शनिवार 14 सितंबर को सऊदी अरब के खुरैश और अबकैक स्थित दो तेल संयंत्रों पर हुए हमलों के लिए अमेरिकी खुफिया एजेंसियों ने सीधे तौर पर ईरान को जिम्मेदार ठहराया है। उनका कहना है कि ईरान ने कम से कम 20 ड्रोनों और एक दर्जन से ज्यादा मिसाइलों से यह हमला किया। हालांकि, अमेरिका और सऊदी अरब तय नहीं कर पाए हैं कि इसका जवाब किस तरह से दिया जाए, क्योंकि बात बढ़ी तो इसका असर पूरे तेल कारोबार पर पड़ेगा।
सऊदी अरब ने संयुक्त राष्ट्र विशेषज्ञों से यह जानने के लिए मशवरा किया है कि इसके पीछे किसका हाथ हो सकता है। बहरहाल ईरान का मकसद यह नजर आता है कि ‘हमें तबाह करने की कोशिश की गई, तो हम पूरे तेल कारोबार को ही तबाह कर देंगे’। इस हमले के बाद कच्चे तेल की कीमतों के बेंच मार्क ब्रेंट क्रूड की कीमतें 19 फीसदी उछल कर 72 डॉलर प्रति बैरल पर पहुंच गई हैं। पिछले तीन दशक का यह सबसे बड़ा उछाल है।
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सऊदी तेल कंपनी आराम्को के संयंत्रों पर हुए ड्रोन हमलों से उठे आग के शोले अब आसपास के देशों पर गिरेंगे, जिनमें भारत भी एक है। भारतीय राजनय के लिए भी कई प्रकार की चुनौतियां हैं, क्योंकि हाल में अमेरिका के दबाव में आकर भारत ने ईरान से तेल खरीदना बंद किया है, जिसके कारण ईरान से उसके रिश्ते प्रकट रूप में न सही परोक्ष रूप में बिगड़े हैं।
पिछले कई महीनों से इस इलाके में सुलग रही चिंगारियां तेजी से भड़क उठी हैं। इस सिलसिले में सऊदी अरब का अगला कदम क्या होगा, कहना मुश्किल है, पर अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की प्रतिक्रिया से लगता है कि ठीकरा ईरान पर फोड़ा जाएगा और खतरा इस बात का है कि भले ही छोटे स्तर पर हो, किसी किस्म की फौजी कार्रवाई जरूर होगी।
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यह कार्रवाई अमेरिकी मदद के बगैर संभव नहीं है, क्योंकि पैसे की इफरात और तमाम हथियारों के बावजूद सऊदी अरब के पास न तो हमला करने का हौसला है और न उसकी सेना ऐसी लड़ाई लड़ने के लिए ट्रेंड है। दूसरी तरफ, आर्थिक रूप से कमजोर होने के बावजूद ईरानी सेना के हौसले बुलंद हैं। अलबत्ता इस हमले के बाद पश्चिम एशिया के राजनयिक परिदृश्य में कुछ रोचक बदलाव और देखने को मिलेंगे, क्योंकि इजरायल के पास वह फौजी तकनीक और उपकरण हैं, जो ऐसे मौकों पर काम आते हैं। अब सवाल है कि क्या सऊदी अरब अब इजरायल के और करीब आएगा?
इस इलाके में चीन और रूस की दिलचस्पी भी बढ़ रही है। पिछले एक महीने में इजरायल ने लेबनान, सीरिया और इराक में ईरान समर्थक लड़ाकों पर हवाई हमले किए हैं। ट्रंप ने अपने ट्वीट में कहा है कि जिसने हमला किया है उसके बारे में हमें पता है, पर जवाबी कार्रवाई इसकी पुष्टि के बाद की जाएगी। वे सऊदी प्रतिक्रिया का इंतजार भी कर रहे हैं। विदेश मंत्री माइक पॉम्पियो ने ईरान को साफ-साफ जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने कहा कि इस बात के कोई सबूत नहीं हैं कि हमला यमन से हुआ है। जिन तेल ठिकानों को निशाने पर लिया गया है, उन्हें देखते हुए नहीं लगता कि हमले यमन की ओर से हुए हैं।
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अमेरिकी अधिकारियों का अनुमान है कि इराक या ईरान की तरफ से हमले हुए हैं। उपग्रह चित्रों को देखते हुए लगता है कि उत्तर-पश्चिम के क्षेत्र प्रभावित हुए हैं। ऐसा यमन से संभव नहीं है। उधर इराक ने कहा है कि हमारी जमीन से हमला नहीं हुआ है। इराक के प्रधानमंत्रीअब्देल अब्दुल महदी के बयान में कहा गया है कि अपनी जमीन से ऐसी कोई कार्रवाई नहीं होने देंगे, जिससे इलाके की शांति को धक्का पहुंचे।
अमेरिकी अधिकारियों ने सीएनएन से कहा कि हमले में सऊदी अरब के 19 ठिकाने प्रभावित हुए हैं। केवल 10 ड्रोन ऐसा नहीं कर सकते। जबकि हूती ने दावा किया था कि हमले के लिए 10 ड्रोन भेजे गए थे। चूंकि इन्हें रडार पकड़ नहीं पाए, इसलिए लगता है कि योजना काफी गहराई से बनाई गई थी। हूती बागियों के पास न तो इतना तकनीकी ज्ञान है और न इतने साधन। यह काम किसी देश की सेना के निर्देश के बगैर संभव नहीं है। सीएनएन की एक रिपोर्ट के अनुसार हूती बागियों के पास जो ड्रोन हैं, वे ईरानी मॉडल पर आधारित हैं और वे उत्तर कोरिया की तकनीक से बने हैं। आमतौर पर इनकी मार 300 किलोमीटर तक की है।
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संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों ने जनवरी में कहा था कि लंबी दूरी वाले ड्रोन से हूती बागी सऊदी अरब और यूएई पर हमला कर सकते हैं। पर सवाल है कि क्या हूती बागियों के पास 1000 किलोमीटर की दूरी पार करके मार करने वाले ड्रोन भी हैं? विशेषज्ञों को लगता है कि भले ही इराक सरकार का कोई भी दावा हो, ये ड्रोन दक्षिण इराक से भेजे गए होंगे। इस इलाके पर शिया अर्द्धसैनिक बल ‘अल हश्दअल शाबी’ (पॉपुलर मोबिलाइजेशन फोर्सेस या पीएमएफ) का दबदबा है। इस इलाके पर हाल में इजरायल ने हवाई हमले भी किए थे। इस साल 14 मई को सऊदी अरब के अल-दुवादीमी शहर के पास स्थित आराम्को की पाइप लाइन पर भी ड्रोन हमला हुआ था, जिसकी जिम्मेदारी हूती बागियों ने ली थी।
अमेरिकी अधिकारियों का कहना था कि वह हमला भी दक्षिणी इराक से हुआ था, यमन से नहीं। उनका आरोप था कि ईरान अपने शिया अर्द्धसैनिक बलों की मदद से यह काम कर रहा है। इस तरह से वह अमेरिका पर दबाव बना रहा है, क्योंकि अमेरिकी पाबंदियों के कारण उसका तेल निर्यात करीब 90 फीसदी कम हो गया है। हाल में खबरें थीं कि ट्रंप की इच्छा ईरानी राष्ट्रपति हसन रूहानी से मुलाकात करने की है। यह मुलाकात संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक के दौरान हो सकती है, जो इन दिनों चल रही है। अब लगता नहीं कि फिलहाल ऐसा संभव होगा। जून में जब ईरान ने अमेरिकी ड्रोन को मार गिराया था, तब जिस किस्म की प्रतिक्रियाएं थीं, तकरीबन वैसी ही अब व्यक्त की जा रही हैं।
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लेकिन इन सब के बीच भारत के नजरिए से खराब खबर यह है कि तेल की वैश्विकआपूर्ति में पांच फीसदी की गिरावट आ गई है, और कीमतें काफी बढ़ गई हैं। भारत ही नहीं तेल आयात पर आश्रित ज्यादातर देशों का यही हाल है। यह हमला मंदी से घिरी भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए बुरी खबर लेकर आया है। हमले की खबर आने के बाद से रुपये की कीमत और गिरी है और शेयर बाजार में भी गिरावट आई है। भारत अपनी जरूरत का करीब दो तिहाई तेल पश्चिम एशिया से खरीदता है। यदि तेल की कीमतें बढ़ीं, तो रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया ब्याज की दरें कम करने का इरादा पूरा नहीं हो पाएगा। यह कमी अगले महीने होने की संभावना है।
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