इन दिनों हम एक ऐसे दौर से गुजर रहे हैं, जिसमें समाज के कमजोर वर्गों और धार्मिक अल्पसंख्यकों के विरूद्ध घृणा का भाव दिन दूनी, रात चौगुनी गति से बढ़ रहा है। हाल में ऐसी कई घटनाएं सामने आई हैं जिनमें बच्चों के अपहर्ता होने के शक में लोगों को पीट-पीटकर मार दिया गया। इसके पहले, गौमांस के मुद्दे पर कई लोगों की जान ले ली गई और बड़ी संख्या में दलितों को उनके पारंपरिक काम करने के लिए हिंसा का शिकार बनाया गया। ऐसा लगता है कि खून की प्यासी भीड़ को यह पता है कि सत्ताधारी उनके साथ हैं।
महेश शर्मा जैसे कुछ केंद्रीय मंत्रियों ने दादरी कांड के एक आरोपी के अंतिम संस्कार में हिस्सा लिया था। अभी हाल में केंद्रीय मंत्री जयंत सिन्हा ने उन लोगों का हार-फूल से स्वागत किया, जिन्हें अलीमुद्दीन को पीट-पीटकर मारने के आरोप मे सजा मिलने के बाद, हाईकोर्ट द्वारा जमानत दी गई थी। अब तो हालात यहां तक पहुंच गए हैं कि बलात्कार की घटनाओं को भी साम्प्रदायिक रंग दिया जा रहा है। यह शर्मनाक है कि कठुआ बलात्कार प्रकरण में हुई गिरफ्तारियों के विरूद्ध हिंदू एकता मंच द्वारा आयोजित विरोध प्रदर्शन में जम्मू-कश्मीर सरकार के तत्कालीन मंत्रियों चौधरी लालसिंह और चंद्र प्रकाश ने भाग लिया था।
अब मध्यप्रदेश के मंदसौर में हुई सामूहिक बलात्कार की घटना का इस्तेमाल एक समुदाय विशेष को बदनाम करने के लिए किया जा रहा है। इस घटना के दोनों आरोपी मुसलमान हैं। कई मुस्लिम संगठनों ने सार्वजनिक रूप से यह मांग की कि आरोपियों को फांसी की सजा दी जानी चाहिए। कांग्रेस सांसद ज्योतिरादित्य सिंधिया ने भी एक मोमबत्ती जुलूस का नेतृत्व करते हुए यह मांग उठाई कि इस जघन्य अपराध के दोषी व्यक्तियों को मौत के घाट उतारा जाना चाहिए। सोशल मीडिया में इस प्रदर्शन को इस रूप में प्रस्तुत किया गया मानो सिंधिया, आरोपियों की रिहाई की मांग कर रहे थे। इस जुलूस के छाया चित्रों को मॉर्फ कर मुसलमानों को बदनाम करने का प्रयास किया गया। सोशल मीडिया पर यह प्रचारित किया गया कि मुसलमानों ने मंदसौर में एक जुलूस निकालकर यह मांग की कि आरोपियों को रिहा किया जाना चाहिए।
मंदसौर मे जो जुलूस निकाला गया, उसमें प्रदर्शनकारी जो तख्तियां लेकर चल रहे थे, उनमें लिखा था कि ‘‘हम अपनी बच्चियों पर इस तरह के हमले सहन नहीं करेंगे। इस क्रूरता को रोका जाए‘‘। एक ट्वीट में कहा गया कि ‘‘एनसीआरबी (राष्ट्रीय अपराध अभिलेख ब्यूरो) की एक रपट के अनुसार, भारत, महिलाओं के लिए सबसे असुरक्षित देश है। भारत में बलात्कार के 95 प्रतिशत मामलों में आरोपी मुसलमान होते हैं। देश में बलात्कार की कुल 84,734 घटनाओं में से 81,000 में आरोपी मुसलमान हैं और 96 प्रतिशत पीड़ित, गैर-मुस्लिम हैं। मुसलमानों की आबादी में वृद्धि के साथ बलात्कार भी बढ़ेंगे‘‘।
यह ट्वीट शुद्ध बकवास है। एनसीआरबी अपने अभिलेखों में न तो पीड़ितों और ना ही आरोपियों के धर्म का विवरण देता है। इस ट्वीट, और ज्योतिरादित्य सिंधिया के बारे में प्रकशित सामग्री का खंडन ‘आल्टन्यूज‘ नामक एक पोर्टल ने किया। यह पोर्टल झूठी खबरों की जड़ में जाकर, अल्पसंख्यकों का दानवीकरण करने के कुत्सित प्रयासों को बेनकाब करता रहा है। हम सबको याद है कि उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर में हिंसा भड़काने के लिए एक ऐसे वीडियो का इस्तेमाल किया गया था, जिसमें मुसलमान-जैसे दिख रहे कुछ लोग, दो युवकों को पीट रहे थे। यह कहा गया कि यह वीडियो मुसलमानों द्वारा दो हिन्दू लड़कों की पिटाई का है। बाद में यह सामने आया कि यह वीडियो पाकिस्तान में दो कथित चोरों की पिटाई का था।
हाल में कैराना लोकसभा उपचुनाव में महागठबंधन की उम्मीदवार तब्बसुम हसन ने विजय हासिल की। अपनी जीत के बाद जारी एक बयान में उन्होंने कहा कि, ‘‘यह सत्य और महागठबंधन की जीत, और बीजेपी की केंद्र और राज्य सरकार की हार है। सभी लोगों ने आगे बढ़कर हमारा साथ दिया। मैं उन सबको धन्यवाद देती हूं।‘‘ सोशल मीडिया और टीवी पर होने वाली बहसों में यह बताया गया कि उन्होंने कहा कि यह ‘‘अल्लाह की जीत और राम की हार है।‘‘ यह झूठा उद्धरण फेसबुक के कई बीजेपी -समर्थक अकाउंट में पोस्ट किया गया। ‘योगी आदित्यनाथ-ट्रू इंडियन‘ फेसबुक पेज पर यह झूठा उद्धरण एक जून को पोस्ट किया गया और इसे भारी संख्या में शेयर किया गया।
बीजेपी ने हजारों ट्रोलों को भर्ती किया है जो सोशल मीडिया पर झूठ और फरेब का जाल बुनने में जुटे हुए हैं। स्वाति चतुर्वेदी का ‘आई एम ए ट्रोल‘ इस तथ्य को बेनकाब करता है। पहले से ही मुसलमान शासकों का दानवीकरण किया जा रहा है। यह कहा जा रहा है कि मध्यकाल में उन्होंने बड़ी संख्या में हिन्दू मंदिरों को ध्वस्त किया और तलवार की नोंक पर हिन्दुओं को मुसलमान बनाया। यह दुष्प्रचार भी आम है कि मुसलमान दर्जनों बच्चे पैदा करते हैं, उनकी कई पत्नियां होती हैं और वे आतंकी हैं। अब साम्प्रदायिक विचारधारा के प्रति प्रतिबद्ध लोगों ने सोशल मीडिया पर मोर्चा संभाल लिया है और वे निहायत बेशर्मी से तथ्यों को तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत कर रहे हैं। ऐसा बताया जाता है कि बीजेपी ने यह तय किया है कि वह अगले चुनाव के पहले, अपने लाखों कार्यकर्ताओं को सोशल मीडिया के जरिए पार्टी को चुनाव में लाभ दिलवाने के तरीके में प्रशिक्षित करेगी। घृणा का यह दानव दिन-ब-दिन बड़ा होता जा रहा है और जल्द ही हम सबके नियंत्रण से बाहर हो जाएगा।
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क्या केवल सोशल मीडिया को घृणा फैलाने के लिए दोषी ठहराया जा सकता है? क्या हम सबका यह कर्तव्य नहीं है कि हम सोशल मीडिया पर कही जा रही बातों की पुष्टि करने, उनका सच पता लगाने, का प्रयास करें? यह एक अच्छी खबर है कि ट्विटर ने सात करोड़ जाली अकाउंट को निलंबित करने का फैसला लिया है। इसके साथ ही, यह भी ज़रूरी है कि हम सोशल मीडिया पर किए जा रहे दुष्प्रचार और फैलाई जा रही घृणा का मुकाबला सड़कों पर करें। हम यह सुनिश्चित करें कि आम लोग यह जानें कि सच क्या है। हमारे पास फैसल खान जैसे कार्यकर्ता हैं, जो ‘खुदाई खिदमतगार‘ नामक अपने संगठन के झंडे तले शांति मार्च निकालते हैं। हर्षमंदर का ‘पैगाम-ए-मोहब्बत‘ भी इस दिशा में महत्वपूर्ण कार्य कर रहा है। इसके सदस्य भीड़ के हाथों पीट-पीटकर मारे गए लोगों के परिवारों से मिलकर सद्भाव का वातावरण बनाने का प्रयास कर रहे हैं। अयोध्या के एक महंत युगल किशोर शरण शास्त्री अपने शांति मार्चों के जरिए सहिष्णुता व सद्भाव का संदेश लोगों तक पहुंचा रहे हैं, यद्यपि उनके प्रयासों को अत्यंत कम प्रचार मिल रहा है। इस तरह के शांति योद्धाओं को हमें प्रोत्साहित करना होगा व उन्हें हर तरह से बढ़ावा देना होगा।
महात्मा गांधी ने हिंसा और घृणा से मुकाबला करने और सद्भाव का प्रचार करने को अपना केंद्रीय मिशन बनाया था। इन दिनों नकली समाचार (फेक न्यूज) देशवासियों के बीच बंधुत्व के भाव को गंभीर नुकसान पहुंचा रहे हैं। यह ज़रूरी है कि हम सद्भाव और सहिष्णुता के उन मूल्यों को पुनर्जीवित करें जो हमारे स्वाधीनता संग्राम के अविभाज्य अंग थे और जिन्हें हमारे संविधान में महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।
(ये लेखक के विचार हैं। नवजीवन का लेखक के विचारों से सहमत होना जरूरी नहीं है।अंग्रेजी से हिन्दी रूपांतरण अमरीश हरदेनिया द्वारा। (लेखक आईआईटी, मुंबई में पढ़ाते थे और सन् 2007 के नेशनल कम्यूनल हार्मोनी एवार्ड से सम्मानित हैं।)
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