फिल्म जगत के महान अभिनेता अमिताभ बच्चन के बारे में तो आप भली भांति जानते ही हैं। पिछले सप्ताह केवल बच्चन जी को ही नहीं अपितु उनके लगभग पूरे परिवार को कोरोना वायरस ने दबोच लिया। उनकी छोटी-सी पोती को भी अस्पताल में भर्ती करना पड़ा। हम सभी की यही प्रार्थना है कि बच्चन परिवार जल्द- से-जल्द स्वस्थ हो। पर आपको यह भी याद होगा कि संपूर्ण बच्चन परिवार ने अपने घर की बालकनी पर खड़े होकर बड़े उत्साह से ताली और थाली बजाई, प्रधानमंत्री के आग्रह पर दिया भी जलाया तथा ‘गो कोरोना गो’ के नारे भी लगाए। फिर भी, वे कोरोना के शिकंजे में आ गए। अरे, एक बच्चन जी ही क्या, कोरोना के आगे तो इस समय हर धर्म के भगवान भी असहाय दिखाई पड़ रहे हैं। तिरुपति बाला जी मंदिर के शीर्ष पुजारी बेचारे कोरोना के चलते भगवान को प्यारे हो गए। कोई भी प्रार्थना उनको इस महामारी से नहीं बचा सकी। अर्थात, न ताली, न थाली और न ही प्रार्थना- कुछ भी कोरोना महामारी के आगे काम नहीं आ रहा है। क्या महान अभिनेता और क्या मुख्य पुजारी तथा क्या सड़क का एक मामूली व्यक्ति- कोरोना के आगे हम सब लाचार हैं।
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उधर, यह महामारी है कि थमने का नाम ही नहीं ले रही है। भले ही टीवी और समाचार पत्र महामारी के बारे में अब कुछ थमकर समाचार दे रहे हों, परंतु कटु सत्य यही है कि स्थिति बिगड़ती जा रही है। अभी दो रोज पहले अपने घर इलाहाबाद फोन किया, तो साहब, पता चला कि वहां बहुत तेजी से यह बीमारी फैल रही है। स्वयं हमारा मोहल्ला सील कर दिया गया। वह उत्तर प्रदेश जो अब तक लगभग कोरोना मुक्त समझा जा रहा था, वहां भी सप्ताह में दो दिन लॉकडाउन आरंभ हो गया। पड़ोस में बिहार की हालत तो पूछिए ही नहीं। पटना में मरीजों के साथ-साथ वार्ड में शव पड़े हैं और कोई पूछने वाला नहीं। उधर, तेलंगाना में हैदराबाद से समाचार मिला कि श्मशान घाटों और कब्रिस्तानों में जगह नहीं मिल रही है।
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अरे, दिल्ली में दो-चार रोज से अच्छी खबरें मिल रही थीं। परंतु 22 जुलाई को सुबह समाचार पत्र उठाया तो मुख्य समाचार यह था कि यहां हर चार में से एक व्यक्ति कोरोना का शिकार है। आप इस संबंध में यदि विदेशी समाचार पत्र उठाकर पढ़ें तो कलेजा मुंह को आता है। एक विदेशी ‘थिंक टैंक’ के अनुसार, अगले वर्ष जनवरी तक भारत में ग्यारह करोड़ लोग इस महामारी के शिकार होंगे। अब लीजिए, यदि ऐसा हो गया तो कहां से बेड आएंगे, किस अस्पताल में जगह मिलेगी! क्या होगा, कुछ समझ में नहीं आता!
ऐसी संगीन परिस्थिति में आखिर हो तो क्या हो! केवल एक ही रास्ता है, वह यह कि दुर्दशा से बचने के लिए केंद्र और प्रदेश- दोनों सरकारें मिल-जुलकर ऐसी किसी स्थिति से निपटने के लिए तैयार रहें। परंतु सरकारों को तो लगता है कि अब कोरोना की चिंता खत्म हो चुकी है। भारतीय जनता पार्टी की सारी शक्ति इस समय राजस्थान की सरकार गिराने में लगी हुई है। जाहिर है कि यह प्रोजेक्ट प्रधानमंत्री के इशारे पर ही हो रहा होगा। हां, केंद्र और राज्य सरकारें- दोनों ही कोरोना के संबंध में ‘मीडिया मैनेजमेंट’ में पूर्णतयाः समर्पित हैं। टीवी खोलिए तो ‘कोरोना पर मोदी की विजय का व्याख्यान’ और समाचार पत्र खोलिए तो राज्य सरकारों के मुख्यमंत्रियों की फोटो के साथ ‘फुल पेज’ विज्ञापन। अभी दिल्ली में पिछले सप्ताह केजरीवाल सरकार ने दो दिन लगातार ‘फुल पेज’ विज्ञापन हर समाचार पत्र को दे दिए। तीसरे दिन दिल्ली में कोरोना महामारी नियंत्रण में आ गई। स्पष्ट है कि समाचार तंत्र का सौदा हो गया। परंतु मौत और वह भी महामारी की मौत- सिर चढ़कर बोलती है। चौथे ही रोज दिल्ली की पोल-पट्टी खुल गई। एक सर्वेक्षण के जरिये पता चला, यहां तो हर चार में से एक व्यक्ति कोरोना का शिकार है।
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स्पष्ट है कि कोरोना महामारी पूरे भारत में तेजी से फैल रही है। उधर, सरकारों की इस संबंध में न कोई चिंता नजर नहीं आती है और नही कोई तैयारी। सत्य तो यही है कि केंद्र सहित अधिकांश राज्य सरकारें अंधेरे में हाथ-पांव मार रही हैं। केंद्र सरकार को ही लीजिए, तो इस संबंध में मोदी सरकार की कोई स्पष्ट रणनीति नजर नहीं आती है। जब कोरोना वायरस का प्रकोप भारत में मार्च में प्रारंभ हुआ तो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का संपूर्ण फोकस लॉकडाउन पर था। स्वयं प्रधानमंत्री ने देश को संबोधित करके एक नहीं अपितु लगातार तीन लॉकडाउन की घोषणा करके संपूर्ण देश को तीन माह तक ताले में बंद कर दिया। उस समय रणनीति यह थी कि सब कुछ बंद तो कोरोना भी बंद। लीजिए, वहां तो बकौल मीर तकी मीर, ‘उल्टी हो गईं सब तदबीरें, कुछ न दवा ने काम किया।’ जी, लॉकडाउन के बाद भी कोरोना महामारी फैलती ही गई। और उधर, देश की अर्थव्यवस्था भी पूरी तरह छिन्न-भिन्न हो गई। देश में हाहाकार मच गया। भूखे-प्यासे हजारों प्रवासी मजदूर महानगरियों को छोड़कर पैदल अपने घरों को कूच कर गए। मई आते-आते करोड़ों लोग बेरोजगार हो गए। सब के सब काम-धंधे चौपट।
अब मोदी सरकार को समझ में आया कि भाई, यह लॉकडाउन तो बहुत महंगा पड़ा। अब क्या करें! स्वयं प्रधानमंत्री ने देश को संबोधित करके ‘अन- लॉक’ की रणनीति समझाई। निकलो, मगर मास्क लगाकर। काम पर जाओ परंतु‘सोशल डिस्टेन्सिंग’ के पालन के साथ। अर्थात, अब प्राथमिकता थी कि पहले अर्थव्यवस्था संभालो। साहब, एक महीने में पता चला- न अर्थव्यवस्था संभली और नही कोरोना महामारी रुकी। अरे रुकना कैसा, अब तो देश में फिर से लॉकडाउन लगने की संभावनाओं पर चर्चा आरंभ हो गई है। उधर, अर्थव्यवस्था का यह हाल है कि कल हम बाजार गए तो देखा लगभग 30 से 40 प्रतिशत दुकानों पर ताले लटक रहे हैं। पूछा क्यों, तो पता चला कि जब ग्राहक ही नहीं तो फिर दुकान खोलकर बिजली-पानी का खर्चा क्यों बढ़ाएं।
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स्पष्ट है कि मोदी सरकार कोरोना महामारी से निपटने में पूरी तरह से विफल है। उसके पास न तो स्वास्थ्य क्षेत्र और न ही आर्थिक क्षेत्र में समस्याओं से निपटने की कोई रणनीति है। अब तक जो कुछ हो रहा है, वह सब विदेशों की नकल है। विदेशों में लॉकडाउन तो भारत में भी लॉकडाउन। विदेश में ‘अनलॉकिंग’ तो भारत में ‘अनलॉकिंग’। अरे भाई, हर देश की परिस्थितियां अलग-अलग होती हैं, उस परिप्रेक्ष्य में हर देश को अपनी-अपनी रणनीति बनानी होती है। परंतु यहां तो कोई सोच-विचार ही नहीं है। और हो भी क्यों! हजारों मरें, चाहे करोड़ों मरें, भाजपा को भरोसा है कि मोदी जी के नेतृत्व में सरकार तो भाजपा ही बनाएगी। भाजपा को विश्वास है कि मोदी जी के पास अंग्रेजों की ‘लड़ाओ और राज करो’ रणनीति का ऐसा फार्मूला है कि जनता 2019 के समान अपनी तमाम समस्याएं भूलकर वोट मोदी जी को ही डालेगी। मोदी जी ने धर्म और दुश्मन को ‘ठीक’ करने का ऐसा मिश्रण पैदा किया है जिसके आगे सारा विपक्ष नाकाम। धर्म के नाम पर देश में हिंदू-मुसलमान हैं ही, दुश्मन पिछली बार पाकिस्तान था, तो अब चीन मिल चुका है। भले ही चीन ने भारत की जमीन पर कब्जा कर रखा हो परंतु टीवी पर तो मोदी जी की विजय के गुणगान हैं। चाहे कोरोना की महामारी हो अथवा अर्थव्यवस्था की दुर्दशा से भुखमरी और बेरोजगारी, जनता फिर मोदी जी का गुणगान करेगी। लब्बोलुआब यह है कि अभी भारत पर महामारी की मौत एवं अर्थव्यवस्था की दुर्दशा से भुखमरी की दोधारी तलवार लटक रही है जिससे बचने का कोई रास्ता नजर नहीं आता है। उधर, सरकार है कि उसको कोई चिंता ही नहीं है।
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