विचार

राम पुनियानी का लेख: भारतीय राजनीति की बिसात पर गौ माता, इन राज्यों में बीजेपी से बीफ पर क्यों नहीं कुछ कहा जाता?

उत्तर भारत में गाय के नाम पर बीजेपी भारी बखेड़ा खड़ा कर रही है वहीं वो केरल, गोवा और उत्तर पूर्व में इस मामले में चुप्पी साधे रहती है। गाय/बीफ का मुद्दा दरअसल, समाज को ध्रुवीकृत करने का माध्यम है।

फोटो: सोशल मीडिया
फोटो: सोशल मीडिया 

बीजेपी और उसके सहयात्रियों के हिन्दू राष्ट्र की स्थापना के एजेंडे में गाय का महत्वपूर्ण स्थान है। माब लिंचिंग इसका एकमात्र परिणाम नहीं है। लिंचिंग के अधिकांश शिकार धार्मिक अल्पसंख्यक और दलित हैं, जैसा कि फिल्म और अन्य क्षेत्रों के 49 दिग्गजों के पत्र से जाहिर है। लेकिन गौमाता की कथा यहीं समाप्त नहीं होती। इसके कई अन्य पहलू भी हैं।

Published: undefined

उत्तर प्रदेश की योगी सरकार के मंत्री श्रीकांत शर्मा ने घोषणा की है कि आवारा मवेशियों की देखभाल करने वालों को सरकार 30 रुपए प्रति मवेशी प्रतिदिन देगी। इस योजना के लिए सरकार ने अपने बजट में 110 करोड़ रूपए का प्रावधान किया है। योगी सरकार को यह कदम इसलिए उठाना पड़ा क्योंकि आवारा मवेशियों, विशेषकर गायों, की संख्या में जबरदस्त वृद्धि हुई है और वे खेतों में घुस कर फसलों को भारी नुकसान पहुंचा रहे हैं। पहले से ही संकटग्रस्त कृषि अर्थव्यवस्था के लिए यह एक नया संकट है। ये आवारा मवेशी सड़कों और राजमार्गों पर चहलकदमी करते हैं, जिसके कारण सड़क दुर्घटनाओं में वृद्धि हो रही है।

Published: undefined

पिछले आम चुनाव (2019) के लिए बीजेपी के घोषणापत्र के एक बिंदु पर शायद हम सब ने ध्यान नहीं दिया। बीजेपी ने अपने घोषणापत्र में यह वायदा किया है कि वह “राष्ट्रीय कामधेनु आयोग” का गठन करेगी, जिसके लिए 500 करोड़ रुपये का बजट निर्धारित किया जायेगा। यह आयोग, विश्वविद्यालयों में “कामधेनु पीठों” की स्थापना करेगा और गाय के गुणों से लोगों को अवगत करने के लिए जागरूकता अभियान चलाएगा। आयोग गौशालाओं के आसपास आवासीय काम्प्लेक्स विकसित करेगा और गौउत्पादों के विक्रय के लिए दुकानें खुलवाएगा। अगर यह सब ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूती देने और मवेशियों का वैज्ञानिक ढंग से उपयोग करने के लिए किया जा रहा है, तो इसका स्वागत किया जाना चाहिए। लेकिन केवल गाय को इस सम्मान के लिए चुना जाना सिर्फ एक राजनैतिक चाल है।

Published: undefined

गौरक्षा के नाम पर जो गुंडागर्दी चल रही है, उसका एक परिणाम यह हुआ है की देश में कई ऐसे समूह सक्रिय हो गए हैं जो मवेशियों के व्यापारियों और उनका परिवहन करने वालों से जबरिया वसूली कर रहे हैं। खोजी पत्रकार निरंजन तकले ने रफ़ीक कुरैशी नामक मवेशियों का व्यापारी का भेष धर कर कई परिवहन कंपनियों से संपर्क किया। उन्होंने पाया कि जहां गायों को ढोने के लिए प्रति ट्रक 15,000 रुपये की मांग की जा रही थी वहीं भैंसों के मामले में यह राशि मात्र 6,500 रुपये थी। तकले का मानना है कि यह जबरिया वसूली, चमड़े के व्यापार से जुड़ी हुई है क्योंकि जानवरों के वध में बाद, चमड़े पर मध्यस्थ का अधिकार होता है। गौरक्षकों के समूह बीच-बीच में हिंसा भी करते रहते हैं ताकि जबरिया वसूली का उनका व्यवसाय फलता-फूलता रहे।

Published: undefined

एक अन्य दिलचस्प पहलू यह है की जहां देश में गौरक्षा के नाम पर लिंचिंग की घटनाएं बढ़ रही हैं वहीं भारत, दुनिया में बीफ का सबसे बड़ा निर्यातक बनने की राह पर है। सामान्यतः यह माना जाता है कि मांस के व्यापार के लाभार्थी मुसलमान होते हैं। पर यह सही नहीं है। गौरतलब ये है कि मांस के व्यापार से जो लोग अपनी तिजोरियां भर रहे हैं, उनमें से अधिकांश हिन्दू या जैन हैं। बीफ का निर्यात करने वाली शीर्ष कंपनियों में अल कबीर, अरेबियन एक्सपोर्ट्स, एमकेआर फ्रोजेन फ़ूड और अल नूर शामिल हैं। इनके नाम से ऐसा लगता है कि इन कंपनियों के मालिक मुसलमान हैं। पर ऐसा है नहीं। असल में इनमें से अधिकांश कंपनियां हिन्दुओं और जैनियों की हैं।

Published: undefined

गाय/बीफ का मुद्दा दरअसल, समाज को ध्रुवीकृत करने का माध्यम है। ऐसा दावा किया जाता है कि बीजेपी के शासनकाल में एक भी बड़ा सांप्रदायिक दंगा नहीं हुआ। यह सही हो सकता है लेकिन सच तो ये भी है कि इस दौरान, छुटपुट हिंसा और गाय के मुद्दे पर लिंचिंग आदि के जरिए और अधिक प्रभावी ढंग से समाज का सांप्रदायिक आधार पर ध्रुवीकरण किया जा रहा है। हम सब जानते हैं की वैदिक काल में यज्ञों में गाय की बलि चढ़ाई जाती थी और बीफ का सेवन आम था। डॉ आंबेडकर (‘हू वर द शूद्रास’) और डॉ डी.एन. झा (‘मिथ ऑफ़ होली काऊ’) ने अपने विद्वतापूर्ण लेखन में इस तथ्य को रेखांकित किया है। स्वामी विवेकानंद भी यही कहते हैं। विवेकानंद के अनुसार, वैदिक काल में गौमांस का सेवन किया जाता था और वैदिक कर्मकांडों में गाय की बलि भी दी जाती थी। अमरीका में एक बड़ी सभा को संबोधित करते हुए उन्होंने कहा था, “आपको यह जान कर आश्चर्य होगा कि प्राचीन काल में माना जाता था कि जो हिन्दू बीफ नहीं खाता, वह अच्छा हिन्दू नहीं है। कुछ मौकों पर उसे बैल की बलि देकर उसे खाना होता था” (द कम्पलीट वर्क्स ऑफ़ स्वामी विवेकानंद; खंड 3; पृष्ठ 536; अद्वैत आश्रम, कलकत्ता, 1997)।

Published: undefined

हिन्दू राष्ट्रवाद के जिस संस्करण का इन दिनों बोलबाला है, वह आरएसएस की विचारधारा से प्रेरित है। हिन्दू राष्ट्रवाद की एक अन्य धारा हिन्दू महासभा की है, जिसके प्रमुख प्रवक्ताओं में सावरकर शामिल थे। वे संघ परिवार के प्रेरणा पुरुष हैं लेकिन गाय के बारे में उनकी राय कुछ अलग थी। उनका कहना था कि गाय, बैलों की माता है, मनुष्यों की नहीं। वे यह भी मानते थे कि गाय एक उपयोगी जानवर है और उसके साथ व्यवहार करते समय इस तथ्य को ध्यान में रखा जाना चाहिए। ‘विज्ञान निष्ठा निबंध’ में वे लिखते हैं कि गाय की रक्षा इसलिए की जानी चाहिए क्योंकि वह एक उपयोगी पशु है, इसलिए नहीं क्योंकि वे दैवीय हैं। हिन्दू राष्ट्रवाद की संघ और हिन्दू महासभा धाराओं में से संघ की धारा इन दिनों देश पर छाई हुई है और संघ इसका उपयोग गाय के नाम पर समाज को बांटने के लिए कर रहा है।

Published: undefined

मजे की बात ये है कि जहां उत्तर भारत में गाय के नाम पर बीजेपी भारी बखेड़ा खड़ा कर रही है वहीं वो केरल, गोवा और उत्तर पूर्व में इस मामले में चुप्पी साधे रहती है। स्वतंत्रता की पूर्वसंध्या पर, डॉ राजेंद्र प्रसाद ने महात्मा गाँधी से यह अनुरोध किया कि वे देश में गौहत्या प्रतिबंधित करने का कानून बनवाएं। गांधीजी ने इसका जो उत्तर दिया, वह हमारे बहुवादी समाज का पथप्रदर्शक होना चाहिए। उन्होंने कहा, “भारत में गौहत्या को प्रतिबंधित करने के लिए कानून नहीं बनाया जा सकता। मुझे इसमें कोई संदेह नहीं है कि हिन्दुओं के लिए गौवध प्रतिबंधित है। मैंने भी गौसेवा करने की शपथ ली है। लेकिन मेरा धर्म अन्य सभी भारतीयों का धर्म कैसे हो सकता है? इसका अर्थ होगा उन भारतीयों के साथ जबरदस्ती करना जो हिन्दू नहीं हैं....ऐसा तो नहीं है कि भारतीय संघ में में सिर्फ हिन्दू रहते हैं। मुसलमान, पारसी, ईसाई और अन्य धार्मिक समूह भी यहां रहते हैं। हिन्दू अगर यह मानते हैं कि भारत अब हिन्दुओं की भूमि बन गया है तो यह गलत है। भारत उन सभी का है जो यहां रहते हैं।”

एक ओर जहां देश ऐसे कदमों का इंतजार कर रहा है, जिनसे हमारे लोग और हमारा समाज आगे बढ़े, वहीं सरकार गाय की देखरेख और गाय पर छद्म शोध के लिए धन आवंटित कर रही है। इससे देश का कतई भला नहीं होगा।

(लेख का अंग्रेजी से हिन्दी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया द्वारा)

Published: undefined

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia

Published: undefined