संविधान को लागू हुए सत्तर साल हुए और इस तारीख से अनजान आज काफी सारे लोग हैं जो संविधान की प्रस्तावना का सामूहिक पाठ कर तीन पड़ोसी देशों- जो पहले हमारा ही हिस्सा थे, से आए गैर-मुसलमान शरणार्थियों को नागरिकता देने वाले संशोधित नागरिकता कानून (सीएए) लाने के मोदी सरकार के फैसले का विरोध कर रहे हैं। इस कानून को लेकर बड़ी लडाई छिड़ी हुई है क्योंकि यह देश के संविधान और आजादी की लड़ाई के कुछ बुनियादी उसूलों के अनुकूल नहीं माना जा रहा है।
और काफी सारे लोगों समेत देश की मुसलमान आबादी को यह भी लग रहा है कि यह कानून अकेला नहीं है। सरकार अब देश भर में जिस राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (एनआरसी) को बनाने की तैयारी कर रही है, उससे मुसलमानों को अपनी नागरिकता साबित करने में परेशानी होगी, वे उससे जुड़े दस्तावेज जुटाने और प्रस्तुत करने में असम के लोगों की तरह परेशान होंगे और फिर डिटेन्शन कैंपों में रहने को मजबूर होंगे।
Published: 25 Jan 2020, 7:00 AM IST
ये सारे निष्कर्ष केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह, प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी के लोगों की घोषणाओं पर आधारित हैं, जिन्हें अब वे स्थगित बता रहे हैं। बात उलझ गई है तो भाजपाई सफाई दे रहे हैं, पर वे बात बढ़कर हिंदू-मुसलमान ध्रुवीकरण पर जाने का इंतजार कर रहे हैं, जिस उद्देश्य से यह कानून बना और जिस वजह से एनआरसी और एनपीआर (जिसमें मां-बाप के जन्म की तारीख और स्थान की सूचना भी मांगी गई है) लाने की घोषणा बढ़-चढ़कर की जा रही थी। उन्हें पड़ोसी देश से भागकर आए हिंदुओं की चिंता कम है, देश के हिंदुओं को गोलबंद करने के लिए मुसलमानों को ‘दुश्मन’ बनाने की परवाह ज्यादा है।
बीजेपी और जनसंघ की राजनीति क्या रही है, कैसे आजादी की लडाई में हाशिये की ताकत रहने वाली यह धारा आज सत्ता की राजनीति की मुख्यधारा बन गई है और इस ‘सफलता’ के लिए उसने क्या-क्या किया, यह गिनवाने की जरूरत यहां नहीं है। लेकिन नरेंद्र मोदी की अगुआई में सत्ता में आई बीजेपी ने संविधान को सर्वोपरि बताकर उसके अनुसार काम करने की सार्वजनिक शपथ तो ली, पर नोटबंदी और जीएसटी-जैसे फैसलों से बेड़ा गर्क करने के साथ वही पाकिस्तान विरोध, वही छद्म राष्ट्रवाद और वही मुसलमान विरोध की राजनीति जारी रही। जबकि बीजेपी ने अपने चुनाव घोषणापत्र में सच्चर कमेटी की रिपोर्ट को सही बताते हुए मुसलमानों की तरक्की के लिए काम करने का वायदा किया था। गो हत्या रोकने और भीड़ की हिंसा के नाम पर तो मुसलमानों को निशाना बनाया ही गया।
Published: 25 Jan 2020, 7:00 AM IST
पर हालत यह हो गई कि मुस्लिम महिलाओं को मुक्ति देने के नाम पर तीन तलाक रोकने का कानून बनाना हो या कश्मीर को ‘जन्नत’ बनाने के लिए जरूरी अनुच्छेद 370 को समाप्त करना- सभी के निशाने पर मुसलमान विरोध और हिंदू ध्रुवीकरण ही रखा गया। जब राममंदिर का फैसला भी मुसलमान-विरोध का ताप पैदा नहीं कर पाया, तो नागरिकता कानून में बदलाव की पहल और असम में फेल हो चुके एनआरसी के प्रयोग को देश भर में लागू करने की घोषणाओं और उस नाम पर मुसलमानों को डराने का खेल शुरू हुआ।
प्रधानमंत्री ने स्वतंत्रता दिवस के अपने संबोधन में जनसंख्या नियंत्रण नीति लाने की घोषणा की, जबकि अगर चिंता है तो यही कि कमजोर जमातों और इलाकों में इसकी जनसंख्या वृद्धि दर ज्यादा रह गई है, सो, पिछड़ापन और निरक्षरता दूर करना जरूरी है। पर सरकार ने संसद में अपने बहुमत का और विपक्षी खेमे की किंकर्तव्यविमूढता की स्थिति का लाभ लेते हुए तीन तलाक और अनुच्छेद 370 से भी ज्यादा आसानी से नागरिकता संशोधन विधेयक पास कर लिया ।
Published: 25 Jan 2020, 7:00 AM IST
वैसे, इन कानूनों का रिश्ता कोई विधानसभा चुनावों से जोड़कर देखना चाहे तो साफ दिखेगा। पर इनका लाभ नहीं हो रहा था, यह बात चाणक्य और चंद्रगुप्त माने जाने वाले नेताओं को समझ नहीं आया। और उनको यह उम्मीद नहीं होगी कि बुर्के और हिजाब में रहने वाली मुसलमान महिलाएं एकदम से सडकों पर आ जाएंगी और नौजवान छात्र-छात्राओं समेत काफी सारे दूसरे लोग भी आंदोलन के समर्थन में आ जाएंगे, जिससे इसे जामिया, एएमयू, जेएनयू और मुसलमानों भर का आंदोलन बताकर हिंदू ध्रुवीकरण करना मुश्किल हो जाएगा।
इस झटके के बाद बीजेपी क्या करेगी और क्या कुछ और होगा, यह भविष्यवाणी आसान नहीं है, लेकिन बीजेपी संविधान को लेकर जो कुछ कर रही है, वह क्या है, इसे समझना मुश्किल नहीं है। हमारा संविधान हमारे राष्ट्रीय आंदोलन की पैदाइश है और इसके कई बुनियादी मूल्य उसी से तय हुए हैं। आजादी की बात तो 1929 से आई है, पर उसी समय जिस नेहरू संविधान की चर्चा थी, उसमें लोकतंत्र, सार्वभौम मताधिकार और सर्वधर्म समभाव- जैसे मूल्यों का समावेश था।
Published: 25 Jan 2020, 7:00 AM IST
तब दुनिया के गिनती के देशों में संसदीय लोकतंत्र था और जहां था, वहां भी मताधिकार सीमित था। हमारे राष्ट्रीय आंदोलन के नेता सामाजिक छुआछूत और सांप्रदायिक भेद को कम-से-कम करने का प्रयास करते हुए विविधता में बुनियादी एकता पर जोर देते थे। और देश की विविधता और एकता को संभालने वाले लोकतंत्र को कायम करना, मजबूत करना हमारे संविधान की बुनियादी चिंताओं में केंद्रीय है।
अब अगर बीजेपी धर्म के आधार पर नागरिकता देने की बात करती है, तो यह कोशिश निश्चित रूप से संविधान से, देश के बुनियादी मूल्यों और संविधान में भी वर्णित बुनियादी सिद्धांतों का उल्लंघन है और यह काम सोच-समझकर किया जा रहा है। बीजेपी को चुनावी जीत जरूर मिली है, पर उससे उसे संविधान बदलने, नागरिकता कानून बदलने, धर्मनिरपेक्षता की खिल्ली उड़ाने, समाजवाद को नकली मूल्य घोषित करने का अधिकार मिल जाता है या नहीं, इस सवाल पर भी विचार करना चाहिए।
Published: 25 Jan 2020, 7:00 AM IST
बाबा साहब ने साफ कहा था कि आर्थिक गैर-बराबरी के साथ-साथ कानूनी बराबरी को चलाना मुश्किल काम है लेकिन संविधान इन्हें दूर करने और विविधताओं को समेटने का काम ही करता है। अब अगर सामाजिक फांक बढ़ाने की राजनीति करने वाले सत्ता में हैं तो वे संविधान को दरकिनार करने की कोशिश करें, यह स्वाभाविक है। लेकिनआज जो लोग संविधान से खिलवाड़ कर रहे हैं, उनकी मंशा कभी नहीं भूलनी चाहिए। कहते हैं कि बाबा साहब भी कम समय में ही संविधान की आलोचना करने लगे थे। संविधान में बदलाव भी हुए हैं। पर बहुत कम ऐसे अवसर रहे हैं जिनके बदलावों और मंशा को संविधान की मूल भावना के उलट माना जाता हो या जिन्हें पूरे संविधान के लिए ही खतरा बताया जाता हो।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और गांधीजी पर तीन किताबों के लेखक हैं)
Published: 25 Jan 2020, 7:00 AM IST
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Published: 25 Jan 2020, 7:00 AM IST