विचार

विष्णु नागर का व्यंग्यः ट्रंंपित भारत के नये राष्ट्रपिता पीएम मोदी!

विश्वगुरुत्व का भार जिस देश पर हो और जिसे उसने अपने सिर पर उठा रखा हो, उसके दो राष्ट्रपिता होना स्वाभाविक है, बल्कि दो कम ही लगते हैं। जिस देश में तैंतीस करोड़ देवता हों, उसमें सिर्फ दो राष्ट्रपिता! एक करोड़ नहीं तो कम से कम दस लाख तो राष्ट्रपिता होने चाहिए।

फोटोः सोशल मीडिया
फोटोः सोशल मीडिया 

आजादी के बाद से हमें राष्ट्रपति तो बहुतेरे मिले हैं और मिलते भी रहेंगे- कुछ रबर स्टैंप टाइप, कुछ असली टाइप और कुछ वाकई 24 कैरेटवाले। वैसे अब तो रबर स्टैंपों का ही जमाना है, जो रबरस्टैंपी करे, वह किसी भी दिन, किसी भी ऊंची, नीची, मंझली, मोटी, पतली कुर्सी पर आराम से बैठाया जा सकता है। अगर वह संघ का हो तो फिर सोने पर सुहागा या कहें- सुहागे पर सोना!

तो बधाई हो 130 करोड़ भारतवासियों कि हमें अब राष्ट्रपति ही नहीं, अमेरिकी राष्ट्रपतियों की महती कृपा रही तो भविष्य में नये-नये राष्ट्रपिता मिलेंगे। फिलहाल एक मिल चुके हैंं- नरेंद्र मोदी। अब वह प्रधानमंत्री नहीं, राष्ट्रपिता या भारतपिता नरेंद्र मोदी हैं। अब हमारे एक नहीं, दो-दो राष्ट्रपिता हैं- गांधीजी तो पहले से थे, अब डोनाल्ड ट्रंप जी की मेहरबानी से मोदीजी भी हैं। कई देशों को तो एक राष्ट्रपिता भी नसीब नहीं होता, हमें तो दो-दो उपलब्ध हैं।

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हमारे नये राष्ट्रपिता मोदीजी को जो गांधीजी से छोटा राष्ट्रपिता मानेगा, वह जीते जी रौरव नरक पाएगा। वैसे विश्वगुरुत्व का गुरुतर भार जिस भारत पर हो और जिसे उसने आज तक अपने सिर पर उठा रखा हो, उसके दो राष्ट्रपिता होना अत्यंत स्वाभाविक हैं, बल्कि दो भी कम ही लगते हैं। जिस देश में तैंतीस करोड़ देवता हों, उसमें सिर्फ दो राष्ट्रपिता! एक करोड़ नहीं तो कम से कम दस लाख तो राष्ट्रपिता होने चाहिए (बस खतरा इतना सा है कि मोदीजी का राष्ट्रपिता के रूप में महत्व नगण्य हो जाएगा)। चलो शुरुआत में एक लाख भी चलेंगे।अच्छा इन भाई साहब का सुझाव है कि फिलहाल दस हजार काफी होंगे मगर बहनजी कह रही हैं कि नहीं, एक हजार ही काफी हैं।

क्योंकि ये सब मोदी प्रजाति के राष्ट्रपिता या भारत पिता होंगे। इन्हें तो कार, बंगला, विदेश यात्रा, प्रतिदिन की छह ड्रेस चाहिए होंगी और इनके लिए एक-एक राजघाट की भी जरूरत होगी। चलो बड़ी बहन हैं, इनकी बात मान लेते हैं। अच्छा माताजी भी कुछ कहना चाहती हैं, तो कहिए- 'सिर्फ एक राष्ट्रपिता होने चाहिए और वह भी सिर्फ गांधीजी'।' माताजी,आपको नहीं लगता कि इतने बड़े देश के लिए- जिसकी आबादी 130 करोड़ से भी अधिक है- केवल एक काफी होगा?

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चलिए आप माताजी हैं, बड़ी हैं, सम्माननीय हैं, इसलिए आपकी बात टाली नहीं जा सकती, मगर माताजी समस्या अब बड़ी और जटिल हो चुकी है। ट्रंपजी, मोदीजी को आलरेडी भारतपिता या कहें राष्ट्रपिता घोषित कर चुके हैं। उनकी घोषणा की उपेक्षा से भारत-अमेरिकी संबंधों पर और मोदी तथा भारतीय जनता के मधुर संबंधों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। ट्रंप जी को हम थोड़ी देर के लिए भूल भी जांए मगर मोदीजी तो दीवार फंदवाकर भी अपने विरोधियों को पकड़वा देते हैं, घर से आधी रात को उठवा लेते हैं। और आपकी उम्र गई है पक। आपके साथ भी ऐसा कुछ हो गया तो आपका और आपके साथ हमारा भी इस जुर्म में शरीक होने के कारण क्या होगा! आप और हम पर राजद्रोह के अलावा राष्ट्रपिता द्रोह की भी नई धाराएं लग सकती हैं। जल्दी नहीं है, 'मोदी को मैं देख लूंगी', जैसा कठोर वक्तव्य देने से पहले एक बार आप ठंडे दिमाग से सोच लें।

माताजी इक्कीसवीं सदी आ चुकी है, बीसवीं सदी के राष्ट्रपिता और इनमें फर्क होना स्वाभाविक है। गांधीजी को राष्ट्रपिता नेताजी सुभाषचंद्र बोस ने बनाया था, इन्हें अमेरिकी मोदीजी ने बनाया है या कहें कि अमेरिकी ट्रंंप ने भारतीय ट्रंंप को बनाया है। गांधीजी पर नेताजी की देसी मुहर लगी थी मगर इन पर दुनिया के सबसे बड़े दादा अमेरिका के ट्रंप जी की मोहर है। एक ने 'सत्य के प्रयोग' किए थे, दूसरे 'असत्य के प्रयोग' दिन में दस बार करते हैं। महात्मा गांधी ने अपने पूरे जीवन में सत्य के जितने प्रयोग नहीं किए होंगे, उतने ट्रंपजी नामित भारतपिता 'असत्य के प्रयोग' कर चुके हैं।

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एक के पास लंदन की कानून की असली डिग्री थी तो ट्रंपित गांधी के पास भारत की एमए की फर्जी डिग्री है! पहले राष्ट्रपिता एक धोती से शरीर को लपेट लेते थे, ट्रंंपित भारतपिता दिन में दस ड्रेसें बदला करते हैं। एक ने कुछ भी नहीं छुपाया था, जबकि दूसरे के पास छुपाने के लिए ही सबकुछ है, बताने के लिए सिर्फ ड्रेस हैं। उन्होंने तो सांसद का चुनाव लड़ने से पहले तक यह भी स्वीकार नहीं किया था कि उनकी एक पत्नी भी है।

'सत्य के प्रयोग' करने वाले राष्ट्रपिता ने गोली खाई थी, इनके हाथ में गोली खिलवाने की ताकत है।पहले वाले कई बार जेल गए थे, ये जिसे जब चाहें, जेल भिजवा सकते हैं, देशद्रोही बनवा सकते हैं। वे दंगे रोकते थे, ये दंगे करने देते हैं। बीसवीं और इक्कीसवीं सदी के बीच यह अंतर स्वाभाविक है माताजी। इसे स्वीकार कीजिए मगर माताजी मुझे आग्नेय नेत्रों से देख रही हैं। देखने दो। हू केअर्स!

भाइयों एवं बहनों अब हमारे दो राष्ट्रपिता हैं। इस मामले में एक देश, एक संविधान की तरह, एक देश, एक राष्ट्रपिता का सिद्धांत नहीं चलता!

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