मेरठ-हरिद्वार राजमार्ग पर खानपान के सभी ठिकानों के मालिकों को अपना नाम प्रमुखता से लिखना अनिवार्य करने के उत्तर प्रदेश सरकार के आदेश पर भले ही सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी हो, इसका असर लंबे समय तक बीजेपी की आंतरिक राजनीति पर पड़ने की संभावना है। आदेश तो योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली राज्य सरकार का था लेकिन विपक्ष इसके लिए केन्द्र की मोदी सरकार पर भी हमलावर था। यह आदेश ठीक उस वक्त आया जब चर्चाएं मुखर हैं कि बीजेपी का केन्द्रीय नेतृत्व उत्तर प्रदेश में बदलाव पर विचार कर रहा है। राज्य के दोनों उपमुख्यमंत्री- बृजेश पाठक और केशव प्रसाद मौर्य मुख्यमंत्री द्वारा बुलाई गई या उनकी अध्यक्षता वाली अधिकांश बैठकों से किनारा कर रहे हैं। दोनों नेता खुद को योगी के विकल्प के तौर पर पेश करते रहे हैं। दोनों बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र चौधरी के साथ न सिर्फ प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, केन्द्रीय गृह मंत्री अमित शाह और पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के साथ बातचीत कर रहे हैं बल्कि अपनी इन बैठकों को खूब प्रचारित भी कर रहे हैं। ऐसे में मीडिया के पास इन किस्से-कहानियों के साथ कहने को पर्याप्त मसाला रहा है कि योगी बाहर हो सकते हैं।
Published: undefined
मौर्य ने प्रदेश पार्टी कार्यकारिणी में यह कहकर योगी को छोटा दिखाने की कोशिश की कि ‘संगठन सरकार से बड़ा है’। बैठक में नड्डा भी मौजूद थे लेकिन एक शब्द भी नहीं बोले। योगी को निशाना बनाने का सवाल अंदर की उन चर्चाओं से भी निकला कि यूपी में लोकसभा चुनाव के दौरान बीजेपी के खराब प्रदर्शन के लिए योगी जिम्मेदार थे जहां पार्टी 62 से नीचे जाकर 33 सीटों पर सिमट गई। योगी खेमे की अपनी कहानी है कि जब उम्मीदवार चयन में योगी की चली ही नहीं, उनकी कोई भी सिफारिश मानी ही नहीं गई तो फिर उन्हें हार के लिए जिम्मेदार कैसे ठहराया जा सकता है।
खुद योगी इस सब पर खामोश रहे हैं। उन्होंने मीडिया को शांत करने के लिए भी कोई बयान जारी नहीं किया, न ही केन्द्रीय नेतृत्व से मिलने की जल्दबाजी दिखाई। बस, अपनी रोजमर्रा की दिनचर्या बनाए रखी। सामने दिखने वाली एकमात्र घटना उनका अपने गृहनगर गोरखपुर का अचानक दौरा था जहां आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत स्वयंसेवकों का एक प्रशिक्षण शिविर संबोधित करने आए हुए थे। भागवत तब तक मोदी पर कुछ ज्यादा ही कटाक्ष कर चुके थे। ऐसे में योगी और भागवत के बीच मुलाकात का मतलब आरएसएस का योगी को समर्थन होता। सूत्र दावा करते हैं कि मुख्यमंत्री ने दो दिन तक इंतजार किया लेकिन भागवत उनसे नहीं मिले। इसके बजाय, आरएसएस ने एक बयान जारी कर यह स्पष्ट कर दिया कि संघ प्रमुख का कोई राजनीतिक कार्यक्रम नहीं है।
Published: undefined
आरएसएस आम तौर पर ऐसी विज्ञप्ति जारी नहीं करता, खासकर ऐसी बात साफ करने के लिए जो हुई ही न हो। स्पष्ट था कि संघ अभी मोदी के खिलाफ खुलकर सामने आने को तैयार नहीं है। इससे योगी सकते में आ गए। यह सब चल रहा था कि उन्हें 15 जुलाई को जारी मुजफ्फरनगर एसएसपी का आदेश मिला जिसमें खानपान के सभी ठिकानों को अपने होर्डिंग या साइनबोर्ड पर मालिकों और श्रमिकों के नाम प्रमुखता से लिखने को कहा गया था, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि 22 जुलाई से शुरू होकर महीने भर चलने वाली कांवड़ यात्रा में शामिल लोगों को खानपान को लेकर कोई भ्रम न हो और वे वहीं भोजन के लिए जा सकें जहां ‘पवित्र खाना’ (हिन्दुओं के स्वामित्व वाले भोजनालयों में) मिलता हो।
योगी को प्रखर हिन्दुत्व के झंडाबरदार वाली अपनी छवि चमकाने का अवसर नहीं छोड़ना था, और उन्होंने वही किया। उन्होंने यही आदेश पूरे कांवड़ मार्ग पर लागू कर दिया। चूंकि लोग शिवलिंग पर चढ़ाने के लिए गंगा जल लेकर राज्य भर में यात्रा करते हैं, इसलिए यह आदेश व्यावहारिक रूप से पूरे राज्य पर लागू होता है। जाहिर है कि ऐसे में मुस्लिम कर्मचारियों वाले या उनके स्वामित्व वाले भोजनालयों को कांवड़ यात्रा के दौरान कोई व्यवसाय नहीं मिलने वाला था। ऐसी भी खबरें आईं कि पुलिस ने ढाबा मालिकों को कांवड़ यात्रा के दौरान अपने मुस्लिम कर्मचारियों को निकालने या छुट्टी पर भेजने के लिए मजबूर किया। उसने मांसाहारी भोजन पकाने और बेचने पर पहले ही प्रतिबंध लगा दिया था ताकि कांवड़ यात्रियों की संवेदनाएं आहत न हों।
इस सबका मतलब था धर्म के आधार पर भेदभाव- संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन जो भारत में प्रत्येक नागरिक को समान दर्जा देता है। अनुच्छेद 21 में प्रावधान है कि किसी भी व्यक्ति को कानून द्वारा स्थापित प्रक्रियाओं के अलावा उसके जीवन या व्यक्तिगत स्वतंत्रता से वंचित नहीं किया जाएगा। यूपी सरकार के आदेश का मतलब एक पूरे समुदाय को उनके व्यवसाय के अधिकार से वंचित करना है। बीजेपी केन्द्रीय नेतृत्व को ऐसे ‘भेदभावपूर्ण आदेश’ पर विपक्ष के हमले का जवाब देने में मुश्किल आनी ही थी। इस तरह योगी आदित्यनाथ ने अपने पीछे पड़े अपने ही पार्टी सहयोगियों से बड़ी चतुराई से बदला ले लिया। अतीक अहमद और मुख्तार अंसारी जैसे माफिया डॉन को खत्म करने के अलावा बिना किसी सरकारी आदेश के उनकी संपत्तियां नेस्तनाबूद करके योगी कट्टर हिन्दुत्व समर्थक वाली अपनी पहचान बनाने में सफल रहे हैं। कांवड़ यात्रा आदेश उनको दोहरा मकसद साधने में मददगार बना- उन्हें सबसे बड़े हिन्दुत्व आइकॉन के रूप में स्थापित तो किया ही, बीजेपी केन्द्रीय नेतृत्व पर तनी विपक्ष की तोपों को और गरजने का मौका दे दिया।
Published: undefined
दरअसल, योगी कभी भी मोदी और शाह की पसंद थे ही नहीं। मोदी 2017 में मनोज सिन्हा को मुख्यमंत्री बनाना चाहते थे जबकि शाह तत्कालीन प्रदेश अध्यक्ष मौर्य के पक्ष में थे। लेकिन बीजेपी के संगठन सचिव- मूल रूप से आरएसएस के एक शीर्ष पदाधिकारी डॉ. कृष्ण गोपाल ने योगी आदित्यनाथ को स्थापित करने के लिए कमर कस ली। वह इस प्रयास में सफल तो हुए लेकिन इसके लिए उन्हें भारी कीमत चुकानी पड़ी। उन्हें आरएसएस के भीतर बीजेपी के प्रभारी जैसे महत्वपूर्ण पद से हटा दिया गया। यही कारण है कि बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व ने योगी की राह में कांटे बिछाने में कभी कोई कसर नहीं छोड़ी। उन्हें कभी भी उनकी पसंद के अधिकारी नहीं दिए गए। पार्टी पदाधिकारियों और मंत्रियों का व्यवहार भी उनके प्रति अनुकूल नहीं रहा। फिर भी, प्रमुख हिन्दुत्ववादी चेहरे के तौर पर आदित्यनाथ के उद्भव ने देश भर में उनके चाहने वालों की एक बड़ी जमात तैयार कर दी। यही कारण है कि चुनाव प्रचार के लिए वह हमेशा मोदी के बाद दूसरे सर्वाधिक मांग वाले नेता रहे। उनके प्रथम कार्यकाल में मुठभेड़ वाली कई हत्याएं, हाथरस सामूहिक बलात्कार मामला और एडीजी स्तर के पुलिस अधिकारियों द्वारा हेलीकॉप्टर से कांवड़ यात्रियों पर पुष्प वर्षा वाली बात खास तौर से दर्ज हैं।
हालांकि, हिन्दुत्व के प्रतीकों का राजनीतिक उपकरण के तौर पर इस्तेमाल कर वह हिन्दुत्व का उन्माद जगाने में सफल रहे। गौहत्या पर सख्त प्रतिबंध से गौरक्षकों को बढ़ावा मिला। पुलिस मुठभेड़ों में मारे गए अधिकांश लोगों का एक खास समुदाय से होना, उनकी ‘भगवा ध्वजवाहक’ वाली छवि चमकाने में मददगार हुआ। उन्होंने अंतर-धार्मिक विवाहों पर अंकुश लगाने के लिए रोमियो स्क्वैड भी शुरू किए और लव जिहाद जैसे शब्द तो उनके भाषणों का एक अनिवार्य हिस्सा बन गए। अपने फैसलों के जरिये वह यह साबित करते दिखे कि मुख्यमंत्री के रूप में यह भगवाधारी संत सिर्फ रस्म-अदायगी नहीं कर रहा था बल्कि वास्तव में इसका मतलब राजनीति में धर्म का एकीकरण था, यानी अल्पसंख्यकों के प्रति घृणा पर आधारित हिन्दुत्व ताकतों का शासन। उनका यह जुमला यूं ही नहीं चर्चित हुआ- “2017 से पहले सब्सिडी वाले अधिकांश खाद्यान्न पर उनलोगों का कब्जा होता था जो अपने पिता को अब्बा जान कहते थे।” एक और जुमला रहा: “अगर लव जिहाद करने वाले अपने तरीके नहीं सुधारते हैं, तो उनकी राम नाम सत्य है यात्रा (अंतिम संस्कार जुलूस) जल्द ही शुरू होगी।”
फिर भी, 2021 में बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व द्वारा उन्हें केन्द्र में जाने और किसी अन्य को सत्ता संभालने देने के लिए कहा गया। हालांकि योगी किसी तरह अपनी कुर्सी बचाने में सफल रहे। 21 नवंबर, 2021 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने योगी के कंधे पर हाथ रखकर संरक्षण देने वाली मुद्रा में अपनी एक तस्वीर जारी की जिसके बाद बहस खत्म हो गई। योगी ने 2022 में दूसरे कार्यकाल के लिए लड़ाई लड़ी और 403 विधायकों की विधानसभा में 255 सीटें हासिल कीं। यह पूर्ण बहुमत तो था लेकिन 2017 की जीत जैसा जोरदार नहीं जब बीजेपी ने मोदी-शाह और मौर्य के नेतृत्व में 312 सीटें जीत ली थीं। सूबे की मौजूदा खींचतान पार्टी नेतृत्व द्वारा योगी की नाव डगमगाने की दूसरी कोशिश है।
इस तरह, योगी आदित्यनाथ बीजेपी की ताकत के साथ-साथ उसकी मजबूरी भी बन चुके हैं। उनकी लोकप्रियता उत्तर प्रदेश की सीमा में बंधकर सीमित नहीं है- एक ऐसी खासियत जो किसी अन्य मुख्यमंत्री को हासिल नहीं है। लेकिन, यही वह ताकत है जो न सिर्फ उनके अगल-बगल वालों, बल्कि उन वरिष्ठों को भी असहज करती है, जो इसे अपने लिए खतरा मानते हैं। योगी के समर्थक जिस तरह उन्हें अगले प्रधानमंत्री के तौर पर प्रस्तुत कर रहे हैं, उसने भी इस विभाजन को बढ़ाया है। लेकिन अगर योगी आदित्यनाथ को पद से हटा दिया जाता है, तो उनकी खमोशी और निष्क्रियता भी पार्टी की संभावनाओं को पलीता लगाने के लिए पर्याप्त होगी।
Published: undefined
दरअसल, यूपी में इतिहास 1998-1999 को दोहरा रहा है। तब कल्याण सिंह मुख्यमंत्री थे और तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के साथ उनके संबंध लगभग उतने ही ठंडे थे। राज्य बीजेपी नेताओं और विधायकों का एक वर्ग कल्याण को हटाने की मांग को लेकर हर 2-3 महीने में दिल्ली चला आता। वाजपेयी-आडवाणी की जोड़ी ने ऐसे विद्रोहियों पर कभी कोई कार्रवाई तो नहीं ही की, बल्कि संरक्षण ही दिया। नतीजतन, अपमानित कल्याण सिंह ने 1999 के लोकसभा चुनावों के दौरान पार्टी के आधिकारिक प्रत्याशियों के खिलाफ गोटियां बिछाकर अपना बदला ले लिया। पार्टी की सीटें आधी रह गईं- 1998 की 58 से घटकर 1999 में 29 रह गईं। हालांकि अन्य एनडीए सहयोगियों के बेहतर प्रदर्शन के कारण वह वाजपेयी को प्रधानमंत्री के रूप में फिर से चुने जाने से नहीं रोक सके। वाजपेयी को कल्याण सिंह को बाहर करने का एक कारण मिल गया और उनकी जगह लगभग भुला दिए गए अस्सी वर्षीय नेता राम प्रकाश गुप्ता को नियुक्त किया गया जो खासे कमजोर साबित हुए।
इस बार भी, 1999 की ही तरह, बीजेपी शीर्ष नेतृत्व मौर्य और पाठक जैसे विद्रोहियों को मूक समर्थन देकर योगी पर दबाव बनाता दिख रहा है। पिछले चार साल तक वह केन्द्र द्वारा उन पर थोपे गए मुख्य सचिव से निपटते रहे। कैबिनेट मंत्री एके शर्मा जैसे उनके सहयोगी और प्रदेश अध्यक्ष भूपेन्द्र चौधरी मोदी के वफादार माने जाते हैं। संगठन सचिव सुनील बंसल भी योगी के विरोधी बताए जाते हैं। जाहिरा तौर पर यह सब उन्हें कुछ ऐसे मनोवैज्ञानिक दबाव में डालने की रणनीति जैसा है कि वह सिर्फ एक गलत कदम उठा लें और शीर्ष नेतृत्व को उन्हें बाहर का रास्ता दिखाने का बहाना मिल जाए।
Published: undefined
योगी आदित्यनाथ पहले ही मोदी-शाह जोड़ी से साफ कर चुके हैं कि उन्हें मुख्यमंत्री पद के बाद किसी अन्य पद की चाहत नहीं है। अगर उन्हें कुर्सी से हटाया जाता है तो वह गोरखपुर में अपने मठ में वापस जाना चाहेंगे। इसका मतलब होगा कि उनके साथी ठाकुरों का भाजपा से और अधिक अलगाव होगा। जिस पार्टी के पास 20-22 फीसदी का ऐसा ठोस कोर वोट बैंक है जिसमें ज्यादातर ऊंची जातियां शामिल हैं, वह इसमें दरार बर्दाश्त नहीं कर सकती। मतलब साफ है कि योगी और बीजेपी केन्द्रीय नेतृत्व के बीच शह-मात का यह खेल अभी और कुछ समय तक चलने की संभावना है, जब तक कि उनमें से किसी एक की पलक न झपके, उससे गलती न हो और चेकमेट न हो जाए। तब तक दोनों खेमे सियासी शतरंज की बिसात पर अपनी चालें चलते रहेंगे। फिलहाल तो नतीजे की भविष्यवाणी करने की स्थिति में शायद कोई नहीं है लेकिन दो बातें जरूर तय हैं- अगर किसी की हार होगी तो वह भाजपा होगी, अगर किसी को लाभ होगा तो वह विपक्ष को होगा।
Published: undefined
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
Published: undefined