सृष्टि के आधार में भले ही महिलाएं पुरुषों की बराबरी करती हों, लेकिन दुनिया में महिलाएं उपेक्षित ही रही हैं। बराबरी के नारे खूब बुलंद किए गए, लेकिन हालत ये है कि विज्ञान में बहुत तरक्की के बाद अब जाकर यह पता चला है कि महिलाओं और पुरुषों में दर्द की अनुभूति और इसे सहने की क्षमता अलग-अलग होती है। जीवन में अनेक अंतरों की तरह दर्द भी महिला और पुरुषों पर अलग प्रभाव छोड़ता है, महिलाओं के दर्द अलग भी होते हैं और महिलाओं के स्थायी दर्द का इलाज ठीक नहीं होता।
दरअसल स्वास्थ्य विज्ञान का पूरा विकास पुरुषों ने किया है। इसलिए कभी इस तथ्य पर ध्यान दिया ही नहीं गया। दर्द की बाजार में उपलब्ध दवाएं भी पुरुषों को ध्यान में रखकर विकसित की गई हैं और इन्हीं दवाओं से महिलाओं का भी इलाज कर दिया जाता है। हालत इतनी बदतर है कि अधिकतर चिकित्सक महिलाओं के दर्द को पूरा समझे बिना ही दवाएं लिख देते हैं।
स्थायी दर्द इस समय विश्व की स्वास्थ्य से संबंधित सबसे बड़ी समस्या है, इसलिए इस पर अनेक शोध किये जा रहे है। इन शोधों के निष्कर्ष को ध्यान से देखने पर महिलाओं और पुरुषों के दर्द में अंतर समझ में आता है।
अपनी विशेष शारीरिक बनावट, कुछ अलग शारीरिक क्रियाएं, गर्भ धारण इत्यादि के कारण महिलाएं दर्द से पुरुषों की तुलना में अधिक घिरी रहती हैं और इसे झेलने के लिए पुरुषों से अधिक तैयार रहती हैं। लगभग एक जैसे प्रभाव से महिलाओं और पुरुषों में दर्द हो तब महिलाएं दर्द की अनुभूति अधिक करती हैं, इससे प्रभावित अधिक होती हैं और इसका वर्णन अधिक विस्तार से करती हैं।
लेकिन महिलाएं दर्द की अभ्यस्त जल्दी हो जाती हैं और फिर इसे जल्दी भूल भी जाती हैं। दर्द भूलने का फायदा यह होता है कि एक स्थान पर दर्द होने के बाद अगर दोबारा उसी स्थान पर दर्द हो तब महिलाएं पहले दर्द को याद भी नहीं करतीं, जबकि पुरुष पहले के दर्द को याद कर परेशान हो जाते हैं।
साल 2012 में साइंटिफिक अमेरिकन में प्रकाशित एक लेख के अनुसार महिलाएं दर्द की शुरुआती अनुभूति पुरुषों की तुलना में अधिक करती हैं। इस लेख को स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने लिंडा लाऊ की अगुवाई में 11000 महिलाओं और पुरुषों पर अध्ययन करने के बाद लिखा था। इस अध्ययन को अब तक दर्द से संबंधित सबसे बड़ा अध्ययन माना जाता है।
इसमें एक ही प्रकार के दर्द की अनुभूति के बाद पुरुषों और महिलाओं से दर्द की प्रबलता के हिसाब से 0 और 10 अंक के बीच अंक देने को कहा गया था। इस अध्ययन के अनुसार महिलाओं ने पुरुषों के मुकाबले अपने दर्द को 20 प्रतिशत अधिक अंक दिए थे।
अमेरिकन पेन सोसाइटी के अनुसार महिलाओं और पुरुषों में मस्तिष्क के अलग-अलग हिस्से दर्द की संवेदना ग्रहण करते हैं। मौलिक जैविक अंतर के कारण महिलाओं और पुरुषों में दर्द की संवेदना और इससे निपटने की क्षमता में अंतर होता है।
जनवरी 2019 में करंट साइंस नामक प्रतिष्ठित वैज्ञानिक जर्नल में भी इस विषय पर एक शोधपत्र प्रकाशित किया गया था। इस अध्ययन को मैकगिल यूनिवर्सिटी और यूनिवर्सिटी ऑफ टोरंटो के वैज्ञानिकों ने संयुक्त तौर पर किया था और 41 पुरुषों और 38 महिलाओं पर परीक्षण किया था।
इस अध्ययन का निष्कर्ष था कि महिलाओं और पुरुषों में दर्द को याद करने की क्षमता अलग है। वैज्ञानिक जेफरी मोगिल और एलन एडवर्ड्स के अनुसार महिलाएं पुराने दर्द को आसानी से भूल जाती हैं जबकि पुरुष इसे याद कर दर्द से छुटकारा पाने के बाद भी तनाव में रहते हैं। पुरुष अपने दर्द की अतिवादी प्रतिक्रिया देते हैं जबकि महिलाएं दर्द को छुपाने में माहिर होती हैं।
इतना तो स्पष्ट है कि महिलाओं और पुरुषों के दर्द का विज्ञान अलग है, लेकिन क्या कभी वह समय भी आएगा जब महिलाओं के दर्द का इलाज पुरुषों के दर्द की दवा से नहीं किया जाएगा। हाल-फिलहाल इसकी संभावना कम है क्योकि इस अंतर को खोजने वाले भी अधिकतर पुरुष वैज्ञानिक हैं। महिलाएं तो बस अपना दर्द समेटे आगे बढ़ना जानती हैं।
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