मेरी मां ने एक बार कहा कि रामरति कहती हैः “जान्यो दीदी तीन जनी गजब की मुस्की छांटत हैं। एक रामायण (रामानंद सागर वाली) केर राम, दूसरी अपनी राधिका बिटिया (मेरी नन्ही बेटी) अउर इंदिरा केर बिटवा राजीव गांधी”।
रामरति मेरी मां की मुंहफट पुरानी सेविका थी जो शेक्सपियर के सनकी राजा किंग लियर की महिला अवतार सरीखी मेरी मां के लिए आजीवन उनकी स्वामिभक्त विदूषक का काम करती आई थी। वह केवल अपने पैतृक गांव की बोली- अवधी में बात कर सकती थी। मां की नजर में वह कभी कुछ भी गलत नहीं कर सकती थी। अपने जीवन के अंत-अंत तक रामरति ने भारत के शीर्ष और शक्तिशाली लोगों के बारे में जो भी टिप्पणियां या भविष्यवाणियां कीं, वे आगे चलकर सच साबित हुईं।
Published: undefined
मां के मुताबिक रामरति ने उपर्युक्त तीनों के निर्दोष मुस्कान पर यह टिप्पणी की थी कि ये तीनों बेईमानी का मतलब ही नहीं जानते और इनके व्यवहार में कभी भी ओछापन नहीं आएगा। आम मांओं की तरह मां रामरति की कल्पनाओं को भावुकता से नहीं लेती थीं। पर उसकी अंतर्दृष्टि पर यकीन जरूर रखती थीं। मुझे याद है, राजीव गांधी के भारत के प्रधानमंत्री नियुक्त होने की खबर आते ही उन्होंने रामरति से कहा था, "वह अभिमन्यु की तरह हैं जो धूर्त लोगों के बनाए चक्रव्यूह में प्रवेश कर रहे हैं"।
अर्जुन के पुत्र अभिमन्यु की तरह ही राजीव गांधी के राजनीतिक जीवन पर जिस दुखद तरीके से विराम लग गया, उसने भारत को स्तब्ध कर दिया। एक पायलट, एक जिज्ञासु हैम रेडियो प्रसारक और एक प्रारंभिक कंप्यूटर उत्साही के तौर पर वह भारतीय प्रधानमंत्री बनने के लिए आम तौर पर स्वीकृत छवि से सर्वथा अलग थे। फिर भी, वह उन चंद भारतीय नेताओं में से हैं जिन्होंने भारत के प्रधानमंत्री बनने के तत्काल बाद ही अमेरिकी और एशियाई, दोनों क्षेत्रों के नेताओं का विश्वास जीत लिया।
Published: undefined
40 की उम्र में एक बहुत बड़ी जीत के बाद बने उल्लासोन्माद के माहौल के बीच शायद वह कुछ असहज महसूस करते थे। खैर, उन्होंने भावी भारत की मजबूत आधारशिला रखने के कई अभिनव कार्यक्रमों को मंजूरी दी। उन्होंने उन क्षेत्रों के लिए प्रौद्योगिकी मिशन शुरू किया जिन्हें वह अगली सदी के लिहाज से महत्वपूर्ण मानते थे। ये थे दूरसंचार, जल, साक्षरता, टीकाकरण, डेयरी और तेल बीज।
उन्होंने पंजाब से लेकर उत्तर-पूर्व तक एक साथ शांति संधियों पर हस्ताक्षर किए और सीमा पार भी पुराने दुश्मनों के साथ रिश्ते सुधारने की अहम पहल की। वहीं उन्होंने भारत की पारंपरिक कला, शिल्प और साहित्य को दुनिया के सामने भव्य तरीके से प्रस्तुत करने के लिए पुपुल जयकर, श्रीकांत वर्मा, मार्तंड सिंह और राजीव सेठी के सहयोग से पहली बार पूरी चमक-दमक के साथ भारत उत्सव का आयोजन सुनिश्चित किया।
Published: undefined
26 फरवरी, 1986 को प्रधानमंत्री कार्यालय के निर्देश पर भारत के सरकारी प्रसारक दूरदर्शन (तब के इकलौते चैनल) ने परंपराओं को तोड़ते हुए राजीव गांधी के संयुक्त साक्षात्कार के लिए विभिन्न क्षेत्रों की हम छह महिलाओं के एक समूह को आमंत्रित किया। प्रधानमंत्री के रूप में टीवी पर यह उनका पहला कार्यक्रम था और इसे देश भर में बड़ी संख्या में लोगों ने देखा।
साक्षात्कार में राजीव गांधी की गर्मजोशी देखते बनती थी। वह बीच-बीच में हंसी-मजाक भी कर रहे थे और जिस देश की बागडोर अब उनके हाथ में थी, उसके भविष्य को लेकर पूरी तरह आश्वस्त थे। न कोई जुमलेबाजी, न ही नाटकीयता। बस सीधी-सपाट बात और हम महिलाओं को सहज करता उनका व्यवहार। टीवी पर पीएम का इंटरव्यू लेने का सुनहरा मौका कुछ महिलाओं को मिला, इसके प्रति ज्यादातर मीडिया बहुत उदार नहीं था। लेकिन बेबाक टीवी आलोचक अमिता मलिक ने भी साक्षात्कार के दौरान बड़ी ही शांति से तीखे सवाल किए जाने की तारीफ की।
Published: undefined
मुझे याद है, हमने उनकी तमाम नीतियों, खास तौर पर महिलाओं से जुड़े पहलुओं पर लगातार तीखे सवाल किए। तय कार्यक्रम के मुताबिक यह एक बहुत ही छोटा साक्षात्कार होना था, लेकिन यह लगभग चौथाई घंटे चला। उनकी बातों से साफ था कि राजीव मानते थे कि भारतीय महिलाओं की क्षमताओं का बहुत कम उपयोग हुआ है और वह चाहते थे कि महिलाओं को निर्णय प्रक्रिया के सभी स्तरों पर शामिल किया जाए। यह पंचायती राज में सभी स्तरों पर महिलाओं के लिए सीटें आरक्षित करने के उनके फैसले में दिखा भी और इसके साथ ही उन्होंने महिलाओं के लिए राष्ट्रीय परिदृश्य योजना तैयार करने का कार्यक्रम भी शुरू किया।
वर्षों बाद, 2012 के आसपास, प्रसार भारती की अध्यक्ष के रूप में मैंने दूरदर्शन के अधिकारियों से अनुरोध किया कि वे अप्रचलित एनालॉग मोड में रिकॉर्ड किए गए उस दुर्लभ साक्षात्कार को अपने अभिलेखागार में खोजें ताकि उसे डिजिटाइज किया जा सके। लेकिन मुझे बताया गया कि चूंकि प्रसार भारती का बजट काफी छोटा था और टेप की कमी थी, संभवतः उस टेप का इस्तेमाल किसी और कार्यक्रम को रिकॉर्ड करने में कर लिया गया!
Published: undefined
सत्ता में अपने शेष वर्षों के दौरान राजीव गांधी को अपने राजनीतिक विरोधियों की कठोर आलोचनाओं का सामना करना पड़ा। वे राजीव की तुलना पहले की उस खद्दरधारी पीढ़ी से करते जो एक पारिवारिक व्यक्ति के रूप में खुद को प्रस्तुत किए जाने से परहेज करते थे। अपने परिवार के लिए राजीव का जगजाहिर झुकाव, फुर्सत के क्षणों में परिवार और दोस्तों के साथ उनका समय बिताना, इन विरोधियों को बड़ा सालता रहा होगा।
गंदे-सीलन भरे सरकारी दफ्तरों में कंप्यूटर लगाने पर जोर देने, साप्ताहांत को गैर-कार्य दिवस के रूप में घोषित करने, इन सबके लिए राजीव गांधी की तीखी आलोचना की गई। लेकिन आज के संदर्भ में देखें तो राजीव गांधी के ही कारण युवा भारत की आकांक्षाओं को पहचाना जा सका और जिसके कारण लैंगिक समानता, वैज्ञानिक सोच और संचार क्रांति का बौद्धिक आधार तैयार किया जा सका। वही संचार क्रांति, जिसे मौजूदा नेता वैश्विक मंचों पर भारत की प्रमुख उपलब्धियों में से एक के रूप में उद्धृत करते हैं। यह सब उन्हीं अशांत वर्षों में शुरू हुआ।
Published: undefined
आज राजीव गांधी इस कारण एक यादगार शख्सियत नहीं हैं कि उन्होंने क्या कहा या उनकी राजनीतिक संबद्धता क्या थी। वह इसलिए हमारी स्मृति में हैं, क्योंकि उनका जीवन उस राष्ट्र का दर्पण है जो किसी भी युवा एशियाई लोकतंत्र की आशंकाओं और आशाओं को जीता है और अपनी बुद्धि, समझदारी और आशाओं को संजोए हुए आने वाले दशकों में प्रवेश करता है।
बड़ी ही क्रूरता के साथ खत्म कर दिया गया उनका राजनीतिक जीवन इस उन्नत अंतर्दृष्टि को साकार करता है कि भारत का लोकतंत्र अस्तित्वघाती आघातों को निष्फल कर सकता है और करता रहेगा और यह कि भारतीय राजनीति के शुष्क और अमानवीय परिदृश्यों के बाद भी याद किए जाने वाले मानवीय, ताजगी भरे और वास्तविक धर्मनिरपेक्षता के सपने देखने वालों का उदय होता रहेगा। गांधी के सपनों के धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक भारत के लिए लड़ाई जारी रहेगी।
Published: undefined
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
Published: undefined