विचार

सोनिया गांधी का लेख: भारतीय लोकतंत्र को खोखला किया जा रहा है

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने एक समाचार पत्र के लिए लेख लिखा है। इसमें उन्होंने मौजूदा सरकार और सत्तारूढ़ दल द्वारा लोकतांत्रिक मूल्यों के उल्लंघन का खाका पेश किया है। उन्होंने कहा है कि कुल मिलाकर देश में लोकतंत्र को खोखला किया जा रहा है।

फोटो : सोशल मीडिया
फोटो : सोशल मीडिया 

दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र चौराहे पर है। साफ है कि अर्थव्यवस्था गहरे संकट में है। लेकिन सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि शासन की लोकतांत्रिक व्यवस्था के सभी स्तंभों पर हमला हो रहा है। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार को दमन और धमकी के माध्यम से व्यवस्थित रूप से दबा दिया गया है। असहमति को जानबूझकर 'आतंकवाद' या 'राष्ट्र विरोधी गतिविधि' के रूप में पेश किया जा रहा है नागरिकों और समाज के अधिकारों की रक्षा करने वाली तमाम संस्थाएं या तो मजबूर हैं या उन्हें विकृत कर दिया गया है। भारत सरकार असली समस्याओं से ध्यान भटकाने के लिए हर जगह राष्ट्रीय सुरक्षा के बहाने सामने रख रही है। बेशक, इनमें से कुछ वास्तविक खतरें हैं और जिनसे बिना किसी समझौते के निपटा जाना चाहिए, लेकिन मोदी सरकार और सत्तारूढ़ बीजेपी हर राजनीतिक विरोध को भयावह साजिशों का नाम दे ती है। जो भी जिस तरह से उनकी किसी तरह का राजनीतिक विरोध करता है, उसे वे साजिश के रूप में देखते हैं। असहमित जताने वालों के पीछे एजेंसियों को छोड़ा जाता है और मीडिया और ऑनलाइन ट्रोल कारखानों के झुंड लगा जिए जाते हैं। कड़े संघर्ष से हासिल भारत के लोकतंत्र को खोखला किया जा रहा है।

Published: 26 Oct 2020, 12:40 PM IST

मोदी सरकार ने किसी किस्म की कोई गुंजाइश नहीं छोड़ी है। राजनीतिक विरोधियों के पीछे सरकारी मशीनरी के हर अंग को इस्तेमाल किया जाता है, वह पुलिस हो, प्रवर्तन निदेशालय हो, सीबीआई हो, एआईए हो या फिर नारकोटिक्स ब्यूरो हो। ये एजेंसियां अब सिर्फ प्रधानमंत्री और गृह मंत्री के कार्यालय की इशारों पर नृत्य करती हैं। सरकार को हमेशा संवैधानिक मानदंडों का पालन और स्थापित लोकतांत्रिक परंपराओं का सम्मान करना चाहिए। इनमें से दो सबसे महत्वपूर्ण हैं: सरकार को अपनी शक्ति का उपयोग हमेशा सभी नागरिकों के हित में बिना किसी प्रकार के भेदभाव के करना चाहिए, और सरकारी मशीनरी को चुनिंदा राजनीतिक विरोधियों को निशाना बनाने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। मोदी सरकार ने स्वतंत्र भारत में किसी भी पिछली सरकार की तुलना में कहीं अधिक इन मूल सिद्धांतों का उल्लंघन किया है।

Published: 26 Oct 2020, 12:40 PM IST

अपने पहले कार्यकाल में, मोदी सरकार ने अपने राजनीतिक विरोधियों को भारत सरकार के दुश्मन के रूप में पेश करना शुरु कर दिया था। इस स्वंय सेवा के कदम से सरकार ने बीजेपी और उसकी राजनीति की सार्वजनिक रूप से निंदा या असहमित जताने वालों या विरोध करने वालों के खिलाफ हमारी दंड संहिता के सबसे दंडात्मक कानून लगाए गए। इसकी शुरुआत 2016 में हुई जब देश के अग्रणी विश्वविद्यालयों में से एक जेएनयू में युवा छात्र नेताओं के खिलाफ राजद्रोह के आरोप थोपे गए। यह क्रम निरंतर जारी है और प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ताओं, विद्वानों और बुद्धिजीवियों की गिरफ्तारी की गईं। इन सभी लोगों ने सार्वजनिक रूप से सत्तासीन सरकार के विचारों से अहमति जताई थी। लेकिन यही तो लोकतंत्र होता है।

Published: 26 Oct 2020, 12:40 PM IST

बीजेपी विरोधी प्रदर्शनों को भारत विरोधी षड्यंत्र के रूप में पेश करने का सबसे निंदनीय प्रयास मोदी सरकार द्वारा नागरिकता (संशोधन) अधिनियम और प्रस्तावित राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (सीएए-एनआरसी) के खिलाफ हुए अद्भुत विरोध प्रदर्शनों के दौरान देखा गया है। मुख्य रूप से महिलाओं के नेतृत्व में किए गए सीएए-एनआरसी के विरोध प्रदर्शनों ने साबित कि कैसे एक वास्तविक सामाजिक आंदोलन शांति, समावेशिता और एकजुटता के मजबूत संदेश के साथ सांप्रदायिक और भेदभावपूर्ण राजनीति का जवाब दे सकता है। शाहीन बाग और देश भर के अन्य अनगिनत स्थलों पर हुए विरोध प्रदर्शनों ने दिखाया कि महिलाओं को केंद्र में रखकर किस तरह पुरुष सत्ता संरचनाओं को सिर्फ एक सहायक भूमिका में रखा जा सकता है। इस आंदोलन का विशेषता थी कि इसमें संविधान और इसकी प्रस्तावना, राष्ट्रीय ध्वज और हमारे स्वतंत्रता संग्राम जैसे देश को गौरवपूर्ण प्रतीकों इस्तेमाल किया।

Published: 26 Oct 2020, 12:40 PM IST

इस आंदोलन को देश भर के सिविल सोसाइटी कार्यकर्ताओं और संगठनों के साथ ही उन सभी राजनीतिक दलों का व्यापक समर्थन मिला, जो विभाजनकारी सीएए-एनआरसी के खिलाफ हैं। लेकिन मोदी सरकार ने इस आंदोलन को स्वीकार करने से इनकार कर दिया। इसके बजाय, इसने इसे कमजोर करने के लिए इसे बदनाम करना शुरु कर दिया और दिल्ली के चुनावों में इसे एक विभाजनकारी मुद्दा बना दिया। केंद्रीय वित्त राज्य मंत्री और गृह मंत्री समेत बीजेपी के नेताओं ने इस गांधीवादी सत्याग्रह पर हमला करने के लिए अपमानजनक बयानबाजी और हिंसक कल्पना का इस्तेमाल किया। दूसरे बीजेपी नेताओं ने सार्वजनिक तौर पर प्रदर्शनकारियों पर हमला करने की धमकी दी। सत्तारूढ़ पार्टी ने ऐसे हालात पैदा किए जिससे पूर्वोत्तर दिल्ली में हिंसा भड़की। अगर केंर सरकार ने कोशिश की होती तो दिल्ली में फरवरी में हुए दंगे कभी नहीं होते।

Published: 26 Oct 2020, 12:40 PM IST

इसके बाद के महीनों में, मोदी सरकार ने अपने प्रतिशोध को चरम तक पहुंचा दिया, और दावा किया कि ये सारे विरोध प्रदर्शन भारत सरकार के खिलाफ एक साजिश थी। इसका परिणाम यह हुआ है कि पूरी तरह पक्षपातपूर्ण जांच, लगभग 700 एफआईआर, सैकड़ों लोगों से पूछताछ और गैरकानूनी गतिविधि निरोधक अधिनियम (यूएपीए) के तहत दर्जनों लोगों को गिरफ्तार किया गया। प्रमुख सिविल सोसायटी नेताओं, जिनमें से कुछ दुनिया भर में प्रसिद्ध हैं, उन्हें दिल्ली हिंसा का मास्टरमाइंड और भड़काने वाले के तौर पर पेश किया जा रहा है। बीजेपी को इन सिविल सोसायटी कार्यकर्ताओं और असहमित जताने वालों से मतभेद हो सकते हैं। दरअसल, इन्हीं कार्यकर्ताओं ने अक्सर कांग्रेस सरकारों के खिलाफ भी विरोध किया है। लेकिन उन्हें सांप्रदायिक हिंसा को बढ़ावा देने वाले राष्ट्रविरोधी षड्यंत्रकारियों के रूप में चित्रित करना लोकतंत्र के लिए पूर्वाग्रही और बेहद खतरनाक है।

Published: 26 Oct 2020, 12:40 PM IST

यह हतप्रभ कर देने वाली बात से कम नहीं है कि प्रख्यात अर्थशास्त्रियों, शिक्षाविदों, सामाजिक प्रचारकों और यहां तक कि एक पूर्व केंद्रीय मंत्री समेत बहुत वरिष्ठ राजनीतिक नेताओं को दिल्ली पुलिस की जांच में तथाकथित प्रकटीकरण बयानों (डिस्कलोडर स्टेटमेंट) के बहाने दुर्भावनापूर्वक निशाने पर लिया गया। इससे यही स्पष्ट होता है कि बिना परिणामों की परवाह किए बीजेपी अपनी सत्तावादी रणनीति पर आमादा है। हाथरस में दलित लड़की के बलात्कार, गैरकानूनी दाह संस्कार और न्याय की मांग कर रहे उसके परिवार को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा धमकी देना बीजेपी की असहिष्णु और अलोकतांत्रिक मानसिकता बयां करती है। सरकार का यह रवैया उस प्रतिक्रिया से एकदम विपरीत है जो य़ूपीए सरकार ने निर्भया मामले को अपनाया था।

Published: 26 Oct 2020, 12:40 PM IST

इस तरह से स्वतंत्रता और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के बुनियादी सिद्धांतों को कमजोर करना राजनीति और समाज को विषैला बनाता है। बीजेपी को भी किसी भी अन्य राजनीतिक दल की तरह, भारतीय संविधान के ढांचे के भीतर किसी भी विचारधारा के प्रचार का हक है, लेकिन हमारा संविधान सुनिश्चित करता है और प्रत्येक भारतीय को यह विश्वास दिलाता है कि नागरिक के मौलिक अधिकार वोट के अधिकार के साथ समाप्त नहीं होते हैं - इनमें अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अधिकार, विरोध का अधिकार और सार्वजनिक रूप से और शांतिपूर्वक असहमित का अधिकार भी शामिल है। वास्तविक नागरिक समाज के नेताओं को दुष्ट साजिशकर्ता और आतंकवादी के रूप में चित्रित करना आम लोगों के साथ संचार के सेतुओं को जला देना है, जिनकी ओर से वे बोलते हैं।

Published: 26 Oct 2020, 12:40 PM IST

नागरिक जिस भी पार्टी को वोट देते हैं और वह चुनाव हार जाती है तो किसी भी नागरिक का नागरिक होने का अधिकार खत्म नहीं हो जाता है। प्रधानमंत्री बार-बार 130 करोड़ भारतीयों का प्रतिनिधित्व करने का दावा करते हैं, लेकिन उनकी सरकार और सत्तारूढ़ पार्टी राजनीतिक विरोधियों, असंतुष्टों और उन लोगों के साथ दोयम दर्जे का या दूसरी श्रेणी के बिना लोकतांत्रिक अधिकारों वाले नागरिकों जैसा व्यवहार कर रही है, जिन्होंने सत्तारूढ़ दल को वोट नहीं दिया। भारत के लोग केवल एक मतदाता नहीं हैं, वे ही असली राष्ट्र हैं। सरकारें उनकी सेवा करने के लिए मौजूद हैं, न कि उन्हें या उनके अधिकारों को खत्म करने के लिए।

यह राष्ट्र तभी फलेगा-फूलेगा जब हमारे संविधान और स्वतंत्रता आंदोलन में परिकल्पित लोकतंत्र को इसकी मूल आत्मा के रूप में अपनाया जाएगा।

(यह लेख अंग्रेजी अखबार हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित हुआ है। यह उसका हिंदी अनुवाद है)

Published: 26 Oct 2020, 12:40 PM IST

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Published: 26 Oct 2020, 12:40 PM IST