विचार

भारतीय अर्थव्यवस्था की सही स्थिति को तथ्यों और आंकड़ों के जरिये सामने लाना जरूरी

विमुद्रीकरण के बारे में नितिन देसाई ने बताया है कि यह उस समय किया गया जब विश्व अर्थव्यवस्था की स्थिति ठीक थी और तेल की कीमत कम थी। उस समय हमें निर्यात बढ़ाने और आर्थिक संवृद्धि को नए सिरे से अधिक करने पर जोर देना चाहिए था। निर्यातों को बढ़ाने का यह अनुकूल समय था। पर हमने यह अवसर गवां दिया।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया भारतीय अर्थव्यवस्था की स्थिति को लेकर चिंतित हैं अर्थशास्त्री

केंद्र सरकार की ओर से अर्थव्यवस्था की समुचित प्रगति के बारे में दावे कई बार किए गए हैं, पर इसके बावजूद देश और दुनिया के कई विख्यात अर्थशास्त्री अर्थव्यवस्था की स्थिति के बारे में बार-बार चिंता व्यक्त कर रहे हैं।

नोबेल पुरस्कार विजेता अर्थशास्त्री अमर्त्य सेन ने 8 जुलाई को एक कार्यक्रम में कहा कि अर्थव्यवस्था की संवृद्धि दर चाहे तेज हो, पर वर्ष 2014 के बाद इसने जो छलांग लगाई है वह गलत दिशा में है। इस कारण हमारी उपलब्धियां पिछड़ रही हैं। उन्होंने कहा कि विषमता दूर करने में, विशेषकर इस दौर में विफलता देखी गई है।

उसी कार्यक्रम में एक अन्य विख्यात अर्थशास्त्री ज्यां द्रेज ने कहा कि मोदी सरकार को आर्थिक संवृद्धि के मोह से बाहर निकलकर विकास पर व्यापक दृष्टिकोण में सोचना चाहिए। उन्होंने कहा कि कई महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारियों से पल्ला झाड़कर केंद्र सरकार इन्हें कॉरपोरेट क्षेत्र या राज्य सरकारों को सौंप रही है। प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में कोई बड़ी पहल मोदी सरकार ने नहीं की है। कमजोर वर्ग के लिए यह समय अच्छा नहीं रहा है और नोटबंदी से कमजोर वर्ग को गंभीर क्षति पंहुची। ग्रामीण मजदूरी दर में इस दौरान वृद्धि नहीं हुई है। सार्वजनिक वितरण प्रणाली जैसे महत्त्वपूर्ण क्षेत्र को आधार से जोड़ने पर भ्रष्टाचार कम नहीं हुआ, बल्कि लोगों की समस्याएं बढ़ी हैं। आयुष्मान भारत को लेकर दावे अतिश्योक्तिपूर्ण हैं, जिसे स्वास्थ्य के क्षेत्र में बहुत बड़ी पहल बताया जा रहा है।

इन दोनों अर्थशास्त्रियों ने अर्थव्यवस्था की स्थिति के बारे में जो चिंता व्यक्त की है, वह अधिक व तेज आर्थिक संवृद्धि या इकॉनामिक ग्रोथ के दावों को स्वीकार करते हुए ही की है। पर प्रो अरुण कुमार एक ऐसे वरिष्ठ अर्थशास्त्री है जिन्होंने तेज आर्थिक संवृद्धि के दावों और जीडीपी में अधिक वृद्धि के दावों को भी चुनौती दी है। उनका मानना है कि असंगठित क्षेत्र में जितनी क्षति हाल के समय में देखी गई है उसके कारण जीडीपी की संवृद्धि सरकारी आंकड़ों में दिखाए गए आंकड़ों से कहीं कम है और उसमें भारी गिरावट आई है। इसी तरह रोजगार में वृद्धि के सरकारी दावों को भी प्रो अरुण कुमार ने खारिज किया है।

प्रो अरुण कुमार देश में काले धन के अध्ययन के विशेषज्ञ हैं। उन्होंने नोटबंदी के असर का विस्तृत विश्लेषण कर बताया है कि इससे काले धन की समस्या को कम करने में कोई भी योगदान प्राप्त नहीं हुआ है।

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प्रो नितिन देसाई एक जाने-माने अर्थशास्त्री हैं जो भारतीय सरकार में भी उच्चतम पदों पर रह चुके हैं। वित्त मंत्रालय में वे प्रमुख आर्थिक सलाहकार और सेक्रेटरी के शीर्ष पदों पर कार्य कर चुके हैं। उन्होंने हाल ही में कहा कि वे मौजूदा दौर को योजना बताए बिना लक्ष्य घोषित करने का दौर मानते हैं। उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि वर्ष 2022 में सबके लिए आवास का लक्ष्य घोषित तो कर दिया गया, पर क्या किसी ने विस्तार से इसका विश्लेषण किया है कि इसे प्राप्त करने के लिए क्या-क्या कदम उठाने होंगे? इसके लिए आवास निर्माण की क्या दर चाहिए? इसके लिए बिजली और पेय जल आपूर्ति के क्षेत्र में क्या करना जरूरी है? उन्होंने कहा कि ऐसे सवालों पर तो किसी ने काम किया ही नहीं। पर एक बहुत बड़ा शानदार लक्ष्य घोषित कर दिया जैसे कि यह सभी आवास सरकार स्वयं बना कर देने वाली है।

विमुद्रीकरण के बारे में नितिन देसाई ने बताया है कि यह उस समय किया गया जब विश्व अर्थव्यवस्था की स्थिति ठीक थी और तेल की कीमत कम थी। उस समय हमें निर्यात बढ़ाने और आर्थिक संवृद्धि को नए सिरे से अधिक करने पर जोर देना चाहिए था। निर्यातों को बढ़ाने का यह अनुकूल समय था। पर हमने यह अवसर गवां दिया और विमुद्रीकरण ने हमारी अर्थव्यवस्था को बेहतर करने के प्रयासों को एक वर्ष से भी अधिक पीछे धकेल दिया। नितिन देसाई ने कहा कि विमुद्रीकरण की जो कीमत हमें चुकानी पड़ी वह सरकार अभी तो स्वीकार नहीं कर रही, पर इतिहासकार हमें भविष्य में इसके बारे में बताएंगे।

इन विभिन्न शीर्ष अर्थशास्त्रियों के हाल के इन बयानों में अर्थव्यवस्था की जो तस्वीर सामने आती है वह चिंताजनक है। इससे पता चलता है कि सरकार के बड़ी उपलब्धियों के दावे प्रायः अतिश्योक्तिपूर्ण रहे हैं या अनुचित रहे हैं। यदि ऐसा चलता रहा तो गलतियों को सुधारने के लिए उपयुक्त कदम उठाने की उम्मीद कम होगी। अतः इस समय यह बहुत जरूरी है कि सही स्थिति को विभिन्न तथ्यों और आंकड़ों के साथ सामने लाया जाए।

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