गत 6 जुलाई (2023) को मध्य प्रदेश के सीधी में प्रवेश शुक्ला नाम के एक बीजेपी कार्यकर्ता ने एक आदिवासी युवक पर पेशाब कर दिया। प्रवेश उस इलाके के बीजेपी विधायक का नजदीकी है। प्रवेश के इस कुकृत्य का उसके दोस्त दीप नारायण साहू ने वीडियो बना लिया। जिस आदिवासी पर प्रवेश ने पेशाब किया था वह तो डर के मारे चुप रहा परन्तु किसी दूसरे ने यह वीडियो वायरल कर दिया।
वीडियो के वायरल होने के बाद मचे बवाल को ठंडा करने के लिए मुख्यमंत्री ने दशमथ को अपने घर बुलवाया, उसे माला पहनाई, उसके पैर धोए और उसे पैसे भी दिए। शिवराज चौहान ने दावा किया कि पीड़ित का नाम दशमथ रावत है। दशमथ ने इसका खंडन किया है। मुख्यमंत्री ने घटना के पीछे जातिवाद होने से इंकार किया। उन्होंने कहा कि अपराधियों की कोई जाति नहीं होती। परन्तु सच यह है कि यह घटना आदिवासियों के दमन और उच्च जातियों के अहंकार का जीता-जागता उदाहरण है।
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मुख्यमंत्री ने प्रवेश शुक्ला के घर बुलडोजर भी भेजे और उसके घर का अवैध हिस्सा गिरा दिया गया। मध्य प्रदेश में चुनाव नजदीक हैं और ऐसे में मुख्यमंत्री का प्रायश्चित की मुद्रा में आ जाना आश्चर्यजनक नहीं है। और ना ही दशमथ के पैर धोना, उसे माला पहनाना और उसे पैसे देना आश्चर्यजनक है। इस कुत्सित घटना पर जानीमानी भोजपुरी गायिका नेहा सिंह राठौर ने एक कार्टून सोशल मीडिया पर पोस्ट किया। इसके बाद उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज कर ली गयी।
यह घटना बताती है कि मध्य प्रदेश और देश के दूसरे हिस्सों में आदिवासियों की क्या स्थिति है। आदिवासियों पर अत्याचार की घटनाएं होती ही रहतीं हैं। मध्य प्रदेश की कुल आबादी में आदिवासियों का प्रतिशत 21 है। दशमथ कोल आदिवासी है, जो प्रदेश की तीसरी सबसे बड़ी जनजाति है। राज्य में 47 विधानसभा क्षेत्रों और सात लोकसभा क्षेत्रों में आदिवासी वोट महत्वपूर्ण है। पिछले चुनाव में कांग्रेस को आदिवासी इलाकों में बहुमत मिला था और इसके चलते ही कमलनाथ मुख्यमंत्री बन सके थे। यह अलग बात है कि ‘ऑपरेशन कमल’ के तहत, कमलनाथ की सरकार को गिरा दिया गया और शिवराज मुख्यमंत्री बने।
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आदिवासियों के मामले में बीजेपी की दोहरी नीति है। ऐसा दावा किया जाता है कि आदिवासी हिन्दू हैं। सच यह है कि आदिवासियों की संस्कृति एकदम अलग है और वे अपनी आस्थाओं और धर्म को एकदम अलग नजरिए से देखते हैं। बीजेपी के पितृ संगठन आरएसएस ने आदिवासियों का हिन्दुकरण करने और उन्हें संघ के झंडे तले लाने के लिए वनवासी कल्याण आश्रम की स्थापना की थी। संघ परिवार उन्हें आदिवासी नहीं कहता। वह केवल उन्हें वनवासी बताता है। कारण यह कि हिन्दू राष्ट्रवाद की पूरी इमारत इस नींव पर टिकी हुई है कि भारत भूमि में हिन्दू अनादि काल से रह रहे हैं। ऐसे में अगर आदिवासियों को इस देश का मूल निवासी मान लिए जायेगा तो हिन्दू राष्ट्रवाद की इमारत भरभरा कर गिर जाएगी।
वनवासी कल्याण आश्रम खासा सक्रिय रहा है, विशेषकर गुजरात के डांग, मध्य प्रदेश के झाबुआ और ओडिशा के कंधमाल इलाकों में। इन इलाकों में विभिन्न सांस्कृतिक उपायों के जरिये वह ब्राह्मणवाद को फैलाने का प्रयास कर रहा है। कुछ आदिवासियों नायकों को चुन कर उनका जबरदस्त महिमामंडन किया जा रहा है। डांग में शबरी मंदिर बन गए हैं, शबरी कुम्भ आयोजित होते हैं और भगवान हनुमान को आदिवासियों के सबसे बड़े देव के रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है। कंगाल और बदहाल शबरी को आदिवासियों की नायिका के रूप में प्रस्तुत करने का उद्देश्य शायद यह है कि उन्हें अपनी वंचना और निर्धनता पर कोई आपत्ति नहीं होनी चाहिए।
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रामायण के अनुसार शबरी ने भगवान राम को इसलिए बेर खिलाए क्योंकि उसकी माली हालत ऐसी थी ही नहीं कि वह अपने मेहमान को कुछ और परोस सकती। डांग और मध्य प्रदेश के आदिवासी जिलों में शबरी कुंभ इसलिए आयोजित किए जा रहे हैं ताकि आदिवासियों को सांस्कृतिक दृष्टि से हिन्दुत्व से जोड़ा जा सके। भगवान हनुमान को भी आदिवासियों के देव के रूप में प्रतिष्ठित किया जा रहा है। हमें इस बात पर विचार करना होगा कि क्या कारण है कि बीजेपी-आरएसएस आदिवासी इलाकों में हनुमान की भक्त है और गैर-आदिवासी इलाकों में राम की।
इसके अतिरिक्त आदिवासी क्षेत्रों में आदिवासी नायकों को मुसलमानों के विरोधी या शत्रु के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। राजभर समुदाय के मामले में सुहेल देव को भी इसी उद्देश्य से नायक निरूपित किया जा रहा है। मध्य प्रदेश में वीरांगना दुर्गावती गौरव यात्रा निकाली जा चुकी है और एक अन्य आदिवासी, रानी कमलापति का भी महिमामंडन किया जा रहा है। भोपाल के हबीबगंज रेलवे स्टेशन को रानी कमलापति का नाम दे दिया गया है और उन पर केन्द्रित एक संग्रहालय स्थापित किया जा रहा है। राज्य में कोल जयंती महाकुंभ का आयोजन भी किया जा चुका है जिसका उद्धेश्य इस समुदाय को बीजेपी के पक्ष में मतदान करने के लिए प्रेरित करना और उसे उच्च जातियों की राजनीति का हिस्सा बनाना था।
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वनवासी कल्याण आश्रम इन समुदायों में सेवा कार्य भी कर रहा है। कुल मिलाकर उन्हें हिन्दू उच्च जातियों के संस्कारों, प्रथाओं और परंपराओं का पालन करने के लिए प्रेरित किया जा रहा है। इसके समानांतर आदिवासी क्षेत्रों में काम कर रही ईसाई मिशनरियों को निशाना बनाया जा रहा है। ईसाई मिशनरियां मुख्यतः स्वास्थ्य और शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रही हैं जिसके चलते आदिवासी उनकी ओर आकर्षित हो रहे हैं। शिक्षा आदिवासियों को सशक्त कर रही है। ईसाई मिशनरियों के विरूद्ध हिंसा बीच-बीच में भीषण स्वरूप ले लेती है। ऐसी घटनाओं में झाबुआ में ननों के साथ बलात्कार, ओडिशा में पॉस्टर स्टेन्स की जिंदा जलाकर हत्या और अगस्त 2008 में कंधमाल में हुई हिंसा शामिल है।
मध्य प्रदेश के सीधी जिले के मूत्र विर्सजन कांड से यह साफ है कि जातिगत ऊच-नीच का अब भी हमारे समाज में बोलबाला है। अन्य हाशियाग्रस्त समुदायों की तरह आदिवासी भी बदहाल हैं। संघ परिवार आदिवासियों के सशक्तिकरण में तनिक भी रूचि नहीं रखता। ऊंची जातियों और समृद्ध वर्ग का आतंक इतना ज्यादा है कि आदिवासियों के विरूद्ध हिंसा, अत्याचार और दमन के मामले दर्ज ही नहीं किए जाते।
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नेशनल कोइलिशन फॉर स्ट्रेन्थरिंग एससीज़ एंड एसटीज़ के अनुसार एससी-एसटी अत्याचार निवारण अधिनियम, संवैधानिक प्रावधानों और अदालतों के दिशानिर्देशों के बावजूद पूरे देश में दलित और आदिवासी समुदाय सबसे बदहाल हैं। वे न केवल जाति प्रथा के शिकार हैं वरन् उन्हें संस्थागत भेदभाव और सामाजिक बहिष्करण का सामना भी करना पड़ता है। कोइलिशन की रिपोर्ट के अनुसार सन् 2021 में अनुसूचित जातियों पर अत्याचार की घटनाओं में 6.4 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है। सन् 2021 में ऐसी घटनाओं में से सबसे अधिक 29.8 प्रतिशत मध्य प्रदेश में हुईं। इसके बाद राजस्थान (24 प्रतिशत) और ओडिशा (6.4 प्रतिशत) थे।
बीजेपी और उसके संगी-साथी केवल भावनात्मक और प्रतीकात्मक अभियानों से आदिवासियों के वोट हासिल करना चाहते हैं। वे उनका हिन्दूकरण तो करना चाहते हैं, परंतु उन पर उच्च जातियों का वर्चस्व बनाए रखना चाहते हैं। एक घृणास्पद अपराध के शिकार के पैर धोना और उसके परिवार को 5 लाख रूपये देना केवल प्रतीकात्मक कार्यवाही है। संघ परिवार को आदिवासी क्षेत्रों में अपने अभियानों और कार्यों पर तनिक भी पछतावा या दुःख नहीं है।
(लेख का अंग्रेजी से रूपांतरण अमरीश हरदेनिया द्वारा)
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