संबंधों से जुड़ी है- फिर चाहे वह अन्य मनुष्यों के संबंध हों, अन्य जीवों से संबंध हों, प्रकृति से संबंध हों। अतः एक बेहतर दुनिया बनाने और दुख-दर्द को टिकाऊ रूप से कम करने के प्रयास बुनियादी तौर पर अहिंसा के सिद्धान्त की व्यापक स्वीकृति और प्रतिष्ठा से जुड़े हैं।
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अहिंसा का अर्थ केवल हिंसक कार्य न करने से ही नहीं है अपितु अहिंसा हिंसक सोच को हर स्तर पर त्यागने से जुड़ी है। हिंसक सोच विभिन्न स्तरों पर दूसरों पर आधिपत्य करने से जुड़ी है। यह आधिपत्य करने, किसी को दबाकर रखने, अपने स्वार्थ साधने के लिए दूसरों का महज उपयोग करने, इसके लिए तरह-तरह की जोर जबरदस्ती करने की प्रवृत्तियां बहुत प्रचलित है और दुख-दर्द का एक बड़ा कारण भी है। अहिंसा को इस व्यापक अर्थ में अपनाया जाए तो इससे बहुत सी समस्याएं स्वयं सुलझती हैं और इस संदर्भ में महात्मा गांधी का जीवन और विचार बहुत प्रेरणादायक हो सकते हैं।
गांधी जी ने अन्याय और विषमता के विरुद्ध लड़ते हुए विकल्प के रूप में कोई बहुत ऐसे सब्जबाग नहीं दिखाए कि सफलता मिलने पर तुम भी मौज-मस्ती से रहना। उन्होंने मौज-मस्ती और विलासिता को नहीं मेहनत और सादगी को प्रतिष्ठित किया। सभी लोग मेहनत करें और इसके आधार पर किसी को कष्ट पहुंचाए बिना अपनी सभी बुनियादी जरूरतों को पूरा कर सकें और मिल-जुल कर प्रेम से रहें, सार्थक जीवन का यह बहुत सीधा-सरल रूप उन्होंने प्रस्तुत किया।
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दूसरी ओर आज अंतहीन आर्थिक संवृद्धि की ही बात हो रही है जबकि विषमता और विलासिता के विरुद्ध कुछ नहीं कहा जा रहा है। विकास के इस माॅडल में कुछ लोगों के भोग-विलास के जीवन के लिए दूसरों के संसाधन छिनते हैं और पर्यावरण का संकट विकट होता है। इसके बावजूद इस माॅडल पर ही अधिक तेजी से आगे बढ़ने को महत्त्व मिल रहा है और इस कारण विषमता बढ़ रही है, अभाव बढ़ रहे हैं, असंतोष बढ़ रहा है और इस कारण हिंसा और युद्ध के बुनियादी कारण बढ़ रहे हैं।
दूसरी ओर गांधी जी की सोच में अहिंसा, सादगी, समता, पर्यावरण की रक्षा का बेहद सार्थक मिलन है जो दुनिया को ऐसी राह दिखाता है जिससे न्यायसंगत ढंग से, टिकाऊ तौर पर और बड़ा पर्यावरणीय संकट उत्पन्न किए बिना, अमन चैन से सभी लोग अपनी बुनियादी जरूरतें पूरी कर सकते हैं और अमन-चैन से रह सकते हैं।
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