राजनीतिक रणनीतिकार प्रशांत किशोर की मंगलवार को पटना में हुई प्रेस कांफ्रेंस से बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को कितना नुकसान होगा, इसका अनुमान लगाना अभी जल्दबाजी होगी, लेकिन इससे नीतीश के राजनीतिक विरोधी तेजस्वी यादव को जरूर सियासी हथियार मिल गया है। वैसे भी तेजस्वी आने वाले दिनो में बेरोजगार यात्रा निकालने वाले हैं, जिसमें पूरी संभावना है कि वे नीतीश शासन पर करारे प्रहार करेंगे।
प्रशांत किशोर के सारे हमले नितीश के विकास मॉडल पर ही थे। खासतौर से उन्होंने खुलासा कर दिया कि नीतीश के शासन में बिहार बदला नहीं है, इसका सीधा फायदा आरजेडी को ही होने वाला है।
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जेडीयू के उपाध्यक्ष रहे प्रशांत किशोर ने साफ कहा कि बीते 15 साल में बिहार में बिल्कुल विकास नहीं हुआ है और विकास के किसी भी पैमाने पर बिहार देश के किसी भी राज्य से एक इंच भी आगे नहीं है। प्रशांत किशोर ने कहा कि प्रति व्यक्ति आय हो, बिजली की स्थिति हो, शिक्षा की बात हो, हर मोर्चे पर बिहार का प्रदर्शन निराशाजनक रहा है। उनके मुताबिक शिक्षा में तो हालात बेहद खराब है।
तो क्या प्रशांत अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत बिहार से ही करने वाले हैं? इस बारे में वे साफ तो कुछ नहीं कहते लेकिन कहते हैं कि वे बिहार की तस्वीर बदलना चाहते हैं। उनका दावा है कि उनके पास 2.93 लाख युवाओं का समर्थन है। इनमें से दो तिहाई फिलहा बीजेपी के सक्रिय कार्यकर्ता हैं। उन्होंने कहा कि वे बिहार के युवाओं के साथ मिलकर बिहार को बदलना चाहते हैं। पीके, जैसा कि उन्हें आमतौर पर बुलाया जाता है, का यह ऐलान ऐसे वक्त में आया है जब आरजेडी नेता और लालू यादव के पुत्र तेजस्वी यादव भी युवाओं की बात कर रहे हैं।
हालांकि फिलहाल ऐसे संकेत तो नहीं मिल रहे हैं कि प्रशांत किशोर और तेजस्वी यादव साथ हैं, लेकिन दोनों के ही केंद्र में बिहार के युवा हैं।
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ध्यान रहे कि नीतीश कुमार बिहार के विकास का मॉडल हमेशा सामने रखते रहे हैं, और अगर कोई इस बारे में सवाल उठाता है तो वे तीखी प्रतिक्रिया देते हैं। ऐसे में जब पीके सवला उठाते हैं कि आखिर नीतीश के शासन की तुलना हमेशा लालू यादव के शासन से ही क्यों की जाती है, क्योंकि अब तो 15 साल से नीतीश कुमार ही शासन कर रहे हैं, ऐसे में बिहार की तुलना दूसरे राज्यों के विकास के साथ क्यों नहीं होती, तो नीतश के पास संभवत: अभी तक इसका जवाब नहीं है। पीके पूछते है कि आखिर कब तक बिहार आखिरी पायदान पर रहेगा, कब यह देश के टॉप 10 राज्यों में आएगा।
भले ही प्रशांत किशोर इस पर चुप रहें कि उनकी कोई राजनीतिक महत्वाकांक्षा नहीं है और वे मुख्यमंत्री पद के दावेदार नहीं हैं, लेकिन उन्होंने जो कुछ कहा वह राजनीति के अलावा क्या है। पीके ने नीतीश की यह कहते हुए आलोचना की कि उन्होंने गांधी को छोड़कर गोडसे के भक्तों का दामन थाम लिया। साथ ही कहा कि एनआरसी और एनपीआर मौजूदा फार्मेट में बिहार में लागू नहीं होगा। उन्होंने सवाल भी पूछा कि आखिर ऐसा क्या होगा या कि नीतीश कुमार इतनी ओछी बातें करने लगे जिससे उनका खुद का सम्मान और गरिमा खत्म होता है।
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हालांकि चर्चा कुछ और थी, लेकिन पीके ने अकेले ही प्रेस कांफ्रेंस की। इस प्रेस कांफ्रेंस में न तो कोई नेता था और न ही जेडीयू का कोई विधायक। आभास यही होता है कि पीके ने अभी अपने पत्ते खोले नहीं हैं। उन्होंने कन्हैया कुमार के बारे में भी कुछ नहीं कहा जो इन दिनों बिहार में राजनीतिक यात्राएं कर रहे हैं।
आने वाले वक्त में पीके की राजनीति किस रूप में सामने आएगी, लेकिन एक बात तो तय है कि पीके द्वारा पेश आंकड़ों से नीतीश का नुकसान और तेजस्वी का फायदा होता है। वैसे भी आंकड़ों के मामले में आरजेडी कमजोर है और उसके प्रचार का पूरा जोर सामाजिक गठजोड़ और जातीय आधार ही होता रहा है। लेकिन आज के दौर के राजनीतिक युद्ध सिर्फ जाति और धर्म पर नहीं लड़े जा सकते, वह तब जब सामने 14 साल से सत्तासीन राजनीतिक प्रतिद्वंदी हो।
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