पिछले दशकों में मैंने कई देशों की यात्राएं की हैं, शायद 30 या 40 के करीब। किसी और देश में मैंने यह नहीं देखा है कि घर पर किसी अतिथि या बिना बताए पहुंचने वाले अंजान व्यक्ति को एक गिलास पानी दिया जाता है। मेरी मां ने मुझे यह अलग से नहीं सिखाया, लेकिन क्योंकि जब भी कोई आता था तो वे ऐसा ही करती थीं, इसलिए मेरी भी यह आदत हो गई।
इन दिनों 4 दशक पहले की तुलना में कई अंजान लोग हमारा दरवाजा खटखटाते हैं। कुरियर देने आए लोग, केबल टीवी ठीक करने आए लोग और इस तरह के कई लोग लगभग हर रोज आते हैं। वे जितने घरों में जाते हैं वहां उनकी यह उम्मीद नहीं होती कि उनसे एक अतिथि के तौर पर व्यवहार किया जाएगा, लेकिन क्योंकि यह मेरी आदत है तो मैं अब भी उनसे बैठने और पानी पीने के लिए पूछ लेता हूं।
जब कुछ साल पहले मैंने वाल्मीकी रामायण पढ़ा (मैंने इस ग्रंथ का जो रूप पढ़ा था उसका अनुवाद मेरी दोस्त अर्शिया सत्तार ने किया था और उसको पेंगुइन ने प्रकाशित किया था), मुझे आश्चर्य हुआ कि यही परंपरा श्री राम के समय में भी थी। हर बार जब वे एक नई जगह जाते थे, चाहे वो जंगल में किसी ऋषि की कुटिया हो या गांव में किसी गरीब व्यक्ति का घऱ, उन्हें एक गिलास पानी दिया जाता था। यह हमारी भारतीय परंपरा है और हमें इस पर गर्व होना चाहिए, और जैसा कि मैंने कहा कि खासतौर पर इसलिए क्योंकि दुनिया में किसी देश में ऐसे किसी चलन का होना मालूम नहीं पड़ता।
हम सब अतिथि देवो भव: वाली बात से वाकिफ हैं, जो एक उपनिषद् में दर्ज है। सही पंक्ति है मातृ देवो भव:, पितृ देवो भव:, आचार्य देवो भव:, अतिथि देवो भव: और हमें सूरत के अपने स्कूल में यह वाक्य सिखाया गया था। इसका मतलब हुआ कि माता, पिता, शिक्षक और अतिथि को ईश्वर की तरह सम्मान करना चाहिए। हममें से जो लोग खुद को हिंदू के रूप में देखते हैं उन्हें हमारे ग्रंथों से मिले इन निर्देशों की रोशनी में हिंदू होने के सही अर्थ को समझना चाहिए।
क्या हमने ऐसा सम्मान या सहानुभूति तक उनके लिए देखा है जिन्हें असम में नागरिकता से वंचित किया जा रहा है? आरोप यह है कि 40 लाख में से कई लोग जो 1971 से अपने भारतीय नागरिक होने को साबित नहीं कर पाए, वे बांग्लादेशी हैं।
कुछ लोगों के लिए सहानुभूति है जैसे कि पूर्व राष्ट्रपति फखरूद्दीन अहमद के परिवार वाले, जो अपनी नागरिकता साबित नहीं कर पाए। लेकिन ऐसा सोचा गया कि यह सारे सही और योग्य भारतीय हैं जिन्हें सूची से बाहर कर दिया गया है।
मेरा सरोकार सबके लिए हैं। यहां तक कि कोई अगर किसी बांग्लादेशी का बेटा-बेटी या पोता-पोती हो या फिर खुद बांग्लादेशी ही क्यों न हो, तो भी क्या? मेरी संस्कृति, मेरा धर्म और मेरी परवरिश मुझे बताती है कि मैं उनके साथ मानवीय व्यवहार करूं, और खासतौर पर उनके साथ जो गरीब और कमजोर हैं। मैं नहीं समझता कि राष्ट्रीय नागरिकता सूची बनाने की प्रक्रिया में हम उनके साथ हिंदू मानवता और मानवीयता दिखा रहे हैं, जो मुझे बुनियादी रूप से क्रूर लगता है। हम क्या कल्पना करते हैं कि जो लोग बांग्लादेश में पैदा हुए या जिनके अभिभावक बांग्लादेश में पैदा हुए, वे हमारे देश में क्या कर रहे हैं? बिना सोचे-समझे दी गई प्रतिक्रिया लापरवाह आरोप जैसी होगी कि वे हमारे देश में आंतकवाद फैला रहे हैं और वे हमारे समाज में घुसपैठ कर रहे हैं और हमारे पास जो है उसका फायदा उठाने की कोशिश कर रहे हैं।
इसी तरह के आरोप अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप भी लगा रहे हैं। उन्होंने कहा है कि वे ‘मरे-कुचले देशों’ से अप्रवासी नहीं चाहते हैं, बल्कि सिर्फ नार्वे जैसे देशों से चाहते हैं। इसका मतलब यह हुआ कि वे अफ्रीका और भारत के लोग नहीं चाहते हैं (हालांकि कई भारतीय अप्रवासी बेहद मूल्यवान एच1बी वीजा के लिए आवेदन देते हैं जो अमेरिकी अर्थव्यवस्था को फायदा पहुंचाता है), बल्कि सिर्फ गोरे देशों से ही चाहते हैं। मुख्य गुस्सा मेक्सिको के लोगों की तरफ है जिनके बारे में उनकी राय है कि वे ‘भीख मांगने’ के लिए आते हैं। यह अमेरिकी अभिव्यक्ति का एक तरीका है जिसका मतलब है कि यह लोग राज्य की सुविधाओं पर आश्रित रहते हैं जैसे कि मुफ्त आवास, सस्ता सार्वजनिक ट्रांसपोर्ट और बेरोजगार होने पर मिलना वाले फायदे, लेकिन वे आलसी होते हैं। मैं अमेरिका को अच्छी तरह जानता हूं और मेरा अनुभव यह है कि मेक्सिको के अप्रवासियों के साथ-साथ गैर-कानूनी गुजराती पटेल अप्रवासी उस देश के सबसे मेहनतकश लोगों में शामिल हैं। हम पटेल मोटल्स के बारे में जानते हैं लेकिन हमें यह भी जानना चाहिए कि इन लोगों में ज्यादातर लोग बिना सही वीजा के वहां पहुंचे और मोटल के कमरों को साफ करने से अपना करियर शुरू किया, जिसमें बहुत ज्यादा शारीरिक मेहनत लगती है।
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इसी तरह की चीज बांग्लादेशियों के साथ हो रही है, या उन लोगों के साथ जो शायद भारतीय हैं लेकिन जिन्हें बांग्लादेशी समझा जा रहा है। अगर हम पूरे देश में रेस्टोरेंट में काम करने वालों और चौकीदारों पर नजर डालें या ऐसे किसी अन्य पेशे में काम करने वाले लोगों पर, तो साफ पता चलेगा कि उनमें से ज्यादातर बंगाली हैं, चाहे वो पूर्व के हों या पश्चिम के।
इटली में कई गैर-कानूनी अप्रवासी हैं, लेकिन वे बिना किसी संदेह के कड़ी मेहनत करने वाले उद्यमशील हैं और वे वहां इसलिए गए हैं क्योंकि वे समझते हैं कि वह रहने के लिए एक अच्छी जगह है। हम ऐसे लोगों पर लानतें क्यों भेजे जो हमारे पास इसलिए आते हैं क्योंकि वे अपने देश की तुलना में हमारे देश को ज्यादा पसंद करते हैं।
मुझे पाठकों को वह बताने की जरूरत नहीं जो आप पहले से जानते हैं, वह यह है कि अमेरिका और यूरोप के उलट हमारे यहां सस्ते दर पर मिलने वाले सार्वजनिक आवास नहीं है, हमें बेरोजगारी भत्ता नहीं मिलता और हमारे पास अच्छी सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था भी नहीं है। किसी गरीब के रहने के लिए भारत एक मुश्किल जगह है। हमें यह बात याद रखनी चाहिए जब हम इस मसले पर बहस कर रहे हैं कि इन लोगों को विदेशी घोषित करने के सफर में अगला पड़ाव क्या होगा और यह बात समझने की कोशिश कर रहे हैं कि उन लोगों के साथ क्या किया जाए। और शक्तिशाली पदों पर बैठे हम जैसे लोगों को, जिन्हें अपनी संस्कृति, परंपरा और धर्म पर गर्व हैं, खुद से पूछना चाहिए कि हम ऐसे व्यक्तियों के संदर्भ में अतिथि देवो भव: को कैसे समझें।
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