दुनिया में दो तरह का लोकतंत्र है- चन्द देश हैं जहां वास्तविक लोकतंत्र है, तो दूसरी तरफ बड़ी संख्या में भारत जैसे देश हैं जहां लोकतंत्र के पर्दे के पीछे निरंकुश शासन है। दुखद तथ्य यह है कि लोकतंत्र के पर्दे से निरंकुश शासन चलाने वाले देशों की संख्या वास्तविक लोकतंत्र वाले देशों की संख्या से अधिक है। दुनिया की एक-चौथाई से अधिक आबादी इन देशों में रहती है और पिछले 10 वर्षों में ऐसे देशों की संख्या में दुगने से भी अधिक की वृद्धि हुई है।
34 देशों की सरकारों के सहयोग से बना स्वीडन की राजधानी स्टॉकहोम में स्थित इन्टरनेशनल इंस्टिट्यूट फॉर डेमोक्रेसी एंड इलेक्शन असिस्टेंस पिछले कुछ वर्षों से वार्षिक ग्लोबल स्टेट ऑफ डेमोक्रेसी रिपोर्ट प्रकाशित करता है, जिसमें दुनिया के लगभग 160 देशों में लोकतंत्र का विस्तृत विश्लेषण रहता है। यह विश्लेषण पिछले 50 वर्षों के लोकतांत्रिक पैमाने के आधार पर किया जाता है। रिपोर्ट के अनुसार इन देशों में से महज 98 लोकतांत्रिक व्यवस्था वाले देश हैं, यह संख्या किसी भी वर्ष की तुलना में सबसे कम है और इसमें भी अधिकतर देशों में लोकतंत्र का बस पर्दा है। दुनिया में 20 देशों, जिसमें रूस और तुर्की प्रमुख हैं, में हाइब्रिड शासन है और 47 में निरंकुश तानाशाही है। हाल में ही प्रकाशित वर्ष 2021 की रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की 70 प्रतिशत आबादी मरते लोकतंत्र या फिर निरंकुश तानाशाही की मार झेल रही है।
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पिछले कुछ वर्षों से लोकतंत्र मिटाने का खेल दुनिया भर में खेला जा रहा है, पर पिछले वर्ष कोविड 19 वैश्विक महामारी ने सरकारों को लोकतंत्र कुचलने का एक नया हथियार दे दिया है, और इस हथियार का उपयोग दुनिया भर में किया गया है। देशों की सामान्य कानून प्रणाली को खोखला करना और अभिव्यक्ति की आजादी पर हमला पूरी दुनिया में लोकतांत्रिक सरकारें कर रहीं हैं। जिन देशों में तथाकथित लोकतंत्र है, वहां पर सरकारें इससे पीछा छुड़ाने में व्यस्त हैं, अब तो भारत, दक्षिण अफ्रीका और अमेरिका जैसी वैश्विक आर्थिक और राजनैतिक शक्तियां भी इसी राह पर चल पड़ी हैं।
रिपोर्ट के अनुसार इस हथियार का उपयोग कर लोकतांत्रिक अधिकारों के दमन का काम सबसे अधिक भारत ने किया है। इसमें कोविड-19 के नियंत्रण के नाम पर जेलों में बंद करना, प्रताड़ित करना, मानवाधिकार और सामाजिक कार्यकर्ताओं, छात्रों, शिक्षकों और सरकार की नीतियों का विरोध करने वालों को दंडित करना, सुरक्षा बलों का अत्यधिक प्रयोग, मुस्लिमों को प्रताड़ित करना, इन्टरनेट को बंद करना, लॉकडाउन और कश्मीर में तमाम मानवाधिकार हनन के तरीके शामिल हैं।
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रिपोर्ट के अनुसार हालांकि वर्ष 2019 से अमेरिका में लगातार लोकतंत्र पर प्रहार किया जा रहा है, पर वर्ष 2021 में पहली बार यह ऐसे देशों की सूची में शामिल किया गया है, जहां लोकतंत्र पर आघात किया जा रहा है। वर्ष 2020 के राष्ट्रपति चुनावों में तो पूरे मतदान की प्रक्रिया और फिर परिणाम पर ही सवाल खड़े कर दिए गए। जब एक महाशक्ति में यह सब तमाशा किया जाता है तब उसका असर पूरी दुनिया पर पड़ता है। डोनाल्ड ट्रंप ने जब अपने ही देश की चुनाव प्रणाली को खारिज करने का प्रयास किया तब इससे प्रभावित होकर म्यांमार, पेरू और इजराइल में यही दोहराया गया।
अमेरिका में केवल चुनावों पर प्रश्न नहीं उठाए गए, बल्कि अभिव्यक्ति की आजादी का हनन, विरोध प्रदर्शनों पर अंकुश और रंगभेद को हवा देने का काम भी खूब किया गया। यह रिपोर्ट एक ऐसे समय प्रकाशित की गयी है, जब अमेरिका के राष्ट्रपति जो बाइडेन 9 और 10 दिसम्बर को लोकतंत्र पर अन्तराष्ट्रीय अधिवेशन की तैयारियों में जुटे हैं। यह अधिवेशन वर्चुअल तरीके से किया जाना है।
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दुनिया में लोकतंत्र का सबसे अधिक हनन एशिया-प्रशांत क्षेत्र में किया जा रहा है, और इस काम में भारत, इंडोनेशिया और श्रीलंका सबसे आगे हैं। इन सभी देशों में बहुवाद या फिर धार्मिक और जातीय विविधता को तेजी से खत्म करने के प्रयास किये जा रहे हैं, धार्मिक उन्माद को सरकारें राष्ट्रवाद का जामा पहना कर पेश कर रही हैं, सत्ता का केन्द्रीकरण हो गया है और अल्पसंख्यकों के विरुद्ध हिंसा भड़काई जा रही है। इस रिपोर्ट में एशिया-प्रशांत क्षेत्र की प्रस्तावना को भारत के पूर्व चुनाव आयुक्त एस वाई कुरेशी ने लिखा है। उन्होंने संतुलित शब्दों में देश में लोकतंत्र के भविष्य पर चिंता भी प्रकट किया है और साथ ही आशावादी भी हैं कि भारतीय जनता के जनमानस में लोकतंत्र के प्रति निष्ठा ही देश में लोकतंत्र को फिर से वापस अपने स्वरुप में लेकर आएगी।
इस रिपोर्ट के अनुसार कोविड-19 वैश्विक महामारी ने दुनिया की लोकतांत्रिक सरकारों को लोकतंत्र के दमन का एक सशक्त हथियार दे दिया है। अगस्त 2021 तक दुनिया की 64 प्रतिशत सरकारों ने वैश्विक महामारी के नाम पर कई ऐसे कदम उठाए जो आवश्यक नहीं थे, समस्या के अनुपात में असंतुलित थे और लोकतंत्र के लिहाज से अवैध थे- इनसे लोकतंत्र खोखला होता गया। पिछले एक दशक के दौरान लोकतंत्र की राह से भटकते देशों की संख्या दोगुनी हो गयी है- ऐसे देशों में भारत, अमेरिका, हंगरी, पोलैंड, स्लोवेनिया, म्यांमार और अफगानिस्तान प्रमुख हैं। वर्ष 2020 में पहली बार पूरी दुनिया के सन्दर्भ में लोकतंत्र से अधिक आबादी निरंकुश शासन में है।
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इससे पहले फरवरी 2021 में द इकोनॉमिस्ट इंटेलीजेंस यूनिट द्वारा प्रकाशित लोकतंत्र सूचकांक 2020 की वैश्विक रैंकिंग में भारत दो स्थान फिसलकर 53वें पायदान पर पहुंच गया। द इकोनॉमिस्ट इंटेलीजेंस यूनिट (ईआईयू) ने कहा, लोकतांत्रिक मूल्यों से पीछे हटने और नागरिकों की स्वतंत्रता पर कार्रवाई को लेकर भारत पिछले साल की तुलना में दो पायदान फिसला है। इस सूचकांक में 167 देशों में से 23 को पूर्ण लोकतंत्र, 52 को त्रुटिपूर्ण लोकतंत्र, 35 को मिश्रित शासन और 57 को सत्तावादी शासन के रूप में वर्गीकृत किया गया था। भारत को अमेरिका, फ्रांस, बेल्जियम और ब्राजील के साथ त्रुटिपूर्ण लोकतंत्र के तौर पर वर्गीकृत किया गया था।
ग्लोबल स्टेट ऑफ डेमोक्रेसी रिपोर्ट 2021 के अनुसार एशिया में अफगानिस्तान, हांगकांग और म्यांमार में लोकतंत्र हनन की खूब चर्चा की जाती है, पर लोकतंत्र को नाटकीय तौर पर नुकसान पहुंचाने में भारत, श्रीलंका और फिलीपींस सबसे आगे हैं। अफ्रीका में सैनिक विद्रोह के कारण चाड, गिनी, माली और सूडान में लोकतंत्र समाप्त हो गया है। दक्षिण अमेरिका में बोलीविया, ब्राजील, कोलम्बिया, एलसाल्वाडोर में लोकतंत्र खतरे में है, जबकि यूरोप में अजरबैजान, बेलारूस, पोलैंड, रूस और टर्की में ऐसे हालात हैं।
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जाहिर है, पूरी दुनिया से लोकतंत्र के खात्मे की साजिश चल रही है, पर भारत जैसे देशों में इसके खात्मे की दर कुछ ज्यादा ही तेज है। निर्वाचन आयोग के विज्ञापनों में लोकतांत्रिक चुनाव प्रक्रिया को एक महा-त्यौहार बताया गया है और मोदी जी लोकतंत्र को त्यौहार बताते हैं। सही मायने में चुनावों को ठीक से इन्हीं दोनों ने समझा है। त्यौहार मतलब मौज-मस्ती, विदूषक का खेल, खिलौने और कुछ धन की बर्बादी। हमारे देश का चुनाव भी यही सब कुछ तो हो चला।
आजकल नेताओं के भाषण और रैलियां मौजमस्ती ही तो हैं। अच्छे कपड़े पहने नेताओं का हवा में हाथ लहराकर विपक्ष को खुलेआम गालियां देना, अपशब्दों की बौछार करना, एक दूसरे को धमकी देना, झूठ बोलना, हेलीकॉप्टर और विमानों में दिनभर घूमना, आधुनिक मौज मस्ती ही तो है। विदूषक जिस तरह के कारनामे करता है और दृष्टि-भ्रम पैदा करता है, ठीक वैसे ही नेता जनता को सब्जबाग दिखाते हैं और जहां तहां धन, मदिरा या फिर साड़ियों की बौछार करते हैं। परम्परागत उत्सव और चुनावी उत्सव में बस अंतर झूठ का है, परम्परागत उत्सव में झूठ नहीं होता जबकि चुनावी उत्सव में कुछ सच नहीं होता- बस यही हमारा लोकतंत्र है।
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