उच्चतम न्यायालय में केन्द्र सरकार ने समलैंगिक विवाह का विरोध करते हुए कई बिन्दु रखे हैं। उनमें से एक बिन्दु सत्ता व्यवस्था की वास्तविक मानसिकता को प्रकट करता है। उनका कहना है कि विशिष्ट विवाह कानून के तहत हसबैंड या पति की व्याख्या पुरुष के रूप में ही हो सकती है। पत्नी या वाइफ की व्याख्या भी स्त्री के रूप में ही हो सकती है। कानून बनाने वालों की यह मंशा थी और यह सामाजिक, सांस्कृतिक मूल्यों पर आधारित है।
यदि ऐसा मान भी लें कि कानूनी प्रावधान तय करते समय विधायिका की यही धारणा थी, तो क्या यह बदलते संदर्भ, समझ के अनुरूप इसे कभी बदला नहीं जाएगा? क्या हर मूल्य को नए वैज्ञानिक, मनोवैज्ञानिक, सामाजिक परिप्रेक्ष्य में नवाचार से महरूम रखा जाएगा? सिर्फ इसलिए कि ऐसा पहले सोचा नहीं गया। खैर, इन सबसे इतर क्या यह सवाल नहीं उठाया जाना चाहिए कि पति-पत्नी, हसबैंड-वाइफ एक दकियानूसी ख्याल, अल्फाज और संबंध विवेचना है। इसका प्रयोग काल बाह्य हो चला है। इन शब्दों के अर्थ में पितृसत्ता का संपूर्ण प्राधन्य छुपा है।
Published: undefined
पति शब्द का उपयोग ऋृग्वेद में भी मिलता है। प्रसिद्ध भाषाविद् मोनियर विलियम्स के संस्कृत-अंग्रेजी शब्दकोष के अनुसार, पति हसबैंड का समतुल्य हिन्दी शब्द है। पति का शाब्दिक अर्थ अधिकारी, मालिक, स्वामी या नियंत्रक है। इसी तरह उसका उपयोग भी किया गया है, वह जिसके पीछे उसका कुनबा चले। उसी के स्वामित्व में पत्नी, संतान को रहना है।
सामाजिक, सांस्कृतिक मान्यता में पति का दर्जा पुरुष को ही दिया गया है। स्त्री ही पत्नी होती है। पत्नी माने वह जो किसी के स्वामित्व में है। मात्र शाब्दिक अर्थ की भी बात नहीं है। संदर्भ और प्रयोग भी देखा जाना चाहिए। लगभग हर प्राचीन ग्रंथ में यही मालिकत्व का सांस्कृतिक भाव प्रकट होता है। महाभारत में युधिष्ठिर पति होने के नाते पत्नी को अपनी संपत्ति मान दांव पर लगाते हैं। यह प्रसिद्ध श्लोक क्या दर्शाता है?-
‘कार्येषु दासीः, करणेषु मंत्री,
भोजेषु माता, शयनेशु रंबा
रूपेषु लक्ष्मी, क्षमायेषु धरित्री
षट धर्म युक्तः, कुल धर्म पत्नीः’
आदर्श पत्नी का चित्रण हर प्रकार से अपने मालिक या स्वामी को प्रसन्न करने वाली स्त्री का होता है। उसका संपूर्ण जीवन अधीनस्थ है।
Published: undefined
पत्नी की भूमिका अपने उत्कृष्ट स्तर पर किसी कनिष्ठ सहायक-सी होती है। निकृष्टतम प्रस्तुति किसी दासी के बतौर होती है। लक्ष्मी देवी सदैव चरण दबाती दिखाई गई हैं। सच में लक्ष्मी जी ने चरण दबाए या नहीं, पता नहीं। इसलिए देवताओं की साकार, सचरित्र, सगुण प्रस्तुति तो मानवीय कल्पना मात्र है। हमारे अपने घरों में भी क्या देखा जाता है? पत्नी माने कनिष्ठ सहायक अथवा दोयम दर्जे की व्यक्ति।
आधुनिक दौर में यह थोड़ा बदला है। मगर बदलाव अपूर्ण, अपरिपक्व और अधूरा है। घरेलू काम में हाथ बंटाते पति यह मानते हैं कि वह कुछ अतिरिक्त कर रहे हैं। पत्नी का सहयोग कर रहे हैं। जैसे कि घरेलू काम मात्र पत्नी का हो। आजाद ख्याल घरों में भी स्त्री को लगता है कि पति से इजाजत लेनी चाहिए। पति सूचित करते हैं, पत्नी इजाजत लेती है। जहां इजाजत मिल जाती है, वहां स्त्री खुद को खुशनसीब मानती है। यानी आजादी पति के पास गिरवी रहती है और वह अपने विवेकानुसार प्रदान करते हैं।
Published: undefined
इस पितृसत्तात्मक व्यवस्था ने ही माना है कि पति-पत्नी क्रमशः पुरुष-स्त्री होंगे। पितृसत्ता को समलैंगिक विवाह में क्या यह कष्ट है कि यदि दोनों पुरुष या स्त्री हुए तो किसे, किसका मालिक माना जाए? समलैंगिक विवाह के अलावा भी पति के पुरुष होने ने सिर्फ स्त्री को ही कैद नहीं किया है। पुरुष भी कैद में है। यदि उसे मालिकत्व चाहिए, तो उसी को आजीविका का जिम्मा लेना होगा। उसका पौरुषेय ही उसका एकमात्र गुण माना जाएगा। यदि उसके पौरुष में किसी तरह की भी कमतरता होगी, तो वह हंसी का पात्र होगा। उसका मर्द होना बेहद जरूरी है। चाहे उसमें उसकी मर्जी न हो।
पत्नी कॅरियरवादी हो और वह नहीं, तो इसे उसके पुरुषत्व या पतित्व पर धब्बा माना जाएगा। किसी प्रकार की भी शारीरिक चुनौतीग्रस्त पुरुष, कुंठित दांपत्य का निर्वहन करने के लिए मजबूर है। आखिर यह किसने तय किया कि पुरुष ही स्वामी होगा? स्त्री का स्वामित्व पहले पिता, भाई या पति और फिर पुत्र का होता है। प्रिया तेंदुलकर की एक प्रसिद्ध कहानी में दादी अपने पोते की उंगली पकड़कर मंदिर की सीढ़ी चढ़ती है, पोती की नहीं।
Published: undefined
केन्द्र की मौजूदा व्यवस्था की सोच किसी से छुपी नहीं है। वह प्रेम विवाह का नियमन करना ही चाहती है ताकि तथाकथित तौर पर एक मजहब विशेष की स्त्रियों पर किसी अन्य मजहब का कब्जा न हो जाए। माने उनके जरिये उनकी कोख पर नियंत्रण बना रहे। लव जिहाद की सोच वही दर्शाती है। दूसरी तरफ, सत्तारूढ़ दल के मंत्री 370 हटते ही कश्मीरी महिला से विवाह की आजादी का भौंड़ा एलान करते हैं। माने स्त्री पर नियंत्रण का हक मिलेगा।
महिला खिलाड़ियों का संघर्ष जारी है। अब तक केन्द्र ने चुप्पी तोड़ी नहीं है। बलात्कारी संस्कारी कहकर नवाजे जाते हैं। बुली सुली डील साईट बेधड़क चल रही है। तब सवाल समलैंगिक विवाह पर आपत्ति भर का नहीं है। विवाह को समसंबंध मानने का है। पति- पत्नी जैसी अवधारणा को खारिज कर जीवनसाथी मानने का है। यह कहते ही समलैंगिक विवाह अपने आप कई पेचिदगियों से बचेंगे।
Published: undefined
समाज को यह जानना जरूरी है कि लैंगिक पहचान सामाजिक है और यौन व्यवहार नैसर्गिक जैविक मनोवैज्ञानिक है। यह कोई अनाचार नहीं है। यौन व्यवहार का विकल्प हर व्यक्ति को मिलना ही चाहिए ताकि सामाजिक दोगलापन समाप्त हो सके। यह मात्र दो लोगों का निजी मामला नहीं है। निजत्व अपने आप में राजनीतिक है। राजनीति माने सत्ता व्यवस्था को चुनौती।
सदियों की पति के स्वामित्व के सत्ता प्राधन्य को चुनौती मिल रही है। यह समाज के सत्तारूढ़ों के लिए आसान नहीं है। मगर हर चुनौती एक नए सत्ता संबंध, संदर्भ को आकार देती है। कम-से-कम आम प्रचलन में पतित्व का स्थान जीवन साथी ले सकें, तो वह भी प्रगतिगामी कदम ही होगा।
Published: undefined
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
Published: undefined