आजकल के बच्चे बहुत बिगड़ चुके हैं, कोई तमीज ही नहीं रही! लिहाज करना तो बिल्कुल नहीं जानते! उस प्रदेश तक कि यह हालत पिछले चार साल में हो चुकी है, जहां के मोदीजी स्वयं करीब तेरह साल तक मुख्यमंत्री रहे! वो वहां से हटे कि चलो, अब देश का भी 'कल्याण' कर देते हैं तो देश का तो खैर उनके प्रयासों से बहुत ही ज्यादा 'कल्याण' हो चुका है मगर उधर गुजरात का बहुत 'अकल्याण' हो चुका है! मोदीजी की फिर से वहां जरूरत है!
अब देखिए न, प्रधानमंत्री जी तो 'कृपापूर्वक' काठियावाड़ के एक जूनियर स्कूल में गए थे कि चलो अपने राज्य के सरकारी स्कूल के गरीब बच्चों को रोजगारपरक शिक्षा का कुछ महत्व समझा देते हैं, भविष्य में ये चाय नहीं तो पकौड़ा बेचना तो सीख ही जाएंगे और टेलेंटेड होंगे तो एक ही दुकान पर दोनों बेचेंगे। और एक दिन याद करेंगे कि कभी प्रधानमंत्री उन्हें रोजगार की शिक्षा देने आए थे! मगर ये बच्चे इतने बदतमीज निकले कि मोदीजी की ही अदृश्य टोपी उछाल दी! उनसे ही तीन का पहाड़ा पूछ लिया! प्रधानमंत्री के उच्च पद का जरा भी ख्याल नहीं रखा! अरे मोदीजी को तीन का पहाड़ा ही याद रखना-रखवाना होता तो वह प्रधानमंत्री बनने की तकलीफ़ क्यों उठाते? स्कूल मास्टर बनकर आज रिटायरमेंट के मजे ले रहे होते। इधर पेंशन लेते और उधर पिताजी की चाय की दुकान भी चलाते! एक पंथ दो काज हो जाते!
लेकिन उन्हें तो प्रदेश और देश के भविष्य की बेहद चिंता थी, इन्हें अपनी आंखों के सामने बर्बाद होते कैसे देख सकते थे और अगर इन्हें बर्बाद किसी न किसी को करना ही है तो यह शुभकार्य उनके अपने करकमलों से क्यों न हो, इसका श्रेय दूसरे क्यों ले उड़ें? अपना यह जन्म व्यर्थ क्यों जाने दें? उन्हें यह फिक्र इतनी ज्यादा थी कि छोड़ मास्टरों के भरोसे तीन का पहाड़ा, लग गये 'सबका साथ, सबका विकास' करने में और देखिए अभी तो चुनाव में एक साल से भी कुछ ज्यादा समय बाकी है मगर अभी से हो गया न 'सबका साथ, सबका विकास'। कुछ बाकी रह गया है क्या? सच्चाई तो यह है कि समस्या अब यह आ रही है कि बाकी बचे एक साल में क्या करें? निठल्ले तो बैठ नहीं सकते! तो करेंगे कुछ ऐसा कि पूरा देश रह जाए ठगा का ठगा!
तो बात गुजरात के छात्रों के 'पतन' की हो रही थी। इतना ज्यादा 'पतन' कि मोदीजी जैसे फेमस प्रधानमंत्री से बच्चों ने तीन का पहाड़ा पूछ लिया? अरे तीन का क्या तीन या तीस हजार करोड़ का पहाड़ा पूछते तो वह फौरन बता देते! तीस हजार तिया पर वह बिल्कुल नहीं अटकते-भटकते! इतने फर्राटे से सुनाते कि बच्चे सुनते-सुनते थक जाते मगर मोदीजी नहीं थकते! लेकिन पूछ लिया तीन का पहाड़ा! प्रधानमंत्री को इससे इतना सदमा लगा, इतना लगा कि क्या बताएं? क्या मोदी-युग में भी बच्चे तीन के पहाड़े से आगे नहीं बढ़ पाए हैं? देश में करोड़ों-अरबों के घोटाले हो रहे हैं और हमारे बच्चे तीन के पहाड़े पर अटके हैं! क्या हो गया है गुजरात को? और अगर यह हाल गुजरात का है, तो देश का क्या होगा? इस सदमे के कारण ही वह दरअसल रटारटाया पहाड़ा भूल गए! ऐसा थोड़े ही है कि पीएम को तीन का पहाड़ा नहीं आता, उन्हें तो इस घटिया सोच पर इतना गुस्सा आया, उनके अंदर-अंदर इतनी आग लग गई कि सोचा, अब तो चाहे जो हो जाए, जिसे हंसना हो हंस ले, मगर मैं अपने पद की गरिमा गिरने नहीं दूंगा, तीन का पहाड़ा पूरा तो बिल्कुल ही नहीं सुनाऊंगा। इसलिए बच्चे कहते रहे 'सुनाओ-सुनाओ' मगर उन्होंने तीन तिया के बाद नहीं सुनाया तो नहीं सुनाया! बच्चे मजाक उड़ाते रहे कि तीन का पहाड़ा भी आपको याद नहीं है मगर उन्होंने अपना अपमान सह लिया मगर पद की प्रतिष्ठा नहीं गिरने दी! इसे ही कहते हैं सच्चा, देशभक्त प्रधानमंत्री!
वैसे मोदीजी पर सारे आरोप लगाए जा सकते हैं मगर पद की 'प्रतिष्ठा' उन्होंने कभी भी, कहीं भी गिरने दी क्या? गिरने दी क्या? अरे कोई तो बोलो, अपना मुंह खोलो कि नहीं गिरने दी! गूंगे हो गए हो क्या? बोलना भूल गए हो? गुजरात तक में बच्चे प्रधानमंत्री के पद की गरिमा गिरा रहे हैं और भक्तों तुम भी आज तक चुप हो? अगर ऐसी बदतमीजी प्रधानमंत्री के साथ उनके अपने राज्य में बच्चे तक कर सकते हैं तो पता नहीं कल बाकी देश में क्या होगा?
मैं भारत का नागरिक प्रधानमंत्री से लेकर गुजरात के मुख्यमंत्री और यहां तक कि उस स्कूल के प्रिंसिपल साहब को भी धन्यवाद देता हूं कि उन्होंने ऐसे बदमाश बच्चे को स्कूल से निकलवा दिया, जिसने तीन का पहाड़ा पूछने कि हिमाकत की थी। बचपन से ही जो इतने विध्नसंतोषी हो जाते हैं, पता नहीं आगे चलकर क्या गुल खिलाएं? ऐसों को तो समय रहते ही सबक सिखा देना चाहिए। देश आभारी है आप सबका, आपके इस रहमो-करम का! इससे सबको पता चलेगा कि यह भी 'सबका साथ, सबका विकास' करने का एक उपाय है, सलीका है, टेक्निक है। नेहरू जी बच्चों की आंखों में देश का भविष्य देखते थे, अब मोदीजी को देश का 'भविष्य' बच्चों की जुबान में दिखने लगा है तो इसका मतलब है कि 'प्रगति' तो वास्तव में हो रही है, लोगों को दीख नहीं रही है, यह लोगों की समस्या है। क्यों गलत तो नहीं कहा?
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