प्रधानमंत्री मोदी के सपनों का न्यू इंडिया अब कोई कल्पना नहीं बल्कि हकीकत है। अब यह एक पुलिस राज के साथ ही उन्मादी गिरोहों और हिंसक भीड़ द्वारा नियंत्रित देश बन गया है। जिसमें मेनस्ट्रीम मीडिया की पूरी भागीदारी है और न्यायपालिका समेत सभी संवैधानिक संस्थाएं बस केवल नाम के लिए रह गईं हैं। यहां पुलिस और प्रशासन, हत्यारों और बलात्कारियों के साथ खड़े रहते हैं और इन सांठगांठ के विरुद्ध आवाज उठाने वाले मुजरिम करार दिए जाते हैं। जाहिर है, ऐसे देश में अभिव्यक्ति की आजादी तो कब की ख़त्म की जा चुकी है, और इससे सम्बंधित हरेक वैश्विक इंडेक्स में यह न्यू इंडिया फिसड्डी ही साबित होता है।
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लेखकों, बुद्धिजीवियों और कलाकारों के अभिव्यक्ति की आवाज पर नजर रखने वाली संस्था, पेन अमेरिका, पिछले तीन वर्षों से लिखने की आजादी इंडेक्स, यानि फ्रीडम टू राइट इंडेक्स, प्रकाशित करती है और इस इंडेक्स के हरेक संस्करण में इस सन्दर्भ में सबसे खराब 10 देशों में भारत शामिल रहता है। इस इंडेक्स का आधार हरेक देश में अपने काम या अपने लेखन के लिए विशुद्ध राजनैतिक कारणों से गिरफ्तार किये गए लेखकों, बुद्धिजीवियों या कलाकारों की संख्या होती है। इन इंडेक्स का नया संस्करण हाल में ही प्रकाशित किया गया है, जिसका आधार वर्ष 2021 के आंकड़े हैं, और हमारा देश इस इंडेक्स में 9वें स्थान पर है।
वर्ष 2021 में दुनिया के 36 देशों में कुल 277 लेखक/बुद्धिजीवी जेल में बंद थे। पहले स्थान पर चीन है, जहां 85 लेखक जेल में बंद हैं, दूसरे स्थान पर 29 ऐसे कैदियों के साथ सऊदी अरब है और तीसरे स्थान पर 26 कैदियों के साथ म्यांमार है। चौथे स्थान पर ईरान (21), पांचवें पर तुर्की (18), छठे पर ईजिप्ट (14), सातवें पर बेलारूस (10), आठवें पर वियतनाम (10), नौवें स्थान पर भारत (8) और दसवें स्थान पर एरिट्रिया (8) है। इस पूरी संख्या में 33 महिलायें भी हैं। राजनैतिक कारणों से लेखकों को जेल में डालने की घटनाएं साल-दर-साल बढ़ती जा रही हैं। वर्ष 2021 के लिए यह संख्या 277 है, वर्ष 2020 में संख्या 273 थी और वर्ष 2019 में यह संख्या 238 थी।
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इस इंडेक्स के अनुसार अपने देश में जिन 8 लेखकों/बुद्धिजीवियों को जेल में डाला गया है या फिर वे मुकदमे झेलते हुए बेल पर बाहर हैं, उनके नाम हैं – पी वरवरा राव, मुनव्वर फारुकी, सुधा भारद्वाज, वेर्नों गोंसाल्वीस, हैनी बाबू, गौतम नवलखा, अरुण फरेरा और आनंद तेलतुम्बडे। इसमें से पी वरवरा राव, मुनव्वर फारुकी और सुधा भारद्वाज को बिगड़ते स्वास्थ्य कारणों से जमानत मिली हुई है, जबकि शेष सभी अभी जेल में ही हैं। जाहिर है, ये सभी मानवाधिकार कार्यकर्ता और लेखक किसी आपराधिक कारणों से नहीं बल्कि केवल राजनैतिक कारणों से ही जेल में ठूंसे गए हैं।
इस इंडेक्स के अनुसार दुनियाभर में बंद 277 लेखकों में से 111 साहित्यिक लेखक हैं, 59 बुद्धिजीवी हैं, 68 कवि हैं, 27 गायक या गीतकार हैं, 12 प्रकाशक हैं, 8 अनुवादक हैं और 4 रंगकर्मी हैं। वर्ष 2021 में कवियों की संख्या वर्ष 2020 में जेल में डाले गए कवियों की संख्या, 57, से अधिक है। जाहिर है, फिर से कवितायें विद्रोह की आवाज बन रही हैं और ऐसा म्यांमार के कवियों ने स्पष्ट तौर पर दिखाया है। वर्ष 2021 में म्यांमार में दुनिया के किसी भी देश की तुलना में लेखकों, कवियों और कलाकारों को जेल की सलाखों के पीछे डाला गय।
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इंडेक्स में बताया गया है कि भारत, ईजिप्ट, वियतनाम और एरिट्रिया पिछले तीन वर्षों से लगातार लेखकों के लिए सबसे खतरनाक 10 देशों में शामिल हैं। कुल 277 लेखकों में से 11 आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे हैं, 62 की सजा 10 वर्ष या इससे अधिक समय के लिए है और 4 की जेल में ही मृत्यु हो चुकी है।
हमारे देश के लोग तो एक अजीब से नशे में डूब गए हैं, पर दुनिया हमारे प्रजातंत्र का हाल देख रही है और समझ भी रही है। अमेरिका के फ्रीडम हाउस की फ्रीडम इन द वर्ल्ड 2022 नामक रिपोर्ट में कुल 195 देशों में प्रजातंत्र का विश्लेषण किया गया है, इनमें से भारत समेत 56 देशों में आंशिक प्रजातंत्र है। पिछले वर्ष की रिपोर्ट में भी भारत आंशिक लोकतंत्र था। इस रिपोर्ट के अनुसार भारत को 100 में से कुल 66 अंक मिले हैं, जबकि वर्ष 2021 की रिपोर्ट में 67 अंक थे। रिपोर्ट के अनुसार भारत में राजनैतिक अधिकार तो बहुत हैं पर नागरिक अधिकारों की लगातार अवहेलना की जा रही है। राजनैतिक अधिकारों के तहत कुल 40 अंकों में से भारत को 33 अंक मिले हैं, जबकि नागरिक अधिकारों के तहत कुल 60 अंकों में से महज 33 अंक ही दिए गए हैं।
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रिपोर्ट के अनुसार पिछले कुछ वर्षों से दुनिया में प्रजातंत्र खतरे में है और सत्तावादी, राष्ट्रवादी और निरंकुश शासकों का वर्चस्व लगातार बढ़ता जा रहा है। दुनिया में पूरी तरह से प्रजातांत्रिक देशों की संख्या 83 है, जिनमें दुनिया की 20.3 प्रतिशत आबादी रहती है। कुल 56 देशों में आंशिक प्रजातंत्र है, जिसमें 41.3 प्रतिशत आबादी रहती है और 56 देशों में प्रजातंत्र नहीं है जिनमें दुनिया की 38.4 प्रतिशत आबादी है। दुनिया की 80 प्रतिशत आबादी ऐसे देशों में रहते है जहां जीवंत प्रजातंत्र नहीं है। इस रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2021 के दौरान दुनिया के 60 देशों में प्रजातंत्र का ह्रास हुआ है, जबकि 25 देशों में इसकी स्थिति में सुधार हुआ है।
एक दूसरी रिपोर्ट ग्लोबल एनालिसिस 2021 के अनुसार पिछले वर्ष के दौरान दुनिया के कुल 35 देशों में 358 मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की ह्त्या की गयी, और इसमें कुल 23 हत्याओं के साथ हमारा देश चौथे स्थान पर है। इस रिपोर्ट को दो संस्थाओं – फ्रंटलाइन डिफेंडर्स और ह्यूमन राइट्स डिफेंडर्स मेमोरियल ने संयुक्त रूप से प्रकाशित किया है। मानवाधिकार कार्यकर्ताओं की हत्या के सन्दर्भ में पिछले वर्ष की संख्या एक नया रिकॉर्ड थी, वर्ष 2020 में 25 देशों में कुल 331 कार्यकर्ताओं की ह्त्या की गयी थी। इससे इतना तो स्पष्ट है कि साल-दर-साल केवल हत्याओं की संख्या ही नहीं बढ़ रही है, बल्कि उन देशों की संख्या भी बढ़ रही है, जहां ऐसी हत्याएं हो रही हैं। जाहिर है, ऐसी हत्यायों में बृद्धि का सबसे बड़ा कारण दुनिया में प्रजातंत्र का सिमटना और पूंजीवाद का प्रभाव बढ़ना है।
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