केंद्रीय पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय ने साल 2017-18 में 23939 करोड़ रुपए खर्च किए, लेकिन इसके अगले साल 2018-19 के बजट में मोदी सरकार ने इस मंत्रालय के लिए अनुमानित बजट को इससे कम कर 22357 करोड़ रुपए कर दिया । इतना ही नहीं, बाद में एक संशोधित अनुमान के बहाने इसके बजट में और भी कटौती की गई और इसे 19993 करोड़ रुपए तक पंहुचा दिया गया।
यह आश्चर्य की बात थी कि जिस समय स्वच्छता अभियान को बहुत महत्त्वाकांक्षी लक्ष्य प्राप्त करने थे उस समय इसके बजट में कटौती की जा रही थी। अब अगर हम 2019-20 के लिए हाल ही में पेश बजट को देखें तो इसमें अनुमानित बजट को पहले से और कम कर 18216 करोड़ रुपए कर दिया गया है। यह बहुत हैरानी की बात है, क्योंकि हाल के अध्ययनों ने बताया है कि जो सरकारी आंकड़े स्वच्छ भारत के लिए प्रस्तुत किए गए हैं, वे वास्तविकता से दूर हैं और विभिन्न लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए अभी बहुत कुछ करना शेष है।
इस तरह पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय के बजट को देखें तो इसमें लगातार तीन बार कटौती हुई है। पहले 2017-18 के वास्तविक खर्च की तुलना में 2018-19 के बजट अनुमान में कटौती हुई, इसके बाद संशोधित बजट में बजट अनुमान की तुलना में कटौती हुई और फिर इस संशोधित अनुमान की तुलना में 2019-20 के बजट अनुमान में कटौती हुई।
राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम पर साल 2014-15 में 9242 करोड़ रुपए खर्च किए गए थे। इसकी तुलना में 2019-20 के बजट में मात्र 8201 करोड़ रुपए की व्यवस्था इस अतिमहत्त्वपूर्ण कार्यक्रम के लिए की गई है। बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए के चुनावी कार्यक्रम में ग्रामीण पेयजल उपलब्धि को बेहतर करने के लिए बड़े-बड़े वादे थे, लेकिन अब इस उच्च प्राथमिकता वाले कार्यक्रम के बजट को इस कदर कम कर दिया गया कि पांच साल बीतने पर चुनावी वर्ष का बजट होने के बावजूद 2019-20 का प्रस्तावित अनुमान 2014-15 के वास्तविक खर्च से कम है।
ग्रामीण क्षेत्र में स्वच्छ भारत मिशन पर साल 2017-18 में 16948 करोड़ रुपए खर्च हुए। वहीं साल 2018-19 में इस कार्यक्रम का संशोधित बजट 14478 करोड़ रुपए रखा गया यानि इसे पिछले वर्ष से काफी कम रखा गया। वहीं साल 2019-20 के बजट अनुमान में इसमें भारी कटौती करते हुए इसे मात्र 10000 करोड़ रुपए कर दिया गया है। और अगर महंगाई को ध्यान में रखा जाए, तो ये विभिन्न कटौतियां वास्तव में और भी अधिक हैं।
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