हाल ही में जब यह लेखक पूर्वी उत्तर प्रदेश के दौरे पर था तो ग्रामीण विकास विभाग से जुड़े एक वरिष्ठ अधिकारी ने विस्तार से बातचीत की। इस बातचीत के दौरान उन्होंने स्पष्ट कर दिया कि वे बीजेपी के पक्के समर्थक हैं। इसके बावजूद उन्होंने किसानों को प्रत्यक्ष लाभ योजना के बारे में कहा, “हम लोग इस बात से परेशान हैं कि किसानों के खाते में चुनाव से पहले पैसा पहुंचाने की जल्दबाजी में बहुत गलतियां हो सकती हैं। जब महीनों में होने वाले काम को हफ्तों में निबटाने को कहा जाएगा तो गलतियां तो होनी ही हैं।
उन्होंने योजना में भ्रष्टाचार की आशंका जताते हुए आगे कहा, “सही लाभार्थी की पहचान इतनी जल्दबाजी में करना वैसे ही कठिन है, उस पर भ्रष्टाचार की मार भी है। जब वैसे ही अनेक गलतियां हो रही हैं, तो कुछ पैसे लेकर गलत लोगों का नाम लाभार्थी की जगह लिख लेने पर कैसे रोक लगेगी।”
यह विचार एक ऐसे अधिकारी का है जिसने आसपास की स्थिति देखी है और जो सत्ताधारी पार्टी का समर्थक होने के नाते इस योजना का सही क्रियान्वयन न होने से चिंतित है। बाद में जब हम पास के एक गांव के प्रधान से मिलने गए तो उसने भी कहा कि 2000 रुपए पर 200 रुपए लेकर लेखपाल ने गलत लोगों का नाम लाभार्थियों की सूची में डाल दिया है।
किसानों की प्रत्यक्ष लाभ योजना की घोषणा जब बजट में हुई थी तो एक आलोचना यह हुई थी कि इसमें बटाईदारों, ठेके पर जमीन जोतने वालों, भूमिहीन कृषि मजदूरों के लिए कोई लाभ नहीं है, जबकि ये सभी लोग खेतों में पसीना बहाने वाले हैं, जो सही अर्थों में किसान हैं। इसके अतिरिक्त कम सिंचित और गैर-सिंचित जमीन पर 2.5 हैक्टेयर से अधिक जमीन वाले अनेक किसानों को भी कुछ राहत की जरूरत थी, जबकि उन्हें भी इस योजना से बाहर रखा गया।
इसके बावजूद जो किसान इसके दायरे में आते हैं, उन्हें जरूर कुछ राहत मिलती, पर इसके लिए अच्छा यह होता कि योजना की घोषणा अंतरिम बजट में न होकर पहले हो जाती। अब अंतरिम घोषणा के बाद चुनाव में बहुत कम समय बचा है और सरकार का इरादा यह है कि किसी तरह जल्दबाजी में चुनाव से पहले दो हजार रुपए की एक किश्त या दो किश्तों को किसानों के खाते में पंहुचा कर कुछ चुनावी लाभ प्राप्त कर लिया जाए। इस जल्दबाजी के कारण ही लाभार्थी के सही पहचान में बहुत कठिनाई आ रही है और भ्रष्टाचार की संभावना बढ़ गई है।
एक बार गलती हो जाती है तो उसमें सुधार करना कठिन हो जाता है, उसमें समय लगता है इस स्थिति में यह माना जा रहा है कि एक बार किसी ने पैसा लेकर अपना नाम दाखिल करवा लिया तो उसे एक नहीं इस योजना की कई किश्तें मिल जाएंगी।
फिलहाल जल्दबाजी में गलतियों से बचने का कोई तुरंत समाधान भी नजर नहीं आ रहा है। इससे यह स्पष्ट होता है कि चुनावी लाभ को ध्यान में रखकर लिए गए फैसलों के जल्दबाजी में क्रियान्वयन से कई समस्याएं पैदा होती हैं।
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