'भारत और बांग्लादेश के बीच इतिहास, भाषा, संस्कृति और कई बहुआयामी समानताओं के कारण गहरे संबंध हैं। दोनों देशों के बीच संप्रभुता, समानता, विश्वास और समझ पर आधारित एक व्यापक साझेदारी है जो द्विपक्षीय संबंधों में साफ झलकती है। यह साझेदारी पूरे क्षेत्र और उससे आगे भी द्विपक्षीय संबंधों के लिए एक मॉडल के रूप में विकसित हुई है।'
भारत-बांग्लादेश द्विपक्षीय संबंधों पर 2024 में विदेश मंत्रालय द्वारा प्रकाशित संक्षिप्त टिप्पणी में इन शब्दों का इस्तेमाल किया गया है।
वर्तमान में दोनों देशों के बीच तीन ट्रेन चलती हैं। यह हैं–
मैत्री एक्स्प्रेस (यह 2008 से चल रही है और कोलकाता और ढाका के बीच चलती है)
बंधन एक्स्प्रेस (यह 2017 से चल रही है और कोलकाता और खुलना के बीच चलती है)
मिताली एक्सप्रे (जून 2022 से चालू, न्यू जलपाइगुड़ी और ढाका के बीच चलती है)
इसके अलावा भारत और बांग्लादेश के बीच 5 बस सेवाएं भी चलती हैं जो कोलकाता, अगरतला और गुवाहाटी को ढाका और खुलना तक जोड़ती हैं। कोविड शुरु होने से कुछ सप्ताह पहले मैंने खुलना तक ट्रेन से यात्रा की थी और भारतीय इस बात से आश्चर्यचकित हो जाएंगे कि कितने लोग इसका इस्तेमाल कर सीमा पार से आते-जाते हैं। यह रेल मार्ग 1965 के युद्ध के दौरान बंद हो गया था, जिसे 2017 में फिर से सुरु किया गया।
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बांग्लादेश दक्षिण एशिया में भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है और भारत एशिया में बांग्लादेश का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है। बांग्लादेश ने वित्त वर्ष 2023-24 में भारत को 2 अरब अमेरिकी डॉलर का सामान निर्यात किया। वित्त वर्ष 2023-24 में कुल द्विपक्षीय व्यापार 14 अरब अमेरिकी डॉलर बताया गया है, जिसका मतलब है कि उसका कारोबार भारत के पक्ष में काफी झुका हुआ है।
विदेश मंत्रालय की टिप्पणी में कहा गया है कि भारत किसी एक मेडिकल मरीज के साथ तीन बांग्लादेशी तीमारदारों को भारत आने के लिए मेडिकल अटेंडेंट वीजा जारी करता है - यह एक अत्यधिक उदार प्रक्रिया है जिसे बांग्लादेश में भी लागू किया गया है। बांग्लादेश में हमारा वीजा ऑपरेशन भारत द्वारा दुनिया भर में किए जाने वाले सबसे बड़े वीजा ऑपरेशन में से एक है। यानी मेजबान देश में मौजूद आवेदन केंद्रों, प्रतिदिन प्राप्त होने वाले आवेदनों की संख्या और प्रोसेस और जारी किए जाने वाले वीजा की संख्या के संदर्भ में यह सबसे बड़ा ऑपरेशन है।
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शेख हसीना की सरकार के सत्ता से बाहर होने और भारत द्वारा बांग्लादेश में अपनी राजनयिक मौजूदगी कम करने के बाद इस ऑपरेशन पर असर पड़ा है, जिससे नुकसान भारत को हुआ है क्योंकि उदार वीजा प्रक्रिया भारतीय व्यापार, विशेष रूप से मेडिकल टूरिज्म (चिकित्सा पर्यटन) के लिए अत्यधिक अनुकूल रही है। दरअसल, भारत में आने वाले सभी चिकित्सा पर्यटकों में से आधे, यानी सालाना कुल 6,35,000 में से लगभग 325,000, बांग्लादेशी होते हैं।
दूसरी ओर, भारत आने के लिए पाकिस्तानियों को किन-किन परिस्थितियों से गुजरना पड़ता है, यह अक्टूबर 2024 में मेरे एक मित्र द्वारा लाहौर से बैंगलोर की यात्रा के माध्यम से समझा जा सकता है। इन मित्रों में से एक ने गुरुवार की रात को अटारी-वाघा सीमा पार करके अमृतसर से बैंगलोर के लिए फ्लाइट ली। अगले दिन, वह बैंगलोर में अपने प्रवेश को दर्ज कराने के लिए पुलिस स्टेशन में पहुंचा। पाकिस्तानियों को सिटी स्पेसिफिक यानी किसी एक शहर की यात्रा के लिए ही विशिष्ट वीज़ा दिया जाता है जिसके तहत उन्हें शहर में प्रवेश और निकास पर प्रत्येक शहर के पुलिस स्टेशन में पंजीकरण कराना होता है। उसके अगले दिन, शनिवार को, वह फिर से पुलिस स्टेशन में अपनी रवानगी दर्ज कराने गया, क्योंकि रविवार को स्टेशन बंद रहेगा। वह रविवार को दिल्ली के लिए रवाना हुआ और सोमवार को उसे वहां के पुलिस थाने में रिपोर्ट करना था।
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मैं अपने दोस्त की इन दिक्कितों आदि को समझ सकता हूं क्योंकि पाकिस्तान की मेरी कुछ यात्राओं पर मुझे भी ऐसे ही ‘रिपोर्टिंग’ वीज़ा दिए गए थे। इसका मकसद लोगों को आने से रोकना है और यही हाल उन लोगों का है जो दरअसल वीजा हासिल कर लेते हैं, जबकि अधिकांश लोगों को वीजा देने से इनकार कर दिया जाता है। वीजा को लेकर यह कड़ाई एक जैसी है और दोनों पक्ष ऐसा करते हैं।
लगभग 25 लाख बांग्लादेशी पर्यटक सालाना भारत आते हैं, जबकि पाकिस्तानियों की संख्या लगभग 40,000 है। पर्यटन मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, 2024 की पहली छमाही में, भारत आने वाले पर्यटकों में बांग्लादेशी सबसे आगे थे। इनकी संख्या अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा से ज्यादा थी। इनमें भी इन तीनों देशों के भारतीय मूल के लोगों की संख्या को देखते हुए उल्लेखनीय है। 2010 तक बांग्लादेशी पर्यटकों की संख्या लगभग 5 लाख प्रति वर्ष होती थी और उससे पहले के तीन वर्षों में भी यह संख्या लगभग इसी के आसपास थी। फिर 2014 में यह दोगुनी होकर लगभग 10 लाख हो गई और मोदी दशक में यह फिर से दोगुनी हो गई।
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बांग्लादेशियों की संख्या इसलिए भी उल्लेखनीय है क्योंकि इसी दौरान भारत में सत्ता में बैठी राजनीतिक पार्टी की ओर से बांग्लादेशियों के प्रति बयानबाजी चरम पर थी। यहां तक कि हाल ही में संपन्न चुनाव अभियान में भी बीजेपी नेतृत्व की ओर से मतदाताओं को दिए गए संदेश में ‘बाहरी लोगों’ जैसे धमकी भरे बयान दिए गए।
इस निरंतर भय-प्रचार को देखते हुए, ज्यादातर भारतीय शायद यही सोचेंगे कि बांग्लादेश के साथ वीज़ा व्यवस्था वैसी ही है जैसी पाकिस्तान के साथ है। जबकि ऐसा नहीं है और वास्तविक आंकड़ों पर नज़र डालने से पता चलता है कि बीजेपी ने बांग्लादेश के लोगों की अधिक खुली आवाजाही की अनुमति देकर उसके साथ संबंध बनाने में पिछली सरकारों की समझदारी भरी कार्रवाइयों को जारी रखा है। आंकड़े बताते हैं कि यह भारत के लिए फायदेमंद रहा है।
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बेशक दोनों देशों के बीच आवागमन उतना खुला नहीं है जितना कि दूसरे पड़ोसी देशों के साथ है, जिसके बारे में हमारे विदेश मंत्रालय के नोट में लिखा है कि: 'भारत और नेपाल के बीच घनिष्ठ और मैत्रीपूर्ण संबंध हैं, जिनकी विशेषता सदियों पुराने ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंध, खुली सीमा और लोगों के बीच गहरे संपर्क हैं।'
यह भाषा, बांग्लादेश के साथ हमारे रिश्तों के बताने वाली भाषा के समान ही है, लेकिन एक अंतर है। वह यह है कि नेपाल के साथ हमारी खुली सीमा है और दोनों ओर के नागरिकों को दूसरे देश में जाने या रोजगार खोजने के लिए वीजा या पासपोर्ट की भी जरूरत नहीं होती है।
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