इन दिनों देश भर में सभी आयु वर्गों में दिल संबंधी परेशानियों के मामलों में अचानक वृद्धि हो गई है। किसी को दिल का दौर पड़ रहा है तो किसी का दिल अचानक काम करना बंद कर दे रहा है। बिल्कुल स्वस्थ दिखने वाले लोगों की सड़क पर चलते-चलते, डांस फ्लोर पर नाचते-नाचते और यहां तक कि दफ्तर में डेस्क पर काम करते-करते मृत्यु हो जा रही है।
पिछली बार जब कोविड ने कहर मचा रखा था तो कम उम्र या स्वस्थ लोगों की अचानक हुई कुछ मौतें बेशक संयोगवश हुई होंगी लेकिन जांच तो होनी ही चाहिए जिससे अगर किसी तरह की कोई सावधानी रखने की जरूरत है तो उसका पता तो चल सके।
Published: undefined
हालांकि स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी की यह रिपोर्ट राहत देने वाली है कि 19 वर्ष की आयु तक कोविड की घातकता 0.0003% और 69 वर्ष की आयु तक लगभग 0.03% से 0.07% के बीच है। कोविड के संक्रमण से इतनी कम मृत्यु को देखते हुए अब हम टीकाकरण को रोक सकते हैं और अपना संसाधन और समय जांच पर लगा सकते हैं।
सोशल कम्युनिटी प्लेटफॉर्म लोकल सर्कल्स के एक सर्वेक्षण के अनुसार, 51% लोगों ने कहा कि वे एक या एक से अधिक व्यक्तियों को जानते हैं जिन्हें हाल के दिनों में दिल का दौरा, स्ट्रोक, कैंसर, तंत्रिका संबंधी विकार आदि हुआ है। जिन लोगों को ऐसा कुछ हुआ, उनमें से 62% ने कोविड का दो बार का टीकाकरण करा रखा था, 11% को एक बार खुराक मिली थी और 8% ने टीका लगवाया ही नहीं था।
Published: undefined
विज्ञान एक निरपेक्ष दृष्टिकोण की मांग करता है और वैज्ञानिकों को तुरंत नतीजे पर नहीं पहुंचना चाहिए। इसके लिए जरूरी है कि जब भी लोगों में कोई असामान्य सा पैटर्न दिखे, उसकी जांच-पड़ताल हो। यहीं पर चिंता के कुछ कारण उठ खड़े होते हैं।
2021 की शुरुआत से अचानक होने वाली मौतों में वृद्धि देखी जा रही है। मुंबई में दिल के दौरे के वाकयों में छह गुना वृद्धि हुई है। हालांकि इस तरह की ज्यादा मौतें सिर्फ भारत में ही नहीं दिख रही हैं, ऐसा ही हाल पूरी दुनिया का है। यहां हम उन दो देशों की स्थिति पर विचार करते हैं जहां के डेटा उपलब्ध है: इंग्लैंड+वेल्स और ऑस्ट्रेलिया।
साथ में दिए गए ग्राफिक में 2015 के बाद से हर साल के पहले 47 सप्ताह (नवंबर के अंत तक) में इंग्लैंड और वेल्स में सभी कारणों से हुई मौतों के आंकड़े हैं। इसमें दिखता है कि वर्ष 2020 में मौतों के मामलों में लगभग 13% की वृद्धि हुई जो इसके पहले के पांच साल की औसत मृत्यु दर से अधिक है।
Published: undefined
अब इंग्लैंड और वेल्स में 15-44 आयु-समूह के आंकड़ों पर नजर डालिए। हम देखते हैं कि इस आयु-समूह में, यहां तक कि वर्ष 2020 में भी, जब कोविड-19 से सबसे ज्यादा मौतें हुई थीं, अधिक लोग नहीं मरे। हालांकि, 2021 और 2022 में इस आयु-समूह में मौतों में तेज वृद्धि हुई।
ऑस्ट्रेलिया का मामला और भी गंभीर है क्योंकि इस देश ने लंबे समय तक शून्य-कोविड नीति का पालन किया, सख्त लॉकडाउन के साथ-साथ सख्त टीकाकरण नीति अपनाई। 2022 के शुरू में इसने अपनी ज्यादातर आबादी का टीकाकरण कर लिया था और यहां तक कि बूस्टर खुराक भी उपलब्ध करा दी गई थी।
Published: undefined
दुनिया भर में जो मौतों की संख्या में इजाफा देखने को मिल रहा है, उसके दो संभावित कारण हैं। पहला, यह लंबे समय तक चले सख्त लॉकडाउन का असर हो सकता है। आखिरकार, लॉकडाउन ने मधुमेह, मोटापा, भुखमरी, गरीबी, बेरोजगारी, विटामिन-डी की कमी, कैंसर की प्रवृत्ति आदि को सीधे तौर पर बढ़ा दिया है। दूसरा कारण कोविड-19 के टीकों का अत्यधिक उपयोग हो सकता है। उनलोगों को भी टीके दिए गए जो कोविड की चपेट में आकर ठीक हो चुके थे और उन्हें भी जिनके लिए खतरे की आशंका नहीं थी। किसी के पास कोई ठोस डेटा ही नहीं था कि किन्हें टीका दिया जाना चाहिए और किन्हें इससे दूर रखा जा सकता है।
जब तक टीके विकसित किए गए, वायरस एशिया और अफ्रीका के घनी आबादी वाले देशों में बड़ी संख्या में लोगों को संक्रमित कर चुका था। युवा और दुले-पतले लोग संक्रमित होने के बाद ठीक भी हो गए और उन्हें टीकाकरण की जरूरत नहीं थी क्योंकि अध्ययनों से पता चला है कि वायरस के संपर्क में आने के बाद किसी व्यक्ति में प्राकृतिक तौर पर जो प्रतिरोधक क्षमता विकसित होती है, वह टीकों के कारण होने वाली प्रतिरक्षा से 13 गुना ज्यादा होती है।
Published: undefined
लेकिन हमें इसके लिए नीतियां तय करने वालों को संदेह का लाभ देना चाहिए क्योंकि जब इस तरह की स्थितियां हों कि लोगों की जान बचाना प्रथामिकता हो तो सावधानी के मोर्चे पर किसी तरह की कोई चूक नहीं की जा सकती। फिलहाल तो यही किया जा सकता है कि वैसे लोगों का और टीकाकरण नहीं किया जाना चाहिए जिन्हें कभी भी संक्रमण हो चुका हो और उनके स्वास्थ्य की निगरानी की जानी चाहिए। अब वैसे लोगों की बात आती है जिन्हें कभी संक्रमण नहीं हुआ लेकिन उन्होंने टीका लगवा रखा है। ऐसे लोगों को आगे टीका नहीं दिया जाना चाहिए और इन दोनों ही समूहों की छोटी और लंबी अवधि तक निगरानी में रखकर उनका अध्ययन किया जाना चाहिए ताकि हम किसी ठोस नतीजे पर पहुंच सकें। डेटाबेस जितना बड़ा होगा, सही निर्णय लेने की संभावना उतनी ही अधिक होगी।
शुरू से ही कोविड-19 टीके और हृदय संबंधी शिकायतों में एक परस्पर संबंध सा दिख रहा है, लेकिन इससे यह निष्कर्ष निकालना उचित नहीं कि इसका कारण टीका है। हां, इतना जरूर है कि इसकी जांच की जानी चाहिए।
Published: undefined
अप्रैल, 2020 के बाद कोविड-19 के बारे में जो सबसे आमफहम चीज है, वह है इसका खौफ। लेकिन क्या आंकड़े इस खौफ को सही ठहराते हैं? अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने 18 सितंबर, 2022 को ऐलान किया कि कोविड-19 अब खत्म हो चुका है। इसके पहले ही लगभग पूरे यूरोप ने लगाई गईं तमाम तरह की रोक हटा ली थी और लोगों के मन का खौफ भी जाता रहा था। तो क्या ऐसे में माना जा सकता है कि उच्च मृत्यु दर के मामले में 2022 की तुलना में 2020 कहीं ऊंचे पायदान पर है? नहीं। अमेरिका और यूरोप, दोनों में 2021 और 2022 की मृत्यु दर 2020 से ज्यादा है। इसका मतलब? फिर कोविड को लेकर हौव्वा क्यों था? क्या इसे जान-बूझकर खड़ा किया गया था? इसमें दो राय नहीं कि वायरस के कारण लोगों की मौत हुई लेकिन इसको लेकर लोगों में जिस तरह का खौफ था, उसकी कोई वजह नहीं थी।
जिस तरह के सख्त प्रतिबंध लगाए गए, उनकी जरूरत नहीं थी। इसका जन-जीवन पर जो असर पड़ा, यह एक अलग बात है। लेकिन सवाल अब भी यही है कि 2020 से ज्यादा मौतें 2022 में क्यों?
इसके दो संभावित कारण हो सकते हैं। एक, सख्त लॉकडाउन और इसके कारण पैदा आजीविका के संकट, काम-धंधे के बंद हो जाने, व्यायाम और शारीरिक श्रम के रुक जाने, सूरज की रोशनी से दूर हो जाने और भय-चिंता की वजह से लोगों के स्वास्थ्य पर पड़ा असर। दो, हड़बड़ी में वैक्सीन का बनना और लगना। उनलोगों को भी वैक्सीन दी गई जो संक्रमण की चपेट में आकर ठीक हो चुके थे। इसे वाजिब ठहराने का कोई तथ्य हमारे पास नहीं। इसके अलावा, कोविड टीकाकरण के मामले में अनौपचारिक सहमति लेने की भी अनदेखी कर दी गई।
अमिताभ बनर्जी पुणे के डीवीआई पाटील मेडिकल कॉलेज में कम्युनिटी मेडिसीन के प्रोफेसर और भास्करण रमन आईआईटी मुंबई में प्रोफेसर हैं।
Published: undefined
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
Published: undefined