पता नहीं, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत कहना क्या चाहते हैं? उन्होंने दशहरे के दिन शस्त्र पूजा के बाद स्वयंसेवकों को संबोधित करते हुए कहा कि “भीड़ हत्या, यानी माॅब लिंचिंग पश्चिमी तरीका है और देश को बदनाम करने के लिए भारत के संदर्भ में इसका इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। लिंचिंग शब्द की उत्पत्ति भारतीय लोकाचार से नहीं हुई है और ऐसे शब्दों को भारतीयों पर न थोपें”।
सतही तौर पर उनका यह बयान ठीक लग सकता है। लेकिन क्या सुनने वाला यह नहीं सोचेगा कि भीड़ हत्या बेशक पश्चिमी तरीका हो लेकिन इसका सबसे ज्यादा इस्तेमाल पिछले कुछ समय में भारतीय समाज में देखने को क्यों मिल रहा है? जितनी भीड़ हत्याएं भारत में पिछले कुछ समय में हुई हैं, उतनी संभवतः 70 साल के इतिहास में नहीं हुई होंगी। इसके निहितार्थ क्या हो सकते हैं?
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अगर देश में कहीं भी भीड़ हत्या होती है तो हर संवेदनशील आदमी पीड़ित हो उठता है। यह अमानवीयता की पराकाष्ठा है। लेकिन जिस तरह भारतीय राजनीति में इसे संरक्षण दिया जा रहा है, उसके परिणाम घातक होंगे। सत्ता पक्ष की पूरी मंडली को अलग-अलग रोल दे दिए गए हैं। वे सब अपनी-अपनी भूमिका निभा रहे हैं। मोहन भागवत का यह बयान वास्तव में लोगों का ध्यान भंग करने के लिए है।
वह शायद यह कहना चाहते हैं कि मॉब लिंचिंग की जगह कोई दूसरा शब्द तलाश करो, अब सब लोग उसमें लग जाएंगे। उन्होंने मॉब लिंचिंग से मरने वाले किसी व्यक्ति के प्रति कोई सहानुभूति प्रकट नहीं की है। व्यवहार में भी हमें साफ दिखाई पड़ रहा है कि एक बड़ा तबका मॉब लिंचिंग करने वालों के पक्ष में खड़ा है। ऐसा करने वालों का समाज में स्वागत किया जा रहा है। ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। मोहन भागवत के इस बयान का निहितार्थ यही है कि हम इसे संरक्षण देते रहेंगे। जाहिर है, बीजेपी और उसके सिपहसालार देश को इन्हीं मुद्दों में उलझाए रखना चाहते हैं।
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गांधी जयंती के मौके पर भी मोहन भागवत ने एक बयान में कहा था कि गांधी जी राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की बैठक में दो बार आए। यह पूरा संगठन, इसके लोग- सभी मिल-जुलकर गांधी को अपने रास्ते से हटाने पर तुले हैं। इसके लिए ये सारे अर्द्धसत्य बोल रहे हैं। भागवत का यह कहना सच है कि गांधी जी संघ की बैठक में गए थे, लेकिन इसके साथ ही यह भी सत्य है कि गांधी ने संघ के बारे में कहा था कि अनुशासन तो इटली के तानाशाह मुसोलिनी की पार्टी में भी बहुत था। लेकिन इस बात का उल्लेख मोहन भागवत नहीं करेंगे।
अगर आप ध्यान से देखें तो पिछले 6 सालों में सत्ता पक्ष ने गांधी को खत्म करने की अपनी रणनीति को ही आगे बढ़ाया है। एक तरफ गोडसे समर्थकों को आगे बढ़ाया जा रहा है तो दूसरी तरफ गांधी की बात की जा रही है। विदेशों में गांधी का नाम लेना इनकी मजबूरी है क्योंकि उनके पास अपना या अपनी पार्टी का कोई नाम नहीं है। बीजेपी और संघ अंदर से गांधी को कभी स्वीकार नहीं कर पाते। अगर कर पाते या उनके अंदर ईमानदारी होती, तो इनका स्वरूप अलग होता। गांधी का पूरा जीवन सादगी से भरा था और इनका दिखावे पर आधारित है। इसलिए उन्होंने गांधी को रास्ते से हटाने का पूरा इंतजाम कर लिया। लेकिन गांधी को हटाना इतना आसान नहीं है। पूरी दुनिया में जहां-जहां निर्बलों की लड़ाई हो रही है, जहां कहीं भी थोड़ी-बहुत संवेदनशीलता बची हुई है, मानवीय मूल्यों के प्रति आस्था बची हुई है, वहां-वहां गांधी दोबारा उठ खड़े हो रहे हैं।
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इनकी रणनीति यही है कि गांधी का अपने पक्ष में इस्तेमाल कर लिया जाए। मोहन भागवत का बयान भी उसी कोशिश का परिणाम है। एक कोशिश यह हो रही है कि ये लोग गांधीजी को बहुत मानते हैं। एक और बात हवा में तैर रही है कि गांधी जी के साबरमती के इर्द-गिर्द विशाल भवन खड़े किए जाएंगे और भव्यता दिखाई जाएगी, बड़े-बड़े निर्माण किए जाएंगे और ये कहेंगे और पूरी दुनिया को दिखाएंगे कि देखिए, हमने गांधी को कितना भव्य रूप दिया है। ये कहेंगे कि देखिए, हमने साबरमती को कितना आकर्षक बना दिया और पूरी दुनिया से लोग यहां देखने को आते हैं। जो भी उनकी इस योजना का विरोध करेगा, उसे ये गांधी विरोधी कह देंगे। लेकिन वे यह भूल जाते हैं कि गांधी ने सेवाग्राम में कुटिया बनाई थी और उसमें यह मर्यादा थी कि इतनी रेडियस में उपलब्ध सामान का ही प्रयोग हो। लेकिन वर्तमान सरकार साबरमती को भव्य रूप देना चाहती है। गांधी जी इस तरह के दिखावे के सर्वथा विरोधी थे।
साबरमती में ही गांधी ग्रामोद्योग प्रयोग समिति है। 30-35 एकड़ में फैली इस प्रयोगशाला में उपयांत्रिकी को विकसित किया जाता रहा है जिसके गांधी जी समर्थक थे। इन सब लोगों को नोटिस आ गया है और सरकार इसे अपने कब्जे में लेना चाहती है। एक और बात यहां ध्यान देने योग्य है। गांधी संस्थानों से जुड़े अधिकांश लोगों को यह लगने लगा है कि सरकार की नीयत ठीक नहीं है। लेकिन यह अच्छी बात है कि अभी सरकार ने गांधी की विरासत को नहीं छुआ है। लेकिन डर है कि एक-न-एक दिन तो उसे भी नष्ट किया ही जाएगा।
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गांधी जी की 150वीं जयंती पर केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने संकल्प यात्रा शुरू करने का ऐलान करते हुए कहा कि गांधी जी स्वच्छता के आग्रही थे। आजादी के बाद सिर्फ नरेंद्र मोदी ऐसे प्रधानमंत्री हैं, जिन्होंने स्वच्छता को जन आंदोलन बनाया। उन्होंने देशभर में बीजेपी कार्यकर्ताओं से 31 अक्टूबर तक गांधीजी के मूल्यों को जन-जन तक पहुंचाने का आह्वान किया। अमित शाह ने कहा है कि बीजेपी कार्यकर्ता स्वदेश, स्वधर्म, स्वभाषा और स्वदेशी के मूल्यों को गांव-गांव और घर-घर तक पहुंचाने का काम करेंगे।
यह देश की बेबसी और मजबूरी ही है। यह विडंबना ही है कि महात्मा गांधी के मूल्यों के एकदम विपरीत चलने वाले ही आज लोगों को गांधी के मूल्यों पर चलने की सलाह दे रहे हैं। वास्तव में उनका लक्ष्य साफ है। गांधी को गांधी का नाम लेकर ही रास्ते से हटाओ। वे गांधी की बात करते रहेंगे, उनके दिखाए रास्तों पर चलने की बात करते रहेंगे, लगातार जनता को अर्द्धसत्य बताते रहेंगे और चाहेंगे कि गांधी का नाम सिर्फ हवा में रह जाए। लेकिन मेरा मानना है कि गांधी को हटाना इतना आसान नहीं होगा, क्योंकि वे बार-बार आ खड़े होंगे।
(सुधांशु गुप्त से बातचीत पर आधारित)
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