देश और दुनिया दोनों स्तरों पर बढ़ती विषमता की ओर हाल ही में जारी एक चर्चित रिपोर्ट ने ध्यान आकर्षित किया है। 20 जनवरी को जारी की गई ऑक्सफैम इंडिया की विषमता रिपोर्ट 2020 ने बताया है कि हालांकि विषमता के नकारात्मक असर मुख्यधारा स्तर पर मान्य हैं, फिर भी अमीर-गरीब में खाई कम नहीं हो रही है। इस बुराई को दूर करने के लिए जो उपाय चाहिए वे राजनीतिक स्तर पर प्राप्त नहीं हो पा रहे हैं।
क्रेडिट स्यूस वैश्विक संपत्ति रिपोर्ट 2019 के अनुसार विश्व आर्थिक व्यवस्था विकृत बनी हुई है जिसमें अधिक वित्तीय लाभ सबसे ऊपर की श्रेणी में केंद्रिकृत होते हैं, जबकि करोड़ों लोग गरीबी में बिलखते हैं। विश्व की कुल संपत्ति साल 2018 से 2.6 प्रतिशत वृद्धि कर या 9.1 ट्रिलियन डालर की वृद्धि कर 360.6 ट्रिलियन डालर तक साल 2019 में पंहुच गई, पर विश्व जनसख्या के नीचे के आधे हिस्से (50 प्रतिशत) के पास 2019 के मध्य में विश्व संपत्ति का मात्र 1 प्रतिशत हिस्सा था। ऊपर के 10 प्रतिशत के पास 82 प्रतिशत हिस्सा था और ऊपर के 1 प्रतिशत के पास 45 प्रतिशत हिस्सा था।
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यह एक महत्त्वपूर्ण तथ्य है कि वैश्विक वित्तीय संकट के दौर में अरबपतियों की संख्या दोगुनी बढ़ गई है, और प्रति दो दिन पर एक नए अरबपति का आगमन हो रहा है। विषमता की निरंतरता का आर्थिक स्थिरता और समावेशी आर्थिक संवृद्धि की संभावनाओं पर प्रतिकूल असर पड़ता है। संपत्ति केन्द्रीकरण में निर्णय क्षमता चंद व्यक्तियों तक सिमट जाती है और इसके महत्त्वपूर्ण प्रतिकूल सामाजिक असर भी होते हैं, जैसे कि अपराधों में वृद्धि। बढ़ती विषमता की स्थिति में गरीबी कम करने की गति भी कम हो जाती है। इस कारण विभिन्न सामाजिक स्तरों पर (जैसे पुरुषों और महिलाओं में) स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य अवसर प्राप्त करने की विषमताएं भी बढ़ जाती हैं।
विश्व आर्थिक फोरम के समावेशी विकास सूचकांक (2018) के अनुसार उभर रही 74 अर्थव्यवस्थाओं वाले देशों में भारत का स्थान 62वें नंबर पर है। नेपाल (22 वां स्थान) बांग्लादेश (34) और श्रीलंका (40) से भारत कहीं पीछे है। पाकिस्तान का स्थान (74) भारत से भी पीछे है। इसी रिपोर्ट के अनुसार 10 में से 6 भारतवासी 3.20 अमेरिकी डालर प्रतिदिन से कम आय पर रहते हैं।
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पिछले एक साल में भारत की कुल संपत्ति में 625.5 बिलियन डॉलर की वृद्धि हुई (लगभग 4,425900 करोड़ रुपए)। ऊपर के 1 प्रतिशत व्यक्तियों की संपत्ति में 46 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि नीचे के 50 प्रतिशत व्यक्तियों में मात्र 3 प्रतिशत की वृद्धि हुई। अरबपतियों की संपदा 2017 में 325.5 बिलियन अमेरिकी डॉलर (22,72,500 करोड़ रुपए) से बढ़कर साल 2019 में 408 बिलियन अमेरिकी डॉलर (28,96,800 करोड़ रुपए) तक पहुंच गई।
दूसरे शब्दों में ऊपर के 1 प्रतिशत व्यक्तियों के पास नीचे के 70 प्रतिशत व्यक्तियों यानि लगभग 95.3 करोड़ व्यक्तियों से 4 गुणा अधिक संपत्ति है। भारत के 63 अरबपतियों की कुल संपत्ति भारत के कुल केन्द्रीय बजट (2018-19) की राशि 24,42,200 करोड़ रुपए से भी अधिक है।
अनुमान के मुताबिक एक टेक कंपनी के उच्चतम सीईओ की जो वार्षिक आय है, उसको प्राप्त करने में एक महिला घरेलूकर्मी को 22,277 वर्ष लगेंगे। यह 106 रुपए प्रति सेकंड अर्जित करने वाले सीईओ इस घरेलूकर्मी की वार्षिक आय से अधिक मात्र 10 मिनट में कमा लेते हैं।
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विश्व के 2153 अरबपतियों की कुल संपदा विश्व की जनसंख्या के निचले 60 प्रतिशत लोगों (4.6 अरब लोगों) से अधिक है, इस रिपोर्ट में बताया गया है।
ऑक्सफैम की रिपोर्ट ने बताया है कि हमारी लैंगिक भेदभाव वाली अर्थव्यवस्थाओं ने विषमता को बढ़ाया और धनी अभिजातों को इस तरह से बड़ी दौलत एकत्र करने के अवसर दिए हैं, जिससे दुष्परिणाम जनसाधारण और निर्धन लोगों विशेषकर महिलाओं और लड़कियों को सहने पड़ते हैं।इस रिपोर्ट में बताया गया है कि सबसे धनी व्यक्तियों और कॉरपोरेशनों पर सरकारों ने बहुत कम कर लगाए हैं और इस कारण गरीबी और विषमता दूर करने और देखरेख के अधिक बोझ से महिलाओं को राहत देने की जिम्मेदारी वे पूरी नहीं कर पा रही हैं।
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ऑक्सफैम इंडिया के सीईओ अमिताभ बेहर देवास में ऑक्सफैम समूह का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। उन्होंने कहा, “जनसाधारण की कीमत पर हमारी क्षतिग्रस्त अर्थव्यवस्थाओं में अरबपतियों की जेब भरी जा रही है। अतः लोग सवाल उठाने लगे हैं कि इन अरबपतियों का औचित्य क्या है।” बेहर ने कहा, “विशिष्ट विषमता दूर करने वाली नीतियों के बिना धनी और निर्धन की दूरी कम नहीं की जा सकती है, और बहुत कम सरकारें इसके लिए समर्पित हैं।”
उन्होंने आगे कहा, “सरकारों ने विषमता का संकट आरंभ किया, उन्हें ही इसे समाप्त करने के जरूरी कदम उठाने चाहिए। उन्हें यह सुनिश्चित करना चाहिए कि धनी व्यक्ति और कॉरपोरेशन न्यायोचित कर दें तथा उन्हें सार्वजनिक सेवाओं और ढांचे में निवेश बढ़ाना चाहिए। उन्हें इस बारे में कानून बनाने चाहिए कि महिलाओं और लड़कियों को देखरेख के कार्यों में राहत मिले तथा जिन्होंने समाज के सबसे महत्त्वपूर्ण कार्यों जैसे माता-पिता व बच्चों तथा बीमार व्यक्तियों के देखरेख की जिम्मेदारी संभाली है उन्हें उचित और न्यायसंगत आजीविका प्राप्त हो। यदि हमें सभी के लिए हितकारी मानवीय अर्थव्यवस्थाएं बनानी हैं तो देखरेख के क्षेत्र को अन्य महत्त्वपूर्ण प्रमुख क्षेत्रों जैसा महत्त्व मिलना चाहिए।”
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