विचार

देश में आर्थिक विषमता पर खड़े होते गंभीर सवाल, बढ़ती जा रही अमीरों की दौलत, गरीबों की संख्या में जोरदार उछाल

भारत में अरबपतियों और गरीबों की तादाद एक साथ बढ़ रही है। देश में गरीबों की संख्या 22.89 करोड़ हो गई है जबकि महामारी के दौरान अरबपतियों की जैसे लॉटरी लग गई। 2020 में जहां अरबपतियों की संख्या 120 थी, 2022 में यह बढ़कर 166 हो गई।

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भारत ने पिछले साल ब्रिटेन को पीछे छोड़कर दुनिया की पांचवीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था होने का गौरव पाया। विरोधाभास देखिए, इसके साथ ही भारत दुनिया के सबसे ज्यादा गरीब आबादी वाले देशों में भी है। वर्ष 2022 की विश्व असमानता रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में गरीबों की संख्या 22.89 करोड़ है। रिपोर्ट में कहा गया है कि बढ़ती गरीबों और अरबपतियों की संख्या के साथ भारत दुनिया में सबसे ज्यादा असमानता वाले देशों में शुमार है।

विश्व असमानता की पहली रिपोर्ट 2017 में आई थी और इसे लुकास चांसेल और थॉमस पिकेटी के दिशानिर्देश में तैयार किया गया था। इसमें कहा गया थाः '1922 में भारतीय आयकर अधिनियम बनने के बाद सबसे ज्यादा कमाई करने वाले 1 फीसद लोगों के खाते में राष्ट्रीय आय का हिस्सा बढ़ता गया। 1930 के दशक के उत्तरार्द्ध में इन 1 फीसद लोगों की आय 21 फीसद से कुछ ही कम थी जो 1980 के दशक के पूर्वार्ध में घटकर 6 फीसद हो गई जबकि आज यह बढ़कर 22 फीसद हो गई है।'

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सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी के अनुसार, बेरोजगारी 45 साल के अधिकतम स्तर पर है। मुद्रास्फीति 30 साल का रिकॉर्ड तोड़ रही है। महामारी के दौरान जहां आम लोगों के लिए जीना मुहाल था, वहीं कॉरपोरेट ने जमकर मलाई काटी और उनकी कमाई आसमान छूती रही। त्रासदी से कमाई करना भारतीय अरबपतियों के लिए कोई नई बात नहीं है और इसका सबूत है 2020 में अरबपतियों की संख्या के 120 से बढ़कर 2022 में 166 हो जाना। ऑक्सफैम इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, सबसे धनी 21 भारतीय अरबपतियों के पास कुल 70 करोड़ भारतीयों से ज्यादा संपत्ति है। रूस-यूक्रेन युद्ध ने भले ही सप्लाई चेन को बाधित किया हो, माल की कमी हुई हो और चीजों के दाम बढ़े हों, उद्योग के कुछ हिस्सों में लाभ में बढ़ोतरी हुई है। 

स्विट्जरलैंड के दावोस शहर में हर साल होने वाले वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की बैठक में इसी 16 जनवरी को 'सरवाईवल ऑफ द रिचेस्टः द इंडिया स्टोरी' रिपोर्ट में विषमता संबंधी अनेक महत्वपूर्ण आंकड़ों के साथ बताया गया है कि कोविड महामारी के दौरान अधिकतर लोग पीड़ा झेलते रहे लेकिन स्वास्थ्य क्षेत्र की कंपनियों ने स्थितियों का लाभ उठाया। इसने विश्व असमानता रिपोर्ट, 2022 की इस बात की पुष्टि की कि भारत अब दुनिया के सबसे अधिक असमान देशों में है; कि 'ऊपर के 10 प्रतिशत लोगों के पास कुल वार्षिक आय का 57 प्रतिशत और ऊपर के 1 प्रतिशत के पास 22 प्रतिशत जाता है, जबकि नीचे के 50 प्रतिशत लोगों के पास केवल 13 प्रतिशत आय है।'

रिपोर्ट के अनुसार, भारत में औसत पारिवारिक धन 9,83,010 है। इसने पाया कि 1980 के दशक के मध्य के बाद से लागू विनियमन (डीरेगुलेशन) और उदारीकरण की नीतियों की वजह से भारत में असमानता में तेजी से वृद्धि हुई।

असमानता को लेकर दुनिया भर की जो स्थिति है, वह बताती है कि राष्ट्रीय औसत आय स्तर असमानता का खराब पेशीनगोई करने वाला है- ऊंची आय वाले देशों में कुछ बहुत ही असमान हैं (जैसे, अमेरिका) जबकि अन्य तुलनात्मक तौर पर समान हैं (स्वीडन)। विश्व असमानता रिपोर्ट ने पाया कि 'निम्न और मध्य-आय देशों के बीच भी यह बात सच है- इनमें कुछ में अत्यधिक असमानता है (ब्राजील और भारत), कुछ में उच्च स्तर का है (चीन) और कुछ में सामान्य से अपेक्षाकृत निचले स्तर पर हैं (मलेशिया, उरुग्वे)।'

विश्व असमानता रिपोर्ट ने यह भी बताया कि भारत बढ़ती असमानता का आकलन करने और उन पर निगाह रखने के लिए पर्याप्त आंकड़े तक पहुंच देने से मना कर रहा है। जबकि भारत के पास हाल तक विकासशील देशों में सबसे अच्छी आंकड़ागत व्यवस्था हुआ करती थी।

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ऑक्सफैम भारत की रिपोर्ट 'सरवाईवल ऑफ द रिचेस्टः द इंडिया स्टोरी' धनी लोगों पर टैक्स लगाने और आम लोगों द्वारा उपयोग की जाने वाली वस्तुओं पर टैक्स की दर कम करने की बढ़ती जरूरत के बात को प्रमुख रूप से सामने लाती है। इसके कुछ निष्कर्ष की आलोचना की गई है, प्राथमिक तौर पर इसलिए कि उपभोक्ता आंकड़ा 2011-12 पर निर्भर है। ठीक है कि एक दशक पुराने आंकड़े वर्तमान असलियत को सामने नहीं ला सकते हैं, वे स्थितियां सामने तो लाते ही हैं; और वैसे भी, बाद के वर्षों के उपभोक्ता आंकड़े सार्वजनिक तौर पर उपलब्ध नहीं हैं।

ऑक्सफैम इंडिया की रिपोर्ट बताती है कि 'हम कर लगाने के प्रगतिशील तरीके की वकालत करते हैं, खास तौर से इसलिए कि सरकार ने महामारी के वर्षों के बाद से अप्रत्यक्ष करों से अधिक आय अर्जित किया है। 2020-21 के बाद से सरकारी राजस्व में अप्रत्यक्ष करों का हिस्सा 50 प्रतिशत अधिक बढ़ गया है। हिस्से में यह बढ़ोतरी अधिकतर हाईड्रोकार्बन टैक्स कलेक्शन में बढ़ोतरी की वजह से है। जीएसटी व्यवस्था के अंतर्गत, सरकार के कुल राजस्व में कॉरपोरेट टैक्स में गिरावट हुई है। पर्यवेक्षकों का तर्क है कि यह भविष्य में असमानता बढ़ाने वाली हो सकती है।'

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रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि 2022-23 में देश के राजस्व का 19.34 लाख करोड़ जो कुल राजस्व का 88 प्रतिशत है, टैक्सों से आने का अनुमान है। धनी लोगों और निगमों पर टैक्स लगाने में विफलता न सिर्फ असमानता कम करने का छूट गया अवसर है- यह इसे और अधिक कर देगा। इसका तो अर्थ यह होगा कि सरकार या तो समाज के शेष हिस्से पर टैक्स लगाए या स्वास्थ्य, शिक्षा और अन्य नागरिक सेवाओं तथा वैसी सामाजिक सुरक्षा पर खर्च कम करे जो असमानता में कमी में मददगार हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि 'जीएसटी लागू किए जाने के बाद से कुल सकल कर राजस्व प्राप्ति के प्रत्यक्ष कर का हिस्सा 2020-21 में 5 प्रतिशत तक कम हो गया। इसी तरह, सकल कर राजस्व के प्रतिशत के तौर पर कॉरपोरेट टैक्स से राजस्व 8 प्रतिशत तक कम हो गया। यह बताता है कि अप्रत्यक्ष करों पर निर्भरता बढ़ी है।' अपनी मानव विकास रिपोर्ट में संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (यूएनडीपी) ने बताया है कि 'अपने जीडीपी के सिर्फ चार प्रतिशत से भारत अपने सभी नागरिकों को आम पेंशन, मूलभूत स्वास्थ्य सेवाएं, बाल सुविधाएं और रोजगार योजनाओं-जैसी सामाजिक सुरक्षा गारंटी का आधारभूत और शालीन रूप उपलब्ध करा सकता है।'

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'सरवाईवल ऑफ द रिचेस्ट' रिपोर्ट पर चर्चा इस तरह के दावों की वजह से भी हो रही हैः

  • कुल जीएसटी का 64.3 प्रतिशत सबसे नीचे 50 प्रतिशत भारतीयों से आ रहा है जबकि जीएसटी का तीन से चार प्रतिशत ऊपर के 10 प्रतिशत से आ रहा है

  • आबादी के नीचे का आधा हिस्सा- सबसे गरीब भारतीयों का 50 प्रतिशत- अपनी आय का अधिक प्रतिशत अप्रत्यक्ष करों पर खर्च करता है

  • अखिल भारतीय स्तर पर आबादी के नीचे का 50 प्रतिशत ऊपर के 10 प्रतिशत की तुलना में आय के प्रतिशत के खयाल से अप्रत्यक्ष कर पर छह गुना अधिक भुगतान करता है

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ऑक्सफैम (इंडिया) के सीईओ अमिताभ बेहर कहते हैं कि बहुत अधिक असमानता, निचले स्तर पर बहुत अधिक परेशानी और ऊपर में बहुत अधिक धन जारी नहीं रहना चाहिए। वह कहते हैं कि खुद केन्द्र सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया है कि 2022 में 5 वर्ष से कम आयु के बच्चों में से 65 फीसद की मौत कुपोषण से हुई है।

केन्द्रीय वित मंत्री निर्मला सीतारमन ने अभी जो बजट पेश किया है, उसमें भी रिपोर्ट के इन सुझावों/ सिफारिशों की अधिकतर अनदेखी ही की हैः

  • धनी वर्ग पर टैक्स बढ़ाकर उनसे समुचित हिस्सा प्राप्त किया जाए

  • एक प्रतिशत धनी व्यक्तियों की संपत्ति पर स्थायी तौर पर कर लगाना चाहिए और अत्यधिक धनी व्यक्तियों से अधिक कर प्राप्ति पर समुचित ध्यान देना चाहिए

  • संपत्तिकर और इनहेरिटेंस टैक्स जैसे टैक्स लाएं जिससे विषमता कम हो

  • स्वास्थ्य के लिए बजट आवंटन जीडीपी का 2.5 प्रतिशत और शिक्षा के लिए बजट आवंटन जीडीपी का 6 प्रतिशत होना चाहिए।

भारत डोगरा कैम्पेन टु सेव अर्थ नाउ के मानद संयोजक हैं।

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