जर्मन नाटककार बर्तोल्त ब्रेख्त ने एक बार कहा था कि यदि आप सरकार का विरोध सीधे-सीधे नहीं कर पा रहे हैं, तो व्यंग्य के माध्यम से उसका विरोध कर सकते हैं। ‘मां’ नामक अपने नाटक में ब्रेख्त कहते हैं, “वो सब कुछ करने को तैयार, सभी अफसर उनके, जेल और सुधार घर उनके, सभी दफ्तर उनके, कानूनी किताबें उनकी, कारखाने हथियारों के, पादरी प्रोफेसर उनके, जज और जेलर उनके, सभी अफसर उनके...।” इसी कविता में आगे वह कहते हैं, “एक दिन ऐसा आएगा, पैसा फिर काम न आएगा, धरा हथियार रह जाएगा, और ये जल्दी ही होगा, ये ढांचा बदल जाएगा... ये ढांचा बदल जाएगा।” ब्रेख्त ने अपने नाटकों और कविताओं में इसी भाषा और मुहावरे का प्रयोग किया।
भारत में प्रतिरोध के लिए अब एक नई विधा सामने आई है। स्टैंडअप कॉमेडियन्स ने पिछले पांच-छह सालों में सरकार के खिलाफ, उनकी नीतियों के खिलाफ हास्य और व्यंग्य के जरिये लोगों को जागरूक करना शुरू किया है। दिलचस्प बात है कि साल 2005 में ‘दि ग्रेट इंडियन लॉफ्टर चैलेंज’ के नाम से छोटे पर्दे पर एक शो शुरू हुआ। इस शो के अनेक सीजंस ने भारतीय दर्शकों को पहली बार स्टैंडअप कॉमेडियन्स की अवधारणा से वाकिफ कराया। कपिल शर्मा, कृष्णा, सुदेश लहरी, सुनील पॉल, जहीर कुरेशी, राजू श्रीवास्तव जैसे कई स्टैंडअप कॉमेडियन्स सामने आए।
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लेकिन इनका मूल काम लोगों को हंसाना ही रहा। चुटकुलेबाजी, छोटी-छोटी स्किट और गानों के माध्यम से ये कॉमेडियंस परफॉर्मर ही बने रहे। इनके विषयों की सीमाएं इन्हें सजग और सतर्क होने से रोकती रहीं। यही लगा कि इनका काम किसी भी तरह से बस पैसा कमाना है। समाज या राजनीति पर किसी भी तरह की टिप्पणी करने से ये बचते रहे या इन्हें इस बात का अहसास ही नहीं हुआ कि ये अपनी भूमिकाओं को बदलकर राजनीतिक चेतना पैदा करने में सहायक हो सकते हैं।
साल 2014 में जब केंद्र में सरकार बदली। धुर दक्षिणपंथी सरकार ने क्रमशः ऐसे फैसले लेने शुरू किए जिनसे समाज में असंतोष फैलने लगा। सरकार की अनेक ऐसी नीतियां सामने आईं जिनसे यह साफ दिखाई देने लगा कि समाज में झूठ और फूट पैदा करने की कोशिशें की जा रही हैं। लगातार दूषित होते इस माहौल ने स्टैंडअप कॉमेडियन्स को अचानक विषय सुझा दिए। उन्हें लगने लगा कि क्यों न वे स्वयं आगे बढ़कर जनता को हंसी मजाक में, व्यंग्य में जागरूक करने की कोशिश कर सकते हैं। इन्हीं स्टैंडअप कॉमेडियंस ने अपनी कॉमेडी को प्रतिरोध से जोड़ लिया।
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दिलचस्प बात है कि भारतीय समाज का एक बड़ा वर्ग, जो चाहकर भी सरकार और उसकी नीतियों का विरोध नहीं कर पा रहा था, वह इस विरोध को सुन और देखकर आनंद लेने लगा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लगातार अपना प्रचार इस तरह कर रहे थे कि पूरी दुनिया में उनसे बड़ा नेता नहीं है। उनके प्रचार में झूठ से गढ़े गए नए-नए मुहावरों से जनता आजिज आ चुकी थी। जीएसटी, नोटबंदी, गौरक्षकों की हिंसा, राम मंदिर, तीन तलाक, सीएए जैसे मुद्दों के अलावा प्रधानमंत्री का मैनरिज्म भी स्टैंडअप कॉमेडियन्स के काम आने लगा।
जिन मुद्दों को विपक्ष को मजबूती से उठाना चाहिए था, उन्हें सामने लाने के लिए स्टैंड अप कॉमेडियन्स आगे आए। जब देश में एक तरफ ‘मोदी-मोदी’ के नारे गूंज रहे थे, ठीक इसी समय स्टैंडअप कॉमेडियन्स अपनी प्रस्तुतियों में सरकार के फैसलों, उनकी नीतियों, खामियों और उनके झूठ का पर्दाफाश करने में लगे थे।
यह भी गौर करने वाली बात थी कि स्टैंडअप कॉमेडियन्स दर्शकों के मनोरंजन की अपनी पहली प्रतिबद्धता को भी पूरा कर रहे थे। उन्हें भी शायद पहली बार यह इल्म हो रहा होगा कि उनका काम सिर्फ लोगों को हंसाना भर नहीं है, बल्कि वे इसके माध्यम से लोगों को जागरूक भी कर सकते हैं और उनके प्रतिरोध को स्वर दे सकते हैं। अभिजीत गांगुली पहले सिर्फ रोजमर्रा की चीजों और आदतों पर ही कॉमेडी किया करते थे। लेकिन पिछले कुछ समय से वह लगातार मोदी और बीजेपी को निशाना बना रहे हैं। वह बाकायदा मोदी का नाम लेकर सहज और सरल भाषा में उनकी खिल्ली उड़ा रहे हैं।
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एक वीडियो में वह कहते हैं, “लगता है मोदी जी मोक्ष को प्राप्त हो चुके हैं, वह महानिर्वाण हासिल कर चुके हैं। देश में जीडीपी लगातार गिर रही है, महंगाई बढ़ रही है, बेरोजगारी का कोई उपाय सरकार को दिखाई नहीं दे रहा और मोदी जी एकदम शांत हैं। लगता है वह मोक्ष को प्राप्त कर चुके हैं।” गांगुली नोटबंदी पर भी कटाक्ष करते हुए कहते हैं, “लग रहा था कि नोटबंदी का गरीबों को फायदा होगा, लेकिन गरीबों को तो कोई फायदा नहीं हुआ। तब हमने सोचा शायद अमीरों को फायदा हुआ होगा, लेकिन इससे अमीरों को भी कोई लाभ नहीं हुआ। तो फिर नोटबंदी की क्यों, क्या ऐसे ही मजे लेने के लिए.. या उन्हें लगा होगा कि आज कुछ तूफानी कर दिया जाए।”
एक जगह वह कहते हैं, “मुझे लगता है कि मोदी जी की पॉलिटिक्स सलमान खान वाली हो गई है। उनके आसपास का कोई भी आदमी यह बोल ही नहीं पा रहा है कि वे क्या गलत कर रहे हैं।” अभिजीत गांगुली छोटे-छोटे विडियोज में वह बातें कह जाते हैं, जिन्हें राजनीतिज्ञ भी कहने में संकोच करते हैं।
लेखक, गीतकार और स्टैंडअप कॉमेडियन वरुण ग्रोवर ‘मसान’ फिल्म से खासे लोकप्रिय हो चुके हैं। वह अलग-अलग मंचों से लगातार सरकार की गलतियों पर तंज कसते हैं। कुछ साल पहले साहित्य आज तक में वरुण ग्रोवर ने नोटबंदी पर करारा व्यंग्य किया। उन्होंने कहा, “अमेरिकी को ट्रंप मिला और हमें डिमोनेटाइजेशन।” वह चुनावों में जातिवाद को लेकर भी तीखा व्यंग्य करते हैं।
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इसी तरह विपुल गोयल यूट्यूब चैनल ‘द वायरल फीवर’ की वेब सीरीज ‘ह्यूमरसली योर्स’ से लोकप्रियता हासिल कर चुके थे। लेकिन राजनीतिक व्यंग्य ने उन्हें लोकप्रियता के शिखर पर पहुंचा दिया। व्यंग्यात्मक अंदाज में वह मोदी की तारीफ करते हैं। वह जीएसटी, स्वच्छता अभियान और गैस सब्सीडी से लेकर गृहमंत्री अमित शाह तक को निशाना बनाते हुए कई अहम सवाल उठाते हैं।
स्टैंडअप कॉमेडियन कुणाल कामरा ने लोकप्रियता के सारे रिकार्ड तोड़ दिए हैं। उनके अपने यूट्यूब चैनल के एक करोड़ से ज्यादा सब्सक्राइबर हैं। एक वीडियो में उन्होंने देशभक्ति की नई परिभाषा तय करने वालों पर कटाक्ष किया। इसमें वे उन लोगों को अपना निशाना बनाते हैं जो हर तर्क का जवाब यह कहकर देते हैं, “सियाचिन में हमारे जवान लड़ रहे हैं और आप बैंकों की लाइन में नहीं लग सकते...।”
इस विडियो के बाद उन्हें जान से मार देने की धमकियां तक मिलीं। साल 2019 के लोकसभा चुनावों से पहले बड़ौदा यूनिवर्सिटी में उनके एक शो को राष्ट्र विरोधी बताकर रद्द कर दिया गया था। कहा गया कि वह युवाओं का दिमाग वैचारिक तौर पर दूषित करना चाहते हैं। हाल ही में एक विडियो में उन्होंने अर्णब गोस्वामी को बिना उनका नाम लिए मजाक का विषय बना दिया। इसी तरह प्रधानमंत्री और अन्य नेताओं की मिमिक्री करने वाले श्याम रंगीला ने भी अपने खास अंदाज में दर्शकों का मनोरंजन ही नहीं किया बल्कि उन्हें सिर्फ मिमिक्री द्वारा राजनीति का आईना भी दिखाया। बाद में उन पर भी मोदी की मिमिक्री करने के लिए प्रतिबंध लगाया गया।
लेकिन ये प्रतिबंध दरअसल स्टैंडअप कॉमेडियन्स को ही सही साबित कर रहे हैं। इनका विरोध और इन पर लगाई जा रही रोक यह साबित कर रही है कि येअपना काम सही तरह से कर रहे हैं। इन स्टैंडअप कॉमेडियन्स ने यह साबित कर दिया है कि यदि आपके भीतर विरोध और प्रतिरोध है तो आप उसे हर हाल में स्वर दे सकते हैं और यह भी संभव नहीं है कि सरकार पर उसका असर न हो। स्टैंडअप कॉमेडियन्स का यह प्रतिरोध इस ‘ढांचे के बदल जाने की’ उम्मीद जगाता है।
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