विचार

बद्री नारायण का लेख: बुंदेलखंड में हाशिए पर पड़े समुदाय चाहते हैं प्रताड़ना और अत्याचार से मुक्ति

गरीबों और हाशिए के लोगों के लिए आजीविका की कमी के चलते बुंदेलखंड काफी बड़े पैमाने पर पलायन और विस्थापन से पीड़ित है। यह बढ़ते ग्रामीण संकट की जमीन है। यह संकट बहुत बार किसानों की आत्महत्या का कारण बना है।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

देश में 2019 के लोकसभा चुनाव चल रहे हैं। हमारे चुनाव लोकतंत्र को मजबूत करने की प्रक्रिया के रूप में दिखाई देते हैं। इस अवसर पर हमें यह जांच-पड़ताल करने की जरूरत है कि लोकतंत्र दूर-दराज के इलाकों और हाशिये के लोगों तथा अदृश्य समुदायों के बीच कितनी गहराई तक पहुंचा है। बहुत ज्यादा हाशिये वाले इन समूहों की राज्य नीत लोकतंत्र से क्या इच्छाएं और आकांक्षाएं हैं? दूर-दराज के क्षेत्रों में अपने फील्ड कार्य के दौरान मैंने इस तरह के सवालों की छानबीन की।

बुंदेलखंड उत्तर प्रदेश का एक अल्प विकसित क्षेत्र है। यहां लोकसभा की चार सीटें हैं। यहां बुंदेली बोली जाती है। जंगल और पठार इसके भू-भाग को काफी कठिन बनाते हैं। गरीबी और गरीबों एवं हाशिये के लोगों के लिए आजीविका की कमी के चलते बुंदेलखंड काफी बड़े पैमाने पर पलायन और विस्थापन से पीड़ित है। यहां पेयजल की किल्लत है। सिंचाई के लिए जल संसाधनों की कमी ने क्षेत्र में कृषि को गहराई से प्रभावित किया है जिसकी वजह से इलाके में गरीबी का विस्तार हुआ और पलायन बढ़ा है। रोजगार की कमी भी इस क्षेत्र से पलायन का एक प्रमुख कारण है।

यहां दो तरह का पलायन है- पुरुष पलायन और पूरे परिवार का पलायन। इस क्षेत्र में प्रवासी पुरुष का वीरान परिवार सामाजिक हकीकत का हिस्सा है। यह बढ़ते ग्रामीण संकट की जमीन है। यह संकट बहुत बार किसानों की आत्महत्या का कारण बना है। बुंदेलखंड एक्सप्रेस ट्रेन इस क्षेत्र से पलायन का रूपक बन गई है। कोई भी इसे विभिन्न गीतों, लोक कहावतों और कहानियों में देख सकता है, जो बुंदेलखंड एक्सप्रेस को पलायन के प्रतीक के रूप में परिभाषित करते हैं, क्योंकि इस क्षेत्र से पलायन करने वाले बहत सारे लोग इसी ट्रेन को पकड़ते हैं।

इस इलाके की विभिन्न लोक शैलियों में पानी की विरलता की अभिव्यक्ति मिलती है, जो यह दर्शाता है कि पेयजल की कमी बुंदेलखंडी समाज की एक और बड़ी समस्या है। इस इलाके से लोकगीतों का जो संकलन मैंने किया उसका विश्लेषण करते हए मैंने यह समझा कि लोग नेताओं पर बहुत व्यंग्य कसते हैं और राज्य से असंतुष्ट हैं। इस इलाके में बहुत ज्यादा हाशिये पर रहने वाले समुदायों की काफी तादाद है।

ये समुदाय अत्यधिक पिछड़ी जाति (एमबीसी) और बहुत ज्यादा हाशिये वाले अनुसूचित जाति (एससी) के तहत आते हैं। इस क्षेत्र में नट, कपारिया, बंजारा, खैरवार, कबूतरा जैसे अर्द्ध-घमंतू समुदायों और सहरिया, गोंड और कोल तथा अत्यधिक हाशिये वाली अनुसूचित जाति के समुदाय जैसे खटीक, मेहतर, नोनिया, आदि की बसावट है। इस इलाके में एमबीसी के हाशिये के समुदाय जैसे दरजी, भुंजवा, हलवाई, चौहान, पाल, निषाद, रजक, सेन, पटवारी, बाल्मिक, बांसकार, बारा, रैकवार, धीमर आदि भी रहते हैं।

बुंदेलखंड के दूरदराज के इलाकों में रहने वाले ये समुदाय चुनाव के बारे में क्या महसूस करते हैं? इस क्षेत्र में सहरिया समुदाय अत्यधिक पिछड़ा और हाशिये वाला समुदाय है। उनके लिए चुनाव वह समय है जब नेता वोट मांगने के लिए आते हैं। इनमें से बहुत सारे लोग नहीं जानते कि चुनाव कितने वर्ष के अंतराल में होता है।

बहुत सारे लोग दिल्ली की सरकार और लखनऊ की सरकार के बीच के अंतर को नहीं समझते हैं। कुछ लोग राहुल गांधी को महात्मा गांधी के पोते के रूप में जानते हैं। जिन सहरिया परिवारों से हमने बातचीत की उनकी स्मृति में दो भारतीय नेता गांधीजी और इंदिरा गांधी हैं। इंदिरा गांधी बुजुर्ग सहरिया महिलाओं की यादों का अभी भी हिस्सा हैं।

कबूतरा एक और अत्यधिक हाशिये वाला छोटा समुदाय है। यह समदाय अपने बच्चों के लिए शिक्षा और नौकरी के अवसर चाहता है। वे अवैध तरीके से शराब बनाते हैं और ग्रामीण इलाके में बेचते हैं। वे कहते हैं कि जब हम शराब बनाने का अपना परंपरागत व्यवसाय करते हैं तो पुलिस बहत जुल्म करती है। उनकी सबसे बड़ी इच्छा है कि उन्हें पुलिस दमन से छुटकारा मिले और वैकल्पिक आजीविका विकसित हो जो उन्हें सम्मान के साथ रहने का अवसर प्रदान करे।

वे चुनाव के मौके को नेता के सामने अपनी इच्छा बताने के अवसर के रूप में देखते हैं। कुछ मामलों में उनके लिए नेता का मतलब वह व्यक्ति नहीं होता है जो संसद का चुनाव लड़ रहा है, उनके लिए नेता का मतलब वह व्यक्ति होता है जो वोट देने के लिए उनको प्रेरित करता है। स्थानीय नेताओं से बातचीत के दौरान, वे सोचते हैं कि उन्होंने सरकार (गवर्मेंट) के सामने अपनी इच्छा जाहिर कर दी है। कभी-कभी उनके लिए ग्राम प्रधान भी सरकार का ही रूप होता है।

नट दूसरा समुदाय है जो इस इलाके में रहता है। नट नोमाड के उपसमुदाय हैं। अर्ध घुमंतू नट समुदाय बुंदेलखंड के कुछ हिस्सों में बस गया। उनके अपने पारंपरिक देवता हैं, उस देवता को पीपल के पेड़ के नीचे टीले पर स्थापित किया जाता है। वे अपने देवता की पूजा चावल और सिंदूर से करते हैं। उनकी यह बड़ी इच्छा है कि इलाके में उनके देवता का मंदिर होना चाहिए। इन चुनावों में वे नेताओं से नट समुदाय के देवता का मंदिर बनाने के लिए समुदाय को मदद देने की अपील करेंगे।

कुच्छ बड़हिया एक अन्य छोटा समूह है जो पेड़ों की छाल से रस्सी बनाकर बेचते हैं और अपनी जीविका चलाते हैं। यह उनका पारंपरिक व्यवसाय है। इनमें से कुछ जिनसे हमने बातचीत की, चाहते हैं कि इस बार जो भी सत्ता में आए, उसे उनकी पारंपरिक आजीविका की मजबूती के लिए कुछ करना चाहिए। उनके लिए कोई अन्य योजनाएं शरू करने से ज्यादा यह महत्वपूर्ण है।

बांसफोड़ बुंदेलखंड के इलाके में रहने वाला एक अन्य छोटा समुदाय है जो बांस उत्पादों और महुआ के पत्तों से डलिया, सूप और पत्तल बनाता है। यह उनका पारंपरिक व्यवसाय था जो बाजार में प्लास्टिक से बने पत्तलों के आ जाने से संकट से जूझ रहे हैं। उनमें से बहुत सारे अपना व्यवसाय बदलने में सक्षम नहीं हैं और अभी भी सरकार, नेताओं और राजनीतिज्ञों से अपनी पारंपरिक आजीविका और उसके पुनर्जीवन के लिए समर्थन करने की अपील करते हैं। बांसफोड़ समदाय के एक युवक ने हमें बताया कि वे निर्माण कार्य में श्रमिक नहीं बनना चाहते, क्योंकि उनमें हुनर है और वे उस हुनर को जिलाना चाहते हैं।

बुंदेलखंड क्षेत्र के ये छोटे समुदाय अपनी स्थानीय जरूरतों के आधार पर चुनाव की राजनीति के साथ जोड़ते हैं। उनके लिए सरकार की हमेशा जरूरत रहती है जो उनकी समस्या सुलझाए। इसलिए वे स्थानीय नेताओं के भीतर सरकार को देखते हैं जो अपनी पार्टी के समर्थन के लिए उनका वोट मांगने आते हैं।

ये अत्यंत हाशिये वाले समुदाय अभी भी महात्मा गांधी और इंदिरा गांधी को अपने नेता के रूप में याद करते हैं। जब हमने याद दिलाया कि अब ये नेता नहीं हैं, बहुत पहले गुजर चुके हैं, तब सहरिया समुदाय के एक वृद्ध व्यक्ति यह जानकर बहुत दुखी हुआ और आकाश की ओर देखने लगा। उनके लिए लोकतंत्र का मतलब पुलिस प्रताड़ना और स्थानीय प्रभावशाली जातियों, लोगों और समुदायों के अत्याचार से मुक्ति है।

(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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