पहले ही दुनिया खाद्य सुरक्षा को लेकर परेशान थी, अब यूक्रेन की लड़ाई ने इसे और बढ़ा दिया है। पिछले दो साल में महामारी की वजह से दुनिया में करीब दस लाख से ज्यादा और लोग उस सूची में शामिल हो गए हैं, जिन्हें आधा पेट भोजन ही मिल पाता है। इस समस्या का सामना दुनिया कर ही रही थी कि लड़ाई ने नए संकट को जन्म दे दिया। सप्लाई लाइन प्रभावित हो गई और कीमतें बढ़ गईं। कृषि अनुसंधान भी प्रभावित हुआ है जो अन्न की उत्पादकता को बढ़ाने के लिए जरूरी है।
न्यूयॉर्क टाइम्स की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले दो महीनों में दर्जनों देशों ने अपनी अन्न आपूर्ति को सुनिश्चित करने के लिए कई प्रकार की कारोबारी बाधाएं खड़ी कर दी हैं। यूक्रेन ने सूरजमुखी के तेल, गेहूं और ओट्स के निर्यात को तो रूस ने उर्वरकों, चीनी और अनाजों की बिक्री रोक दी है। दुनिया का करीब आधा पाम ऑयल सप्लाई करने वाले इंडोनेशिया ने सप्लाई रोक दी है। तुर्की ने मक्खन, बीफ, लैम्ब, बकरियों, मक्का और वनस्पति तेलों का निर्यात बंद कर दिया है। कारोबारी संरक्षणवाद नए रूप में सामने आ रहा है।
इन देशों की निर्यात पाबंदियों के कारण अनाजों, खाद्य तेलों, गोश्त और उर्वरकों की कीमतें तेजी से बढ़ी हैं। अंतरराष्ट्रीय व्यापार और आर्थिक विकास पर नजर रखने वाले अमेरिका के सेंट गैलन विश्वविद्यालय के प्रोफेसर साइमन इवेनेट के अनुसार, इस साल विभिन्न देशों ने खाद्य सामग्री और उर्वरकों के निर्यात से जुड़ी 47 पाबंदियां लगाई हैं। इनमें से 43 यूक्रेन पर रूसी हमले के बाद की हैं।
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गैस और पेट्रोलियम की सप्लाई रुकने या कीमतें बढ़ने के कारण उर्वरकों और खेती से जुड़ी सामग्री महंगी हुई है। पोटाश और फॉस्फेट की आपूर्ति घटी है। रूस और बेलारूस पोटाश के सबसे बड़े निर्यातक हैं। उर्वरकों की आपूर्ति में बाधा पड़ने पर अन्न उत्पादन में कमी आने का खतरा भी है। संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम के कार्यकारी निदेशक डेविड बेस्ली ने हाल में कहा कि दूसरे विश्व युद्ध के बाद से हमने खाद्य-आपूर्ति पर विपरीत असर डालने वाली जो भी गतिविधियां देखी हैं, उनके मुकाबले अब जो हो रहा है, वह कहीं ज्यादा होगा।
डेविड बेस्ली ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कहा, हमारी एजेंसी इस लड़ाई के शुरू होने के पहले दुनिया के करीब 12.5 करोड़ लोगों को भोजन उपलब्ध करा रही थी। अब इसमें कटौती करनी पड़ रही है। उन्होंने युद्धग्रस्त यमन का जिक्र किया जहां 80 लाख लोगों को मुहैया कराए जाने वाले भोजन में 50 प्रतिशत कटौती की गई और अब इसे बंद करने पर विचार हो रहा है। इसका असर सबसे गरीब और कमजोर लोगों के लिए विनाशकारी साबित हो रहा है। सोमालिया, सेनेगल और मिस्र सहित कम-से-कम 26 देश, रूस और यूक्रेन के गेहूं पर 50 से लेकर 100 प्रतिशत तक निर्भर हैं। फ्री मार्केट की वकालत करने वाले अचानक अपनी और मित्र देशों की जरूरतों को पूरा करने के लिए जरूरी वस्तुओं की सप्लाई पर नियंत्रण की बातें करने लगे हैं।
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विश्व व्यापार संगठन की महासचिव एंगोजी ओकोंजो-ल्वीला ने 26 अप्रैल को कहा कि युद्ध ने वाजिब तौर पर आर्थिक परस्परावलंबन से जुड़े सवाल उठाए हैं, पर उन्होंने कहा कि वैश्विक-व्यापार प्रणाली को लेकर गहरे निष्कर्ष निकालने की जल्दबाजी न करें। सच है कि वैश्विक सप्लाई चेन में अवरोध खड़े हो रहे हैं, पर व्यापारिक गतिशीलता कायम है।
समस्या धीरे-धीरे सामने आ रही है। स्पेन, ग्रीस और ब्रिटेन के ग्रॉसरी स्टोरों ने ग्राहकों के लिए अनाजों और खाद्य तेलों की खरीद की अधिकतम सीमा तय करना शुरू कर दिया है। खाद्य सामग्री के मामले में उप-सहारा देशों की हालत सबसे खराब है। वहां लोग 40 फीसदी पैसा खाद्य सामग्री पर खर्च कर रहे हैं। इन देशों में 85 फीसदी गेहूं बाहर से आता है। वहां हालत काफी गंभीर है।
दुनिया के काफी बड़े स्तर पर गेहूं की सप्लाई करने वाले यूक्रेन के किसान रूसी सेना से लड़ाई लड़ रहे हैं। यूक्रेन और रूस दुनिया का 30 प्रतिशत गेहूं, 20 प्रतिशत मक्के और सूरजमुखी के बीज के तेल की 75 से 80 प्रतिशत आपूर्ति करते हैं। विश्व खाद्य कार्यक्रम अपनी सेवाओं के लिए 50 प्रतिशत अनाज यूक्रेन से खरीदता है। अब हालत यह है कि यूक्रेन के लोगों को ही भोजन नहीं मिल रहा।
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इस खाद्य संकट के दौर में भारत से सकारात्मक खबर आई है। चालू वित्त वर्ष में गेहूं के निर्यात में रिकॉर्ड उछाल की उम्मीद है और परंपरागत एशिया और दक्षिण एशिया से दूर कई नए देशों में गेहूं के निर्यात की उम्मीद है। मिस्र को गेहूं के निर्यात की बातचीत लगभग पूरी हो गई है। तुर्की, चीन, बोस्निया, सूडान, नाइजीरिया, ईरान आदि से बात चल रही है। भारत के गेहूं की कीमत 350-360 डॉलर प्रतिटन के आसपास है जो दुनिया के दूसरे देशों की तुलना में कम है। इस समय डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत कम होने से भी ऐसा है।
भारत ने पिछले तीन वर्षों में 235.22 करोड़ डॉलर मूल्य का गेहूं निर्यात किया है जिसमें वित्तवर्ष 2021-22 के पहले 10 महीने भी शामिल हैं। वैश्विक व्यापार में भारत शीर्ष 10 गेहूं निर्यातकों में से नहीं है लेकिन धीरे-धीरे इसकी निर्यात-वृद्धि अन्य देशों से आगे निकल गई है। अभी तक भारतीय गेहूं निर्यात मुख्य रूप से पड़ोसी देशों में होता है जिसमें 2020-21 में मात्रा और मूल्य- दोनों के लिहाज से बांग्लादेश की सबसे बड़ी हिस्सेदारी 54 प्रतिशत से अधिक है। वित्तवर्ष 2020-21 में भारत ने यमन, अफगानिस्तान, कतर और इंडोनेशिया जैसे नए गेहूं बाजारों में प्रवेश किया।
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