इतना तय है कि आतंकवादी बिना स्थानीय मदद कोई वारदात नहीं कर सकते। 2019 के बाद से जम्मू में आतंकवादी गतिविधियों में खासी तेजी आई है। सिर्फ दो उदाहरणों को लीजिए- जनवरी, 2023 में डांगरी गांव में सात लोगों की हत्या और हाल ही में जून, 2024 में रियासी में तीर्थयात्रियों की बस पर हमला। ये उदाहरण यह बताने के लिए काफी हैं कि पाकिस्तानी डीप स्टेट ने जम्मू संभाग में सेना और अर्द्धसैनिक बलों की संख्या घटाने का किस तरह से फायदा उठाया है।
आतंकी नेटवर्क के खिलाफ जम्मू के पहाड़ों और घने जंगलों में रहने वाले लोग हमेशा रक्षा की पहली पंक्ति का काम करते रहे हैं। इस लिहाज से मोदी सरकार को चाहिए था कि यह सुनिश्चित करने के कदम उठाती कि जम्मू-कश्मीर में मुस्लिम आबादी मुख्यधारा से अलग-थलग न हो। लेकिन मोदी सरकार ने ठीक इसका उलटा किया। ऐसी स्थिति में जब जम्मू-कश्मीर के लोग अनिच्छा से ही सही, अनुच्छेद 370 को खत्म करने को स्वीकार करने लगे थे, तभी केन्द्र सरकार ने बीजेपी को फायदा पहुंचाने के लिए राजौरी और शोपियां, कुलगाम और अनंतनाग की दो परस्पर अलग सांस्कृतिक इकाइयों को एक इकाई मानकर एक बड़ा परिसीमन अभ्यास शुरू कर दिया।
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इसके साथ ही 2024 के शुरू में पहाड़ी मुसलमानों को अनुसूचित जनजाति का दर्जा दे दिया गया। ऐसा करके उन्होंने गुज्जर समुदाय को अलग-थलग कर दिया जो 1947 से सुरक्षा बलों की आंख-कान बने रहे। जम्मू-कश्मीर के दर्जे को कमतर करना और विधानसभा चुनाव नहीं करा सकने ने इस दरार को और गहरा कर दिया।
स्थिति यह है कि मई, 2021 से सुरक्षा बलों पर 30 हमले हो चुके हैं। अगर समय पर जानकारी मिल जाती तो इनमें से कई को टाला जा सकता था। 8 जुलाई, 2024 की घटना को ही लें जब आतंकवादियों ने कठुआ जिले में गश्त पर निकली गढ़वाल राइफल्स के काफिले पर ग्रेनेड फेंके और गोलीबारी की। इसमें पांच जवान शहीद हो गए और पांच गंभीर रूप से घायल हो गए। जांच से पता चलता है कि पाकिस्तानी आतंकवादियों ने स्थानीय ओवरग्राउंड वर्कर्स (ओडब्ल्यूजी) की मदद से यह हमला किया।
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इससे भी खतरनाक हमला 9 जून को हुआ जब नरेन्द्र मोदी ने तीसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली। आतंकवादियों ने बस पर हमला बोल दिया जिसमें ड्राइवर और कंडक्टर समेत नौ लोगों की जान चली गई और 33 घायल हो गए। जम्मू-कश्मीर पुलिस ने राजौरी जिले के निवासी हकम दीन को कथित तौर पर आतंकवादियों को हमला स्थल तक पहुंचाने के आरोप में गिरफ्तार किया है। पुलिस का मानना है कि हकम ने पहले भी कई मौकों पर आतंकवादियों को पनाह दी थी।
‘दि इन्स्टीट्यूट फॉर कन्फ्लिक्ट मैनेजमेंट’ के कार्यकारी निदेशक डॉ. अजय साहनी का कहना है कि ‘जब हथियारबंद आतंकवादियों का कोई झुंड कम आबादी वाले इलाके में किसी घर में घुसता है तो शायद ही कोई व्यक्ति उन्हें मना करने की स्थिति में हो। ग्राम रक्षा समितियों (वीडीसी) को खत्म करने का फैसला हैरानी भरा है। वीडीसी को आत्मरक्षा में प्रशिक्षित किया गया था और क्योंकि वे सशस्त्र थे, वे इन आतंकवादियों से मुकाबला कर सकते थे। इनमें से कई वीडीसी दूरदराज के इलाकों में स्थित थे, जहां सेना की पहुंच सीमित थी। विशेष पुलिस अधिकारियों की भर्ती रोकने का सरकार का फैसला भी उतना ही परेशान करने वाला है। ये लोग सुरक्षा बलों के लिए सूचना का बहुत अहम स्रोत थे।’
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साहनी का मानना है कि यह फैसला इसलिए भी चौंकाने वाला है क्योंकि आंकड़े बताते हैं कि जम्मू संभाग कभी भी आतंकवाद से मुक्त नहीं रहा। साउथ एशियन टेररिज्म पोर्टल के मुताबिक, जम्मू संभाग में आतंकवादी हिंसा में 8,567 लोग मारे गए जबकि घाटी में 12,821 लोगों की जान गई। जम्मू-कश्मीर के एक वरिष्ठ सेवानिवृत्त पुलिस अधिकारी का मानना है कि अभी करीब 300-350 ओडब्ल्यूजी इन आतंकवादियों को रसद वगैरह की मदद दे रहे हैं। इनके पास हथियार नहीं होते इसलिए सुरक्षा बलों के लिए उनका पता लगाना मुश्किल होता है लेकिन आतंकवादियों को अहम मदद और जानकारी उन्हीं से मिलती है।
मीडिया सूत्रों के अनुसार, सुरक्षा बलों ने 2023 में करीब 70 आतंकवादियों को मार गिराया और 200 से अधिक ओडब्ल्यूजी को गिरफ्तार किया। एक खुफिया इनपुट के मुताबिक, जम्मू क्षेत्र के पीर पंजाल की पहाड़ियों के दक्षिण में ऐसे 35-40 विदेशी आतंकवादी सक्रिय हैं जिनके पाकिस्तानी सेना के स्पेशल सर्विस ग्रुप के पूर्व सदस्य होने का संदेह है। एक अन्य खुफिया इनपुट में दावा किया गया है कि फिलहाल जम्मू-कश्मीर में करीब 120 विदेशी आतंकवादी सक्रिय हैं, जिनमें से आधे से ज्यादा पीर पंजाल के उत्तर में हैं। हालांकि हाल ही में जम्मू-कश्मीर के पुलिस महानिदेशक बने आर.आर. स्वैन का मानना है कि यह आंकड़ा इतना अधिक नहीं और अभी जम्मू-कश्मीर में 70 से 80 आतंकवादी सक्रिय हैं।
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रॉ के पूर्व प्रमुख ए.एस. दुलत का मानना है कि यह आंकड़ा दरअसल ‘बहुत’ है। दुलत ने कहा, ‘नब्बे के दशक में आतंकवाद के शुरुआती दौर में भी राज्य में करीब 200 आतंकवादी सक्रिय थे।’ आतंकवादियों का हौसला इतना बढ़ गया है कि कारगिल विजय दिवस (द्रास में कारगिल संघर्ष की 25वीं वर्षगांठ) पर मोदी के संबोधन के बाद उन्होंने जम्मू में हमला किया। दुलत का दावा है कि स्थानीय लोगों की मदद की वजह से ही आतंकी घटनाओं में यह इजाफा हुआ है। एक समय था जब गुज्जर धुर पाकिस्तान विरोधी और भारत के प्रतिबद्ध समर्थक हुआ करते थे।
दुलत का कहना है कि ‘यह जानी हुई बात है कि पहाड़ी लोगों को एससी का दर्जा दिए जाने से गुज्जर खुश नहीं हैं।’ कई सैन्य विश्लेषकों का मानना है कि जम्मू संभाग में 2009 के बाद आतंकवाद धीरे-धीरे कम होने लगा। शुरू में आईएसआई (इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस) को उम्मीद थी कि वह जम्मू में उसी स्तर पर आतंकवाद बनाए रखेगी जैसा उसने नब्बे के दशक की शुरू में किया था। लेकिन स्थानीय लोगों के पूरी तरह खिलाफ होने के कारण उसे सफलता नहीं मिल सकी।
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इस बार आईएसआई ने रणनीति बदल दी है। जम्मू स्थित राजनीतिक टिप्पणीकार और लेखक जफर चौधरी कहते हैं, ‘राजौरी और पुंछ सेक्टरों में लड़ने के लिए पीओके के सैनिकों का इस्तेमाल किया जा रहा है जबकि जम्मू के दूसरे हिस्सों में लड़ने के लिए युद्ध-प्रशिक्षित पंजाबियों का इस्तेमाल किया जा रहा है। उन्हें जंगल युद्ध में प्रशिक्षित किया जाता है और वे अमेरिका में बने हथियारों और स्टील की गोलियों के अलावा आधुनिकतम संचार उपकरणों से लैस होते हैं जिससे उनका पता लगाना मुश्किल होता है।’
चौधरी ने बताया कि 2019 के बाद ‘सरकार एनआईए और राज्य जांच एजेंसियों का उपयोग लोगों की संपत्ति, घरों को जब्त करने और संदिग्धों के बैंक खातों को फ्रीज करने के लिए कर रही है। इसने स्थानीय लोगों में अलगाव की भावना को और बढ़ा दिया है।’ राजनीतिक नेता मुर्तजा ए खान जो पहाड़ी हैं, केन्द्र सरकार को जम्मू क्षेत्र से सैनिकों को जल्दबाजी में हटाने के लिए दोषी ठहराते हैं। उनका कहना है कि सरकार ने आतंकवादियों और उनके हैंडलरों को अपनी जड़ों को फैलाने की छूट दे दी और अगर वाकई उनसे निपटना है तो उसका अकेला तरीका यही है कि और सैनिक और संसाधन भेजे जाएं।
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आतंकवाद निरोधक (सीटी) ग्रिड को कमजोर करने के खिलाफ केन्द्र सरकार को आगाह करने वाले वरिष्ठ सेवानिवृत्त सैन्य अधिकारियों ने भी जम्मू क्षेत्र से सैनिकों को जल्दबाजी में हटाने पर निराशा व्यक्त की है। जब भी सीटी कमजोर हुआ, इसका असर खुफिया ग्रिड और स्थानीय लोगों को जोड़ने के प्रयासों पर भी पड़ा। इसके अलावा इससे नागरिक प्रशासन को भी बुरा संकेत जाता है। हर तरह से उपयुक्त प्रभावी ग्रिड तैयार करने में वक्त लगता है।
21 दिसंबर, 2023 को सेना और स्थानीय लोगों के रिश्ते तब बेहद निचले स्तर पर पहुंच गए जब आतंकवादियों के पुंछ में सेना की गाड़ी पर घात लगाकर किए गए हमले में चार सैनिकों के मारे जाने के बाद कुछ गांववालों को पूछताछ के लिए उठाया गया। पूछताछ के दौरान कथित तौर पर उनमें से तीन की मौत हो गई। तीनों गुज्जर-बकरवाल जनजाति के थे। इस जनजाति के कुछ लोगों ने केन्द्र के प्रति अपनी नाराजगी खुलकर जाहिर की है। इन्हीं स्थितियों का फायदा आतंकवादियों को हो रहा है। मरने वालों में एक का भाई अभी सीमा सुरक्षा बल में हवलदार है और उसने अपने भाई की मौत और ठगे जाने की भावना का खुलकर इजहार किया है।
बार-बार हमले करके आतंकवादी और पाकिस्तान में बैठे उनके आका दिल्ली को एक कड़ा संदेश देना चाहते हैं: वे न केवल जम्मू-कश्मीर में शांति प्रक्रिया को पटरी से उतारने बल्कि विधानसभा चुनाव न होने देने के लिए भी कमर कस चुके हैं।
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