23 अक्टूबर को विशाखापटनम में नशे में धुत एक व्यक्ति ने एक निर्बल बेसहारा, कमजोर, भूख से पीड़ित महिला का खुलेआम, दिन के समय, व्यस्त सड़क पर बलात्कार किया व वहां से गुजरते लोगों ने इस दुष्कर्म को रोकने के स्थान पर अपने स्मार्टफोन से इसके चित्र खींचे।
यह घटना हमें उस संवेदनाविहीन दौर के बारे में सोचने को मजबूर करती है जिससे हम गुजर रहे हैं, जिसे हम जी रहे हैं। 23 अक्टूबर की ही दो अन्य घटनाओं का यहां जिक्र करना वाजिब होगा। 14 साल की एक लड़की को मुंबई की एक ट्रेन में हो रही छेड़छाड़ से बचने के लिए चलती रेल से छलांग लगानी पड़ी, जिसके कारण वह बुरी तरह घायल हो गई। हटा (जिला दमोह, मध्य प्रदेश) में बेटी से हुई छेड़छाड़ करने वाले एक पिता नर्मदा साहू को इसी दिन तीन व्यक्तियों ने जिंदा जला दिया। यह दोनों घटनाएं बहुत गंभीर थीं पर इन पर बहुत कम ध्यान दिया गया।
निर्भया दुष्कर्म ने एक समय समाज की संवेदनाओं को बुरी तरह झकझोरा था, पर लगता है इन दिनों यह संवेदनाएं अब इतनी कम हो गई हैं कि लगभग इतने ही गंभीर दुष्कर्मों पर अब बहुत कम ध्यान दिया जा रहा है। आज घटना घटती है, कल उसे हाशिए पर धकेल दिया जाता है। यह हमारे समाज के लिए बहुत चिंता का विषय है कि समाज इतना संवेदनाविहीन हो गया है, वह ऐसी क्रूर वारदातों के कारणों का सही पता लगाकर उन्हें कम करने का निष्ठावान, गंभीर प्रयास तक नहीं कर रहा है।
11 सितंबर को पश्चिम बंगाल के वीरभूम जिले में एक बहुत दर्दनाक घटना हुई जिसमें एक व्यक्ति ने महिला के गुप्तांग में वही शराब की बोतल डाल दी जिससे वह शराब पी रहा था। इस व्यक्ति ने महिला पर दो मित्रों के साथ रात के डेढ़ बजे हमला किया। तीनों नशे में थे। इससे पहले भी यह व्यक्ति इस महिला पर यौन हमला कर चुका था।
31 जुलाई को दिल्ली में यौन संबंध न बनाने पर क्रोधित हुए एक पति ने अपनी पत्नी की गला घोंटकर हत्या कर दी। 6 अगस्त को कुशीनगर जिले (उत्तर प्रदेश) के एक गांव में कुछ लोगों ने दो महिलाओं को निर्वस्त्र कर, हाथ बांधकर पिटाई की और गांव में निर्वस्त्र घुमाया। उसके बाद उन्होंने खुलेआम एक महिला से बलात्कार की चेष्टा की व दोनों महिलाओं के गुप्तांग पर डंडे से चोट की।
14 अगस्त को रिपोर्ट आई कि दिल्ली में एक महिला के साथ कम से कम 30 व्यक्तियों ने 5 महीनों तक बलात्कार किया। 6 सितंबर को झारखंड (दुमका) में एक कॉलेज छात्रा को कुछ युवकों ने कॉलेज के पास की झाड़ियों में खींच लिया, जहां 8 युवकों ने उसके साथ दुष्कर्म किया। उनलोगों ने उस लड़की और उसके मित्र को निर्वस्त्र कर उनकी फोटो भी खींची।
ऐसी बहुत सारी क्रूरतम घटनाएं किशोरियों और यहां तक की बच्चियों के साथ भी हुईं। कोटा में एक किशोरी ने एक युवक के प्रस्तावों को स्वीकार नहीं किया तो 27 सितंबर को अपने मित्र के साथ उसने उसका बलात्कार किया और फिर भारी पत्थर से मारकर उसकी हत्या कर दी। लखीमपुर खीरी में 15 वर्षीय किशोरी ने एक युवक का प्रस्ताव स्वीकार नहीं किया तो उसने भरे बाजार में 23 अगस्त को तलवार से किशोरी का हाथ ही काट डाला। किशोरी की मां अंधी है और पिता बीमार रहते हैं।
मध्य सितंबर में दिल्ली में एक 14 वर्षीय किशोरी के साथ एक व्यक्ति ने रेप किया जबकि हमलावर के दो मित्रों ने रेप का वीडियो बनाया। लड़की को कहा गया कि उसने घटना के बारे में बताया तो उसके चेहरे पर एसिड फेंक दिया जाएगा। कुछ मिनटों के अंदर ही इन पुरुषों ने वीडियो का प्रसार शुरू कर दिया जिसमें पुरुषों के चेहरे को नहीं दिखाया गया पर किशोरी को निर्वस्त्र दिखाया गया। वीडियो में उसे पहचान कर लोगों ने लड़की से इसके बारे में पूछा।
15 अगस्त को स्वाधीनता समारोह के लिए स्कूल जा रही चंडीगढ़ की 12 वर्षीय बालिका से चाकू की नोक पर बलात्कार किया गया। यहां भीड़ के बीच दिन-दहाड़े एक ट्रैफिक पार्क से बालिका को दुष्कर्म के लिए खींचा गया। 16 वर्षीय मुंबई की किशोरी ने सिंतबर के अंतिम दिनों में पुलिस को बताया कि वह 4 वर्ष पहले अपने पिता द्वारा किए गए यौन शोषण के कारण अपने घर से भाग गई थी। बलात्कार के बाद वह घर से भाग गई और थकी-हारी एक खाली आटो-रिक्शा में बैठ गई जहां उसे नींद आ गई। ड्राईवर, जो 3 बच्चों का पिता था, संवेदना दिखाकर उसे अपने घर ले गया जहां उसने भी उससे बार-बार बलात्कार किया। लड़की गर्भवती हो गई तो किसी तरह उसने अपनी मां से संपर्क किया और तब उसे बचाया जा सका।
इसी समय के आसपास कर्नाटक की 11 वर्षीय बच्ची का समाचार आया। उसके माता-पिता ने प्रेत की छाया उतारने के लिए एक 56 वर्षीय रिश्तेदार के पास भेजा था। लेकिन इस रिश्तेदार ने चार दिनों तक उसके साथ बलात्कार किया। 9 अगस्त को समाचार आया कि बस्तर में स्कूल में राखी बंधवाने गए सीआरपीएफ जवानों ने 16 छात्राओं के साथ अश्लील हरकतें कीं।
19 सितंबर को शाहजहांपुर जिले (उत्तर प्रदेश) के एक गन्ने के खेत में एक 12 वर्षीय दलित बच्ची का शव मिला। जांच से पता चला कि छठी कक्षा की इस छात्रा का बलात्कार हुआ, उसके अनेक अंग बहुत क्रूरता से क्षत-विक्षत किए गए तथा फिर बच्ची की हत्या कर दी गई। उसके शरीर पर काटे जाने के निशान भी पाए गए। जाँच करने वाले अधिकारी ने बताया कि वह स्वयं भयंकर क्रूरता के निशान देखकर बहुत दुखी हुआ। उसने इस घटना की तुलना निर्भया जैसी क्रूरता से की। उसने बताया कि बच्ची को असहनीय दर्द सहना पड़ा है व उसकी हड्डियां तक तोड़ी गई है। यह बच्ची पशुओं के लिए चारा लेने गई थी।
19 सितंबर को सीकर से एक शर्मनाक खबर मिली कि एक स्कूल छात्रा से उसके दो अध्यापकों ने दो महीनों तक लगातार रेप किया। जब उसे गर्भ ठहर गया तो इन्हीं अध्यापकों ने उसे गर्भपात करवाने को मजबूर किया, जिससे छात्रा का स्वास्थ्य बहुत बिगड़ गया। हद तो तब हो गई जब गर्भपात के समय छात्रा और उसके परिवार के सदस्यों को पता तक नहीं चलने दिया गया कि क्या हो रहा है।
1 नवंबर को भोपाल में दिन के समय काफी भीड़-भाड़ वाले इलाके में एक युवती के साथ 2 से 3 घंटे तक निर्मम बलात्कार किया गया। इसी दिन दिल्ली में एक व्यक्ति ने डेढ़ वर्षीय बच्ची से बलात्कार किया, वह भी अपने बच्चों के सामने। मात्र दो-तीन महीनों के दौरान इतनी अधिक असहनीय हद तक क्रूर यौन हिंसा की घटनाओं के बावजूद हमारे समाज में चुप्पी क्यों है? क्या पांच वर्षों में केवल एक बार किसी विशेष परिस्थितियों में समाज की चेतना जागती है? ऐसी घटनाओं को पाशविक बताना उचित नहीं होगा, क्योंकि प्रायः पशु कभी ऐसी नीचता करते नहीं पाए गए हैं। उनका व्यवहार प्रायः इससे कहीं अधिक सभ्य होता है।
समाज की चुप्पी, सत्ताधारियों की चुप्पी का कहीं यह अर्थ तो नहीं कि वे इन घटनाओं के प्रति अपनी जिम्मेदारी से पल्ला झाड़ना चाहते हैं। शायद वे चाहते हैं कि इसे मात्र कुछ अपराधियों के बहुत क्रूर व्यवहार की छिटपुट वारदातें बता कर व्यापक जिम्मेदारी से ध्यान हटा दिया जाए। पर हकीकत तो यह है कि जिस समाज में इतनी दर्दनाक वारदातें बार-बार हो रही हैं, वह समाज उनकी जिम्मेदारी से मुंह नहीं फेर सकता है और न ही सरकार मुंह फेर सकती है।
ऐसी अनेक वारदातों में नशा और शराब एक मुख्य कारक के रूप में उभर रहे हैं। शराब के ठेकों व दुकानों को दूर-दूर फैलाने के लिए कौन जिम्मेदार है। एक अन्य बड़ा कारण पोर्नोग्राफी के तेज प्रसार के रूप में सामने आ रहा है। पोर्नोग्राफी के तेज प्रसार को न रोक पाना किसकी विफलता है। एक अन्य बड़ा कारण यह उभर कर आ रहा है कि पुरुषों, विशेषकर युवाओं को जेंडर या लैंगिक संबंधों के मामले में संवेदनशील बनाने के बहुत कम प्रयास हुए हैं। इसके लिए कौन जिम्मेदार है?
एक बड़ी चुनौती यह है कि जेंडर संबंधों पर समाज में स्वस्थ सोच विकसित हो, पर इस दिशा में अभी बहुत कुछ करना शेष है। अब समय आ गया है कि समाज व सरकार इस संदर्भ में अपनी व्यापक जिम्मेदारियों को स्वीकार करें और सुनियोजित और योजनाबद्ध ढंग से इस तरह कार्य करें जिससे अपेक्षाकृत कम समय में यौन हिंसा को न्यूनतम किया जा सके।
Published: 12 Dec 2017, 5:11 PM IST
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Published: 12 Dec 2017, 5:11 PM IST