वोट पड़ चुके हैं, एग्जिट पोल भी आ चुके हैं और अब नतीजों का इंतज़ार है, मगर जिन्हें असल में इंतज़ार है,उ नमें से ज्यादातर की हालत क्या हो रही होगी, जरा इस पर भी सोचिए। उनके दिल की धड़कनें कितनी बार बढ़ी और घटी होंगी, कितनी बार ऐसा लगा होगा कि धड़कन अब बस रुकने-रुकने को है, मगर नसीब अच्छा था कि रुककर भी रुकी नहीं। जो वोट पड़ने के बाद भी एक भी रात ढंग से सो नहीं पाए हैं, जिन्हें इस बीच हारने के दु:स्वप्न ज्यादा आए हैं, जीतने के ख्वाब कम, उनकी हालत का अंदाज़ हम तमाशबीन नहीं लगा सकते।
हमने तो जीवन में स्कूल-कॉलेज की परीक्षा के रिजल्ट का, प्रेमी या प्रेमिका का या नौकरी के रिजल्ट का ही इंतज़ार किया है। हम क्या जानें, उम्मीदवार की पीर पराई! हम जैसों को तो अब कोई इंतज़ार ही नहीं रहा, चुनाव के रिजल्ट तक का नहीं रहा। हम जो कोऊ नृप हो, हमें का हानि की परमावस्था को प्राप्त हो चुके हैं। वैसे भी हमारा-आपका क्या है, हद से हद ज्यादा से ज्यादा तफरीहन एक दिन-दो दिन थोड़ा बक लेंगे या हंस लेंगे और रोटी-पानी के इंतजाम में लग जाएंगे। ज्यादा से ज्यादा हम फेसबुक पर कुछ लिख मारेंगे, हो सका तो किसी अखबार में कोई लिखवाएगा तो लिख देंगे या टीवी पर अपने उद्गार प्रकट करवाएगा तो कर देंगे। देश की जनता की हालत पर या तो दुख प्रकट कर देंगे या बल्ले-बल्ले करने लगेंगे कि वाह हमारे देश का मतदाता कितना परिपक्व हो चुका है, लोकतंत्र जिंदाबाद वगैरह।
मगर सोचिए उस उम्मीदवार की तरफ से, जिसने न जाने कितनी बार टिकट के लिए जमीन और आसमान के कुलाबे मिलाए। कितनों ने टिकट दिलाने के नाम पर उसके रूमाल से अपनी नाक पोंछनी चाही तो अपना रूमाल उसके सामने पेश किया। जिन्होंने पैर छुआए, उनके छुए, घंटों खड़ा रखा, तो जो खड़े रहे, डांटा तो डांट को प्रसाद समझ ग्रहण किया,अपना सामान उठवाया तो उठाया, फिर भी मौका आया तो टिकट किसी ओर को दिलाने के लिए जोर लगा दिया। फिर भी जब उम्मीदवार टिकट किसी तरह जुगाड़ करके दिल्ली से ले आया तो उसका श्रेय लूटा, सबसे कहा कि यह अपना चेला है, किसकी हिम्मत थी, जो हमारी मर्जी के खिलाफ किसी और को टिकट देता? और बेचारा उम्मीदवार यह सुनकर भी चुप ही रहा क्योंकि वह उम्मीदवार था। उसे चुनाव लड़ना था, जिसका एकमात्र सिद्धांत है - नो पंगा।
Published: undefined
सोचिए एक बार उसकी तरफ से भी, जिसका दिल पर्चा भरने की आखिरी तारीख के आखिरी क्षण तक धड़कता रहा कि कहीं हाईकमान के पास जाकर कोई उसका टिकट न कटवा आए। सोचिए उस दयनीय की ओर से, जिसने चुनाव लड़ने के लिए भारी आर्थिक निवेश किया है मगर अब ज्योतिषीजी के अलावा कोई नहीं कह रहा है कि वह जीत रहा है, बाकी सब मानकर चल रहे हैं कि इसकी हार पक्की है। सोचिए उसकी तरफ से, जिसने हर देवी-देवता को मनाया, जिसने खूब डीजल फूंका, खूब दारू पिलाई, खूब कार्यकर्ताओं की मौजमस्ती करवाई, न जाने किस-किसके क्या-क्या नखरे सहे, जिन्हें थप्पड़ मारने को मन हुआ, उनकी तारीफ के पुल बांधे, जिसने न जाने कहां-कहां की कितनी-कितनी पैदल यात्राएं कींं, बूढ़ों से लेकर बच्चों तक के पैर छुए और वह क्षण बेहद नजदीक आ चुका है, जब पांच साल और करोड़ों के चुनाव निवेश का फैसला उसके विरुद्ध जानेवाला है। जिसने विजय जुलूस के तमाम इंतज़ाम कर रखे हैं मगर मंगलवार के दिन, उसके घर कार्यकर्ता तो छोड़ो, कुत्ता भी भौंकने नहीं आनेवाला है। वह बुलाएगा कि यार आज तू ही आकर सांत्वना दे जा, मगर कुत्ता भी कहेगा कि पहले तो मुझे भूले रहे, अब हम याद आ रहे हैं, सॉरी अभी हम विजय जुलूस देखने में व्यस्त हैं, समय मिला तो आएंगे, वैसे आज समय मिलेगा नहीं!
सोचिए जो अभी-अभी तक वर्तमान था, मगर मंगलवार की सुबह या दोपहर को भूतपूर्व हो जानेवाला है और जो पहली बार विधायक बनने के सपने देख रहा था, जिसका पत्ता जनता काटने जा रही है। जो यह सोच-सोचकर खुश था कि इस बार वह विधायक ही नहीं, मंत्री बनकर भी दिखाएगा, वह रोने के लिए पत्नी का कंधा चाहता है मगर पत्नी इससे बेखबर सो रही है, खर्राटे ले रही है। सोचिए और संवेदना व्यक्त कीजिए।
(लेख में व्यक्त विचारों से नवजीवन की सहमति अनिवार्य नहीं है)
Published: undefined
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
Published: undefined