हाल में एक अमेरिकी अखबार में एक कार्टून स्ट्रिप छपा था। इसमें दो बेरोजगार युवा बात कर रहे हैं। एक पूछता है कि क्या तुम अब भी बेरोजगार हो? इस पर दूसरा युवक कहता है, हां। इसलिए कि मेरा इम्प्लॉयर उतना भी नहीं दे रहा जितना मुझे राशन कार्ड पर अनाज और बेरोजगारी भत्ता मिल रहा है।
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भारत में तो स्थिति और भी खराब है। जो लोग कोविड- 19 की वजह से लगाए गए लॉकडाउन में बेरोजगार हो गए हैं, उनके लिए कोई सामाजिक सुरक्षा-जैसी योजना तो है नहीं। और जब लॉकडाउन पूरी तरह खुलेगा, तब भी हम बहुत रोजगार नहीं दे पाएंगे क्योंकि इस संकट से पहले भारत की औपचारिक अर्थव्यवस्था में नई नौकरियां नहीं जुड़ रही थीं और अधिकतर रोजगार शहरी भारत में असंगठित क्षेत्र में थे। मोटे अनुमान के अनुसार, शहरी भारत में 3 करोड़ लोग पहले से ही रोजगार के लिए बाट जोह रहे थे। प्रवासी संकट की खूब चर्चा हो रही है, शहरी भारत में रोजगार संकट पहले से ही गंभीर है जिन पर भी ध्यान देना आवश्यक है।
शहरी भारत में 30 करोड़ ऐसे लोग हैं जो खाली पड़ी दुकानों में कभी सेल्समैन रहे, इन दिनों सूने रेस्टोरेंट में कभी वेटर रहे और आज वर्क फ्रॉम होम कर रहे लोगों के ऑफिस में कभी हाउस कीपिंग जैसे काम किया करते थे। इनमें से काफी सारे लोगों की नौकरियां खतरे में हैं क्योंकि पता नहीं है कि इनमें से कितने व्यापार जारी रह पाएंगे और अगर शुरू हुए भी, तो मांग कितनी बनी रहेगी। वैसे तो उम्मीद है कि औपचारिक सेक्टर उबर जाएगा लेकिन सच्चाई यह भी है कि औपचारिक सेक्टर बहुत छोटा है। भारत में 6 करोड़ 30 लाख उद्यम हैं लेकिन इनमें से सिर्फ1 करोड़ 20 लाख उद्यम जीएसटी का भुगतान करते हैं और मात्र 10 लाख सामाजिक सुरक्षा उपलब्ध कराते हैं।
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भले ही यह हतोत्साहित करने-जैसा लगे, सीमित शिक्षा और स्किल वाले शहरी भारत में बड़ी आबादी के लिए इस संकट में एकमात्र आशा या तो नौकरी पाने या फिर, अनौपचारिक सेक्टर में स्वरोजगार करने की है। किसी अनौपचारिक जगह पर काम करना प्रेरणादायक तो नहीं है लेकिन अनौपचारिक क्षेत्र भारत का अभिन्न अंग है- इसका भारत की राष्ट्रीय उत्पादकता में 50 प्रतिशत हिस्सा है और यह पहली बार काम कर रहे लाखों लोगों को नौकरियां और स्किल देता है। वैसे, हमारे 99.5 प्रतिशत उद्यम एक व्यक्ति के स्वामित्व वाली दुकानें हैं क्योंकि वे सब दिन इतने छोटे बने रहना चाहते हैं कि टैक्सों का भुगतान टाल सकें। कुछ नीतियों में ढील देकर इन व्यापारों को बढ़ने और वैसे लोगों को रोजगार देने में सक्षम बनाया जा सकता है जिनकी नौकरियां रातों रात चली गईं। औपचारिक सेक्टर की कंपनियां कुछ क्लस्टरों में बड़ी श्रम शक्ति को रोजगार देती हैं जबकि अनौपचारिक क्षेत्र पूरे देश में फैला हुआ है और सुदूरवर्ती इलाकों में भी रोजगार दे सकता है और इस तरह प्रवासी समस्या का भी अंशतः निदान निकाल सकता है।
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अनौपचारिक अर्थव्यवस्था उतनी भी निर्दयी या कठोर नहीं है जितना इसे दिखाया जाता है। वस्तुतः यह औपचारिक उद्यमों का सहायक है। अनौपचारिक सेक्टर में होने वाली आय अधिकांशतः औपचारिक अर्थव्यवस्था में ही खर्च की जाती है औरयह औपचारिक सामानों के लिए मांग को बढ़ाती है। यह नौकरी की ट्रेनिंग उपलब्ध कराती है और जब सार्वजनिक खर्च कम हो, तब सरकार पर दबाव कम करती है। यह सेक्टर लचीलापन भी लाता है, खास तौर से महिलाओं के लिए यह महत्वपूर्ण है जो बच्चों के लालन-पालन के लिए उत्तरदायी रहा करती हैं। और अंतिम बात। औपचारिक उद्यम आम तौर परकीमत में नियंत्रण बनाए रखने के लिए अपने काम अनौपचारिक उद्यम को आउटसोर्स करते हैं।
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इन बातों के मद्देनजर, सरकारको सहानुभूतिपूर्ण रुख अख्तियार करना चाहिए और अपनी नीतियों में ढील देनी चाहिए जो अनौपचारिक शहरी उद्यमिता में सहायक होगी। शुरुआत के लिए, नीतिनियंताओं को सिटी प्लानिंग, बजट कामों और वित्तयोजना में अनौपचारिक सेक्टर को समाहित कर शहरी अनौपचारिक अर्थव्यवस्था में बहिष्करण नहीं बल्कि समावेशी नीति अपनानी चाहिए। पहली बात, नीति निर्धारकों को स्वरोजगार वाले लोगों को घर से ही काम करने देने के लिए दोहरे निवास स्थान की अनुमति देनी चाहिए। निश्चित तौर पर, यह किसी खनन करने वाले को अपना काम घर से करने का लाइसेंस देना नहीं है लेकिन किसी मान्य सीमा में किए जाने वाले काम की अनुमति दी जा सकती है। किसी अनधिकृत क्षेत्र में रहने वाले किसी उद्यमी की योग्यता वित्त और सरकारी सहायता वाले अनौपचारिक क्षेत्रों में शामिल होने से अपने आप समाप्त हो जाती है। परिणामतः, वे निचले स्तर पर काम करने तक सीमित रहेंगे और एक कर्मचारी से अधिक नहीं बढ़ पाएंगे जो कि खुद स्वामी ही है। बिजली दरों की सूची पर भी फिर से निगाह डालने की जरूरत है क्योंकि किसी आवासीय कनेक्शन से इस तरह का काम करने पर उन्हें 50 से 200 प्रतिशत अधिक भुगतान करना होगा क्योंकि वे बिजली का कमर्शियल उपयोग कर रहे होंगे। परिसरों के प्रकार पर शुल्क निर्धारित करने की जगह यह तय किया जाना चाहिए कि वहां कितनी बिजली खर्च हो रही है। जितनी अधिक खपत होगी, उतना अधिक शुल्क लगाया जाना चाहिए। घर पर चलने वाले उद्यमों को बढ़ावा देने के लिए हाउस टैक्स नीति में भी तरमीम करने की जरूरत है। शहरी स्थानीय निकाय किसी आवासीय क्षेत्र में कोई कमर्शियल गतिविधि पाने पर उच्चतर टैक्स और दंड लगा देती हैं। ऐसे में, मकान मालिक स्वरोजगार वाले लोगों को अपनी संपत्ति किराये पर देने में आनाकानी करते हैं। उद्यमी के अभिभावक या पति पत्नी अगर को-साइनर होने के इच्छुक हों और उद्यमी तीन साल में औपचारिक क्षेत्र की तरफ आने की सहमतिदे, तो लिक्विडिटी उपलब्ध कराने के लिए बिना किसी गारंटी कम राशिका ऋण उपलब्ध कराने पर विचार किया जाना चाहिए।
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इस तरह के प्रयास अनौपचारिक सेक्टर को बढ़ने में मदद कर सकते हैं लेकिन हमें यह भी सुनिश्चित करना होगा कि उन्हें काम का स्रोत आसानी से मिले और इसके साथ हमें जीएसटी पर भी फिर से नजर डालना होगा। छोटे उद्यमों को अपने काम बड़े पैमाने पर देने वाले बड़े उद्यम अब कम इच्छुक हैं क्योंकि अनौपचारिक सेक्टर टैक्स की परिधि में नहीं आते हैं। इनमें से कुछ नियमों में ढील देना आर्थिक गुंजन को दोबारा शुरू कर सकता है क्योंकि यह पहले से ही दबाव झेल रही औपचारिक इकाइयों को अनौपचारिक इकाइयों से कम कीमत वाले सामान को मंगाने और बदले में उन्हें अधिक रोजगार उपलब्ध कराने का अवसर देने में मदद करेंगे।
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हमारी सोच यह है कि बड़े उद्योग नीति बनाने में असंतुलित रूप से प्रभावी भूमिका निभाते हैं और इसमें अनौपचारिक सेक्टर की कोई जगह नहीं होती। यह महत्वपूर्ण है कि हम इन नीतियों को दुरुस्त करें जिससे विशाल आबादी के उस बहुसंख्य हिस्से का भी लाभ उठा सकें जो हमारी ओर उम्मीद से टकटकी लगाए मदद की अपेक्षा कर रहा है। देश तभी आत्मनिर्भर होता है जब इसके लोग आत्मनिर्भर होते हैं।
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