गुजरात विधानसभा चुनाव के दौरान वरिष्ठ कांग्रेस नेता अशोक गहलोत लगातार कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ रहे। उनका कहना है कि महात्मा गांधी के विचारों को राहुल गांधी मानते हैं। उनका सरोकार देश के आदिवासियों, दलितों, पिछड़ों और मुसलमानों के साथ है। देश के गरीब व्यक्ति को केन्द्र बनाकर वे राजनीति करना चाहते हैं। अशोक गहलोत ने यह भी कहा कि गुजरात चुनाव के दौरान राहुल गांधी ने जिस तरीके से अपनी बात लोगों के सामने रखी, उससे उनके बारे में प्रचलित हर तरह की पुरानी धारणाएं टूट गई हैं। कांग्रेस पार्टी, राहुल गांधी और देश की राजनीति से जुड़े कई विषयों पर अशोक गहलोत से विश्वदीपक ने बात की।
गुजरात चुनाव में कांग्रेस की सीटों में तकरीबन 100 फीसदी इजाफा हुआ। वोट शेयर भी दशकों बाद 40 के पार चला गया। आपके हिसाब से गुजरात चुनाव के परिणाम क्या संदेश देते हैं ? यह परिणाम किस तरह देश की राजनीति को प्रभावित करने वाले हैं ?
यह केवल मैं नहीं बल्कि पूरा देश मानता है कि भले ही चुनाव में बीजेपी ने जीत हासिल की हो, नैतिक जीत कांग्रेस की हुई है। इस जीत के मायने इसलिए और बढ़ जाते हैं क्योंकि गुजरात प्रधानमंत्री मोदी का गृह राज्य है और बीजेपी चुनाव के पहले से लगातार दावे कर रही थी कि उसे 150 से ज्यादा सीटें मिलने वाली हैं। जनता ने प्रधानमंत्री के अहंकार को और बीजेपी के दावों दोनों को खारिज कर दिया है। मौजूदा परिदृश्य में इस नैतिक जीत की अहमियत इसलिए और भी बढ़ जाती है क्योंकि राहुल गांधी के नेतृत्व में कांग्रेस ने सकारात्मक चुनाव प्रचार किया। हमने विकास और रोजगार के मुद्दे पर बीजेपी से सवाल पूछा। हमने हर मुद्दे पर बीजेपी को घेरा और उनके पास किसी बात का कोई जवाब नहीं था।
Published: 08 Jan 2018, 6:32 PM IST
बीजेपी ने जीत दर्ज कर गुजरात में छठी बार सरकार का गठन किया। आपके हिसाब से कांग्रेस जीतते-जीतते क्यों हार गई ?
मेरे विश्लेषण के हिसाब से बीजेपी इसलिए जीती क्योंकि उन लोगों ने आखिरी कुछ दिनों में भावनात्मक मुद्दों को जबरदस्त हवा दी। मोदी ने खुद गुजराती अस्मिता का मुद्दा जोर-शोर से उठाया। मणिशंकर अय्यर के बयान को गुजराती अस्मिता से जोड़कर लोगों को उकसाया गया। असल में बीजेपी को, मोदी-अमित शाह को, सबको समझ में आ गया था कि इस चुनाव में बीजेपी हारने वाली है इसलिए आखिरी विकल्प के तौर भड़काऊ मुद्दों को हवा दी गई।
जीत का दूसरा कारण यह है कि गुजरात चुनाव में बीजेपी ने सरकारी मशीनरी का दुरुपयोग किया। केन्द्र और राज्य दोनों जगहों पर बीजेपी की सरकार है, इसलिए धनबल का इस्तेमाल करते हुए बीजेपी ने कमजोर तबके को डराया। सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल करते हुए व्यापारी समुदाय को डराया गया। उनसे कहा गया कि अगर बीजेपी को वोट नहीं दोगे तो छापा मारेंगे। कुछ सीटों पर तो इन सब हथकंडों का असर भी हुआ। आप देखें तो करीब 20-22 सीटें ऐसी हैं जहां कांग्रेस बहुत कम अंतर से हारी है। पूरा देश यह मानता है कि असल में कांग्रेस की हार नहीं हुई है, बल्कि गुजरात चुनाव में बीजेपी हारी है।
Published: 08 Jan 2018, 6:32 PM IST
गुजरात का प्रभारी होने के नाते आपने कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के साथ बहुत नजदीकी से काम किया। एक नेता के तौर पर राहुल गांधी का देश के लिए क्या विजन है ?
देखिए, यह बात मैं पहले भी कहता रहा हूं। गुजरात चुनाव से पहले भी, गुजरात चुनाव के दरम्यान भी मैंने कहा है, और बाद में भी कहता रहूंगा कि राहुल गांधी देश के ऐसे नेता हैं जो समाज के सबसे निचले पायदान पर खड़े आदमी के बारे में सोचते हैं। वे गांधी के उस फलसफे को मानते हैं कि सरकार या राज्य की कोई भी नीति समाज के सबसे पिछड़े पायदन पर खड़े इंसान और तबके को ध्यान में रखकर बनाना चाहिए। वे देश के आदिवासियों, दलितों, पिछड़ों और मुसलमानों के बारे में सोचते हैं। जो देश का गरीब व्यक्ति है उसको केन्द्र बनाकर वे राजनीति करना चाहते हैं।
राहुल गांधी चाहते हैं कि देश का पॉलिटिकल डिस्कोर्स बदले। वे ऐसे नेता हैं जो मानते हैं कि देश में नफरत की जो राजनीति चल रही है उसे खत्म होना चाहिए। उसकी जगह पर भाईचारे, सद्भाव, अहिंसा की बात होनी चाहिए।
राजनीतिक विरोधियों से नफरत करना उनकी राजनीतिक शैली नहीं है, जैसा कि संघ और बीजेपी के लोग करते हैं। आपने देखा होगा कि वे बहुत सहज तरीके से लोगों से मिलते हैं, उनका दुख दर्द सुनते हैं, भीड़ से घुल मिल जाते हैं। सिर्फ राजनेता के तौर पर नहीं बल्कि एक इंसान के तौर पर भी वे बेहद संवेदनशील हैं। देश के लोग राहुल गांधी की राजनीतिक शैली पर भरोसा भी करते है।
आरएसएस-बीजेपी ने सोशल मीडिया के माध्यम से अभियान चलाकर, करोड़ों का खर्चा करके उनकी छवि को बिगाड़ने का काम किया, लेकिन गुजरात चुनाव के बाद अब यह मिथ टूटने लगा है।असल में राहुल नहीं बदले हैं। वे वही हैं जो पहले थे, लेकिन लोगों की मान्यता बदल चुकी है। अब आरएसएस-बीजेपी की पोल खुल चुकी है। गुजरात चुनाव के दौरान राहुल गांधी ने जिस शानदार तरीके से अपनी बात संप्रेषित की उससे उनके बारे में प्रचलित हर तरह की पुरानी धारणाएं टूट गई हैं।
आपने इंदिरा गांधी का दौर देखा है। राजीव गांधी और सोनिया गांधी के साथ भी काम किया है। राहुल गांधी की कार्यशैली उनकी दादी, माता और पिता से किस तरह अलग है या मिलती-जुलती है ?
केवल मैंने ही नहीं बल्कि गुजरात चुनाव के दौरान सबने इस बात को नोटिस किया है कि जिस तरह भीड़ का रुझान इंदिरा जी की रैलियों में देखने को मिलता था, वही रुझान इस बार चुनाव में राहुल की रैलियों में देखने को मिला।
मुझे इन सबकी कार्यशैली में भिन्नता से ज्यादा समानता देखने को मिली। इंदिरा जी के दौर में जब मैंने राजनीति शुरू की थी तब मैं युवा था। मेरी तरह मेरे दूसरे समकालीन युवाओं को जिसमें गुलाम नबी आजाद, मुकुल वासनिक, वीके हरिप्रसाद, दिग्विजय सिंह जैसे लोग शामिल हैं। इंदिरा जी ने राजनीति में आगे बढ़ाया। इसी तरह राजीव गांधी ने भी अपने दौर में कांग्रेस पार्टी में युवा सोच को तरजीह दी। राहुल गांधी वैसा ही कर रहे हैं। अपनी दादी, माता या पिता की तरह राहुल गांधी ने भी अपनी विश्वसनीयता बरकरार रखी है। हर राज्य, क्षेत्र, सूबे, इलाके का आदमी राहुल गांधी पर भरोसा करता है। सब यह मानते हैं कि राहुल गांधी उनकी बात सुनेंगे और अगर उनके साथ अन्याय होगा तो वे उनके साथ खड़े होंगे। इंदिरा की तरह राहुल गांधी भी गरीबों के हक की राजनीति करते हैं।
Published: 08 Jan 2018, 6:32 PM IST
कांग्रेस पर अक्सर वंशवाद का आरोप लगता रहा है और कहा जाता है कि राहुल गांधी उसी वंशवाद का प्रतिफल हैं ?
ऊपर मैंने जिस विश्वसनीयता का जिक्र किया, उसी को बीजेपी और संघ के लोग वंशवाद की तरह प्रचारित करते हैं, लेकिन यह वंशवाद नहीं है। वंशवाद तो तब होता है जब आप सत्ता में होते हुए इसका हस्तांतरण करते हैं। गांधी परिवार का कोई भी शख्स पिछले 28 साल से सत्ता में नहीं है तो फिर यह वंशवाद कैसे है?
मैं समझता हूं कि ‘गांधी’ शब्द कांग्रेस की पूंजी है क्योंकि सत्ता में न रहने के बावजूद कांग्रेस पार्टी के करोड़ों कार्यकर्ता गांधी परिवार पर भरोसा करते हैं। गांधी परिवार के नेतृत्व पर देश को भरोसा है यह बात बार-बार सच साबित हुई है। मैं समझता हूं कि कांग्रेस की पूंजी गांधी परिवार है और गांधी परिवार की पूंजी देश के वे लोग हैं जो बिना किसी लालच के, सत्ता के प्रलोभन के उनके नेतृत्व पर भरोसा करते हैं।
कांग्रेस पार्टी की परंपरा रही है कि जब भी नया अध्यक्ष निर्वाचित होता है तो पूर्ण अधिवेशन बुलाकर पार्टी उनके नेतृत्व को आधिकारिक तौर पर स्वीकार करती है। राहुल गांधी की अध्यक्षता को स्वीकार करने के लिए पूर्ण अधिवेशन कब बुलाया जाएगा ?
इसका फैसला कॉन्ग्रेस वर्किंग कमेटी (कांग्रेस कार्य समिति) को करना है। राहुल जी अध्यक्ष बन गए हैं, अब वे लोग बैठकर तय करेंगे कि कब होना है। हालांकि मेरा इस बारे में कुछ कहना ठीक नहीं है, लेकिन मैं इतना बता सकता हूं कि कोई तारीख निर्धारित नहीं की गई है।
Published: 08 Jan 2018, 6:32 PM IST
इस साल मध्यप्रदेश, राजस्थान जैसे बड़े राज्यों में चुनाव होने वाले हैं। कांग्रेस पार्टी की क्या रणनीति होगी ? क्या इस बारे में कुछ चर्चा हुई है पार्टी के अंदर ?
राहुल जी अभी अध्यक्ष बने हैं। आने वाले वक्त में हमारी प्राथमिकता इन्हीं राज्यों के चुनाव होंगे। हर राज्य के मद्देनजर अलग रणनीति तैयार की जाएंगी। संगठन को मजबूत करना, कार्यकर्ताओं को एकजुट करना और विपक्षी ताकतों की एकता पार्टी की पहली और बड़ी प्राथमिकता होगी। मुद्दा आधारित चुनाव प्रचार किया जाएगा जैसा कि हमने गुजरात में किया। राहुल गांधी की सोच को केन्द्र बनाकर सकारात्मक, मुद्दा आधारित रणनीति के साथ कांग्रेस पार्टी चुनाव प्रचार में उतरेगी।
Published: 08 Jan 2018, 6:32 PM IST
मौजूदा राजनीतिक परिदृश्य में विपक्ष काफी कमजोर नजर आ रहा है। कांग्रेस पार्टी 2019 के चुनाव को ध्यान में रखते हुए विपक्षी ताकतों को एकजुट करने के लिए क्या कोई प्रयास कर रही है ?
विपक्ष कमजोर नहीं, बल्कि विभाजित है। अगर 2014 के चुनाव की ही बात करें तो बीजेपी को 31 फीसदी मत मिले थे, जबकि विपक्ष को 69 फीसदी मत मिले। इसका मतलब यह है कि देश में उन लोगों की तादात ज्यादा है जिन्होंने मोदी और बीजेपी के नेतृत्व को खारिज किया। अगर विपक्ष एकजुट होकर 2019 में चुनाव लड़ेगा तो बीजेपी के पास कुछ भी नहीं बचेगा। ये बात संघ और बीजेपी के लोग भी अच्छी तरह से जानते हैं, इसलिए जाति-धर्म के आधार पर विभाजित करने वाली राजनीति करते हैं।
कांग्रेस ने जो काम शुरू किए थे उसी को मोदी सरकार फिर रीपैकेजिंग करके बेच रही है। इन्होंने पिछले तीन सालों में क्या काम किया? इसका कोई हिसाब-किताब नहीं है। दो करोड़ रोजगार का वादा, किसानों को डेढ़ गुना एमएसपी दिलाने का वादा कहां गया। और सबसे हास्यास्पद बात तो यह है कि वे 2024 की बात करते हैं। इनको मताधिकार मिला है 2018 तक का, 2019 में चुनाव होगा लेकिन बीजेपी, मोदी और संघ बात करते हैं 2024 की।
Published: 08 Jan 2018, 6:32 PM IST
आने वाले वक्त में राजनीति में आपकी क्या भूमिका होगी ? क्या आप राजस्थान की राजनीति में वापस जाएंगे या फिर राष्ट्रीय राजनीति में सक्रिय रहेंगे?
देखिए, पहला चुनाव मैंने 1977 में लड़ा था विधानसभा का। उस टिकट को मैंने मांगा था। बाकी मैं सांसद रहा, तीन बार केन्द्र में मंत्री रहा, 10 साल राज्य का मुख्यमंत्री रहा। मुझे सब कुछ बिना मांगे मिला। तीन बार प्रदेश कांग्रेस का अध्यक्ष रहा, दो बार कांग्रेस का महामंत्री रहा, यह सब कुछ मुझे बिना किसी सिफारिश के मिला। जब बिना कुछ कहे पार्टी हाईकमान ने मुझ पर विश्वास जताया है तो फिर कुछ कहने की जरूरत क्या है? मुझे जो जिम्मेदारी दी जाएगी मैं उसका निर्वहन करूंगा।
मोदी सरकार के तीन साल के कार्यकाल को आप कैसे आंकते हैं ?
मोदी सरकार देश को बर्बाद करने का काम कर रही है। किसान आत्महत्या कर रहे हैं। व्यापारी डरे हुए हैं। मीडिया डर या कहें कि मजबूरी की वजह से इनका साथ दे रहा है, लेकिन लोकतंत्र में ऐसा नहीं चलता। दूसरों की छोड़िए इनकी खुद की पार्टी के लोग डरे हुए हैं। सच बोलने की हिम्मत किसी में नहीं है। मोदी सरकार के मंत्री तक कुछ बोलने से पहले सौ बार सोचते हैं। सबके मुंह पर ताला लगा हुआ है। किसी कि हिम्मत नहीं है कि मोदी और अमित शाह की लाइन से हटकर कुछ बोल दें। लेकिन मैं कहना चाहता हूं कि देश में भय का राज बहुत दिनों तक चलने वाला नहीं है। कोई आश्चर्य नहीं कि अगले चुनाव में आपको देश की राजनीति में बड़े बदलाव देखने को मिले। बीजेपी, संघ और फासीवादी ताकतों का सफाया भी हो सकता है।
Published: 08 Jan 2018, 6:32 PM IST
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Published: 08 Jan 2018, 6:32 PM IST