विचार

आकार पटेल का लेख: नए कानून और पुराने कानूनों में हो रहे बदलावों से अपने बहुलतावादी और आधुनिक पथ से भटक गया है भारत

ऐसा मान लिया गया है कि भारत के मध्य वर्ग की तरक्की रुक गई है तो रुक गई है। इसी तरह यह भी मान लिया गया है कि 2014 के बाद से भारत ने अपनी बहुलतावादी, आधुनिक और सेक्युलर सरकार का रास्ता छोड़ दिया है और बीजेपी तो हमेशा से ऐसा ही चाहती थी।

सोशल मीडिया
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मैंने कुछ हफ़्ते पहले लिखा था कि किस तरह हाल के वर्षों में भारत के मध्यम वर्ग की तरक्की बंद हो गई है। हमारी अर्थव्यवस्था के प्रमुख संकेतक – रिहायशी मकानों, कारों, दोपहिया वाहनों, फ्रिज, वाशिंग मशीन, टीवी जैसी उपभोक्ता वस्तुओं की बिक्री सपाट रही है। कारोबार चलाने के लिए बैंकों से लिया जाने वाला कर्ज एक दशक पहले की तुलना में एक तिहाई से भी कम रहा है। कुछ सप्ताह पहले सरकार द्वारा जारी श्रम बल सर्वेक्षण से पता चला है कि पहली बार कृषि क्षेत्र में पहले के मुकाबले ज्यादा लोग काम कर रहे हैं। इसका अर्थ है कि लोगों ने मैन्यूफैक्चरिंग या सेवाओं में अपनी नौकरी छोड़ दी है या उन्हें निकाल दिया गया है और वे खेतों में काम कर रहे हैं।

बीते कुछ सालों में औपचारिक क्षेत्र में मैन्यूफैक्चरिंग काम वाली नौकरियां पिछले कुछ सालों में बढ़ने के बजाय कम हुई हैं। इसके साथ ही एक काम यह भी हुआ है कि पिछले चार वर्षों में दसियों हज़ार डॉलर की मिलकियत वाले या कम से कम 7 करोड़ की दौलत वाले भारतीयों ने देश छोड़ दिया है। मैंने अपनी अगली पुस्तक में इन सब पर विस्तार से लिखा है और इस कॉलम में भी इसके बारे में लिखा है।

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हाल के वर्षों का दूसरा दिलचस्पएक और पहलू सामने आया है और वह यह कि भारत में कुछ ऐसे कानून बनाए गए हैं जो भारत को एक विशेष दिशा में ले जा रहे हैं। कुछ साल पहले ही गुजरात हाई कोर्ट ने कुछ दिनों पहले तथाकथित 'लव जिहाद' कानून के कुछ हिस्सों की आलोचना की थी। लेकिन 2014 के बाद से कई राज्यों में इसी तरह के कानून बनाए गए हैं। कानूनों का उद्देश्य धर्मांतरण को अपराधी बनाकर हिंदुओं और मुसलमानों के बीच विवाह को असंभव नहीं तो मुश्किल बनाना है, जो कि जाहिर तौर पर भारतीयों का मौलिक अधिकार पर हमला है।

उत्तराखंड धर्म स्वतंत्रता अधिनियम, 2018, हिमाचल प्रदेश धर्म स्वतंत्रता अधिनियम, 2019; उत्तर प्रदेश विधि विरुद्ध धर्म सम्परिवर्तन प्रतिशेध , 2020 (धार्मिक धर्मांतरण का निषेध अध्यादेश); मध्य प्रदेश धर्म स्वातंत्रेय अध्यादेश 2020; और गुजरात धर्म की स्वतंत्रता (संशोधन) अधिनियम, 2021 ऐसे ही कानून हैं।

ये सारे कानून बीजेपी शासित राज्यों में ही लाए गए हैं, और सारे कानून बीते तीन साल के दौरान ही बने हैं। लेकिन इनमें से किसी भी कानून को किसी भी डेटा या आंकड़ों के आधार पर नही बनाया गया है।

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इससे पहले बीजेपी शासित राज्य गौमांस रखने के खिलाफ कानून बना रही थे। महाराष्ट्र में महाराष्ट्र पशु संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2015 (देवेंद्र फडणवीस सरकार द्वारा पारित) था; हरियाणा गौवंश संरक्षण और गौसंवर्धन अधिनियम, 2015; गुजरात पशु संरक्षण (संशोधन) विधेयक, 2017; और द कर्नाटक प्रिवेंशन ऑफ स्लॉटर एंड प्रिजर्वेशन ऑफ कैटल ऑर्डिनेंस, 2020 हमारे सामने हैं।

गुजरात में गौ हत्या के लिए आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है। किसी अन्य आर्थिक अपराध में इस तरह की सजा का प्रावधान नहीं है, और भारतीय कानून कहता है कि गौ हत्या कोई धार्मिक अपराध नहीं बल्कि आर्थिक अपराध है। फिर से बताना सही रहेगा कि ये कानून भी 2014 के बाद ही बने हैं और इसके बाद देशभर में मुसलमानों की लिंचिंग की घटनाएं सामने आईं जिन्हें पूरी दुनिया ने नोटिस किया।

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पाठकों ने यूएपीए कानून के बारे में सुना होगा जिसके तहत स्टेन स्वामी को जेल में डाल दिया गया था और हिरासत में उनकी मृत्यु हो गई थी। गैरकानूनी गतिविधियां (रोकथाम) संशोधन अधिनियम, 2019 सरकार को संदेह के आधार पर किसी भी व्यक्ति को 'आतंकवादी' के रूप में वर्गीकृत करने का अधिकार देता है। ऐसे व्यक्ति को आतंकवादी कहलाने और जेल में डालने के लिए किसी आतंकवादी संगठन से संबंध रखने की आवश्यकता नहीं है। संशोधन एक 'आतंकवादी अधिनियम' को परिभाषित करता है, जो 'किसी भी व्यक्ति को चोट पहुंचाने, किसी भी संपत्ति को नुकसान पहुंचाने, आपराधिक बल के माध्यम से किसी भी सार्वजनिक अधिकारी को डराने का प्रयास करने और सरकार या किसी व्यक्ति को ऐसा करने या उससे दूर रहने के लिए मजबूर करने के लिए किए गए किसी भी कार्य को अपराध करार देता है। यह कानून सरकार को , बिना कृत्यों के वास्तव ने होने से पहले ही ऐसे किसी भी काम के लिए अपराधी ठहराने की शक्ति देता है जिससे 'धमकी देने की संभावना' या 'लोगों में आतंक होने की संभावना' है।

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गुजरात अचल संपत्ति के हस्तांतरण का निषेध और अशांत क्षेत्रों में परिसर से किरायेदारों के संरक्षण के लिए प्रावधान अधिनियम, 2019 एक ऐसा कानून है जो गुजराती मुसलमानों को अलग-थलग रखता है। लोगों को संपत्ति बेचते और खरीदते समय अपने धर्म को प्रकट करने की कानूनी बाध्यता है। उन क्षेत्रों में जिन्हें राज्य द्वारा 'अशांत' घोषित किया गया है,वहां हिंदू सरकार की अनुमति के बिना मुसलमानों को और मुसलमान हिंदुओँ को अपनी संपत्ति नहीं बेच सकते। 2019 में जिस संशोधन को मंजूरी दी गई, उसने कलेक्टर को यह निर्धारित करने का अधिकार दिया कि क्या संपत्ति की बिक्री से मुसलमानों का 'अनुचित जमावड़ा’ तो नहीं हो रहा है।

इससे सरकार को यह अधिकार भी मिल गए जिसके तहत कलेक्टर के फैसले की समीक्षा की जा सकती है भले ही इसके लिए बेचने वाले और खरीदने वाले ने कोई अपील की भी न हो। यहां तक कि जिन इलाकों में मुसलमानों को संपत्ति खरीदने की अनुमति नहीं है वहां विदेशियों को संपत्ति खरीदने और किराए पर लेने की छूट है।

इन कानूनों का भारत में खुलकर इस्तेमाल होता है और सरकार पर कोई रोकाटोकी नहीं है क्योंकि किसी कानून के दुरुपयोग की सजा नहीं है और कोई जिम्मेदारी भी नहीं है, यहां तक कि हिरासत में हुई मौतों के लिए भी किसी की जिम्मेदारी तय नहीं है।

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मुझे नहीं पता कि कितने पाठक इन कानूनों से परिचित गैं और अगर उन्हें पता भी हो तो भी इन कानूनों में 2014 के बाद से जो बदलाव किए जा रहे हैं उन्हें जानकर वे चौंक जाएंगे। सबसे अधिक चौंकाने वाली बात तो यह है कि इन कानूनों ने देश को क्या से क्या बना दिया है इस पर कोई बहस ही नहीं होती। अखबारों में इनके बारे में कोई टिप्पणी तक नजर नहीं आती। ये बिल्कुल उसी तरह है जैसा कि अर्थव्यवस्था और उसे जुड़े आंकड़ों को लेकर है।

जो भी संख्या ऊपर बताई गई हैं उन्हें न तो सरकार ने और न ही किसी सरकार समर्थक ने भ्रमित बताया है। इन पर कोई टिप्पणी नहीं होती और ऐसा मान लिया गया है कि भारत के मध्य वर्ग की तरक्की रुक गई है तो रुक गई है। इसी तरह यह भी मान लिया गया है कि 2014 के बाद से भारत ने अपनी बहुलतावादी, आधुनिक और सेक्युलर सरकार का रास्ता छोड़ दिया है और बीजेपी तो हमेशा से ऐसा ही चाहती थी।

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