राग रामजन्मभूमि मंदिर। कहते हैं कि यह राग करीब दो सौ साल पुराना है, लेकिन इस राग के रचयिता का नाम अज्ञात है। इसे पुनर्जीवन देने का काम लालकृष्ण आडवाणी नामक बीजेपी के एक वरिष्ठ नेता ने बीसवीं सदी के नवें दशक में किया था। फलस्वरूप वह देश के उप प्रधानमंत्री बनने के उपरांत अब बीजेपी के मार्गदर्शक मंडल के सदस्य के रूप में राजनीतिक वनवास में वृद्धावस्था का जीवन कुछ आराम से और अधिक बेचैनी से व्यतीत कर रहे हैं। उन्हें लगता है कि इस राग का कॉपीराइट हड़पने को आतुर और उन्हें इस गति को प्राप्त करवाने वाले नरेंद्र मोदी भी जब उन्हीं की गति को प्राप्त हो जाएंगे तो उन्हें असली सुख प्राप्त होगा और उनकी बेचैनी को चैन मिलेगा।
इस राग को 'रागसत्ता' और 'राग विध्वंस' के नाम से भी जाना जाता है। इस राग के गायन का उपयुक्त समय आम चुनाव होता है। जब सत्ता जा रही होती है तो उसके आह्वान के लिए इसका उपयोग किया जाता है। इसका उपयोग सिर्फ और सिर्फ सत्ताप्राप्ति के लिए किया जाता है, जो अन्य सब प्राप्तियों का राष्ट्रीय राजमार्ग है। यह ऐसा राग है, जिसका गायन चुनाव पूर्व किया जाता है और समापन वोट पड़ने पर। इस प्रकार इसकी अवधि का निर्धारक तत्व निर्वाचन आयोग है। इस प्रकार अन्य रागों से भिन्न इस राग के गायन का कोई निश्चित समय नहीं है। इसे कभी भी आरंभ करके कभी भी समापन तक पहुंचाया जा सकता है। इसलिए इसका एक नाम राग 'अनादि-अनंत' भी रखा गया है।
वर्तमान में इस राग का गायन संघप्रमुख मोहन भागवत के संरक्षण में नरेंद्र मोदी द्वारा प्रायोजित कार्यक्रमों में योगी आदित्यनाथ के साथ पंडित अमित शाह कर रहे हैं। सुनते हैं कि इस राग का समापन स्वयं नरेंद्र मोदी के गायन से होगा, जिससे मुसलमानों के मन में पर्याप्त भयोत्पादन हो और समझदार हिंदुओं और अन्य के मन में चिढ़, क्रोध और भर्त्सना का भाव पैदा हो। यह राग भूख, बेरोजगारी, किसान आत्महत्या जैसे तमाम सवालों को दुरदुरा कर दूर भगाने में सहायक है और जो सवाल नहीं हैं, उन्हें सवाल के रूप में पेश करने में संघ-बीजेपी की मददगार है। संत कही जानेवाली एक खास प्रजाति द्वारा इसका दिन-रात गायन किया जाता है, जो संसद से सड़क तक सब जगह सुनाई देता है।
यह अभी तक सर्जित सभी रागों में अत्यंत बेसुरा और बेढंगा माना जाता है। इसे गलती से प्रयोग के तौर पर और पब्लिक डिमांड पर भी वे गायक नहीं गाया करते, जिनका कंठ सुरीला होता है और जिनका दिल और दिमाग सही ढंग से सही जगह, सही काम कर रहा होता है। इस राग को गाने के सबसे अधिक योग्य वे माने जाते हैं, जो बेहद बेसुरे और बेहद बेहूदे होते हैं। इन में से कोई एक 'गुण' भी कम हो, तो कोई चाहे जितनी भी कोशिश कर ले, अभ्यास कर-करके जान भी दे दे तो वह 'राग रामजन्मभूमि' नहीं गा सकता। हां इसकी एक और विशेषता है, यह राग केवल गाया जा सकता है।इसका सरोद, संतूर, वायलिन, सितार आदि पर वादन असंभव है।
इस राग का उल्लेख हमारे किसी प्राचीन-अर्वाचीन-समीचीन ग्रंथ में नहीं मिलता। किसी बाबरनामा, किसी रामचरित मानस में नहीं मिलता। संघ-बीजेपी की अक्ल में अवश्य इसके सभी प्रमाण उपलब्ध हैंं। इसकी कोई स्वरलिपि नहीं है। कुछ विद्वान कहते हैं कि इसमें स्वर ही नहीं है तो लिपि की आवश्यकता का प्रश्न बार-बार क्यों उठाया जाता है। यह इस राग का यानी हिंदुत्व का अपमान है, जिसे किसी भी हालत में बर्दाश्त नहीं किया जा सकता। यह ऐसा राग है, जो पंचम स्वर से आरंभ होकर पंचम स्वर पर ही समाप्त होता है। इस अर्थ में यह राग भारतीय राग संगीत परंपरा के लिए पराया है।
कई विद्वानों का मत है कि इस तरह की विचित्र गायन शैली विश्व में कहीं उपलब्ध नहीं है। इस राग के आधार पर कुछ संघी विद्वानों ने मांग की थी कि उन्हें इसके लिए नोबेल पुरस्कार दिया जाए, लेकिन बाद उन्हें अपने अज्ञान का पता चल गया कि संगीत के लिए नोबल पुरस्कार नहीं दिया जाता। वरना वे स्टाकहोम और ओस्लो दोनों में राम जन्मभूमि मंदिर की धमकी देने लगे थे। अब उनकी मांग है कि भारत को संयुक्त राष्ट्र विश्वगुरु घोषित करे, वरना संयुक्त राष्ट्र के मुख्यालय पर वे राग रामजन्मभूमि मंदिर का ऐसा अनादि-अनंत गायन आरंभ करेंगे, जो साउंड प्रूफ सिस्टम का प्रूफ गायब करके उसे साउंड सिस्टम में बदल देगा।
Published: 23 Dec 2018, 7:59 AM IST
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Published: 23 Dec 2018, 7:59 AM IST