जिन दिनों नरेंद्र मोदी गुजरात के मुख्यमंत्री थे, उसी दौर में मैं गुजरात में रिपोर्टिंग कर रही थी। उस दौरान एक खास बात जो मैंने नोट की वह यह थी कि मोदी और उनकी पार्टी के लोगों के बीच आपसी भरोसा बहुत कम था। जब-जब मैंने बीजेपी के किसी पदाधिकारी से बात करने की कोशिश की तो हर बार बहुत ही रोचक और कुछ संदिग्ध बातें सामने आई जिनसे मेरी जिज्ञासा बढ़ी।
बीजेपी का कोई भी व्यक्ति मुझसे पार्टी कार्यालय या अपने घर पर कभी नहीं मिला। और अगर ऐसा हुआ भी तो बिल्कुल औपचारिक बातें ही हुईं जिसमें कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं होता था। मेरी ज्यादातर मुलाकातें या तो किसी बाजार में होती थीं या फिर किसी स्कूल या खेल के मैदान में होती थीं। यहां तक कि कृषि विश्वविद्यालय या किसी सीवेज डंप वाले इलाके में होती थीं जहां मेरे फोटो जर्नलिस्ट साथी को अच्छी तस्वीरें भी मिल जाती थीं। लेकिन जब मैं उनसे घर या कार्यालय के शांत और एयरकंडीशंड माहौल में आराम से बातचीत की उम्मीद करती तो वे असहज हो जाते थे। धीरे-धीरे मुझे इसकी आदत हो गई और वक्त गुजरने के साथ मैं पत्रकारिता के नए मोर्चे की तरफ बढ़ चली।
Published: undefined
इसके बरअक्स कांग्रेसियों से बात करना काफी सुविधाजनक होता था, कभी होटल में, रेस्त्रां में, उनके घरों या दफ्तरों में मुलाकातें होती थीं। दोनों पार्टियों की मेहमाननवाजी के इस बड़े अंतर को समझने में मुझे कुछ समय लगा। एक बार जब मैंने एक व्यवसायी से इस बारे में जिक्र किया तो उसकी बीजेपी के लोगों के साथ कोई सहानुभूति नजर नहीं आई।
उसका कहना था, “ऐसा इसलिए है क्योंकि उनके फोन मोदी टैप कराते हैं। आप तो बाहर से आई पत्रकार हो, आप तो चली जाओगी, लेकिन उन्होंने आपसे कुछ ऐसा वैसा कह दिया तो उन्हें दिक्कत हो जाएगी और उनका राजनीतिक करियर तक बरबाद हो सकता है। इतना सब होने पर भी वे तमाम बातें करते हैं।”
मुझे उस वक्त इस सब पर विश्वास नहीं हुआ था, लेकिन मैंने महसूस किया कि अपनी खबरों या स्टोरी के लिए अगर आखिरी वक्त में मुझे कुछ क्लैरिफिकेशन चाहिए होता था वह मुझे नहीं मिल पाता था, क्योंकि मैं तो अपनी स्टोरी अपने होटल रूम में बैठकर लिखती थी और कई बार डेडलाइन सिर पर होती थी। मैं फोन करती को या तो मेरा उठाया ही नहीं जाता, और अगर कोई फोन उठाता तो बस कहता कि जिसस बात करनी है वह शख्स नहीं है। अंतर्निहित नोट यह था कि वह उपलब्ध नहीं होगा और मुझे फिर से कॉल नहीं करना चाहिए - स्वर में इतनी अशिष्टता और शत्रुता थी कि मैंने कभी नहीं किया, स्पष्टीकरण के बिना जा रहा था। लब्बोलुआब यह था जिससे मैं बात करना चाहती हूं वह उपलब्ध नहीं होगा और मुझे दोबारा कॉल नहीं करना चाहिए। लहजे में एक तरह की अशिष्टता और एक तरह की धमकी रहती कि मैंने खुद ही कभी दोबारा फोन नहीं किया और मेरी स्टोरी बिना क्लैरिफिकेशन के ही चली जाती।
Published: undefined
एक बार ऐसे ही एक नेता से मिली तो उसने माफी मांगी और मुझे अपने ड्राइवर का नंबर देते हुए कहा कि अगर कुछ और पूछना हो तो इस नंबर पर कॉल करना। साथ ही कहा, “लेकिन सिर्फ बहुत ही अर्जेंट मामलों में ही फोन करना, क्योंकि मैं इस नंबर पर भी बहुत देर तक बात नहीं कर सकता।”
मुझे इस पर थोड़ा आश्चर्य भी हुआ था कि किसी नंबर पर फोन करने से फोन वाले को क्या नुकसान हो सकता है, लेकिन बाद में जब मैंने अपनी दुविधा एक कांग्रेसी के सामने रखी तो उसने वही बात कही जो उस व्यवसायी ने कही थी। उसने कहा, “मोदी हर किसी का फोन टैप कराते हैं, इसमें हमारे नंबर भी शामिल हैं, किन हमें परवाह नहीं है। लेकिन बीजेपी वाले डरे रहते हैं, इसीलिए वे बात करने के लिए अपने ड्राइवर या मेड का नंबर इमरजेंसी के लिए देते हैं।”
मुझे फिर भी इस सब पर तब तक विश्वास नहीं हुआ था, जब तक गुजरात की एंटी-टेररिज्म स्क्वाड (एटीएस) द्वारा एक युवा महिला का फोन टैप करने की बात सामने नहीं आई। लेकिन अब मेरा मानना है कि गुजरात में कांग्रेस नेताओं को भी कम से कम 2012 के चुनाव के दौरान अपने फोन टैपिंग की भनक थी। इस चुनाव को मैं ने काफी व्यापक रूप से कवर किया था। मेरा अनुमान था कि मोदी को 180 में से 100 से अधिक सीटें कभी नहीं मिल सकतीं, लेकिन मोदी कम से कम से 150 सीटों का दावा कर रहे थे। पेगासस के खुलासे के बाद मुझे एहसास हुआ कि 2019 के चुनाव कैसे चुनाव को चुराया गया और कैसे राहुल गांधी के फोन टैप करने से बीजेपी को उनकी हर रणनीति की काट करने और विपक्ष के हर विजेता को किस तरह हराने में मदद मिली होगी।
Published: undefined
जैसा कि मैंने अपने गुजरात के मित्रों (बीजेपी और कांग्रेस दोनों से ही) से जाना कि मोदी ने विपक्ष की निश्चित जिताऊ सीट की किस पहचान की और फिर वहां के पोल एजेंटों और मतदाताओं को टारगेट करके अपनी जीत को सुनिश्चित किया। इसके लिए कांग्रेस को वोट न देने के लिए पैसे दिए गए और अगर जिताऊ कांग्रेस उम्मीदवार हार गया तो और भी अधिक भुगतान किया। तरीका यह अपनाया गया कि मतदाताओँ को कहीं और फंसा दिया जाए और उन्हें पोलिंग बूथ तक तब जाने दिया जाए जब वोटिंग का वक्त खत्म होने वाला हो। ऐसे में उम्मीदवार के एजेंट कोई आरोप भी नहीं लगा सकते।
मैंने इस सबको एक कांस्पीरेसी थ्योरी या साजिश की कहानी ही समझा और इसपर विश्वास नहीं किया, जब तक कि मुझे ऐहसास नहीं हुआ कि इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए कैसे विपक्षी दलों को फंड देने से रोका जा सकता है और उन्हें कभी उतना फंड नहीं मिल पाता जितना बीजेपी को मिलता है। इसी पैसे के दम पर बीजेपी विपक्ष को खरीदना, उन पर कई तरीकों से जासूसी कराना, उनकी कमजोरियों तक पहुंचना, ईवीएम (इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन) को हैक करना और जनादेश का उल्लंघन कर अपने पक्ष में किया जाता है। लेकिन, जैसा कि हमने पश्चिम बंगाल में देखा, किसी भी किस्म की जासूसी या हैकिंग की कोई साजिश नाकाम हो जाती है अगर लोगों का मिजाज ही अलग हो। और सारी कोशिशें धरी रह जाती हैं जब लोगों का मोह भंग होना शुरु हो जाता है, जैसा कि मोदी के साथ इन दोनों होना शुरु हो गया है।
लेकिन एक बात है जिस पर मुझे जरूर टिप्पणी करनी चाहिए। गुजरात में रिपोर्टिंग से मुझे यह ज्ञान मिला कि मोदी बहुत कम लोगों पर भरोसा करते हैं, तो पेगासस के खुलासे से पता चलता है कि उन्हें उन लोगों पर भी भरोसा नहीं है जो खुद को उनका दोस्त मानते हैं। अनिल अंबानी पहले उद्योगपति थे जिन्होंने गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर नरेंद्र मोदी की खुलकर प्रशंसा की थी और उन्हें प्रधान मंत्री बनाए जाने का आह्वान किया था।
Published: undefined
मोदी ने पूरी तरह से अयोग्य और लगभग दिवालिया हो चुके छोटे अंबानी को राफेल सौदा देने के लिए फ्रांसीसी सरकार की बांह मरोड़कर अपनी सरकार को संकट में डाल दिया। फिर भी उनकी सरकार ने न सिर्फ अनिल अंबानी के फोन को जासूसी के लिए टारगेट बनाया बल्कि दसॉल्ट के अन्य अधिकारियों के अलावा, सऊदी अरब के राजदूत, जिनकी सरकार ने मोदी को एक पुरस्कार दिया है। मुझे सबसे ज्यादा रोचक तो दोनों चीनी राजदूतों और दलाई लामा की एक साथ जासूसी करने की बात लगी।
इस सबसे मुझे एक बेहद देसी बात याद आ गई। मेरी दादी विवेक के बारे यह कहते हुए हिदायत देती थीं, ‘इधर की बात उधर और उधर की बात इधर करने वाले को कुछ हासिल नहीं होता है।‘ तो क्या मोदी सरकार दादी की गपशप से भी बदतर है? लेकिन इस तरह की इधर-उधर की बातें खतरनाक और भयावह हो जाती हैं जब निशाने पर पत्रकार, राजनेता, संस्थागत पदों पर बैठे लोग और अन्य लोग हों। एशिलस का मशहूर वक्तव्य है कि, "किसी पर भरोसा नहीं करना एक तरह की अत्याचार की बीमारी है।"
Published: undefined
पेगासस खुलासे से पता चलता है कि मोदी सरकार ने जासूसी की और उन पत्रकारों पर भी भरोसा भी नहीं किया जो उनके करीबी हैं और एक तरह से उनके सलाहकार हैं और हमें बताते हैं किदेश किस भयानक महामारी की ओर बढ़ रहा है। नरेंद्र मोदी जैसा आदमी होना बहुत मुश्किल होगा – जिसका कोई दोस्त न हो, जिसे हर किसी व्यक्ति और हर चीज पर शक हो, एक दुर्भावनापूर्ण स्वभाव और चाश्नी में डूबे शब्दों में छिपा एक खराब मस्तिष्क हो।
अनिल अंबानी को इसका मजा मिल चुका है और उन्हें अपमान सहना पड़ा है। हम सबके लिए समय की है वक्त की हकीकत को पहचाने और समझे कि बीजेपी की सत्ता की लालसा हमारे देश को पूरी तरह से और हर तरह से नष्ट कर रही है।
Published: undefined
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
Published: undefined