प्रियंका गांधी वाड्रा का चुनावी राजनीति में प्रवेश न केवल कांग्रेस पार्टी के लिए बड़ा और अहम क्षण है, बल्कि यह भारतीय राजनीति के लिए भी महत्वपूर्ण है। केरल के वायनाड में 13 नवंबर को लोकसभा सीट के लिए होने जा रहे उपचुनाव में वह चुनावी पारी की शुरुआत कर रही हैं और हर तरफ उम्मीद का माहौल है।
लोकसभा में राहुल गांधी के साथ उनकी संभावित मौजूदगी, उनका व्यक्तिगत करिश्मा और हर वर्ग के लोगों को प्रभावित करने की उनकी प्रतिभा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और बीजेपी के लिए नई चुनौती होगी। राजनीतिक विरासत की गहरी समझ के साथ प्रियंका और राहुल गांधी संसद के भीतर और बाहर राष्ट्रीय राजनीतिक विमर्श को नई दिशा दे सकते हैं और विपक्ष को अपेक्षित-अनेपक्षित तरीकों से मजबूत कर सकते हैं।
वायनाड सीट राहुल गांधी द्वारा खाली की गई थी और यहां से प्रियंका की उम्मीदवारी कांग्रेस को दक्षिण भारत में अपना प्रभाव बढ़ाने में मदद करेगी जबकि लोकसभा चुनाव में अमेठी सीट को पुनः पाना यूपी में पार्टी के पुनरुद्धार का आधार बन सकता है। कांग्रेस ने 2024 के आम चुनाव में अपनी सीटों की संख्या दोगुनी करने में सफलता पाई और जाहिर सी बात है कि पार्टी अपने इस प्रदर्शन को बनाए रखना चाहती है और प्रियंका का संसद में (संभावित) प्रवेश उन चुनावी लाभों को दीर्घकालिक रणनीति में बदलने का एक सोचा-समझा कदम है।
Published: undefined
यह वक्त अहम है। कांग्रेस जानती है कि बड़ी संख्या ऐसे मतदाताओं की है जो बीजेपी का भरोसेमंद विकल्प चाहते हैं। संसद में एक और गांधी की मौजूदगी न केवल निचले सदन में पार्टी की राजनीतिक ताकत को बढ़ाएगी, बल्कि विभिन्न विपक्षी दलों से लेकर आबादी के विभिन्न वर्गों तक बेहतर पहुंच बनाने के नजरिये से भी अहम होगी। केरल में प्रियंका की सक्रियता का दक्षिणी राज्यों पर भी असर पड़ेगा जहां बीजेपी को सांस्कृतिक रूप से हिन्दी पट्टी की पार्टी माना जाता है और अब भी उसे पकड़ बनाने में संघर्ष करना पड़ रहा है।
राहुल और प्रियंका के बीच करीबी रिश्ते कांग्रेस पार्टी के लिए बड़ा सकारात्मक प्रभाव वाले होंगे। उनकी साझेदारी केवल पारिवारिक बंधन या साझा राजनीतिक विरासत के कारण नहीं है; यह राजनीति के प्रति एक सहयोगी दृष्टिकोण से भी जुड़ी है जो उनके व्यक्तिगत और सार्वजनिक जीवन के अनुभवों से तैयार हुई है। निजी तौर पर उन्होंने जो त्रासदी झेली है- पहले दादी इंदिरा गांधी और फिर पिता राजीव गांधी की हत्या- ने सार्वजनिक जीवन के प्रति उनकी प्रतिबद्धता और धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक भारत के प्रति उनके कर्तव्य की भावना को और मजबूत किया है।
Published: undefined
राहुल गांधी निस्संदेह आरएसएस (राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ) और मोदी सरकार के सबसे निडर आलोचक हैं। उन्होंने मोदी सरकार को उसके भाई-भतीजावाद, आर्थिक असमानता बढ़ाने वाली नीतियों, नागरिक स्वतंत्रता के हनन और सामाजिक न्याय के मुद्दों पर आड़े हाथों लिया है। उन्होंने संघ के विरोधाभासों और संविधान को बदलने एवं भारत को हिन्दू बहुसंख्यक देश बनाने की उसकी मंशा को लोगों के सामने रख दिया है। नेता प्रतिपक्ष के रूप में उनकी भूमिका ने कांग्रेस की आवाज को बुलंद किया है और विपक्ष को ऐसा नेता दिया है जिस पर वे भरोसा कर सकते हैं कि बीजेपी और उसके एजेंडे को वह निडरता से चुनौती देंगे। दूसरी ओर, प्रियंका में जमीनी स्तर पर लोगों से जुड़ने की बेहतरीन क्षमता है और वह बड़ी सहजता के साथ लोगों के साथ संवाद स्थापित कर लेती हैं और इस कारण पार्टी के जनाधार बढ़ाने के प्रयासों में उनकी अहम भूमिका हो सकती है।
Published: undefined
अपनी ताकत का उपयोग करते हुए राहुल और प्रियंका पार्टी की राजनीतिक भागीदारी के विभिन्न पहलुओं पर ध्यान केंद्रित कर सकते हैं। राहुल बड़े राष्ट्रीय मुद्दों पर फोकस कर सकते हैं जबकि प्रियंका क्षेत्रीय चिंताओं और सामाजिक मुद्दों की आवाज बन सकती हैं। इस रणनीति को अपनाकर कांग्रेस कहीं प्रभावी तरीके से बीजेपी को चुनौती दे सकती है और इससे संभवतः मतदाताओं को बीजेपी का एक सक्षम विकल्प भी मिल जाएगा।
प्रियंका का करिश्मा और राहुल का अनुभव और प्रतिबद्धता उन महत्वपूर्ण मुद्दों को चर्चा के केंद्र में ला सकती है जिन्हें अन्यथा हाशिये पर ही छोड़ दिया जाता। संसद में गांधी भाई-बहनों की संयुक्त उपस्थिति का एक और प्रभाव यह भी हो सकता है कि भारतीय राजनीति के बारे में मीडिया के असंतुलित नैरेटिव को दुरुस्त किया जा सके। हाल के सालों में बीजेपी ने व्यावहारिक रूप से भारत के मुख्यधारा के मीडिया को अपने कब्जे में कर लिया है और इनका सारा ध्यान प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी की ‘जिताऊ’ चुनावी रणनीतियों पर केंद्रित है। वैकल्पिक नैरेटिव के लिए जगह व्यावहारिक रूप से खत्म ही हो गई है।
संसद में राहुल के साथ प्रियंका के होने से संभवतः मीडिया के लिए लोकसभा में बहस और अन्य गतिविधियों को नजरअंदाज करना मुश्किल हो जाए। अपनी प्रभावशाली वाक् शक्ति के कारण प्रियंका संसदीय कार्यवाही की ओर मीडिया का ध्यान आकर्षित कर सकती हैं, खास तौर पर जब वह महत्वपूर्ण मुद्दों पर बीजेपी नेताओं को चुनौती दे रही हों। उनके भाषण और प्रेस के साथ उनकी बातचीत के माध्यम से विपक्ष के तर्क सुर्खियों में जगह बना पाएंगे और यह बीजेपी के मीडिया प्रभुत्व को संतुलित करने के नजरिये से जरूरी नैरेटिव पेश कर पाएंगे।
Published: undefined
राहुल-प्रियंका के संयुक्त प्रयासों का एक असर यह भी हो सकता है कि पिछले दस वर्षों की व्यक्ति-आधारित राजनीति से ध्यान हटकर नीति और शासन से जुड़े ठोस बहसों पर केंद्रित हो सके और शायद राजनीतिक मुद्दों के मामले में मीडिया अधिक संतुलित कवरेज की ओर जाए। बहुध्रुवीय विपक्ष में किसी भी गठबंधन के निर्माण में कांग्रेस की केंद्रीय भूमिका को प्रियंका और राहुल मजबूत करेंगे।
चुनावी क्षेत्र में प्रियंका गांधी वाड्रा का प्रवेश सिर्फ उनके लिए एक मील का पत्थर नहीं है; यह भारत के राजनीतिक परिदृश्य को नया रूप देने के लिए कांग्रेस के रणनीतिक कदम का प्रतिनिधित्व करता है। अपने करिश्मे और राजनीतिक विरासत की गहरी समझ के साथ प्रियंका विपक्षी राजनीति में एक परिवर्तनकारी भूमिका निभा सकती हैं।
इसके साथ ही भाई-बहन की जोड़ी एक नए तरह के राजनीतिक नेतृत्व का वादा करती है- एक ऐसा नेतृत्व जिसमें सहानुभूति, सामाजिक न्याय और लोकतांत्रिक धर्मनिरपेक्ष मूल्यों के प्रति प्रतिबद्धता की मजबूत नींव हो, साथ ही रणनीतिक समन्वय के प्रति सजगता भी हो। उम्मीद है कि उनकी साझेदारी कांग्रेस को संसद, मीडिया और लोगों के बीच राष्ट्रीय विमर्श को अपने हिसाब से मोड़ने के भाजपा के प्रयासों को मजबूत चुनौती देने में मदद करेगी।
---- ----
अशोक स्वैन स्वीडन के उप्साला विश्वविद्यालय में ‘पीस एंड कन्फलिक्ट रिसर्च’ के प्रोफेसर हैं।
Published: undefined
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
Published: undefined