लोकतंत्र जैसा कुछ जहां होता है, जरूरी नहीं, वहां राजा न हो। कुछ में बाकायदा, कुछ में बेकायदा होता है। बेकायदा वाला समझता है कि वह दुनिया का सबसे होशियार राजा है। वह भाग्यविधाता है। वह संसद, पुलिस, अदालत, जांच एजेंसी सब है। दाता, माता-पिता, सूरज, चांद, रोशनी, अंधेरा सब है। जो होता है, उसके चाहने से होता है। यह देश, यहां के लोग, यहां की नदियां, पहाड़, समुद्र, जमीनें, कारखाने, सड़कें, रेलवे सब उसकी निजी संपत्ति हैं। जिसे, जब जैसा चाहे, बेचने का अधिकार उसके पास है। खैर हमारे देश में तो ये सब कभी हुआ नहीं!
ऐसे ही एक बेकायदा राजा की बात है। सारी सरकारी संपत्तियों को बेचकर भी वह जब संतुष्ट नहीं हुआ तो उसने 'जनहित' में अपने मंत्रियों समेत अपनी बोली लगा दी, जिसे आजकल भारत सरकार मोनेटाइजेशन के नाम से पुकारती है, जैसे बच्चे को मां-बाप मुन्ना राजा के नाम से पुकारते हैं!
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जिन्होंने राजा को 'मोनेटाइज' किया था, उनकी शर्त थी कि सिर से पैर तक राजा उनका होगा मगर राजा, राजा की तरह दिखे, यह हमारी भी जरूरत है और उसकी भी। इस बात का पूरा खयाल रखा जाएगा। फैसले हम लेंगे, जनता समझेगी, राजा ने लिए हैं। बोलेंगे हम, जनता समझेगी, उनका राजा बोल रहा है। चलेंगे हम, प्रजा समझेगी कि राजा चल रहा है। खाएंगे हम, लगेगा, राजा अपनी सेहत बना रहा है। आदेश निकालेंगे हम, हस्ताक्षर राजा करेगा। राजा को अभिनय इतना बढ़िया करना है कि लोग दिलीप कुमार को भूल जाएं!
उन्होंने चेतावनी दी थी कि ऐ राजा, सुन, अगर तू फेल हुआ, तेरी फिल्म पिट गई तो हम तुझे इस तरह छोड़ देंगे, जैसे तू नहीं, चूहे की पूंछ हाथ में हो। उसने कहा, 'सर नो प्राब्लम। जब मैंने अपना मोनेटाइजेशन कर लिया है, तो सब मंजूर है। कल कोई नई शर्त जोड़ोगे, तो उसे भी मानूंगा। हमेशा आपका वफादार रहा हूं। मैं तो सर, प्यार किया है तो डरना क्या वाली थ्योरी का हूं।' उसके मालिक ने इस पर न हां कहा, न ना। चेहरा निर्विकार रखा!
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वैसे यह राजा जब एक रियासत का मनसबदार था, तब से उसे अपना मोनेटाइजेशन करने का अभ्यास है। उसके मालिक परख चुके थे कि यह हमारा सौ टंच सोना है। यह जनता से धोखाधड़ी करेगा, उसे दगा देगा, उससे झूठ बोलेगा, मगर अपने मालिकों की चौकीदारी दिन-रात करेगा, सपने में भी यह काम नहीं छोड़ेगा!
पहली बार जब इसे खरीदा गया था, तब इसने बिना कहे, 200 प्रतिशत तक रिजल्ट दिए थे। उसे जब टारगेट 300 प्रतिशत का दिया गया, तो उसने 400-500-1000 प्रतिशत रिजल्ट दिए। धरती हिल सकती है, चांद बुझ सकता है, सूरज थक सकता है, कुत्ता वफादारी छोड़ सकता है, मगर यह नहीं। इसे कीचड़ में खड़ा करोगे तो भी नाक बिना दबाये ऐसे खड़ा रहेगा, जैसे गंगा में खड़े होकर सूर्य को अर्घ्य दे रहा हो। मालिक के सामने खुश होकर कहेगा, आगे और बताओ मेरे आका!
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आका पहले कभी उसकी वफादारी से खुश होकर अपने साथ चाय पीने का सौभाग्य प्रदान करते थे, तो यह सिकुड़ा-सिमटा, डरते-डरते पी लेता था। शुरू में तो मालिक के सामने इसकी नाड़ी ऐसे खिसकती थी कि इसके हाथ हिलने लगते थे। चाय का कप गिर जाता था। इस पर डांट खाता था। एक बार तो नई क्राकरी अपनी तनख्वाह से मालिक को भेंट कर पूरे महीने भूखा रहना पड़ा था। कोई पूछता था तो कहता था, आजकल मेरे उपवास चल रहे हैं!
वह अपने मालिक से इतना डरता था कि वह सामने सीधे देखना भूल चुका था, दांए-बांए देखता था तो उसके खरीददार आंखें तरेरते हुए कोड़े लेकर खड़े दिखते थे। वह आज्ञा मांगता था कभी-कभी कि मालिक एक बार थोड़ा सा प्रजा की तरफ देख लूं। वे कहते थे, अबे चुप बैठ! वह कहता मालिक पता नहीं क्या हुआ है कि पैरों की बजाय मैं हाथों से चलने लगा हूं। मालिक सुनकर मुस्कुराते। कहते-वैरी गुड!
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वह पूछता, थोड़ी देर पांव के बल चल लूं! वे कोड़ा दिखाते।वह पूछता मालिक, तनि अपने शरीर के लिए भी कुछ तर माल खा लूं। वे कोड़े वाले को इशारा करते कि जरा इसे दो लगाओ तो, यह ऐसे नहीं मानेगा। वह रिरियाता, नहीं मालिक, ऐसा मत करो। परजा देख लेगी तो मेरी बड़ी बेइज्जती होगी। कोड़ा रुक जाता था। इस तरह उसने देश को न्यू बनाया, स्वावलंबी बनाया। वह बनाता ही गया और खुद बनता भी गया!
अगर ऐसा देश भारत होता, वहां का ऐसा राजा होता, तो यहां कभी की क्रांति हो चुकी होती!
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