विचार

राम पुनियानी का लेख: राहुल की बातों को तोड़-मरोड़कर राजनीति चमकाने की बीजेपी की कोशिश, पर सच्चाई तो सबको पता है

राहुल गांधी का वक्तव्य कहीं से भी विभाजनकारी नहीं है और भारतीय संविधान के मूल्यों का प्रतिनिधित्व करता है।

फोटोः @INCIndia
फोटोः @INCIndia 

अमरीका की अपनी हालिया यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने लोगों के साथ कई बार बातचीत की। ऐसी ही एक बैठक के दौरान उन्होंने दर्शकों के बीच बैठे एक सिक्ख से उसका नाम पूछा। वे भारतीय राजनीति के दो ध्रुवों की चर्चा कर रहे थे और भारत में संकीर्ण कट्टरपंथी राजनीति के ज्यादा प्रबल और आक्रामक होने की ओर बात कह रहे थे। उन्होंने उन सज्जन की ओर मुखातिब होते हुए कहा कि भारत में “संघर्ष इस मुद्दे पर है कि उन्हें सिक्ख होने के नाते, पगड़ी पहनने दी जाएगी या नहीं, या कड़ा पहनने की इजाजत होगी या नहीं। या वे एक सिक्ख के रूप में गुरुद्वारे जा पाएंगे या नहीं। लड़ाई इसी बात की है। और यह मुद्दा सिर्फ उन तक सीमित नहीं है, बल्कि सभी धर्मों के लिए प्रासंगिक है।”

Published: undefined

यह स्पष्ट है कि सिक्खों का उदाहरण दिया जाना केवल एक संयोग था और उनका इशारा भारत में अल्पसंख्यकों को आतंकित करने की व्यापक प्रवृत्ति की ओर था। बीजेपी के कुछ सिक्ख और अन्य नेताओं ने राहुल गांधी (आरजी) पर हमला किया और हमेशा की तरह उन पर राष्ट्रविरोधी, विभाजक होने सहित कई अन्य आरोप लगाए। इन आलोचनाओं में सांस्कृतिक अधिकारों और समाज के भिन्न-भिन्न तबकों के भिन्न आचार-व्यवहार के मुद्दे की जानबूझकर उपेक्षा की गई। इस अवसर का उपयोग बीजेपी ने एक बार फिर आरजी पर हमला करने के लिए किया। वे पहले भी बीजेपी के निशाने पर रह चुके हैं।

आरजी ने एक ट्वीट कर अपने सपनों के भारत की अवधारणा को स्पष्ट किया “हमेशा की तरह बीजेपी झूठ का सहारा ले रही है। वे मुझे चुप कराना चाहते हैं क्योंकि वे सच्चाई का सामना नहीं कर सकते। मैं हमेशा भारत को परिभाषित करने वाले मूल्यों के पक्ष में बोलता रहूंगा - अनेकता में एकता, समानता और आपसी प्रेम।”

Published: undefined

आरजी की भावनाओं से बेखबर केबिनेट मंत्री हरदीप सिंह पुरी ने इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक लेख में लिखा कि सिक्खों को सिर्फ 1980 के दशक के दौरान समस्याओं का सामना करना पड़ा। उनका इशार देश के कई हिस्सों, विशेषकर दिल्ली में हुए सिक्खों के नरसंहार की ओर था। उन्होंने आरजी के नजरिए को मोहम्मद अली जिन्ना जैसा बताया, जो देश का विभाजन करवाने पर तुले हुए थे। उन्होंने इस बारे में कुछ नहीं कहा कि बीजेपी सरकार ने किसानों, जिनमें से बहुत से सिक्ख थे, की मांगों की कई महीनों तक पूरी तरह उपेक्षा की और उसके बाद ही किसान विरोधी कानूनों का वापिस लिया। उस दौरान हुए व्यापक विरोध में भाग लेने वाले सिक्खों को खालिस्तानी बताया गया था।

 जहां तक 1984 के नरसंहार का सवाल है, उसके दोषियों को कभी माफ नहीं किया जा सकता। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मनमोहन सिंह, जो एक दशक तक प्रधानमंत्री रहे, ने इसके लिए क्षमाचायना की थी और हमारी अपेक्षा है कि हिंसा के दोषियों के विरूद्ध शीघ्रातिशीघ्र उचित कानूनी कार्यवाही की जाएगी। 1984 के अपराधियों को कई दशकों तक दंडित न किया जाना अत्यंत निंदनीय है।

Published: undefined

इस तथ्य की ओर ध्यान नहीं दिया जाता कि आरएसएस-बीजेपी इस नरसंहार के दौरान सिक्खों के बचाव के लिए आगे नहीं आए। बल्कि, इसके विपरीत, शमसुल इस्लाम, जो भारत में कट्टरपंथ के जोर पकड़ने के विषय के प्रमुख अध्येताओं में से एक हैं, दावा करते हैं कि आरएसएस ने भी इस भयावह नरसंहार में भागीदारी की। “इस आपराधिक मिलीभगत का महत्वपूर्ण प्रमाण आरएसएस के एक प्रमुख विचारक स्वर्गीय नानाजी देशमुख द्वारा 8 नवंबर 1984 को जारी किया गया ‘अंतरात्मा की खोज का समय’ शीर्षक वाला एक दस्तावेज है (जिसे जार्ज फर्नाडीज द्वारा संपादित हिंदी पत्रिका प्रतिपक्ष में प्रकाशित किया गया था)। इससे उन कई अपराधियों के चेहरों पर से नकाब हटाने में मदद मिल सकती है जिन्होंने बेकसूर सिक्खों के कत्ल किए और उनके साथ दुष्कर्म किया, जिनका इंदिरा गांधी की हत्या से कोई लेनादेना नहीं था। इस दस्तावेज से इस बारे में भी जानकारी मिल सकती है कि वे स्वयंसेवक कहां से आए थे, जिन्होंने योजनाबद्ध ढंग से सिक्खों की हत्याएं कीं। नानाजी देशमुख इस दस्तावेज में 1984 में सिक्खों के नरसंहार तो सही ठहराते नज़र आते हैं।”

आरजी की आलोचना से जुड़ा एक मुद्दा और है। कई सिक्ख समूह इसे सिक्ख पहचान को मान्यता देने के स्वागत योग्य कदम की तरह देख रहे हैं। पूर्व आरएसएस प्रमुख के। सुदर्शन ने एक वक्तव्य में कहा था कि सिक्ख धर्म वास्तव में हिंदू धर्म का एक पंथ (सम्प्रदाय) है और खालसा की स्थापना हिंदुओं की इस्लाम से रक्षा करने के लिए की गई थी। 2019 में मोहन भागवत ने कहा था कि भारत एक हिंदू राष्ट्र है। इन दोनों वक्तव्यों के विरूद्ध कड़ी प्रतिक्रिया हुई थी। इन वक्तव्यों से आरएसएस की मानसिकता भी पता चलती है। हम जानते हैं कि सिक्ख मात्र एक पंथ नहीं है बल्कि एक धर्म है; जिसकी स्थापना गुरू नानक देवजी ने की थी। उन्होंने कहा था न हम हिंदू न हम मुसलमान।

Published: undefined

पंजाब ट्रिब्यून और नवा जमाना जैसे प्रमुख पंजाबी समाचारपत्रों ने अपने संपादकीय में भागवत के वक्तव्य की कड़ी आलोचना की। वहीं शिरोमणि गुरूद्वारा प्रबधंक कमेटी (एसजीपीसी) और शिरोमणि अकाली दल (एसएडी), जो एनडीए का हिस्सा है, और भाजपा का सहयोगी दल रह चुका है, ने भी भागवत के वक्तव्य पर कड़ी प्रतिक्रिया की।

अकाल तख्त के कार्यवाहक जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने कहा कि उनका मानना है कि आरएसएस की इन हरकतों से देश में फूट पड़ेगी। “आरएसएस नेताओं के वक्तव्य देश के हित में नहीं हैं,” उन्होंने लिखा।

Published: undefined

सिक्ख धर्म के हिंदू धर्म का हिस्सा होने के दावों का खंडन केहन सिंह की पुस्तक “हम हिंदू नहीं” में किया गया है। यदि हम सिक्खों की परंपराओं पर ध्यान दें, तो उनमें सांप्रदायिक मेलजोल नजर आता है। स्वर्ण मंदिर की नींव मियां मीर ने रखी थी। सिक्ख धर्म बाबा फरीद और अन्य सूफी संतों का सम्मान करता है और साथ ही भक्ति संतों जैसे कबीर और रैदास का भी। सिक्खों में गुरू का दर्जा रखने वाले गुरूग्रन्थ साहिब में सिक्ख गुरूओं की वाणी के साथ-साथ सूफी और भक्ति संतों को भी स्थान दिया गया है। उसका मुख्य विचार और लक्ष्य है मौलानाओं और ब्राम्हणवादी शिक्षाओं द्वारा लादी लिंग और जाति संबंधी गैरबराबरी को दूर करना।

 भारतीय उपमहाद्वीप में जन्में धर्मो बौद्ध, जैन और सिक्ख सभी मानव जाति में बराबरी की वकालत करते हैं और एक तरह से जाति और लिंग संबंधी पदक्रम से दूरी बनाते हैं। कई सिक्ख नेता मात्र सत्ता की खातिर बीजेपी में शामिल होने का प्रयास करते हैं, और उनका ध्यान सिक्खवाद के मानवीय मूल्यों और ब्राम्हणवादी रूढ़िवाद के बीच के विरोधाभास की ओर नहीं जाता। जैसा अम्बेडकर ने कहा कि ब्राम्हणवाद हिंदुत्व का सबसे महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसी के चलते उन्होंने हिंदू धर्म छोड़कर बौद्ध धर्म स्वीकार किया।

Published: undefined

सिक्ख धर्म भारतीय इतिहास के तथाकथित मुस्लिम काल में फला-फूला। कई सिक्ख संगठनों की कड़ी प्रतिक्रिया के बाद अब आरएसएस सिक्ख धर्म को एक स्वतंत्र धर्म के रूप में स्वीकार करने लगा है। आरजी का वक्तव्य कहीं से भी विभाजनकारी नहीं है और भारतीय संविधान के मूल्यों का प्रतिनिधित्व करता है।

 (अंग्रेजीसे रूपांतरण अमरीश हरदेनिया)

Published: undefined

Google न्यूज़नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें

प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia

Published: undefined