पृथ्वी के बढ़ाते तापमान से सबसे अधिक प्रभावित ग्लेशियर होते हैं। पूर्व-आद्योगिक काल की तुलना में पृथ्वी का औसत तापमान 1.2 डिग्री सेल्सियस बढ़ चुका है, पर ग्लेशियर पहाड़ों पर जिस ऊंचाई पर बनते हैं– अनुमान है कि उन क्षेत्रों का तापमान पृथ्वी के औसत तापमान बृद्धि की तुलना में दुगुना है। तापमान वृद्धि के कारण ग्लेशियर के पिघलने की दर लगातार बढ़ रही है। अधिकतर ग्लेशियर से बहने वाला पानी किसी नदी में जाता है पर अनेक ग्लेशियर ऐसे भी हैं जिनसे बहने वाला पानी इसके ठीक नीचे के क्षेत्र में जमा होता है और यह पानी पत्थरों और मलबों से रूककर एक झील जैसी आकृति बना लेता है। जब इसमें अधिक पानी जमा होता है तब किनारे के पत्थरों और मलबों पर दबाव बढ़ जाता है जिससे ये टूट जाते हैं। ऐसी अवस्था में झील में जमा पानी एक साथ तीव्र वेग से नीचे के क्षेत्रों में पहुंचता है जिससे फ्लैश फ्लड या आकस्मिक बाढ़ आती है। ऐसी बाढ़ से जानमाल, संपत्ति और इंफ्रास्ट्रक्चर को नुकसान पहुंचता है।
अनुमान है कि दुनिया में कुल 215000 ग्लेशियर है, जिनमें से आधे से अधिक वर्ष 2100 तक पूरी तरह पिघल कर ख़त्म हो चुके होंगें। पिछली शताब्दी के दौरान सागर तल एन जितनी बढ़ोत्तरी हुई है, उसमें से एक-तिहाई योगदान ग्लेशियर के पिघलने से उत्पन्न पानी का है। जलवायु परिवर्तन और तापमान बृद्धि ग्लेशियर के पिघलने की दर बढ़ रही है और इसके साथ ही ग्लेशियर झीलों की संख्या भी बढ़ रही है। वर्ष 2020 में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार दुनिया में ग्लेशियर झीलों की संख्या में पिछले 30 वर्षों के दौरान 50 प्रतिशत से अधिक की बृद्धि हो गयी है। इस अध्ययन को उपग्रह से प्राप्त चित्रों के आधार पर किया गया था।
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हाल में ही नेचर कम्युनिकेशंस नामक जर्नल में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार दुनिया के 30 देशों की 9 करोड़ आबादी लगभग 1089 ग्लेशियर झीलों के जल-ग्रहण क्षेत्र में बसती है। इसमें से लगभग डेढ़ करोड़ आबादी ग्लेशियर झीलों के जल-ग्रहण क्षेत्र के एक किलोमीटर दायरे में रहती है और इस आबादी पर ग्लेशियर झील के टूटने के बाद आकस्मिक बाढ़ का सबसे अधिक ख़तरा है। यह डेढ़ करोड़ आबादी दुनिया के महज 4 देशों में बसती है – भारत, पाकिस्तान, चीन और पेरू। इसमें से 90 लाख आबादी हिमालय के ऊंचे क्षेत्रों में है, जिसमें से 50 लाख से अधिक आबादी भारत के उत्तरी क्षेत्र और पाकिस्तान में है। ग्लेशियर झीलों पर पहले भी अनेक अध्ययन किये गए हैं, पर यह पहला अध्ययन है जो यह बताता है कि इनका सबसे अधिक ख़तरा कहां है। हिमालय के ऊंचे क्षेत्रों में ग्लेशियर झील के टूटने के बाद हजारों लोगों की मौत होती है और संपत्ति के साथ ही इंफ्रास्ट्रक्चर का भारी नुकसान होता है, जबकि अमेरिका के उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में हिमालय की तुलना में दुगुनी ग्लेशियर झीलें हैं, पर वहां इनके टूटने पर अधिक नुकसान नहीं होता। पिछले वर्ष पाकिस्तान की अभूतपूर्व बाढ़ में ग्लेशियर झीलों का पानी भी शामिल था।
वैज्ञानिक जर्नल नेचर में हाल में ही प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार वर्ष 1900 की तुलना में ग्लेशियर झीलों के बनाने के क्षेत्रों की औसत ऊंचाई बढ़ रही है, ग्लेशियर झीलें पहले की तुलना में कुछ सप्ताह पहले ही बनाने लगी हैं और अब ग्लेशियर झीलों में आने वाले पानी का आयतन कम हो रहा है। इस अध्ययन के लिए वर्ष 1900 के बाद से 1500 से अधिक ग्लेशियर झील के टूटने के बाद आई आकस्मिक बाढ़ से बहने वाले पानी का आयतन, सबसे अधिक बहाव, उनके समय और झील की समुद्र तल से औसत ऊंचाई का आकलन किया गया है और देखा गया है कि साल-दर-साल इनमें क्या अंतर आया है। इस अध्ययन को यूनिवर्सिटी ऑफ़ पाट्सडैम के वैज्ञानिक जॉर्ज वेह के नेतृत्व में किया गया है।
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इस अध्ययन के अनुसार पिछले कुछ दशकों के दौरान ग्लेशियर झीलों की संख्या में तेजी आई है, पर अब इन झीलों में एकत्रित पानी का आयतन और इनके टूटने के बाद पानी के सर्वाधिक बहाव में वर्ष 1900 की तुलना में कमी देखी गयी है। ग्लेशियर झीलें वर्ष 1900 में साल के जिस समय बना करती थीं अब उस समय से कई हफ़्तों पहले ही झीलें बन जाती हैं। वर्ष 1900 की तुलना में हिमालय के ऊपरी क्षेत्रों में झीलें औसतन 11 सप्ताह पहले ही बन जाती हैं, जबकि यूरोपियन आल्प्स में 10 सप्ताह पहले और उत्तर-पश्चिम अमेरिका में यह समय 7 सप्ताह पहले का है। इसका सीधा सा मतलब यह है कि हिमालय के ऊपरी ग्लेशियर के क्षत्रों में जो तापमान औसतन 11 सप्ताह पहले होता था, अब वही तापमान 11 सप्ताह पहले ही आ जाता है। इस अध्ययन के अनुसार एंडीज, आइसलैंड और उत्तरी ध्रुव के पास स्थित देशों में ग्लेशियर झीलों की समुद्र तल से ऊंचाई 250 से 500 मीटर से अधिक बढ़ गयी है।
कोलंबिया यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने हिमालय के 2000 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में स्थित 650 ग्लेशियर का बारीकी से अध्ययन किया है। इनके अनुसार, सभी ग्लेशियर तापमान बृद्धि के कारण खतरे में हैं और पिछले 15 वर्षों के दौरान इनके पिघलने और सिकुड़ने की दर पहले से दुगुनी हो गयी है। वर्ष 1975 से 2000 के बीच ग्लेशियर की औसत ऊंचाई लगभग 25 सेंटीमीटर प्रतिवर्ष की दर से कम हो रही थी जबकि 2000 के बाद यह दर औसतन 46 सेंटीमीटर तक पहुँच गयी है। इस बढी दर के कारण हिमालय के ग्लेशियर से प्रतिवर्ष 8 अरब टन पानी नदियों में बहने लगा है। इन वैज्ञानिकों के अनुसार इसका कारण तापमान बृद्धि है।
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हिन्दूकुश हिमालय लगभग 3500 किलोमीटर के दायरे में फैला है, और इसके अंतर्गत भारत समेत चीन, अफगानिस्तान, भूटान, पाकिस्तान, नेपाल और म्यांमार का क्षेत्र आता है। इससे गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिन्धु समेत अनेक बड़ी नदियाँ उत्पन्न होती हैं, इसके क्षेत्र में लगभग 25 करोड़ लोग बसते हैं और 1।65 अरब लोग इन नदियों के पानी पर सीधे आश्रित हैं। अनेक भू-विज्ञानी इस क्षेत्र को दुनिया का तीसरा ध्रुव भी कहते हैं क्यों कि दक्षिणी ध्रुव और उत्तरी ध्रुव के बाद सबसे अधिक बर्फीला क्षेत्र यही है। पर, तापमान बृद्धि के प्रभावों के आकलन की दृष्टि से यह क्षेत्र उपेक्षित रहा है। हिन्दूकुश हिमालय क्षेत्र में 5000 से अधिक ग्लेशियर हैं और इनके पिघलने पर दुनियाभर के औसत सागर तल में 2 मीटर की बृद्धि हो सकती है।
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