हमारे देश में सुरक्षा प्रतिष्ठा का मुद्दा रहा है। हमारे राजनेता, जज, राज्यपाल, सैन्याधिकारी आदि इस बात में गर्व महसूस करते हैं कि उनका सुरक्षा काफिला कितना भारी भरकम है। और जितना भारी-भरकम और सुसज्जित यह काफिला होता है, उतनी ही सुरक्षा पाने वाले की प्रतिष्ठा मानी-समझी जाती है।
लेकिन कुछ लोगों को असलियत में खतरा होता है और लगातार बना रहता है। तब की प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की 35 साल पहले हत्या कर दी गई थी। 31 अक्टूबर 1984 के उनके सुरक्षा गार्ड 25 वर्षीय बेअंत सिंह ने अपनी सर्विस रिवॉल्वर से उन्हें तीन गोलियां मार दी थी। इंदिरा गांधी जब जमीन पर गिर पड़ी तो 22 साल के सतवंत सिंह ने भी 67 साल की इस निहत्थी महिला पर अपनी स्टेन गन की 30 गोलियों वाली मेगजीन खाली कर दी थी। इंदिरा गांधी के पेट में 7 और सीने में 3 गोलियों के साथ ही एक गोली उनके दिल को चीर गई थी।
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उस समय सोनिया गांधी घर में ही थीं, और रिपोर्ट्स के मुताबिक गोलियों की आवाज सुनकर वह दौड़ी-दौड़ी, “मम्मी...मम्मी” चिल्लाते हुए बाह आई थीं। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सरकार की बागडोर संभालने वाले प्रधानंत्री राजीव गांधी ने स्पेशल प्रोटेक्शन ग्रुप यानी एसपीजी का गठन किया था। इस फोर्स की नींव अमेरिका के सीक्रेट सर्विस जैसे ग्रुप की तर्ज पर रखा गया था जिसे 1865 में अमेरिका के राष्ट्रपति अब्राह्म लिंकन की हत्या के बाद बनाया गया था। सीक्रेट सर्विस का काम मौजूदा और पूर्व राष्ट्रपतियों और उनके परिवारों के साथ ही विपक्ष के महत्वपूर्ण नेताओं को सुरक्षा मुहैया कराना था।
वक्त बदला और 1991 में एक 17 साल की लड़की ने तमिलनाडु में एक चुनावी रैली के दौरान राजीव के एकदम करीब खड़े होकर खुद को बम से उड़ा लिया। इसमें राजीव समेत करीब एक दर्जन लोगों की मौत हुई। मुझे नहीं पता उस समय एसपीजी क्या कर रही थी, लेकिन जहां तक मुझे याद है कि इसकी जिम्मेदारी राजीव गांधी पर ही डाल दी गई थी कि वह खुद ही भीड़भाड़ में लोगों के बहुत करीब चले जाते थे और उनसे घुलते मिलते थे। ऐसे में अगर पूरी दुनिया में किसी एक परिवार को सबसे ज्यादा खतरा है तो वह गांधी परिवार।
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भारत में एसपीजी किन लोगों की सुरक्षा करेगा, उसकी कोई विशेष सूची नहीं है, और वर्तमान सरकार तय करती है कि किसे कितनी सुरक्षा देनी चाहिए। हालांकि अमेरिका की सीक्रेट सर्विस के पास इसका पूरा प्रोटोकॉल है। हाल ही में मोदी सरकार ने गांधी परिवार की एसपीजी सुरक्षा वापस ले ली है। कांग्रेस पार्टी ने हालांकि सरकार से आग्रह किया कि इस फैसले पर दोबारा विचार किया जाए लेकिन सरकार ने दो टूक कह दिया है कि ‘कांग्रेस पूछती रहे, जो फैसला हो गया, सो हो गया।‘
सरकार ने संसद में कहा कि “गांधी परिवार की सुरक्षा हटाई नहीं गई है।” लेकिन यह एक निरर्थक तर्क है क्योंकि किसी ने कहा ही नहीं कि गांधी परिवार की सुरक्षा हटा ली गई है। आरोप तो सिर्फ यही लग रहा है कि सरकार ने जानबूझकर खतरे में घिरे परिवार की सुरक्षा कम कर दी है। इस आरोप पर प्रधानमंत्री को कहना चाहिए था कि इस परिवार की सुरक्षा की सरकार गारंटी देती है। लेकिन वह अहम मुद्दों पर बोलते ही कहां हैं।
दूसरी बात सरकार ने संसद में ही दावा किया कि सुरक्षा कम करने का फैसला राजनीतिक नहीं है। लेकिन इस दावे पर सिर्फ वही लोग विश्वास करेंगे दो सरकार के तौर-तरीकों के जानते नहीं हैं। सरकार ने तीसरा दावा किया कि सुरक्षा में कमी करने का कारण परिवार को मौजूद खतरे में भी कमी होना है। अगर ऐसा है तो सरकार को वह आधार सामने रखना चाहिए जिससे इस नतीजे पर पहुंचा गया कि परिवार को अब पहले जितना खतरा नहीं है। लेकिन सरकार ने ऐसा भी नहीं किया।
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मोटी बात यह है कि इस कदम से उन लोगों की जान को खतरा ज्यादा बढ़ जाएगा जो अभी तक सुरक्षा घेरे में थे, क्योंकि सिर्फ एसपीजी सुरक्षा ही नहीं थी जो दिखती थी। और भी बहुत कुछ था इसके साथ। मैं सोनिया गांधी से उनके निवास 10, जनपथ में कई माह पहलेमिला था। मुझे अपने टैक्सी वाले का नंबर देना पड़ा था, इसके बाद मुझे अंदर जाने दिया गया था। लेकिन मुझे याद नहीं कि टैक्सी की तलाशी ली गई थी या नहीं।
इसके अलावा अपना फोन बाहर छोड़ने के अलावा मुझे नहीं याद कि कोई और खास सुरक्षा जांच मेरी हुई हो जैसी कि आमतौर पर हवाई अड्डों पर होती है। ऐसे में मुझे नहीं लगा कि एसपीजी सुरक्षा भी कोई खास चाकचौबंद नहीं थी।
मैं नरेंद्र मोदी से उस समय मिला था जब उनके पास एसपीजी सुरक्षा नहीं थी, लेकिन शायद जेड प्लस सुरक्षा मिली हुई थी। इस सुरक्षा में भी कोई खास बात नहीं थी। बात यह है कि भारत में व्यवस्था और प्रक्रिया कमजोर और लचर हैं और उनका कोई भी फायदा उठा सकता है। कुछ साल पहले में श्रीनगर में उमर अब्दुल्ला से मिलने गया था। वह घर नहीं आए थे तब तक और मुझे कुछ देर के लिए उनके दफ्तर में बिठाया गया। बाद में मुझे पता चला कि वह मुझसे मिलना नहीं चाहते थे, लेकिन वापसी पर जब मैं अचानक पीछे मुड़ा तो मैंने उन्हें कॉरिडोर में देख लिया और मैं उनसे मिलने वहीं पहुंच गया।
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कोई 20 साल पहले एडिटर्स गिल्ट की एक बैठक में लालकृष्ण आडवाणी को भी बुलाया गया था। आडवाणी हम सबके पहुंचने के बाद आए थे और सीधे उसी टेबिल के आसपास आ गए थे जहां हम लोग बैठे थे, लेकिन मुझे याद है कि हममे से किसी की भी कोई जांच पड़ताल नहीं हुई थी, जबकि आडवाणी को जेड प्लस सुरक्षा मिली हुई थी।
करीब 30 साल पहले मैं व्हाइट हाउस में तत्कालीन राष्ट्रपति रोनाल्ड रीगन से मिला था। अपना आईडी कार्ड दिखाने और सिर्फ बुनियादी तलाशी आदि के बाद मुझे जाने दिया गया था। इसी तरह इजरायल में जब मैं तेल अवीव में राष्ट्रपति शिमोन पेरेज से मिला था तो भी ऐसा ही हुआ था। ऐसे में यह कहना मुश्किल है कि जिन्हें सबसे ज्यादा सुरक्षा दी जाती है वे पूरी तरह सुरक्षित हैं।
जैसा कि मैंने ऊपर कहा कि सुरक्षा कवर प्रतिष्ठा का मुद्दा ज्यादा है और किसी की सुरक्षा कम करने या घटाने का तात्पर्य यही है कि उनका अपमान किया जा रहा है। लेकिन यह खतरनाक खेल है जो मोदी सरकार खेल रही है। सरकार को चाहिए कि गांधी परिवार की सुरक्षा उसी तरह वापस कर दे जैसा कि उन्हें आजतक मिलती रही है।
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