विचार

मृणाल पाण्डे का लेखः निजी क्षेत्र की मुनाफाखोरी और सरकारों की गरीब विरोधी नीतियां हैं कोरोना की असल वजह

कोरोना वायरस इतनी तेजी से दुनिया में फैलने लगे हैं कि वैज्ञानिक भी हकबका गए हैं। उनका कहना है कि यह आने वाले समय के खतरों की बानगी भर है। अरबों बरसों में बनी ये दुनिया लाखों बरस से टिकी है, क्योंकि राजे-रजवाड़े भले लड़-मरे हों, लेकिन कुदरत से ऐसी छेड़छाड़ नहीं की।

रेखाचित्रः अतुल वर्द्धन
रेखाचित्रः अतुल वर्द्धन 

हमारे यहां जब सरकारें भीषण बहुमत से जीत कर सत्ता में आती हैं, तो सब कुछ बड़ा-बड़ा सोचने लगती हैं। आत्ममुग्धता भरे उस दौर में विकास का सीधा मतलब बन जाता है बड़े पैमाने पर कुदरत की संपदा को दह कर उससे बड़ी पूंजी का लबालब तालाब बना लेना। बड़े-बड़े पुल, राजमार्ग, बड़े बांध, बड़ी खदानें, बड़े उपक्रम, बड़ा पर्यटन और इस सबके साथ चहेते नेताओं की सबसे बड़ी मूर्तियां लगा कर नेता और उनके दल मीडिया को अपनी तारीफ से पाट देते हैं।

जनता शिकायत करती रह जाती है कि कच्चे पहाड़ों का खतरनाक तरीकों से समतलीकरण करके सड़कों का जाल बिछाया जाना खतरनाक है। कि स्थानीय नदियों के बहाव, वनवासियों, पशुओं, पेड़ों की प्रजातियों की कीमत पर जंगलों पर चटपट आरियां, बुलडोजर चला कर वहां खदानों के लिए निविदाएं आमंत्रित करना लोकल स्तर पर तरह-तरह का विनाश ला रहा है। अभयारण्यों के बीच तक टूरिज्म प्रमोशन के नाम पर सुरम्य नजारे दिखाने वाली घातक सड़कें बनाने, वन्य पशुओं को शहरी बसासतों में घुसा कर तबाही मचवा रहा है। भारत ही नहीं, सारी दुनिया में यही हाल है।

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इस लालची मूर्ख खिलवाड़ का ही नतीजा है कोविड-19 के ये विषाणु। आज वे इतनी तेजी से सारी दुनिया में फैलने लगे हैं कि वैज्ञानिक भी हकबका गए हैं। यह वायरस मानव जाति के लिए परमाणु बम से कहीं बड़ा खतरा बन कर उभरा है। विशेषज्ञों का कहना है कि यह आने वाले समय के खतरों की नई बानगी भर है। दुनिया जो अरबों बरसों में बनी और लाखों बरस तक टिकी रही, वह इसलिए कि राजे-रजवाड़े भले ही लड़े-मरे लेकिन कुदरत से ऐसी छेड़छाड़ नहीं की गई।

पुरानी सभ्यताओं में नदी, पहाड़, जंगल और मैदान सब ईश्वरीय संपत्ति माने जाते रहे। पिछली सदी में दो महायुद्धों के बाद धर्म या ईश्वर संबंधी वे कई सारी मान्यताएं लगभग मिट गईं। विज्ञान नया धर्म बनकर उभरा और माना गया कि उसके पास हर चीज का सही जवाब और हर आपदा से बचाव की क्षमता है। धर्मों में बहुत खोट थे, लेकिन उनके विधि निषेध इतने व्यापक और सर्वमान्य थे कि उन्होंने नदी, पहाड़, मिट्टी, वायु सब तत्वों को एक तरह का देवत्व कवच पहना रखा था। जंगल कटे, नदियां गाद और केमिकल कचरे से भर गईं, और शहरीकरण ने ग्रामीण खेतिहर समाज की रवायतें बदल दीं तो अब तक जंगलों द्वारा छाने जाते रहे कई तरह के वायरसों ने आवारा बना दिए गए वन्य जीवों की मार्फत मानव बस्तियों में घुस कर मानव प्रजाति में भी पनपने की क्षमता बना ली।

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आप क्रोनॉलॉजी समझें। पहले एड्स की महामारी आई। शोध से पता चला कि उसका वायरस अफ्रीकी जंगलों से बेदखल चिंपांजियों से आया। फिर मैड काउ नामक दुधारू पशुओं से निकला संक्रामक विषाणु सामने आया; पक्षियों, चमगादड़ों, चूहों से फैले सार्स, मर्स जैसे रोग उभरे। जब बड़े जंगल कट गए तो उनके भीतर रहने वाले खास तरह के फलखोर चमगादड़ों ने मानवों के बागानों में घुस कर लार से संक्रमित जूठे फल छोड़ना शुरू कर दिया। उनको खाने से पहले पालतू सअर, गाय, मुर्गियां संक्रमित हुए और फिर मनुष्य। मिस्र में नील नदी के तटीय वन कटने से मच्छरों ने शहरों पर हमला बोल दिया और फिर लाइम डिजीज, तथा नाइल वायरस साथ लेकर वे पर्यटकों और आयातित माल के साथ दूसरे देशों में घुस कर अमेरीका से योरोप तक तबाही मचाने लगे हैं।

इसी के साथ ग्लोबल बाजारों ने जहां अभूतपूर्व पैसा कमाई के मौके पैदा किए, वहीं नवधनाढ्य वर्ग में दुर्लभ जंगली पशु-पक्षियों को पालने-खाने का शौक भी पैदा किया। वैज्ञानिकों का शक पुख्ता हो रहा है कि कोविड-19 के वायरस भी इसी तरह कुछ दुर्लभ खानपान की मार्फत चीन में बन कर बाहर पहुंचे हैं। नई सदी में सस्ता चीनी माल सारी दुनिया खरीद रही है, और इससे मालामाल चीन के एकछत्र शासक ने घरेलू कामगारों के रेट न्यूनतम बनाए रखे और किसी हड़ताली यूनियन को भी नहीं पनपने दिया।

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उम्मीद के अनुसार कम लागत अधिक मुनाफा चाहने वाली अंतरराष्ट्रीय कंपनियों ने वहां भर झोली निवेश कर अपने कारखाने खोल लिए। चीन आज दुनिया में एक तरह से सस्ते माल के उत्पादन और आयात-निर्यात में विश्व व्यापार की धुरी और मिसाल है। चीन पर हावी नौ दौलतिए चीनियों ने दुनिया भर से प्रतिबंधित प्रजातियों का मांस खाने के लिए और हाड़, सींग, नाखून तथा दांत वगैरा खास चीनी औषधियों के लिए भारी दाम देकर मंगवाना शुरू कर दिया। दुनिया भर में लालची वन्य तस्करों के हाथों कितने प्रतिबंधित बाघ, चीते और शेर तथा हाथी मारे गए इसका हिसाब नहीं।

अब जब पहाड़ धसक रहे हैं और सप्त नदियां प्रदूषित होती जा रही हैं, जिनका दिल भारत माता और मां गंगा के लिए बहुत धड़कता है, उनसे पूछा जाना चाहिए- क्या चिपको या नर्मदा बचाओ जैसे आंदोलनों की याद है?

येन-केन चुनाव जीतने और पड़ोसी देश पर सर्जिकल स्ट्राइक करने को लाज शरम ताक पर रख कर षड्यंत्र रचते नेताओं ने संसद में यह सवाल किस लिए नहीं उठाया कि चीन से भारत और आस्ट्रेलिया से लातिन अमेरिका तक जो भीषण भूस्खलन और दावानल भड़के हैं, हर तरह का प्रदूषण बढ़ता चला जा रहा है उससे भारत को कोई बड़ा खतरा तो नहीं?

सत्ता पक्ष में 5 ट्रिलियन अर्थव्यवस्था बनने और चीन को चुनौती देने के सपने देख कर कथित तौर से निपट गरीबी से उठ कर ऊपर आए हमारे नेता हिमालय से केरल तक गरीबों के लिए विकट महामारियां, बाढ़ और सुखाड़ पैदा करते पर्यावरण क्षरण से परेशान क्यों नहीं होते? क्यों पक्के और कार्बेट पार्क जैसे अभयारण्यों के बीच सड़कें बनाई जा रही हैं जो आदिवासियों, जनजातियों के वनों से सदियों से जुड़े हकों को कानूनन काट कर जंगली जानवरों पर भी खतरा बन कर आ रही हैं।

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चीन से आए सस्ते माल के लालच में वहां मजदूरों, अल्पसंख्यकों, तिब्बतियों पर होते दमन पर सवाल पूछने से हमारे राजदूत और विदेश मंत्रालय हमेशा कतराते रहे हैं, जबकि अरुणाचल सीमा और दक्षिण तिब्बत में बड़े चीनी बांध हमारी हिमालयीन नदियों और ग्लेशियरों को भारी खतरा बना रहे हैं। राजनीति में सरकार बनाने-गिराने का मसला हो तो विधायकों की दलगत स्वामी भक्ति, उनकी राय उनको रातोंरात किसी पंचतारा रिसॉर्ट ले जाकर बदली जा सकती है, लेकिन वन कटाई, आदिवासीय-जनजातीय हकों, नदियों पर बड़े बांध, बड़े-बड़े राजमार्ग बनवाने के मसलों पर सब दल शैतानी स्कूली बच्चों की तरह एकजुट हो जाते हैं।

कोविड-19 विषाणु भले नए हों, लेकिन उनका जन्म निजी क्षेत्र की मुनाफाखोरी और उनके बेपनाह पैसे से चुनी गई सरकारों की गरीब विरोधी नीतियां ही हैं। इसी दर्शन का पालन कर रही दुनिया की दो-दो महाबली शक्तियां चीन और अमेरिका इस चुनौती के सामने तमाम संसाधनों के बावजूद लाचार हैं। अमेरिका की सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं का निजीकरण करने के बाद यूएन और पेरिस की सर्वगुण संपन्न ग्लोबल पंचाटों में जो अमेरिका हाथ झाड़ कर उठ खड़ा हुआ था कि पर्यावरण क्षरण या ग्लोबल महामारी जैसी कोई चीज नहीं, और वह दुनिया के बचाव को एक फूटी कौड़ी नहीं देगा, आज खुद बेतरह हताश, ठगा हुआ और भयभीत नजर आ रहा है।

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