यह बहुत ही कड़वा चुनाव था। गाली-गलौज, निजी हमले, अपमानजनक टिप्पणियां, फर्जी आरोप और विरोधियों के बारे में झूठी बातें इस सात सप्ताह चले चुनाव में देखने-सुनने को मिलीं। अब जबकि प्रचार का शोर थम चुका है और भाषणों और बयानों से पक चुका देश वोटों की गिनती से पहले सुकून के कुछ लम्हे गुजार रहा है, एक बात की चर्चा अब भी हो रही है। वह है कि इस बार के चुनाव प्रचार में कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने बदलाव का जो माहौल बनाया, वह काफी सुखद था।
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एक मंझे हुए नेता की तरह नर्मी से बोलने वाली प्रियंका स्पष्ट तरीके से संवाद करती नजर आईं। प्रधानमंत्री मोदी या निर्मला सीतारमण, स्मृति ईरानी या मीनाक्षी लेखी की तरह वे न तो कभी गुस्से में नजर आईं और न ही कभी उन्होंने विरोधियों पर बेजा हमला किया। भले ही बीजेपी के शीर्ष नेता उनका मजाक उड़ाते, हमले करते, लेकिन प्रियंका के चेहरे से मुस्कुराहट एक बार भी नहीं खत्म हुई।
बेशुमार भीड़ में, संपेरों द्वारा सांप का तमाशा दिखाते हुए सांपों से खेलने या फिर मोदी-मोदी के नारे लगाती भीड़ के बीच अपना काफिला रुकवाकर उनसे हाथ मिलाने में, वे हर जगह बेहद सहज और सरल नजर आईं। मोदी समर्थकों को उन्होंने शुभकामनाएं भी दीं, और यह कहते हुए लाजवाब भी कर दिया कि, “आप अपनी जगह, मैं अपनी जगह...”
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प्रियंका सरलता और सच्चाई से बोलती हैं। उनसे भ्रष्टाचार, उनके पिता और पति पर लगे आरोप, और उनकी मां के बारे में तीखे सवाल किए गए, लेकिन किसी भी सवाल पर वह झुंझलाई नहीं, और न ही किसी सवाल में वे शर्मिंदा नजर आईं या बचाव की मुद्रा में दिखीं। प्रियंका गांधी ने जिस दिलेरीसे सवालों का सामना किया और उनके जवाब दिए, निश्चित रूप से आज उनकी दादी इंदिरा गांधी होतीं तो उन्हें गर्व होता।
अभी दो दिन पहले पंजाब की एक रैली में उन्होंने खालिस पंजाबी में बोलते हुए कहा कि, “मेरे पति एक पंजाबी हैं और मैंने उनसे जीवन की कठोरता की सही से जाना है। पंजाबी चरती कलां में विश्वास रखते हैं, जिसका मतलब है कि वे अच्छी सोच वाले लोग होते हैं।”
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सिर्फ चार महीने के अपने सक्रिय राजनीतिक जीवन में प्रियंका गांधी ने एक संवेदनशील व्यक्ति की भी झलक दिखाई। एक सच्चे नेता की तरह उन्होंने मुसीबत में फंसे लोगों की मदद करने में कोताही नहीं बरती। हाल ही में उन्होंने वाराणसी में एक ऐसे व्यक्ति को अपने विशेष विमान से इलाज के लिए दिल्ली के एम्स भेजा, जो तपती गर्मी में बेहोश हो गया था।
इसके अलावा प्रियंका गांधी का वह फोटो वायरल रहा जिसमें वे एक घायल पत्रकार क स्लिपर उठाकर उसकी मदद कर रही हैं। प्रधानमंत्री तो कुछ करने-कहने से पहले कैमरे का ऐंगल देखते हैं, लेकिन प्रियंका के मामले में कैमरा उनका खुद पीछा करता है।
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इस पूरे चुनाव प्रचार के दौरान सिर्फ एक मौका ऐसा आया जब प्रियंका को जरा गुस्सा आ गया था। पत्रकारों ने जब उनसे कहा कि वे उत्तर प्रदेश में बीजेपी की मदद कर रही है। तब उन्होंने जवाब दिया था कि, “मैं मर जाऊंगी लेकिन कभी बीजेपी की मदद नहीं करूंगी।“ यह उन प्रियंका गांधी का बयान था जो अपने पिता के हत्यारों को माफ कर चुकी हैं।
गाज़ियाबाद में भी मोदी समर्थकों ने उनके रोड शो के दौरान ‘मोदी-मोदी’ के नारे लगाकर व्यवधान पैदा करने की कोशिश की थी, लेकिन उन्होंने मुस्कुराते हुए उनकी तरफ गुलाब की पंखुड़ियां और फूल मालाएं फेंकी थीं।
ऐसा ही मध्य प्रदेश में भी हुआ था, जब उन्होंने कार से उतरकर मोदी समर्थकों से हाथ मिलाया था, और वे नारे भूलकर उनके साथ सेल्फी लेने लगे थे।
क्या नरेंद्र मोदी कभी कर पाएंगे ऐसा?
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