सिगरेट पीने से स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभावों का तो बहुत बारीकी से अध्ययन किया गया है, लेकिन तम्बाकू उत्पादन से लेकर सिगरेट बनाने की प्रक्रिया तक इसका पर्यावरण पर क्या प्रभाव होता है, इस पर कम ही जानकारी उपलब्ध है। हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन की सहायता से कराए गए एक अध्ययन के अनुसार सिगरेट के कारोबार से पर्यावरण पर घातक प्रभाव पड़ता है। सबसे बड़ी बात यह है कि अधिकतर तम्बाकू उत्पादन विकासशील देशों में किया जाता है, इससे उनका पर्यावरण प्रभावित होता है, लेकिन ज्यादातर सिगरेट कंपनियां विकसित देशों की हैं, इसलिए मुनाफा विकसित देशों में जाता है। इस अध्ययन में सुझाव दिया गया है कि सिगरेट के दामों को तय करने में केवल आर्थिक आधार ही नहीं बल्कि पर्यावरणीय आधार भी सम्मिलित किया जाना चाहिए।
सिगरेट उत्पादन से संबंधित कारोबार से तापमान वृद्धि में सहायक कार्बन डाइऑक्साइड गैस का बहुत ज्यादा उत्सर्जन होता है। अध्ययन के दौरान यह जानकारी भी सामने आयी कि सिगरेट बनाने वाली कंपनियां जितने कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन अब तक बताती रहीं हैं, वास्तविक उत्सर्जन उससे कई गुना अधिक होता है। जितना बताया जाता है, उतना उत्सर्जन कुछ ही देशों में होता है। एशिया और अफ्रीका में 5 प्रतिशत से अधिक वन क्षेत्र तम्बाकू उत्पादन के लिए काट डाले गए हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार तम्बाकू के उत्पादन से पर्यावरण पर जो प्रभाव पड़ता है वह खाद्यान्नों के उत्पादन की तुलना में बहुत अधिक है।
विश्व में सिगरेट का उत्पादन और इसकी खपत लगातार बढ़ रही है। वर्तमान में लगभग एक अरब लोग धूम्रपान करते हैं और प्रतिवर्ष लगभग 6 खरब सिगरेट का उत्पादन किया जाता है। अध्ययन के सह-लेखक लंदन स्थित इम्पीरियल कॉलेज के डॉ निकोलस हॉपकिन्स के अनुसार प्रति वर्ष केवल तम्बाकू उत्पादन के दौरान वायुमंडल में 8.4 करोड़ टन कार्बन डाइऑक्साइड मिलती है। कार्बन डाइऑक्साइड की यह मात्रा विश्व के हरेक स्त्रोत से उत्पन्न होने वाली कुल कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा का 0.2 प्रतिशत है। लगभग इतनी ही मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन पूरे के पूरे पेरू से या फिर पूरे इजराइल से होता है।
अनुमान है कि पूरे विश्व के लगभग 52000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में तम्बाकू की पैदावार की जाती है। इसमें से 90 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र विकासशील देशों में स्थित हैं। इतने क्षेत्र में तम्बाकू की पैदावार में प्रतिवर्ष 22 अरब टन पानी की जरूरत पड़ती है। इस हिसाब से यदि कोई व्यक्ति 20 सिगरेट रोज पीता है, तो 50 वर्षों के दौरान वह अकेले केवल सिगरेट पीने के कारण 14 लाख लीटर पानी बर्बाद कर चुका होगा। इसके अलावा तम्बाकू उत्पादन के दौरान मिटटी को भी हानि पहुंचती है और पैदावार कम होने लगती है। पैदावार बढ़ाने के लिए भारी मात्रा में रासायनिक उर्वरकों का उपयोग किया जाता है। तम्बाकू की पैदावार में बाल मजदूर भी बड़े पैमाने पर काम करते हैं।
चीन में सिगरेट की खपत विश्व में सबसे अधिक है। यहां प्रत्येक वर्ष लगभग 2.5 खरब सिगरेट का उत्पादन किया जाता है, जिसमें हजारों वर्ग किलोमीटर भूमि और करोड़ों लीटर पानी की जरूरत पड़ती है। चीन के जिन क्षेत्रों में तम्बाकू की बड़े पैमाने पर खेती होती है, वह इलाका पानी की कमी से ग्रस्त है और पूरे क्षेत्र में कुपोषण बड़े पैमाने पर व्याप्त है।
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लंदन से प्रकाशित द टाइम्स ने 28 अगस्त को एक खबर प्रकाशित की थी, जिसके अनुसार समुद्र और महासागरों के पानी में और किनारे भी सबसे अधिक संख्या में मिलने वाली चीज सिगरेट के फिल्टर हैं। अमेरिका की संस्था ओशन कन्सेर्वेटरी के अनुसार पिछले 32 वर्षों के अध्ययन में उन्होंने सबसे अधिक सिगरेट के फिल्टर ही एकत्रित किये हैं। पिछले साल ही इस संस्था ने 6 करोड़ फिल्टर एकत्रित किये हैं, जो पूरे कचरे का एक-तिहाई हिस्सा है। विश्व के कुल सिगरेट उत्पादन में से लगभग 5.5 खरब सिगरेट ऐसी होती हैं जिनका फिल्टर प्लास्टिक आधारित होता है, जो पर्यावरण में अपघटित होने में बहुत लंबा समय लेता है। तब तक इससे तमाम रसायन रिसते रहते हैं। वैज्ञानिकों ने अपने अध्ययन के दौरान लगभग 70 प्रतिशत पक्षियों और 30 प्रतिशत कछुओं में इन रसायनों के होने की पुष्टि की है।
रिपोर्ट में सुझाव दिया गया है कि सिगरेट पर टैक्स पर्यावरण को होने वाले नुकसान के आधार पर लगाया जाए और उन कंपनियों पर भारी जुर्माना लगाया जाए जो वनों को काटने या फिर जल प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हैं।
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