जिस वक्त हम कोरोना वायरस के वैश्विक हमले को लेकर परेशान हैं, उस वक्त दुनिया में कई तरह की गतिविधियां चल रही हैं और जिनका असर आने वाले वक्त में दिखाई पड़ेगा। अंतरराष्ट्रीय अर्थव्यवस्था, डॉलर को हटाने करने की चीनी कोशिशों और दूसरी तरफ चीन पर बढ़ते अमेरिकी हमलों वगैरह के निहितार्थ हमें कुछ दिन बाद सुनाई और दिखाई पड़ेंगे। उधर, अफगानिस्तान में अंतिम रूप से शांतिस मझौते की कोशिशें तेज हो गई हैं। अमेरिका के विशेष दूत जलमय खलीलजाद दोहा से दिल्ली होते हुए इस्लामाबाद का एक और दौरा करके गए हैं। अमेरिका ने पहली बार औपचारिक रूप से कहा है कि भारत को अब तालिबान से सीधी बात करनी चाहिए और अपनी चिंताओं से उन्हें अवगत कराना चाहिए।
Published: undefined
मई के दूसरे हफ्ते में एक और बात हुई। भारतीय मौसम विभाग ने अपने मौसम बुलेटिन में पहली बार पाक अधिकृत कश्मीर को शामिल किया। मौसम विभाग ने मौसम संबद्ध अपनी सूचनाओं में गिलगित, बल्तिस्तान और मुजफ्फराबाद की सूचनाएं भी शामिल कर लीं। इसके बाद जवाब में 10 मई से पाकिस्तान के सरकारी चैनलों ने जम्मू-कश्मीर के मौसम का हाल सुनाना शुरू कर दिया है। भारत के मौसम दफ्तर के इस कदम के पहले पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने गिलगित और बल्तिस्तान में चुनाव कराने की घोषणा की थी जिस पर भारत सरकार ने कड़ा विरोध जाहिर किया था।
Published: undefined
कश्मीर में आतंकवादियों के साथ सुरक्षाबलों की मुठभेड़ें बढ़ गई हैं क्योंकि यह समय घुसपैठ का होता है। उधर, हिजबुल मुजाहिदीन के कमांडर रियाज नायकू की मुठभेड़ के बाद हुई मौत से भी इस इलाके में खलबली है। इस बार सुरक्षाबलों ने नायकू का शव उनके परिवार को नहीं सौंपा। इसके पीछे कोरोना का कारण बताया गया, पर इसका साफ संदेश है कि सरकार अंतिम संस्कार के समय भारी भीड़ नहीं चाहती। बहरहाल खबरें हैं कि कश्मीर को लेकर पाकिस्तान अपनी रणनीति में बदलाव कर रहा है। हाल में पाकिस्तानी सेना की ग्रीन बुक से लीक होकर जो जानकारियां बाहर आई हैं, उनके मुताबिक, पाकिस्तानी सेना अब छाया युद्ध में सूचना तकनीक और सोशल मीडिया का इस्तेमाल और ज्यादा करेगी।
Published: undefined
हम मानते थे कि इस दौर में ज्यादातर देश कोरोना- युद्ध पर ध्यान केंद्रित कर रहे होंगे, पर ऐसा लगता नहीं। कोरोना की आड़ में छाया युद्ध और तेज हो रहे हैं और भावी रणनीतियां तैयार हो रही हैं। इस बीच पाकिस्तानी सत्ता को लेकर सुगबुगाहटें सुनाई पड़ी हैं। खबरें हैं कि पाकिस्तान सरकार संविधान के 18वें संशोधन में फेरबदल करना चाहती है। जबसे इमरान खान प्रधानमंत्री बने हैं, यह बात कही जा रही है कि अब देश के संविधान में भी बदलाव होगा। पिछले दो-तीन महीनों में यह सुगबुगाहट औपचारिक राष्ट्रीय विमर्श में शामिल हो गई है। हाल में एक टीवी शो में देश के योजना मंत्री असद उमर से 18वें संविधान संशोधन के बाबत सवाल पूछा गया, तो उन्होंने कहा कि इस संशोधन के कारण संघीय सरकार और सूबों के बीच रिश्तों को लेकर कुछ दिक्कतें पैदा हुई हैं। उन्हें दूर होना चाहिए।
Published: undefined
पाकिस्तानी संविधान में 18वां संशोधन मुशर्रफ के फौजी राज के बाद सन 2008 में हुई लोकतंत्र की वापसी की देन है। अप्रैल, 2010 में इसे तब पास किया गया था जब देश में पीपुल्सपार्टी के नेतृत्व में सरकार कायम थी। इस संशोधन का उद्देश्यसन 1973 के संविधान की मूल भावना की पुनर्स्थापना था। इसके पीछे देश के छोटे राज्यों की शिकायतों को दूर करना था जो अधिक स्वायत्तता चाहते थे। पर बात इतनी ही नहीं थी। उस संविधान संशोधन के पीछे उद्देश्य देश की संसदीय प्रणाली को वापस लाना था।
Published: undefined
संसद ने राष्ट्रपति के उस अधिकार को खत्म कर दिया जिसके तहत वह देश की संसद को बगैर किसी कारण के बर्खास्त कर सकते थे। इसके अलावा पाकिस्तान के पश्चिमोत्तर सीमा प्रांत का नाम खैबर पख्तूनख्वाकर दिया गया। जनरल मुशर्रफ और उसके पहले जनरल जिया-उल- हक के कार्यकाल में राष्ट्रपति के पास असीमित अधिकार आ गए थे। इस संशोधन के साथ पहली बार देश में किसी राष्ट्रपति के अधिकार कम किए गए थे। देश की संसद को भंग करने की ताकत जनरल जिया-उल-हक के कार्यकाल में लाए गए आठवें संविधान संशोधन से जोड़ी गई थी। इसके बाद जब नवाज शरीफ दूसरी बार प्रधानमंत्री बने, तो 13वें संविधान संशोधन के मार्फत इस ताकत को खत्म कर दिया गया। इसके बाद जब परवेज मुशर्रफ सत्ता में आए तो उन्होंने 17वें संविधान संशोधन के माध्यम से इस अधिकार को फिर से वापस अपने हाथ में ले लिया।
Published: undefined
बहरहाल सन 2010 के 18वें संविधान संशोधन का परिणाम यह हुआ कि देश में पहली बार 2008 से 2013 तक एक चुनी हुई सरकार अपना कार्यकाल पूरा कर पाई और उसके बाद 2013 से 2018 तक दूसरी सरकार ने भी अपना कार्यकाल पूरा किया। इस दौरान देश की चुनी हुई सरकारों को अस्थिर करने का काम वहां की न्यायपालिका ने किया। 18वें संविधान संशोधन ने इतना ही नहीं किया, देश की संघीय व्यवस्था को भी नए सिरे से परिभाषित करने का काम किया। अब सवाल है कि इमरान खान की सरकार क्या चाहती है? क्या वह राष्ट्रपति की शक्तियां वापस लाना चाहती है? या संघीय व्यवस्था में केंद्र की ताकत बढ़ाना चाहती है? ऐसे वक्त में जब देश कोरोना की मार से व्याकुल है, संविधान संशोधन की बातें क्यों उठ रही हैं?
Published: undefined
इमरान खान सरकार बड़े-बड़े दावों के साथ आई थी, पर हालात सुधरने के बजाय बिगड़े हैं। हालांकि तहरी के पाकिस्तान (पीटीआई) सरकार ने ऐसा कोई दस्तावेज जारी नहीं किया है जिसमें संविधान संशोधन की दिशा दिखाई पड़ती हो, पर इस संभावना से इंकार भी नहीं किया है। कानूनी मामलों की संसदीय सचिव बैरिस्टर मलीका बोखारी ने कहा है कि संविधान निरंतर विकासमान होते हैं। उनमें देश-काल के अनुरूप बदलाव होते रहते हैं। पीटीआई सरकार की धारणा है कि 18वें संविधान संशोधन और राष्ट्रीय वित्त आयोग (एनएफसी) अवॉर्ड पर पुनर्विचार करने की जरूरत है। संविधान संशोधन के लिए संसद में दो तिहाई बहुमत की जरूरत होगी, जो तभी संभव होगा जब दूसरे दलों का सहयोग मिले।
Published: undefined
सरकार की इस सफाई के बावजूद यह सवाल अपनी जगह है कि वास्तव में इस विचार के पीछे क्या कारण हैं? जिन्ना इंस्टीट्यूट के डायरेक्टर प्रोग्राम्स सलमान जैदी का कहना है कि अगस्त, 2018 में जब से इमरान सरकार आई है, इस बात की लगातार कोशिश हो रही है कि जनता अध्यक्षीय प्रणाली का समर्थन करे। दूसरी तरफ, हाल में ‘डॉन’ में प्रकाशित अपने एक लेख में टिप्पणीकार जाहिद हुसैन ने लिखा है कि 18वें संशोधन की भावना को खत्म करने का डर बहुत सही नहीं है। अलबत्ता सत्ता के गलियारों में महसूस किया जा रहा है कि उस संशोधन के कारण सरकार की ताकत कम हुई है जो देश की माली हालत के खराब होने का एक बड़ा कारण है।
Published: undefined
पीटीआई सरकार के आने के बाद से इस पर चर्चा होने के कारण पीपीपी और दूसरे विरोधी दल इसे साजिश के रूप में देख रहे हैं और मान रहे हैं कि देश में अध्यक्षात्मक प्रणाली की वापसी का प्रयास हो रहा है। पर ऐसा कोई संकेत नहीं मिलता जिससे इस अंदेशे पर यकीन किया जाए। 18वें संविधान संशोधन को अब रद्द करना संभव नहीं है। इसके लिए सभी दलों की आमराय कायम करनी होगी। वस्तुतः इस संशोधन ने 1973 के संविधान को ओवरहॉल कर दिया था जिसे अब खत्म करना संभव ही नहीं।
Published: undefined
यह विमर्श ऐसे वक्त में शुरू हुआ है जब पाकिस्तान एक तरफ आर्थिक रूप से कमजोर है और दूसरी तरफ वह धार्मिक कट्टरपंथ की दशा और दिशा के व्यामोह से घिरा है। माना जाता है कि इमरान खान देश की सेना के आशीर्वाद से सत्ता में आए हैं और इसके बदले में उन्होंने पिछले साल नवंबर में जनरल कमर जावेद बाजवा का कार्यकाल तीन साल के लिए बढ़ाया था। इतना बड़ा फैसला करते हुए उन्होंने नादानी बरती थी और प्रक्रियाओं का पालन नहीं किया। इस पर देश के सुप्रीम कोर्ट ने उनकी खिंचाई भी की। बहरहाल इस साल जनवरी में उन्होंने संसद से सेना अधिनियम 1952 में संशोधन पास तो करा लिया, पर सैनिक अफसरों के एक तबके से दुश्मनी मोल ले ली है। जनरल बाजवा का कार्यकाल जब नवंबर, 2022 में खत्महोगा, तब तक सेना के 20 जनरल रिटायर हो जाएंगे। इस वक्त जब अफगानिस्तान और कश्मीर में गतिविधियां तेज चल रही हैं, तब इमरान खान की सरकार बड़े कमजोर विकेट पर खड़ी दिखाई प ड़रही है। इस पर भी नजर रखिए। किसी भी वक्त कुछ भी हो सकता है।
Published: undefined
Google न्यूज़, नवजीवन फेसबुक पेज और नवजीवन ट्विटर हैंडल पर जुड़ें
प्रिय पाठकों हमारे टेलीग्राम (Telegram) चैनल से जुड़िए और पल-पल की ताज़ा खबरें पाइए, यहां क्लिक करें @navjivanindia
Published: undefined