विचार

Russia Ukraine War: दो सैन्य महाशक्तियों के बेहद गैर-जिम्मेदाराना व्यवहार के कारण हुआ यह युद्ध!

यूक्रेन युद्ध ने दुनिया को हिला दिया है। हालांकि कुछ सप्ताहों से युद्ध के बादल घिर रहे थे, पर फिर भी युद्ध के भयानक दुष्परिणामों को देखते हुए उम्मीद थी कि समय रहते हुए स्थिति को संभाला जा सकेगा, पर अंत में युद्ध छिड़ ही गया।

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यूक्रेन युद्ध ने दुनिया को हिला दिया है। हालांकि कुछ सप्ताहों से युद्ध के बादल घिर रहे थे, पर फिर भी युद्ध के भयानक दुष्परिणामों को देखते हुए उम्मीद थी कि समय रहते हुए स्थिति को संभाला जा सकेगा, पर अंत में युद्ध छिड़ ही गया।

स्थिति बहुत गंभीर और चिंताजनक है, पर फिर भी हमें यह कहने से फिलहाल बचना चाहिए कि तीसरा महायुद्ध आरंभ होने वाला है। तनाव के समय में बढ़ा-चढ़ा कर कुछ कहने से बचना चाहिए और इस समय यह कहना अतिश्योक्तिपूर्ण ही होगा। फिर भी इसमें कोई संदेह नहीं कि स्थिति बेहद चिंताजनक है।

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आखिर हालात इस हद तक कैसे बिगड़ गए? रूस के राष्ट्रपति पुतिन जब तक यह कह रहे थे कि रूस को अपनी सुरक्षा का और अपने को नाटो की बढ़ती आक्रमकता और नजदीकी से बचाने का पूरा अधिकार है, तब तक दुनिया के बहुत से लोग उनसे पूरी सहानुभूति रखते थे। पर पुतिन की हमलावर कार्यवाही के बाद इन लोगों का सहानुभूति जारी रखना संभव नहीं हो सकेगा और स्थिति को संभालने के स्थान पर अधिक आक्रमक बनाने की आलोचना उन्हें झेलनी पड़ेगी।

दूसरी ओर यदि कुछ समय पीछे जाकर यह समझा जाए कि यह तनाव क्यों बढ़ा तो संयुक्त राज्य अमेरिका को अधिक आलोचना सहनी पड़ेगी। एक समय ऐसा था जब शीत युद्ध के बाद अमन-शांति के नए दौर की उम्मीद की जा रही थी।

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इस समय संयुक्त राज्य अमेरिका को रूस के प्रति मित्रता और सुलह-समझौते की राह अपनानी चाहिए थी और यदि ऐसा होता तो इससे विश्व शांति और निशस्त्रीकरण में बहुत मदद मिलती। यह रूस के लिए ही नहीं संयुक्त राज्य अमेरिका के लिए भी, यूरोप और पूरे विश्व के लिए भी अच्छा होता। पर संयुक्त राज्य अमेरिका ने यह नीति नहीं अपनाई और रूस की कठिन स्थिति का लाभ उठाकर उसने छेड़छाड़ की, परेशान किया।

विशेषकर संयुक्त राज्य अमेरिका की इस नीति से रूस को बहुत परेशानी हुई कि जो भौगोलिक और ऐतिहासिक स्तर पर रूस के सबसे नजदीकी देश हैं और रहे हैं, उनमें अमेरिका ने पैठ की और वहां रूस-विरोधी सरकारों के गठन के प्रयास किए। ऐसे देशों को नाटो का सदस्य बनाने का प्रयास किया।

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यदि नाटो शक्तियों के मिसाईल रूस की सीमा के पास ही तैनात हो जाएं तो रूस की सुरक्षा खतरे में पड़ती है। अतः रूस ने कुछ समय तक तो इन प्रयासों का सहा पर बाद में अधिक सक्रिय रूप से इसका विरोध करना आरंभ किया।

विशेषकर यूक्रेन को लेकर रूस अधिक चिंतित रहा है। यहां अमरिका ने रूस विरोधी सरकार के गठन में सक्रिय भूमिका निभाई। इस सरकार ने रूसी मूल के नागरिकों पर अत्याचार किया। इतना ही नहीं अमेरिका ने और उसके द्वारा समर्थित यूक्रेन की सरकार ने यूक्रेन के नाजीवादी सोच के लड़ाकू व्यक्तियों और संगठनों को अधिक बढ़ावा दिया जबकि यह रूस और रूसी मूल के व्यक्तियों के विरोध में सबसे आक्रमक और कट्टर हैं।

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इन स्थितियों में रूस ने यूक्रेन के कुछ क्षेत्रों पर अपना नियंत्रण पहले भी बढ़ाया था और हाल में भी इस दिशा में कदम उठाए थे। पर हमले के बाद स्थिति बदल गई है और पुतिन को भी आक्रमकता के लिए पहले से कहीं अधिक आलोचना सहनी पड़ी है।

वास्तव में इस हमले से रूस को भी दीर्घकालीन स्तर पर हानि हो सकती है क्योंकि यूक्रेन में रूस के विरोध का आधार अधिक व्यापक होगा।

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पूरे विश्व स्तर पर देखें तो इस समय विश्व बहुत गंभीर समस्याओं के जूझ रहा है जैसे जलवायु बदलाव और महाविनाशक हथियारों का एकत्र होना। युद्ध और तनाव के माहौल में इन सभी गंभीर समस्याओं के समाधान पीछे छूट जाएंगे और विश्व में सैन्यकरण बढ़ जाएगा। अल्प-कालीन स्तर पर महंगाई बढ़ेगी और महामारी के कारण पहले से संकट में पड़ी अनेक देशों की अर्थव्यवस्था की कठिनाईयां बढ़ जाएंगी।

बड़े विश्व तनावों को सुलझाने में संयुक्त राष्ट्र संघ को हाल के समय में कोई बड़ी सफलता तो नहीं मिली है, पर फिर भी उसे भरपूर प्रयास अवश्य करने चाहिए कि यह युद्ध शीघ्र समाप्त हो। इसके अतिरिक्त भारत सहित विश्व के अन्य प्रमुख देशों को भी इस दिशा में भरपूर प्रयास करने चाहिए।

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