जस्टिस लोया मामले में जांच की कोई जरूरत नहीं ! मक्का मस्जिद बम धमाके में हिंदुत्व के हीरो असीमानंद दूध के धुले हैं ! साध्वी प्रज्ञा ठाकुर से पाक-साफ शायद दुनिया में कोई हुआ ही नहीं ! गुजरात में मोदी सरकार की पूर्व मंत्री रहीं माया कोडनानी का अहमदाबा दंगों से कुछ लेना-देना ही नहीं ! यह वे तमाम लोग हैं जो प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से बीजेपी और संघ से जुड़े हुए है। निचली अदालतों से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक किसी भी अदालत को इनमें कोई अपराध करने वाला नजर नहीं आता। अब इन फैसलों के बाद फैज़ अहमज फैज़ की टिप्पणी कि, ‘किसे वकील करें, किससे मुंसिफी चाहें’ तो फिर क्या करें?
एक दौर था जब पाकिस्तान में सेना ने बगावत कर दी थी और वहां पर लोकतंत्र का गला घोंट दिया गया था, तो वहां का सुप्रीम कोर्ट पाकिस्तान की सैनिक सरकार के हित में होने वाले हर फैसले पर मुहर लगा देता था। आज भी जब पाकिस्तान में हाफिज़ सईद दैसे किसी पाकिस्तानी सेना के पिट्ठू को लोकतांत्रिक सरकार जेल में भेज देती है तो पाकिस्तान की कोई न कोई सरकार हाफिज़ सरकार की रिहाई का हुक्म सुना देती है। क्या असीमानंद और साध्वी प्रज्ञा भी आरएसएस के इशारों पर चलने वाली सरकार के लिए उतने ही अहम नहीं हैं जितने कि पाकिस्तान में सैन्य शासन के लिए हाफिज सईद ?
अर्थ यही हुआ कि वह पाकिस्तान सरकार के पिट्ठू हों या भारत सरकार के पिट्ठू, दोनों देशों की न्यायपालिका के लिए सरकारी पिट्ठू कोई अपराधी हो ही नहीं सकते। भले ही उन पर किसी जज की हत्या का आरोप हो, भले उन पर किसी इबादतगाह में धमाके कर निर्दोष लोगों की हत्या का आरोप हो या भले वह किसी हिंसक भीड़ का नेतृत्व कर किसी पूर्व सांसद की हत्या करवा दें।
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चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के जज लोया की मौत की जांच की मांग करने वाले मामले में फैसले के बाद तो कम से कम यह तय होता जा रहा है कि अब इस देश में किसी न्यायपालिका का रुख वही बनता जा रहा है जो पाकिस्तानी न्यायपालिका का रहा है। और यह बहुंत गंभीर चिंता का विषय है। यही कारण है कि जस्टिस मिश्रा को न्यायपालिका से फौरन बाहर करने की जरूरत है।
इसके दो कारण हैं। अगर जस्टिस मिश्रा को बाहर नहीं किया गया तो यह समझ लीजिए कि देश की न्यायपालिका भी पाकिस्तान की तरह बनकर रह जाएगी। फिर तो इस देश की व्यवस्था जब चाहेगी न्यायपालिका के कान उमेंठ कर जो चाहेगी फैसले करवा लेगी। इससे भी गंभीर चिंता यह है कि अगर देश का सुप्रीम कोर्ट जो चाहे फैसला दे, तो फिर निचली अदालतों में क्या मनमानी होगी, इसकी कल्पना ही की जा सकती है। इसलिए कुछ भी करना पड़े, न्यायपालिका को दुरुस्त करना बेहद जरूरी है। और ऐसा करने के लिए अगर चीफ जस्टिस को हटाने के लिए उनपर महाभियोग चलाने जैसा सख्त कदम उठाना पड़े, तो इसमें संकोच नहीं होना चाहिए।
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