हमारे देश और समाज की एक बहुत बड़ी समस्या यह है कि जहां देखो, वहां सरकारी नेताओं को बुला लिया जाता है और नेता तो 'चलो बुलावा आया है' की शैली में तैयार ही बैठे रहते हैं। नेता सरकारी हो या गैरसरकारी, उन्हें सिर्फ भाषण देना आता है। अखबारों को भी केवल उनकी अलाय -बलाय छापना आता है और हमें भी इस सब पर हंसना ही आता है। एक समस्या यह भी है कि हमें क्या नहीं आता, यह भी हमें ठीक-ठीक मालूम नहीं होता।
जैसे मोदी जी को यह नहीं मालूम कि राष्ट्रीय पशु रोग नियंत्रण कार्यक्रम, देशव्यापी कृत्रिम गर्भाधान कार्यक्रम में उन्हें क्या बोलना चाहिए। बस इतना मालूम है कि जो भी मुंह में आए, बोलना है। तो मोदी जी वहां बोल आए कि हमारे देश के कुछ लोगों के कान पर ओम या गाय शब्द पड़ता है तो उनके कान खड़े हो जाते हैं। कोई संघी विद्वान भी यह समझा नहीं पाएगा कि इसका पशुरोग या कृत्रिम गर्भाधान या 'स्वच्छता ही सेवा' कार्यक्रम से क्या संबंध है, मगर मोदीजी बोल रहे हैं तो भाजपाई 'विद्वान' टीवी डिबेट में हास्यास्पद होने की परवाह न करते हुए कुछ न कुछ संबंध बता ही देंगे।
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हास्यास्पद होने की चिंता भी वही करते हैं, जिन्हें मालूम होता है कि हास्यास्पदता क्या होती है! जब प्रधानमंत्री को ही नहीं पता तो दूसरों को भी यह क्यों मालूम रहना चाहिए? संस्कृत की एक उक्ति हैः 'महाजनो येन गत: स पंथ'। महाजन जिधर जाते हैं, वही रास्ता है तो राष्ट्रभक्तों के महाजन तो मोदी जी हैं, वह जिधर चले, उधर ये भी ‘भेड़ धर्म’ निभाते हुए चल पड़ते हैं। संघ-बीजेपी में तो वैसे भी सोचने की सख्त मनाही है। सोचा कि बने अर्बन नक्सलाइट!
मोदीमार्गी मंत्री अमित शाह भी कम नहीं हैं। उन्होंने अगर 'वाल्मीकि रामायण' न सही कुछ और भी कभी पढ़ा होता तो वह मोदीजी के गृहमंत्री होने की योग्यता से हमेशा-हमेशा के लिए वंचित हो जाते। उन्हें पढ़कर अपना और मोदीजी का फ्यूचर खराब करना नहीं था, बल्कि देश का भविष्य खराब करना था। वैसे शाहजी ने कुछ पढ़ा है, यह कल्पना करना भी उन बेचारों के साथ अन्याय है और आपकी तरह मैं भी अन्याय के खिलाफ हूं। हां हर स्कूली बच्चे की तरह उन्हें इतना अवश्य मालूम है कि रावण ने सीता का अपहरण किया था और राम ने इस कारण लंका पर चढ़ाई की थी। तो उन्होंने एक कार्यक्रम में पेल दिया कि महिलाओं के सम्मान की रक्षा के लिए युद्ध भी करना पड़े तो करना चाहिए।
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अब ये बताइए शाह साहब कि इसके लिए युद्ध किससे करना चाहिए? क्या पाकिस्तान से? पाकिस्तान ने हमारी महिलाओं के सम्मान पर चोट पहुंचाई है, ऐसी कोई खबर तो इधर पढ़ने में आई नहीं! हां पिछले दिनों ऐसी कई खबरें अवश्य सामने आई हैं कि बीजेपी नेताओं ने महिलाओं, लड़कियों-बच्चियों के सम्मान को चोट पहुंचाई है और ये खबरें भी आई हैं कि उन चोट पहुंचाने वालों के मामले रफादफा करने में आपकी पार्टी की सरकारों ने बेहद मुस्तैदी दिखाई है।
एक खबर ठंडी होती नहीं कि दूसरी आ जाती है। विधायक सेंगर पर तो आरोप है कि उसने बलात्कृत लड़की की जान लेने की भी भरपूर कोशिश की मगर आप लोग पता नहीं कौन सा योग करते रहते हैं कि आपको अपने आदमी का बलात्कार, हत्या, दंगा करना नजर नहीं आता और अगर भाजपा भाई योगी जी का जाति भाई भी हो तो वह मोदी शैली में परम ध्यानावस्था में चले जाते हैं! सेंगर मामले में उनकी ध्यानावस्था कभी टूटी ही नहीं। जितना भी आज तक हुआ है, कोर्ट के हस्तक्षेप से हुआ है।
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इस मामले को भी लोग भूलने ही वाले थे कि बलात्कार के राष्ट्रीय परिदृश्य पर स्वामी चिन्मयानंद जी छा गए। बलात्कृता लड़की उनके खिलाफ सारे सबूत और गवाहियां दे चुकी, जलकर मरने की धमकी भी दे चुकी, मगर न मोदीजी का मुंह खुला, न योगी का। वैसे तो इन सबका मुंह इतना अधिक खुला रहता है कि मक्खी भी घुस जाए तो इन्हें पता नहीं चलता, मगर आदमी अपना हो और मामला खासतौर पर बलात्कार का हो तो मुंह क्या इनके दांत तक भिंच जाते हैं। इनके मुंह तो तब भी भिंचे रहे, जब कथित स्वामी जी गिरफ्तार हो गए। एमजे अकबर साहब आज तक तो भाजपाई हैं, मोदी मंत्रिमंडल की शोभा भी बढ़ाते रहे हैं, मगर उनके मामले में भी दांत इनके एक बार भिंचे तो फिर भिंचे ही रहे!
अब बताइए माननीय शाह जी कि महिलाओं के सम्मान की रक्षा के लिए किस पर आप हमला करना पसंद करेंगे? आपके पास 'वाल्मीकि रामायण' का जो बेहद निजी और बेहद लेटेस्ट संस्करण है, वह इस बारे में क्या बताता है? क्या यह कि इसके लिए पाकिस्तान पर हमला करना चाहिए?हंसेगी तो नहीं न दुनिया आप पर और मोदी जी पर? देखिए दुनिया हंसेगी तो मुझे भी बुरा लगेगा!
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और हां मोदी एंड भक्त एंड गोदी मीडिया कंपनी की एक समस्या यह भी है कि इसे एक ही ऐसा ग्रंथ चाहिए, जिसमें उसे दुनिया की सारी समस्याओं के हल मिल जाएं। जैसे रामायण एक महान काव्य ग्रंथ न होकर परीक्षा की गाइड बुक हो, कुंजी हो! और यह भी समझ में नहीं आता कि इनसे पढ़ा तो कुछ जाता नहीं तो इन्हें सारी समस्याओं के हल किसी ग्रंथ में और वह भी किसी हिंदू ग्रंथ में क्यों चाहिए?
अरे अगर ग्रंथ ही सारे हल दे सकते तो लोग मोदियों और अमित शाहों के दो-दो, डेढ़-डेढ़ घंटे के भाषण क्या इसलिए झेलने आते कि गीता या रामायण या भागवत में सारी समस्याओं के हल मौजूद हैं? अगर वाल्मीकि को आज भी यह पता चल जाए कि उनकी रामायण को संसार की सारी समस्याओं के समाधान निकालने की कुंजी माना जा रहा है तो वाल्मीकि के साथ कालिदास, तुलसीदास, सूरदास और निराला भी आत्महत्या करने पर उतारू हो जाते!
अरे मोदीजी और शाहजी, ग्रंथ तो स्वयं समस्या होते हैं, जैसे संविधान रूपी ग्रंथ। बोलो कही न मैंने आपके मन की ठीक असली वाली बात! अरे मेरी पीठ तो थपथपा देते!
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